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उत्तराखंड: एआरटीओ और पुलिस पर चुनाव के लिए गाड़ी न देने पर पत्रकारों से बदसलूकी और प्रताड़ना का आरोप

"हमारा मोबाइल फोन ही नहीं, रिपोर्टिंग के सभी जरूरी उपकरणों को भी पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया। पुलिस ने हमारे परिजनों को भी सूचित करने का मौका नहीं दिया। पुलिसिया कार्रवाई के बारे में, हिरासत में लिए गए किसी भी पत्रकार के परिजनों को सूचना तक नहीं देने दी गई।"
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उत्तराखंड के ऊधम सिंह नगर में दिल्ली के जाने-माने पत्रकार एवं जनज्वार के संपादक अजय प्रकाश के साथ परिवहन और पुलिस अफसरों की बदसलूकी के चलते भाजपा एक बार फिर सवालों के घेरे में आ गई है। उत्तराखंड में सुशासन का दावा करने वाली धामी सरकार की पुलिस और एआरटीओ पर वरिष्ठ पत्रकार अजय प्रकाश के साथ बदसलूकी और दबंगई करने का आरोप है। यदि आरोप सच हैं तो यह लोकतंत्र के चौथे खंभे को कलंकित करने के लिए काफी है। इस घटना के बाद पत्रकारों का कहना है कि, "देश में अगर भाजपा है और मोदी हैं तो सचमुच कुछ भी मुमकिन है।"

वरिष्ठ पत्रकार अजय प्रकाश अपने सहयोगी पत्रकार के साथ उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के विधानसभा क्षेत्र में सात फरवरी को चुनाव कवरेज पर निकले थे। पुलबट्टा इलाके में सहायक परिवहन अधिकारी (एआरटीओ) विपिन कुमार सिंह पर आरोप है कि चर्चित पोर्टल "जनज्वार" की टीम को रोका और इनकी कार को जबरिया चुनाव ड्यूटी में लगाने पर अड़ गए। आपको बता दें कि पुलिस की हिरासत से पहले "जनज्वार" की टीम ने फेसबुक पर समूचे घटनाक्रम का लाइव प्रसारण किया था। इसके बाद पुलिसकर्मियों पर रोजनामचे पर संगीन धाराओं में फर्जी मामला दर्ज कर लिया। 

पुलिस पर यह भी आरोप है कि उसने सीनियर पत्रकारों की टीम को करीब छह-सात घंटे तक थाने में बैठाए रखा। आरोप यह भी है कि थाने में ले जाने से पहले पुलिस और परिवहन विभाग के अफसरों ने सभी पत्रकारों के फोन और गाड़ी के अभिलेख भी जब्त कर लिए थे। यही नहीं, पुलिस ने किसी को सूचना देने तक के लिए मौका नहीं दिया।

क्या पुलिस ने गढ़ी “फर्जी कहानी”?

घटनाक्रम के मुताबिक सात फरवरी 2022 की सुबह "जनज्वार" के संपादक अजय प्रकाश अपने साथी पत्रकार अंकित गोयल के साथ उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल की "चर्चित सीटों" की कवरेज करने के लिए दिल्ली से सुबह ट्रेन से निकले थे। सबसे पहले वह उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के गृह क्षेत्र खटीमा में चुनावी कवरेज करना चाहते थे, जिसके लिए उन्होंने रुद्रपुर से एक गाड़ी हायर की। आरोप है कि खटीमा से पहले पुलबट्टा इलाके में एआरटीओ विपिन कुमार सिंह ने "जनज्वार" के संपादक अजय प्रकाश की गाड़ी को यह कहते हुए आगे जाने से रोक दिया कि उनकी गाड़ी को चुनाव ड्यूटी में लगाना है। इसके बाद सिंह का आरोप है कि एआरटीओ के साथ मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने गाड़ी पर सवार मीडियाकर्मियों को जबरिया उतारना शुरू कर दिया। अजय प्रकाश का कहना है कि उन्होंने एआरटीओ विपिन कुमार सिंह को अवगत कराया कि उन्हें चुनाव कवरेज पर खटीमा जाना है और उनकी गाड़ी को छोड़ दिया जाए। सिंह के अनुसार इस पर एआरटीओ अपने पद और पहुंच की धौंस दिखाते हुए अभद्रता करने लगा। लाचार होकर जनज्वार की टीम ने फेसबुक पर समूचे घटनाक्रम का लाइव प्रसारण शुरू कर दिया।

