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वे 20 बिंदू जो नागरिक संशोधन बिल के बारे में सबकुछ बताते हैं

नागरिकता संशोधन बिल के पक्ष और विपक्ष में बहस अपने चरम पर है। लोकसभा से यह बिल पारित हो चुका है। इस बिल पर हो रही बहस के बीच में यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि यह बिल क्या कहता है ? तो आइये समझते हैं इस बिल से जुड़ी वह सारी बातें , जो इस बिल पर चर्चा करने से पहले जाननी जरूरी है।
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1. आसान शब्दों में समझा जाए तो नागरिकता व्यक्ति और राज्यों के बीच संबंधों का एलान करता है। अगर कोई नागरिक नहीं है तो इसका मतलब है कि उसका कोई राज्य नहीं है। कोई देश नहीं है। उसे राज्य से वैसे अधिकार नहीं मिले हैं जो नागरिकों को मिलते हैं। भारत के संविधान के अनुच्छेद 5 से 11 के बीच नागरिकता का उल्लेख है। इसी आधार पर नागरिकता अधिनियम 1955 बना, जिसमें समय- समय में संशोधन होते रहे।

2. नागरिकता अधिनियम, 1955 यह निर्धारित करता है कि किसी को किन आधारों पर नागरिकता मिलेगी? एक व्यक्ति को भारत की नागरिकता मिल जाती है, अगर उसका जन्म भारत में हुआ हो या उसके माता-पिता में से कोई एक भारत का नागरिक हो या वह एक नियत अवधि से भारत में रह रहा हो।

3. नागरिकता के तय करने के नियम के बाद सवाल उठता है कि आखिरकार अवैध प्रवासी कौन होते हैं? नागरिकता अधिनियम 1955 के तहत अवैध प्रवासी वह विदेशी होते हैं, जो भारत में बिना किसी वैध दस्तवेजों के रहते हैं। यानी जिनके पास भारत का पासपोर्ट और वीजा नहीं होता है। इसके साथ उन्हें भी अवैध प्रवासी कहा जाता है, जो वैध दस्तावेजों के सहारे भारत में घुसते तो हैं लेकिन इन दस्तावेजों में लिखी अवधि को नकारते हुए अधिक अवधि तक ठहरने वाले बन जाते हैं। यानी दस्तावेजों में लिखित समय से अधिक समय भारत में रहना जिसकी इजाजत भारत सरकार से नहीं मिली होती है।

4. लेकिन नागरिकता अधिनियम में अवैध प्रवासियों के मामलें में साल 2015-16 में कुछ बदलाव हुए। केंद्र सरकार ने फॉरेनर एक्ट, 1946 और पासपोर्ट एक्ट 1920 में बदलाव के लिए दो नोटिफिकेशन जारी किये। ऐसा इसलिए क्योंकि अवैध प्रवासियों का निर्धारण फॉरेनर एक्ट,1946 और पासपोर्ट एक्ट 1920 के तहत किया जाता है। इन्हीं कानूनों के तहत केंद्र सरकार विदेशियों के भारत में प्रवेश, निष्कासन और निवास को नियंत्रित करती है।

इन नोटिफिकेशनों के जरिये केंद्र सरकार ने यह नियम बनाया कि बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से 31 दिसम्बर 2014 से पहले आये गैर मुस्लिमों समुदाय के लोगों के लिए किसी भी दस्तावेज की जरूरत नहीं होगी। यानी 31 दिसम्बर 2014 से पहले बांग्लादेश,पाकिस्तान,अफगानिस्तान से आये हिन्दू, सिक्ख, जैन, पारसी, जैन, बौद्ध समुदाय से जुड़े लोगों को जरूरी दस्तावेजों के अभाव में भी अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा। यानी साल 1955 के कानून में बदलाव आया। साल 1955 के नागरिकता कानून से जहां कानून का उल्लंघन करने वाले सभी अवैध प्रवासी थे, वहीं साल 2016 के नोटिफिकेशन के जरिये यह कहा गया कि पाकिस्तान,अफ़ग़निस्तान और बांग्लादेश से आये गैर मुस्लिम समुदाय के अवैध प्रवासियों को नागरिकता मिल जायेगी। साथ में यह भी पता नहीं चला कि भारतीय सरकार ने किस आधार पर 31 दिसम्बर 2014 का कट ऑफ डेट बनाया।

