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वालमार्ट द्वारा फ्लिप्कार्ट का अधिग्रहण और भारत के लिए इसके मायने

भारतीय खुदरा बाजार में अमेज़ॅन और वॉलमार्ट की जोड़ी लाखों खुदरा विक्रेताओं के लिए खतरा है जो हमारी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करते हैं।
Flipkart

वालमार्ट द्वारा फ्लिपकार्ट के 14 अरब डॉलर के अधिग्रहण ने भारतीय वित्तीय प्रेस में एक बेचैनी पैदा कर दी है : भारत में अब तक का सबसे बड़ा सौदा, सबसे बड़ा वैश्विक ई-कॉमर्स अधिग्रहण इत्यादि। भारतीय खुदरा विक्रेताओं के लिए इसका क्या अर्थ है, जो 4 करोड़ लोगों को रोजगार देते हैं, अमेज़ॅन और वॉलमार्ट, दुनिया के दो सबसे क्रूर नियोक्ता हैं जो भारतीय बाजार पर हावी हो रहे हैं, इनका यहाँ कोई उल्लेख नहीं है। या फिर  बीजेपी सरकार बहु-ब्रांड के खुदरा में प्रवेश करने के लिए विदेशी पूंजी की अनुमति नहीं देने के अपने चुनावी  वादे का स्पष्ट उल्लंघन कर रही है। वे इसे "ईकॉमर्स" की नींव के तहत पोसना चाह रहे हैं। वैश्विक एकाधिकार दोनों, अमेज़ॅन और वॉलमार्ट अब पूरी तरह से भारत के खुदरा क्षेत्र पर हावी रहेगा।

भारत में होने वाली आपदा की सीमा को देखने के लिए, हमें केवल भारत में सबसे बड़ा ई-कॉमर्स प्लेटफार्म फ्लिपकार्ट में यह देखने की जरूरत है कि वे कितने लोगों को रोज़गार मुहैया कराते हैं। यह यानी फ्लिप्कार्ट ४ करोड़ खुदरा रोज़गार के मुकाबले भारत के खुदरा क्षेत्र में केवल 8,000 पूर्णकालिक कर्मचारियों और 20,000 अंशकालिक कर्मचारियों को रोज़गार देता है, ज्यादातर स्व-रोज़गार या परिवार श्रम के जरिए नियोजित करता है।

भारतीय पूंजीवादी वर्ग या उसके मुखपत्र मजदूरों की विपत्तियों के प्रति अनदेखी/प्रतिरोधी हो सकते हैं, या तो उनके कारखानों में या आमतौर पर बड़े पैमाने पर। लेकिन क्या ये 14 अरब डॉलर भारतीय अर्थव्यवस्था आएंगे? इसका जवाब न है। कंपनी में या फिर भारतीय अर्थव्यवस्था में केवल 2 अरब डॉलर ही आ सकते हैं। शेष, लगभग 12 अरब डॉलर, सीधे विभिन्न शेयरधारकों को भुगतान की जाने वाली राशि होगी - ज्यादातर इस पूँजी का हिस्सा उद्यम पूंजी- और भारतीय अर्थव्यवस्था में प्रवेश नहीं करेगा। चूंकि यह खरीद सिंगापुर में होगी, भारत फ्लिपकार्ट शेयरों की बिक्री से इन उद्यम निधियों को अर्जित बम्पर लाभ से फायदा भी नहीं उठा पाएगा। यह वोडाफोन मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का नतीजा है, जो प्रणव मुखर्जी, यूपीए सरकार के वित्त मंत्री के रूप में सुधार करने की कोशिश कर चुके थे, लेकिन फिर जेटली भी इसमें विफल रहे।

फ्लिपकार्ट की बिक्री के बड़े लाभार्थियों को देखने के लिए, आइए वर्तमान शेयरहोल्डिंग देखें। हम नीचे दी गई तालिका में, फ्लिपकार्ट में मौजूदा शेयरहोल्डिंग की जानकारी दे रहे हैं:

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जैसा कि उपर्युक्त तालिका में देख सकते है, मौजूदा शेयरहोल्डिंग का लगभग 90 प्रतिशत को वेंचर फंड कहा जाता है - वास्तविकता में यह गिद्ध फंड है – जिनके विदेशों में मुख्यालय हैं। उन्हें फ्लिपकार्ट की बिक्री से इन्हें भारी लाभ मिलेगा। इनमें से अधिकतर कंपनियां पूरी तरह से बाहर चली जायेंगी या फिर अधिग्रहित की जाएंगी। भारतीय अर्थव्यवस्था को इन शेयरों की बिक्री से इकन्नी का भी लाभ नहीं होगा।

मैं इन फंडों को गिद्ध फंड क्यों कहता हूँ? सॉफ़्टबैंक का उदाहरण यह स्पष्ट करेगा। उन्होंने केवल आठ महीने पहले फ्लिपकार्ट में 2.5 अरब डॉलर का निवेश किया था और अब उन्हें इस डील से 1.5 अरब डॉलर का मुनाफा होगा यानी (60 फीसदी मुनाफा)!