वरिष्ठ पत्रकार अजय प्रकाश कहते हैं, "हमने एआरटीओ की अभद्रता के हर पहलू को अपने कैमरे में न सिर्फ कैद किया, बल्कि उसका सीधा प्रसारण भी दिखाया। एआरटीओ की अभद्रता और गुंडागर्दी को वीडियो में देखा जा सकता है। हमारा लाइव प्रसारण जैसे ही खत्म हुआ, एआरटीओ के इशारे पर पुलभट्टा पुलिस हमारे सभी सहयोगियों को अपने साथ थाने ले गई और सभी को हिरासत में ले लिया। हमारा मोबाइल फोन ही नहीं, रिपोर्टिंग के सभी जरूरी उपकरणों को भी पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया। पुलिस ने हमारे परिजनों को सूचना देने तक का मौका नहीं दिया। पुलिसिया कार्रवाई के बारे में, हिरासत में लिए गए किसी भी पत्रकार के परिजनों को सूचना तक नहीं देने दी गई।"

जनज्वार के संपादक अजय प्रकाश की पत्नी प्रेमा नेगी पुलिस और प्रशासन की नीयत पर सवालिया निशान लगाते हुए कहती हैं, "हमारे पति को अगर किसी शिकायत के आधार पर हिरासत में रखा गया तो क्या पुलिस का यह अधिकार नहीं है कि उनके परिजनों को इस बात की सूचना दी जाए। मैं लगातार अजय को फोन करती रही। फोन की घंटियां घनघनाती रहीं, लेकिन  पुलिसकर्मियों ने कॉल  रिसीव नहीं की। सभी का फोन पुलिस के कब्जे में था। बाद में हमने कुमाऊं मंडल के कुछ पत्रकारों से सहयोग के लिए निवेदन किया। पुलिस ने समूची कार्रवाई को मीडिया में लीक नहीं होने दिया। इस दौरान जनज्वार टीम को थाने में यातनाएं भी दी गईं।"

नेगी आगे कहती हैं, "मैं परेशान हो रही थी और हमारी घबराहट बढ़ती जा रही थी। शाम को करीब सात बजे पुलिसवालों ने हमारे पति से बात तब कराई, जब अजय ने उनसे दर्जनों बार गुहार लगाई। तब मुझे इस बात की जानकारी हुई कि हमारे पति को अकारण थाने में बैठाया गया है। पुलिसिया कार्रवाई की सूचना जब फेसबुक पर साझा की तो पत्रकार रूपेश कुमार सिंह मौके पर पहुंचे। उन्होंने मुझे आश्वस्त किया कि सब कुछ ठीक-ठाक है। इसके बाद पुलबट्टा थाना पुलिस ने पत्रकारों के खिलाफ़ संगीन धाराओं में फर्जी मामला दर्ज किया है।"

पुलिस ने कैसी गढ़ी “कहानी”

उत्तराखंड के ऊधम सिंह नगर के एआरटीओ विपिन कुमार सिंह ने जनज्वार टीम के खिलाफ पुलबट्टा थाने में जो रिपोर्ट दर्ज कराई गई है उसमें आईपीसी की धारा 186, 188, 269, 270, 353 और आपदा प्रबंधन अधिनियम 56 के तहत कार्रवाई की गई है। एआरटीओ विपिन कुमार सिंह ने अपनी तहरीर में कहा है कि वह किच्छा इलाके में रिलायंस पेट्रोल पंप के पास चुनाव के लिए वाहनों का अधिग्रहण कर रहे थे। अपराह्न 1.15 बजे वाहन संख्या-यूके 06 एटी 5271 को रोका और गाड़ी के अभिलेखों की मांग की गई। गाड़ी पर सवार लोगों ने वाहनों के कागजात नहीं दिए, अलबत्ता भीड़ के साथ हमलावर होकर सरकारी कार्य में व्यवधान पैदा करने लगे। इसी बीच आरटीओ आनंद प्रसाद गुप्ता भी पहुंच गए। बाद में पुलिस मौके पर पहुंची और बीच-बचाव किया।