5. इसके बाद नागरिकता अधिनियम 1955 में इन बदलावों को स्थायी बनाने के लिए साल 2016 में बिल लाया गया। जनवरी 2019 में यह बिल लोकसभा से पास हो गया। लेकिन राज्यसभा में यह पास नहीं हो सका, जिसके बाद सोलहवीं लोकसभा का कार्यकाल खत्म होने के बाद यह बिल अर्थहीन हो गया। इसके बाद इस साल  दिसंबर 2019 में इस बिल को फिर से प्रस्तुत किया गया है।

6. बिल में कहा गया है कि अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से बिना वैध दस्तावेज़ो के भारत में प्रवेश करने के बावजूद अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों को अवैध नहीं माना जाएगा और इन्हें भारत की नागरिकता दी जाएगी। इन अल्पसंख्यक समुदायों में छह गैर-मुस्लिम धर्मों अर्थात् हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई पंथ के अनुयायियों को शामिल किया गया है।

7. इन धर्मों के अवैध प्रवासियों को उन्हें विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 के तहत देश से बाहर जाने की स्थिति का सामना नहीं करना पड़ेगा।

8.1955 का अधिनियम कुछ शर्तों (Qualification) को पूरा करने वाले किसी भी व्यक्ति को देशीयकरण द्वारा नागरिकता प्राप्ति के लिये आवेदन करने की अनुमति प्रदान करता था। इसके लिये अन्य बातों के अलावा उन्हें आवेदन की तिथि से 12 महीने पहले तक भारत में निवास और 12 महीने से पहले 14 वर्षों में से 11 वर्ष भारत में बिताने की शर्त पूरी करनी पड़ती है। लेकिन यह संशोधित बिल अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी तथा ईसाई प्रवासियों के लिये 11 वर्ष की शर्त को घटाकर 5 वर्ष करने का प्रावधान करता है।

9. बिल के तहत यह प्रावधान है कि नागरिकता हासिल करने पर ऐसे व्यक्तियों को भारत में उनके प्रवेश की तारीख से भारत का नागरिक माना जाएगा और अवैध प्रवास या नागरिकता के संबंध में उनके खिलाफ सभी कानूनी कार्यवाही बंद कर दी जाएंगी।

10.अवैध प्रवासियों के लिये नागरिकता संबंधी ये प्रावधान संविधान की छठी अनुसूची में शामिल असम, मेघालय, मिज़ोरम और त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्रों पर लागू नहीं होंगे। इसके अलावा ये प्रावधान बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन, 1873 के तहत अधिसूचित ‘इनर लाइन’ क्षेत्रों पर भी लागू नहीं होंगे। आपको बता दें कि इन क्षेत्रों में भारतीयों की यात्राओं को ‘इनर लाइन परमिट’ के माध्यम से विनियमित किया जाता है। मौजूदा समय में यह परमिट व्यवस्था अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम और नगालैंड में लागू है। इस कानून के साथ यह परमिट व्यवस्था मणिपुर में लागू हो रही है।

11.इस बिल के अंतिम पेज पर इस बिल को लाने की वजह लिखी है। इसमें मुख्य कारण के तौर पर धार्मिक प्रताड़ना को दर्ज किया गया है। यानी पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में इस्लाम के अलावा अन्य धर्मों के लोग प्रताड़ित होते हैं और भारत उन्हें संरक्षण देगा। इस निष्कर्ष पर भारत कैसे पहुंचा ? इस पर बहुत अधिक विवाद है।

12.इसलिए बहुत सारे जानकारों का कहना है कि यह बिल एक धर्म विशेष के खिलाफ है और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है। भारत के संविधान के मूलभूत ढांचे धर्मनिरपेक्षता पर हमला है। साथ में यह संवैधानिक भावनाओं के तहत नहीं है। संवैधानिक भावनाओं यानी यह कि भारत के संविधान में लिखे शब्दों और शब्दों के बीच मौजूद खाली जगहों को पूरी तरह से पढ़ने के बाद भी ऐसा कोई निष्कर्ष नहीं निकलता कि भारत की नागरिकता के संदर्भ में ऐसा कानून बनाया जाए।

13. नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर पूर्वोत्तर राज्यों मुख्यतः असम में खासा विरोध हो रहा है, क्योंकि वे इस विधेयक को वर्ष 1985 के असम समझौते (Assam Accord) से पीछे हटने के एक कदम के रूप में देख रहे हैं। असम के अलावा पूर्वोत्तर के कई अन्य राज्यों में भी इसे लेकर काफी विरोध हो रहा है, क्योंकि वहाँ के नागरिकों को नागरिकता संशोधन विधेयक के कारण जननांकीय परिवर्तन का डर है।

