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उत्तरकाशी; बेटियों के जन्म का मामला : सवाल तो हैं, लेकिन क्या सच सामने आएगा?

स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट अभी तैयार नहीं हो सकी है। इसकी वजह खराब मौसम और दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियां बतायी गईं। जबकि इन्हीं हालात में महिला और बाल विकास विभाग ने अपनी सर्वेक्षण रिपोर्ट तैयार कर ली है!
प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : काफल ट्री

सच्चाई को स्वीकार करके ही स्थिति बदलने के प्रयास किये जा सकते हैं। उत्तरकाशी के 133 गांवों में एक भी लड़की के न जन्मने की बात सामने आई तो मंत्री से लेकर अधिकारी तक हरकत में आ गए। इस रिपोर्ट को सत्यापित करने के लिए रेड जोन में डाले गए इन 133 गांवों में दोबारा सर्वेक्षण कराया जा रहा है। एक सप्ताह से अधिक समय गुज़र जाने के बाद भी स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट तैयार नहीं हो सकी है। इसकी वजह खराब मौसम और दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियां बतायी गईं। जबकि इसी खराब मौसम और दुर्गम परिस्थितियों में महिला और बाल विकास विभाग ने अपनी सर्वेक्षण रिपोर्ट तैयार कर ली

स्वास्थ्य विभाग से अलग, महिला और बाल विकास विभाग ने भी आंगनबाड़ी केंद्रों के ज़रिये इन 133 गांवों में दोबारा सर्वेक्षण कराया। पिछले तीन महीने में यहां सिर्फ लड़कों के जन्म होने के स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों को उत्तराखंड के महिला सशक्तिकरण और बाल विकास विभाग के ताजा सर्वेंक्षण ने झुठला दिया। साथ ही दावा किया है कि इस अवधि में इन गांवों में 62 लड़कियां भी पैदा हुईं। ये सर्वेंक्षण राज्य की महिला सशक्तिकरण और बाल विकास मंत्री रेखा आर्य के निर्देश पर कराया गया। 

इसे पढ़ें : उत्तरकाशी : 133 गांवों में सिर्फ़ बेटों का जन्म संयोग या भ्रूण हत्या का परिणाम?

मंत्री रेखा आर्य ने ख़ारिज की कन्या भ्रूण हत्या की आशंका 

महिला और बाल विकास विभाग की रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तरकाशी के 6 विकास खंडों में आने वाले इन 133 गांवों में संचालित 158 आंगनबाड़ी केंद्रों में पिछले तीन महीने में कुल 222 बच्चे पैदा हुए जिनमें से 160 लड़के और 62 लड़कियां हैं। रिपोर्ट के मुताबिक भटवाड़ी और डुंडा विकास खंड में इस अवधि में 12-12 लड़कियांचिन्यालीसौड़ में आठनौगांव में 19, पुरोला में दो और मोरी में नौ लड़कियां पैदा हुईं। 
इन नतीजों के बाद मंत्री रेखा आर्य ने कन्या भ्रूण हत्या की आशंका को नकार दिया। उन्होंने कहा, ‘‘इन विकास खंडों में कन्या भ्रूण हत्या की आशंका भी निराधार साबित हुई है क्योंकि वहां बालिकाओं ने भी जन्म लिया।’’ हालांकिउन्होंने कहा कि सरकार इस मामले की तह तक जाने के लिए अपनी जांच जारी रखेगी और यह पता लगाने का प्रयास करेगी कि इन विकास खंडों में पिछले तीन माह में भ्रूण लिंगानुपात इतना कम क्यों रहा। 

उत्तरकाशी के ज़िलाधिकारी डॉ. आशीष चौहान ने इस मुद्दे पर बात करने से इंकार किया है। उनका कहना है कि जब तक स्वास्थ्य विभाग अपनी रिपोर्ट तैयार नहीं कर लेता, वे इस पर कुछ नहीं कहेंगे।

गलत नहीं थी पहली रिपोर्ट- स्वास्थ्य विभाग 

उत्तरकाशी की मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. डीपी जोशी ने इस मुद्दे पर सवाल करने पर अपने अधीनस्थ एडिशनल सीएमओ डॉ. श्रीश रावत से बात करायी। डॉ. रावत ने बताया कि अभी पूरी रिपोर्ट नहीं आई है। इसमें अभी दो-चार दिन का समय और लगेगा। उनके मुताबिक आसपास के गांवों की रिपोर्ट आ गई है। लेकिन खराब मौसम के चलते दूरस्थ गांवों की रिपोर्ट नहीं आ सकी है। एक अधिकारी के पास 3-4 गांव हैं। दुर्गम  भौगोलिक परिस्थिति और बरसात के चलते सर्वेक्षण कार्य पूरा नहीं हो सका है। उनका कहना है कि रिपोर्ट पहले भी गलत नहीं थी। अब भी गलत नहीं होगी। दिक्कत ये हुई कि पहले सिर्फ उस डाटा को उठाया किया गया जहां सिर्फ लड़के हुए। जिन 129 गांवों में सिर्फ लड़कियां पैदा हुईं उस डाटा को नहीं दिखाया गया। इसके साथ ही उन्होंने बिजली की किल्लत के चलते डाटा कम्पाइल न हो पाने की मजबूरी भी बतायी।