"न्यूजक्लिक" से बातचीत में जनज्वार के संपादक अजय प्रकाश पुलिसिया कहानी को मनगढ़ंत और फर्जी बताते हैं। वह कहते हैं, "हमने एआरटीओ को गाड़ी के सभी अभिलेख पहले ही सौंप दिए थे, लेकिन वह हर हाल में हमारे वाहन को चुनाव ड्यूटी में लगाने पर अड़ा हुआ था। दबंग परिवहन अधिकारी की हर कारगुजारी को हमने अपने फेसबुक पर सीधे लाइव किया है, जिसे देखकर यह समझा जा सकता है कि उत्तराखंड के परिवहन अधिकारी और पुलिसकर्मी कितने मनबढ़ हैं। कवरेज के दौरान हमने न तो आदर्श आचार संहिता तोड़ी और न ही कोविड नियमों का उल्लंघन किया। इसके बावजूद हमारे ऊपर तमाम फर्जी धाराएं लगा दी गईं। पुलिस हिरासत से छूटने के बाद हम कुमाऊं मंडल में लगातार चुनावी कवरेज कर रहे हैं।"    

संपादक अजय प्रकाश की पत्नी प्रेमा नेगी मेनस्ट्रीम मीडिया के चाल-चरित्र और चेहरे से नकाब उतारते हुए कहती हैं, "ऊधम सिंह नगर से निकलने वाले अखबार दैनिक जागरण और हिन्दुस्तान के पत्रकार परिवहन और पुलिस अफसरों की भाषा बोलते नजर आए। इन अखबारों ने घटनाक्रम को तोड़-मरोड़कर पुलिस और परिवहन अफसरों के पक्ष में खबरों का प्रकाशन किया। जनज्वार की टीम छह घंटे तक थाने में पुलिसिया हिरासत में रही, लेकिन हमारा पक्ष जानने की कोशिश नहीं की गई। हमें लगता है कि मेनस्ट्रीम मीडिया के पत्रकार अब शर्म भी बेचकर खा गए हैं। एआरटीओ विपिन कुमार सिंह ने अपनी ओर से एक प्रेस रिलीज जारी की, जिसकी तहकीकात किए बगैर नामी अखबार के पत्रकारों ने पुलिस की फर्जी कहानी छाप डाली। इन अखबारों ने तो अजय का पक्ष जानने की कोशिश तक नहीं की। यह भी बताना जरूरी नहीं समझा कि एक पत्रकार और उनके साथी को हिरासत में लिया गया है, जबकि इस बात की सूचना इलाके के सभी मीडियाकर्मियों को थी कि एआरटीओ की शिकायत पर पुलबट्टा थाने में जनज्वार के संपादक अजय प्रकाश और उनके साथी को पुलिस ने हिरासत में रखा गया है। मेनस्ट्रीम  की मीडिया ने खबर को इस तरह से परोसा, जैसे अजय और उनके साथी पेशेवर अपराधी हों। यह स्थिति तब है जब सोशल मीडिया फेसबुक पर एआरटीओ विपिन कुमार सिंह की अभद्रता और पद की धौंस दिखाने वाले वीडियो को अब तक लाखों लोग देख चुके हैं। सोशल मीडिया पर एक बड़ा तबका एआरटीओ की बदतमीजी के लिए उन्हें सस्पेंड करने की मांग कर रहा है।"

सुशासन या गुंडाराज?