यह उद्यम निधि का पैटर्न है, संघर्षशील व्यवसाय में निवेश करना है जिसमें असली बाजार मूल्य है, और इसे भारी मुनाफा कमाने में तेजी से बेचने में मदद करेगा।

14 अरब डॉलर के लिए 77 प्रतिशत शेयरों की बिक्री के बाद, फ्लिपकार्ट का बाजार मूल्य 20 अरब डॉलर है। यह कैसे हुआ कि जो कंपनी लगातार नुकसान कर रही है – पिछले दस साल में जिसका 24,000 करोड़ या लगभग 3.5 अरब डॉलर रुपये का संचयी नुकसान हो। - वह अचानक 20 अरब डॉलर के लायक कैसे हो गयी?

डिजिटल पारिस्थितिक तंत्र में, या जिसे तकनीकी क्षेत्र के रूप में चित्रित किया जा रहा है, यह तत्काल लाभ नहीं है जो मायने रखता है। बाजार के विशिष्ट हिस्सों में इसका एकाधिकार बनाना है जो मायने रखता है। अमेज़ॅन को लाभ कमाने में पहले नौ साल लगे। जब गूगल ने अपना सर्च इंजन लॉन्च किया, और सर्च इंजन बाने जार में एकाधिकार बनाया, तो गूगल का कोई व्यावसायिक मॉडल नहीं था। तब इसका विज्ञापनों के उपयोग से अपने व्यापार मॉडल के रूप में विकसित करने का विचार था। यह वही मॉडल है जिस पर फेसबुक ने भी पालन किया था।

वेंचर कैपिटल, वित्त पूंजी का नवीनतम अवतार है, उन कंपनियों में निवेश करता है जो उन्हें लगता है कि वे एकाधिकार बनाएंगे। एक बार एकाधिकार बनने के बाद, वे जानते हैं कि इस एकाधिकार का उपयोग सुपर मुनाफे के लिए किया जा सकता है। एक बार एकाधिकार बनने के बाद, यह सुपर मुनाफे की उम्मीद है, जो इन तकनीकी फर्मों या डिजिटल एकाधिकार को उनका बाजार मूल्य प्रदान करता है। यही कारण है कि आज दुनिया की शीर्ष पांच कंपनियों को नीचे दी गई तालिका में देखा जा सकता है, जिनका डिजिटल एकाधिकार हैं।

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तब से, फेसबुक आठवें स्थान पर आ गया है, चीनी सोशल मीडिया विशाल और उद्यम निधि टेंसेंट पांचवें स्थान की तरफ बढ़ रहा है।

भारतीय खुदरा विक्रेताओं के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए वैश्विक बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अनुमति देने के मुद्दे पर बीजेपी के अपने चुनावी घोषणापत्र का उल्लंघन अन्य सभी मोर्चों पर उल्लंघन का दोहराव है, चाहे वह किसान, कर्मचारी या छात्र हों। बीजेपी विदेशी मल्टी ब्रांड रिटेलर्स (एफडीआई नियम) को भारतीय बाजार में प्रवेश करने की इजाजत देने के बारे में गंभीर नहीं रही है। इसने अमेज़ॅन को अनुमति दी, और फ्लिपकार्ट द्वारा विदेशी उद्यम पूंजी द्वारा अधिग्रहण के बाद, भारतीय बाजार में स्वतंत्र रूप से काम करने के लिए। ये स्पष्ट रूप से मल्टी ब्रांड खुदरा विक्रेता हैं। तथ्य यह है कि वे अपनी वेबसाइटों या ऐप्स के माध्यम से माल बेचते हैं, न कि ईंट और मोर्टार स्टोर्स के माध्यम से।

भारतीय मल्टी ब्रांड रिटेल मार्केट में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) की अनुमति नहीं है इसलिए बीजेपी और उसके वित्त मंत्री ने नियमों का उलंघन कर इन्हें इजाजत दी है? एक मुद्दा यह भी है कि दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका के माध्यम से भारत के खुदरा विक्रेताओं ने इसे बार-बार उठाया है।

