उत्तर प्रदेशः 12वीं कक्षा तक 95% लड़कियां ड्राप आउट
उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री कार्यालय के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से 28 अगस्त को एक ट्वीट किया गया। ट्वीट में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हवाले से लिखा है कि “प्रदेश में बेटियां सुरक्षित स्कूल जा रही हैं। माताएं-बहनें बिना किसी भय के घर से बाहर निकल रही हैं। उनकी सुरक्षा पर कोई भी सेंध लगाने का दुस्साहस नहीं कर सकता। प्रदेश गुंडागर्दी और दंगों से मुक्त है।” साथ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का फोटो भी लगाया गया है और एक स्कूली छात्रा का चित्र बनाया गया है।
ट्वीट में लड़कियों की शिक्षा और सुरक्षा, महिलाओं की घर से बाहर आवाजाही और प्रदेश में कानून-व्यवस्था बारे दावे किये गये हैं। ट्वीट में यहां तक दावा किया गया है कि उत्तर प्रदेश गुंडागर्दी और दंगों से मुक्त है। क्या सचमुच स्थिति ऐसी है? आइये, पड़ताल करते हैं।
उत्तर प्रदेश में लड़कियों की शिक्षा
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दावा कर रहे हैं कि लड़कियां सुरक्षित स्कूल जा रही हैं। लेकिन ये नहीं बता रहे कि कितनी लड़कियां स्कूल जा रही हैं और कितनी स्कूल में टिक पा रही हैं? हमने इन दावों के बहाने लड़कियों की शिक्षा पर एक नज़र डाली तो आंकड़े हैरान कर देने वाले थे। गौरतलब है कि वर्ष 2020-21 में उत्तर प्रदेश में प्रथम कक्षा में कुल 2,18,41,928 लड़कियों ने प्रवेश लिया। जबकि बारहवीं कक्षा में मात्र 10,84,468 लड़कियों ने नाम दर्ज़ कराया। यानी मात्र 4.9% लड़कियां ही 12वीं तक पहुंच पाई और लगभग 95% लड़कियां ड्राप आउट हो गई। यकीनन लड़कियों के ड्राप आउट का एकमात्र कारण अपराध और असुरक्षा नहीं है बल्कि और भी बहुत सारे कारण है। मसलन लड़के की शिक्षा को प्राथमिकता, शादी की जल्दबाज़ी, घर से स्कूल की दूरी, लड़कियों की शिक्षा को ग़ैर-ज़रूरी समझना, पितृसत्ता वगैरह। लेकिन इसमें कोई दोराय नहीं कि किशोर लड़कियों की सुरक्षा भी मां-बाप की अहम चिंता है और ये भी ड्राप आउट का एक प्रमुख कारण है।
महिलाओं की घर से बाहर आवाजाही
ट्वीट में महिलाओं की घर से बाहर आवाजाही पर भी दावा किया गया है। लेकिन ये नहीं बताया गया कि महिलाओं की घर से बाहर आवाजाही की स्थिति क्या है? महिलाओं की घर से बाहर आवाजाही को मापने के लिए ये आधार बनाया जा सकता है कि आखिर कितनी महिलाएं नौकरी या कोई अन्य कार्य करती हैं? क्योंकि आमतौर पर इन्हीं महिलाओं की आवाजाही ज्यादा होती है और नियमित तौर पर इन्हें घर से बाहर आना-जाना होता है।
नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे की 2020-21 की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश की 15-49 आयु वर्ग की मात्र 15.5% महिलाएं ही ऐसी हैं जिन्हें साल भर के लिए कोई ऐसा काम मिला है जिसकी एवज़ में उन्हें पैसा दिया गया हो। यानी नियमित रोज़गार मात्र 15.5% महिलाओं को ही मिलता है। हैरानी की बात ये है कि वर्ष 2015-16 के मुकाबले इसमें कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है बल्कि पिछले पांच सालों में इस संख्या में 1.1% की कमी आई है। वर्ष 2015-16 में ये आंकड़ा 16.6% था।
उत्तर प्रदेश में गुंडागर्दी और अपराध
प्रदेश में कानून-व्यवस्था के बारे में भी लगातार उत्तर प्रदेश सरकार, भाजपा और स्वयं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दावे करते रहे हैं कि उत्तर प्रदेश मॉडल देश में उदाहरण पेश कर रहा है। इस ट्वीट में भी गुंडागर्दी और दंगा मुक्त उत्तर प्रदेश की घोषणा कर दी गई है। जबकि सच्चाई कुछ और ही है। एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में 3,55,110 अपराधिक मामले दर्ज़ किये गये हैं अपराध के मामले में उत्तर प्रदेश में देश में चौथे स्थान पर है। लेकिन दावा किया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश गुंडागर्दी से मुक्त हो गया है।
उत्तर प्रदेश में महिलाओं की सुरक्षा बारे गाहे-बगाहे दावे किये जाते रहे हैं। जबकि वास्तविक स्थिति इससे उलट है। एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में वर्ष 2020 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 49,385 मामले दर्ज़ किये गये। ये संख्या देश में सबसे ज्यादा है यानी महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले में उत्तर प्रदेश देश में नंबर वन है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं ट्रेनर हैं। आप सरकारी योजनाओं से संबंधित दावों और वायरल संदेशों की पड़ताल भी करते हैं। )
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