उत्तराखंड के ऊधम सिंह सनगर के पुलबट्टा थाने की पुलिस की तथाकथित हरकत ऐसे समय में उजागर हुई है जब भारतीय जनता पार्टी देश भर में सुशासन देने का दावा कर रही है। उत्तराखंड में पुलिसिया जुल्म और ज्यादती की कहानी नई नहीं है। साल 2019 में उत्तराखंड पत्रकार यूनियन ने यूपी और दिल्ली में पत्रकारों से मारपीट के विरोध में पुलिस महानिदेशक अनिल रतूडी को ज्ञापन दिया था। उस समय रतूडी ने भरोसा दिलाया कि प्रदेश में किसी भी पत्रकार के खिलाफ बिना जांच के कोई मुकदमा दर्ज नहीं होगा। तभी से उत्तराखंड में पत्रकार सुरक्षा संबंधी कानून बनाने की भी मांग उठाई जा रही है। डीजीपी अनिल रतूड़ी ने आश्वासन दिया था कि यदि किसी पत्रकार के खिलाफ किसी भी थाने अथवा चौकी में कोई शिकायत आती है तो उन पर सीधे मुकदमे दर्ज नहीं होंगे। शिकायत की जांच कराने के बाद ही कार्रवाई होगी। इस दौरान उत्तराखंड पत्रकार यूनियन के अध्यक्ष चेतन गुरुंग, प्रेस क्लब के महामंत्री गिरधर शर्मा, पूर्व अध्यक्ष नवीन थलेडी, भूपेंद्र कंडारी, क्लब के उपाध्यक्ष देवेंद्र नेगी, कोषाध्यक्ष प्रवीण बहुगुणा, अफजल अहमद, संदीप नेगी, रामगोपाल शर्मा, उपेंद्र सिंह, प्रवीण डंडरियाल, शशि शेखर, केएस बिष्ट, संजय नेगी, राजेश आदि पत्रकार मौजूद थे।

नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (इंडिया) के अध्यक्ष रास बिहारी उत्तराखंड में पत्रकारों पर फर्जी मुकदमे दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार करने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री से हस्तक्षेप करने के लिए कई बार अनुरोध कर चुके हैं। यूनियन ने पत्रकारों की गिरफ्तारी पर रोष व्यक्त करते हुए भारतीय प्रेस काउंसिल (पीसीआई) से भी शिकायत की है। पीसीआई को प्रेषित एक शिकायती पत्र में कहा था कि उत्तराखंड के कई जिलों में प्रशासनिक अधिकारी अपनी कमियों को उजागर होने पर मीडियाकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई कर रहे हैं। मीडियाकर्मियों को समाचार लिखने या दिखाने पर मुकदमा दर्ज किए जा रहे हैं। कई जिलों में पत्रकारों ने अपना विरोध भी दर्ज कराया है। उत्तराखंड में सब कुछ सही नहीं है।

एनयूजे की तरफ से प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को भेजे गए पत्र में जानकारी दी गई है कि पत्रकार राजीव गौड़ ने कोटद्वार में सरकार की खनन नीति को लेकर सवाल उठाए थे। खनन माफिया के बारे खबरें दिखाने पर राजीव गौड़ पर हमला किया गया। पुलिस ने खनन के पैसे लूटने का केस बना कर गिरफ्तारी के आदेश दिए थे। उनकी कुर्की की मुनादी सरे बाजार करवाई गई। सुप्रीम कोर्ट से ही उन्हें अग्रिम जमानत मिली है। पत्र में लिखा है कि क्राइम स्टोरी के संपादक राजेश कुमार और पत्रकार उमेश कुमार पर भी प्रदेश सरकार ने एफआईआर दर्ज कराई है। पत्रकार राजेश शर्मा की आधी रात में गिरफ्तारी की गई। मुख्यमंत्री के नजदीकी और पूर्व सलाहकार रहे हरेंद्र रावत द्वारा एक कमजोर सा आधार बनाकर उन्हें गिरफ्तार किया गया। उमेश शर्मा की गिरफ्तारी के लिए अनेक टीम बनाकर दबिश दी जा रही है। पहाड़ टीवी के दीप मैठाणी पर धारा 504, 151 धारा लगा कर फर्जी मुकदमा दर्ज किया गया है। एनयूजे अध्यक्ष रास बिहारी का कहना है कि, “लॉकडाउन के दौरान उत्तराखंड में अगल-अलग स्थानों पर पत्रकारों पर फर्जी मुकदमें दर्ज कर उत्तराखंड सरकार बार-बार मीडिया को धमका रही है और पत्रकारों को परेशान कर रही है। पत्रकारों के खिलाफ की गई कार्रवाई से उत्तराखंड में मीडिया की स्वतंत्रता को खतरा है। इस तरह की घटनाओं से मीडिया बिरादरी में नाराजगी बढ़ रही है।” उन्होंने प्रधानमंत्री और गृहमंत्री से तुरंत दखल देते हुए पत्रकारों को रिहा करने की मांग की है।

(लेखक विजय विनीत वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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