बीजेपी का "जवाब" यह है कि ये ईकॉमर्स कंपनियां सीधे ग्राहकों को माल नहीं बेच रही हैं बल्कि खरीदारों और विक्रेताओं के लिए केवल "मीटिंग स्थान" के रूप में कार्य कर रही हैं। अमेज़ॅन या फ्लिपकार्ट द्वारा जाहिर तौर पर खरीदारी और बिक्री नहीं की जा रही है। भले ही हम और वित्त मंत्रालय जानते हैं कि यह सिर्फ वित्त मंत्रालय की कल्पना का एक ख़राब उदाहरण है।

वित्त मंत्री के रूप में अपने चार साल के कार्यकाल के बाद श्री जेटली को कहानी लिखनी शुरू करना चाहिए। ऐसा लगता है कि उन्होंने रोजगार पर काल्पनिक आंकड़े, जीडीपी विकास, बैंकों की गैर-निष्पादित संपत्ति आदि को खत्म करते हुए इस कला की महारत को हाशिल किया है।

किसी को अमेज़ॅन और वॉलमार्ट जैसी कंपनियों की श्रम प्रथाओं को भी देखने की जरूरत है। दोनों को सबसे  अपमानजनक नियोक्ता के रूप में पहचाना जाता है। अमेज़ॅन कार्यस्थल को कई कर्मचारियों द्वारा विषाक्त माना जाता है, क्योंकि वहां बेहद लंबे काम के घंटों, अपमानजनक मालिकों जो कर्मचारियों के साथ गाली-गलौज के साथ-साथ यौन उत्पीड़न की घटनाओं में लिप्त प[आये गए हैं ।

वॉलमार्ट का भी ऐसा ही रिकॉर्ड है, अब इसके कर्मचारियों यूनियनों में संगठित हो रहे हैं, और बेहतर काम करने की स्थितियों के लिए हड़ताल पर जा रहे है। वॉलमार्ट की एंटी-यूनियन नीतियां कुख्यात हैं, और वॉलमार्ट को अमेरिका में सबसे खराब कंपनी के रूप में जाना जाता है।

ये दोनों कंपनियां अपने कर्मचारियों को कम-से-कम वेतन का भुगतान करती हैं, अपने शीर्ष मालिकों और वेबसाइट चलाने वाली तकनीकी टीम के लिए यह मोटा वेतन सुरक्षित रखती हैं; या उन महिला/पुरुषों के लिए जो तकनीकी आधारभूत संरचना का हिस्सा हैं। उनके अमेरिकी कर्मचारियों का बड़ा हिस्सा खाद्य टिकटें और जीवित रहने के लिए कई अन्य सामाजिक सुरक्षा योजनाओं पर निर्भर करता है। कल्याणकारी योजनाएं श्रमिकों को सब्सिडी नहीं देती हैं, वास्तव में, वे बड़ी पूंजी को छुपा सब्सिडी प्रदान करते हैं। यह विभिन्न अन्य लाभों के अलावा है कि नवउदार सरकारें बड़ी पूंजी प्रदान कर रही हैं: कर कटौती से टैक्स हेवन के माध्यम से मनी लॉंडरिंग की अनुमति दी जाती है। आश्चर्य की बात नहीं है, टैक्स हेवन के सबसे बड़े लाभार्थियों में डिजिटल एकाधिकार ही हैं।

बीजेपी सरकार की नीतियां अमेरिकी नीतियों का क्लोन(परछाईं) हैं जो अमीरों के लिए टैक्स की छूट प्रदान करती हैं, और कामकाजी लोगों के लिए आकस्मिक रोजगार प्रदान करती हैं। यही कारण है कि भारत के व्यापार प्रेस और पत्रकार फ्लिपकार्ट अधिग्रहण पर गागा हैं। उनके लिए, आर्थिक पत्रकारिता का अर्थ है बड़ी पूंजी पर रिपोर्टिंग और वे कितने महान हैं; या पेज़ 3 के बराबर या बड़े व्यापार के प्रसिद्ध समाचार।

भारतीय खुदरा बाजार में अमेज़ॅन और वॉलमार्ट की जोड़ी उन लाखों खुदरा विक्रेताओं के लिए भयानक खतरा है जो हमारी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करते हैं। भारत के मोदीविजन में आपका स्वागत है: भारतीय लोगों के लिए कोई दृष्टि नहीं है, बल्कि बड़ी पूंजी, भारतीय या विदेशी के लिए दृष्टि है। भारतीय राष्ट्र और उसके लोगों के लिए, मोदी सरकार के पास केवल पेशकश करने के लिए नफरत है: जो अल्पसंख्यकों के खिलाफ, राष्ट्र- विरोधी धर्मनिरपेक्षतावादियों, उदारवादी और वामपंथ के खिलाफ निरंतर काम करती है।

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