नाम न छापने की शर्त पर गांव का दौरा करने वाले एक अधिकारी ने बताया कि उन्होंने 133 में से 3 गांव का सर्वेक्षण किया। इसमें एक गांव में 7 लड़के और 2 लड़कियां दिखाई गई थीं, लेकिन जब वे वहां गए तो उन्हें 2 लड़के और 2 लड़कियां मिलीं। उनके मुताबिक दूसरे गांव में जन्मे बच्चों की संख्या इस गांव के नाम पर शिफ्ट हो गई थी। दूसरा गांव, जहां सिर्फ 3 लड़कों का जन्म दिखाया गया, वो दोबारा सर्वेक्षण में सही पाया गया। तीसरा गांव, जहां सिर्फ 5 लड़कों का जन्म दिखाया गया, वहां 5 लड़कों के साथ एक लड़की का जन्म भी पाया गया।

उत्तरकाशी में क्यों गिर रहा लिंगानुपात

ये तो तय है कि उत्तरकाशी में लैंगिक अनुपात में जबरदस्त गिरावट आई है, जबकि एक समय ये जिला लैंगिक अनुपात के लिए राज्य में अव्वल स्थान पर हुआ करता था।

वर्ष 2001 के जनगणना आंकड़ों के मुताबिक यहां 6 वर्ष तक के आयु वर्ग में लैंगिक अनुपात प्रति हज़ार लड़कों पर 942 लड़कियों का था। उत्तराखंड के ज़िलों में इस लैंगिक अनुपात के साथ उत्तरकाशी शीर्ष पर था। हालांकि यह स्थिति भी कोई अच्छी नहीं थी, लेकिन वर्ष 2011 के जनगणना आंकड़ों के मुताबिक तो प्रति हज़ार लड़कों पर यहां लड़कियों की संख्या गिरकर 916 हो गई। हालांकि अब भी यह अन्य ज़िलों में शीर्ष पर है।

वर्ष 2019 में आर्थिक सर्वेक्षण के दौरान राज्य सरकार ने पर्वतीय जिलों में शिशु लिंगानुपात में तेजी से गिरावट और राज्य के औसत से कम होने पर चिंता जतायी। साथ ही ये माना गया कि लिंगानुपात में गिरावट की वजह शिक्षा, रोजगार या पलायन तो नहीं हो सकता।

लैंगिक विकास सूचकांक में उत्तरकाशी पहले स्थान पर कैसे

इस वर्ष तैयार उत्तराखण्ड की पहली मानव विकास रिपोर्ट- 2019 के मुताबिक राज्य का ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स 0.718 है। इस रिपोर्ट में ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्सलैंगिक विकास सूचकांकबहुआयामी गरीबी सूचकांक जैसे कि शिक्षास्वास्थ्य और जीवन स्तर के साथ राज्य में जन्म पर जीवन प्रत्याशा का आंकलन किया गया है। मानव विकास सूचकांक में देहरादून पहलेहरिद्वार दूसरे और उधमसिंह नगर तीसरे स्थान पर रहे। लैंगिक विकास सूचकांक में उत्तरकाशी पहले, रूद्रप्रयाग दूसरे और बागेश्वर तीसरे स्थान पर रहा। बहुआयामी गरीबी सूचकांक में उत्तरकाशी पहले,  हरिद्वार दूसरे और चम्पावत तीसरे स्थान पर रहा। ये रिपोर्ट इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन डेवलपमेंट नई दिल्ली के सहयोग से तैयार की गई है।

सिर्फ उत्तराखंड में नवजातों की मौत के मामले बढ़े - नीति आयोग

यहां नीति आयोग की रिपोर्ट भी देखी जा सकती है। नीति आयोग की वर्ष 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2013-15 के बीच उत्तराखंड का लैंगिक अनुपात 844 रहा। उत्तराखंड से पीछे 831 के साथ सिर्फ हरियाणा है। बाकी सभी राज्यों की स्थिति उत्तराखंड से बेहतर है। 

इस वर्ष जून में आई नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में देश के 21 राज्यों में उत्तराखंड पिछले वर्ष की 15वीं रैकिंग से फिसलकर 17वें स्थान पर आ गया। इस रिपोर्ट के मुताबिक भी लैंगिक अनुपात, शिशु मृत्युदर और नवजात शिशु मृत्यु दर के मामले में उत्तराखंड का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा है। नवजात मृत्युदर (एनएमआर) यानी प्रति एक हज़ार डिलिवरी पर जन्म से 28 दिन के भीतर होने वाली मौत है। वर्ष 2015 से 2016 के बीच देश के ज्यादातर राज्यों में एनएमआर में गिरावट आई है। सिर्फ उत्तराखंड में नवजातों की मौत के मामले बढ़े हैं। प्रति हज़ार बच्चों के जन्म पर इस दौरान ये 28 से बढ़कर 32 पर पहुंच गया।

रिपोर्ट बताती है कि स्वास्थ्य सुविधाओं के 23 इंडिकेटर्स में से तकरीबन सभी में राज्य का प्रदर्शन बेहद निराशा जनक रहा है। 

तो इन आंकड़ों से जूझते हुए ये बात समझ आती है कि कुदरत तो ऐसा नहीं कर सकती, जिससे साल दर साल किसी एक जिले में लड़कियों की संख्या कम होती जाए। इस सदी की शुरुआत में उत्तरकाशी में जितनी लड़कियां जन्मीं, एक दशक के सफ़र के बाद ये संख्या और कम हो गई। महिला और बाल विकास विभाग की हालिया रिपोर्ट में तो संदेहास्पद 133 गांवों में 160 लड़के और 62 लड़कियां जन्मीं। इसके आधार पर वर्ष 2021 के जनगणना सूची से कितनी ही लड़कियां जन्म लेने से पहले ही बाहर हो जाएंगी। प्रकृति के आंकड़े इतने कठोर नहीं हो सकते और कन्या भ्रूण हत्या से इंकार नहीं किया जा सकता।

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