14. असम में NRC की अंतिम सूची में 19,06,657 लोगों का नाम शामिल नहीं किया गया था, आपको बता दे कि NRC से बाहर होने वालों की सूची में हिंदू और मुस्लिम दोनों ही धर्म के लोग शामिल थे। नागरिकता संशोधन विधेयक में NRC से जुड़ा एक विवाद यह भी है कि इसके आने से असम के गैर-मुस्लिमों को नागरिकता प्राप्त करने का एक और अवसर मिल जाएगा, जबकि वहाँ के मुस्लिमों को अवैध प्रवासी घोषित कर उन पर विदेशी कानून लागू किये जाएंगे। जानकारों का मानना है कि इससे NRC की पूरी प्रक्रिया का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा।

15. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 की भाषा है - राज्य, भारत के राज्यक्षेत्र किसी भी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा। यानी अनुच्छेद 14 भारतीय तथा विदेशी नागरिकों सभी को समानता की गारंटी देता है। यह अधिनियम किसी भी तरह के वर्गीकरण की इजाजत तभी देता है, जब यह उचित एवं तर्कपूर्ण उद्देश्य के लिये किया जाए। साथ में वर्गीकरण भी तर्कपूर्ण हो। इसका मकसद भी मनगढंत है और नागरिकता देने के लिए धर्म को आधार बनाया जाए यह भी तर्कपूर्ण नहीं है।

16.ऐसे में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद के तहत प्रदत्त समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है, क्योंकि यह अवैध प्रवासियों के बीच (1) उनके मूल देश (2) धर्म (3) भारत में प्रवेश की तारीख और (4) भारत में रहने की जगह आदि के आधार पर भेदभाव करता है। विधेयक में बांग्लादेश और पाकिस्तान को शामिल करने के पीछे तर्क दिया गया है कि विभाजन से पूर्व कई भारतीय इन क्षेत्रों में रहते थे, परंतु अफगानिस्तान को शामिल करने के पीछे कोई तर्कपूर्ण व्याख्या नहीं दी गई है।

17 . सरकार बार-बार यह दोहरा रही है कि इस बिल का मात्र मकसद धार्मिक आधार पर उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता प्रदान करना है, परंतु यदि असल में ऐसा है तो बिल में अफगानिस्तान, बांग्लादेश एवं पाकिस्तान के अतिरिक्त अन्य पड़ोसी देशों का ज़िक्र क्यों नहीं है। यह तथ्य नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता कि श्रीलंका में भी भाषायी अल्पसंख्यकों जैसे-तमिल ईलम के उत्पीड़न का एक लंबा इतिहास रहा है। वहीं भारत को म्याँमार के रोहिंग्या मुसलमानों के साथ हुए अत्याचारों को भी नहीं भूलना चाहिये।

18.जानकारों का कहना है कि भाजपा एनआरसी की वजह से पूर्वोत्तर में फंस गयी है क्योंकि एनआरसी में बहुत सारे हिन्दुओं का नाम भी शामिल है। इन्हें शांत करने के लिए, पूर्वोत्तर और बंगाल में ध्रुवीकरण की राजनीती करने के लिए भाजपा ऐसे कदम उठा रही है। लेकिन वोटबैंक की इस राजनीति से सदियों से बना भारत का विचार मर रहा है।

19. इसके साथ जब पूरे देश भर में होने वाले एनआरसी को जोड़कर देखा जाता है तो यह बात निकलकर सामने आती है। हिंदुत्व विचारधारा से गढ़ी बीजेपी भारत से मुस्लिमों को बहुत दूर करना चाहती है। जरा सोचकर देखिये जब देशभर में होने वाले एनआरसी के जरिये बहुत से मुस्लिम खुद की नागरिकता साबित नहीं कर पाएंगे तो क्या होगा?

20. अंत में यह समझिये कि बहुत सारे जानकारों का मानना है कि नागरिकता की अवधारणा अपने आप में अलगाव की अवधारणा होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि देशों की पैदाइश स्वभाविक तौर पर नहीं हुई। देशों को इंसानों ने बनाया है। ऐसा नहीं है कि दुनिया जब बनी तो भारत, पाकिस्तान, बंगलादेश, अमेरिका, इंग्लैण्ड का भी जन्म हुआ था। इसलिए अगर किसी व्यक्ति को किसी देश की नागरिकता दी जा रही है तो इसका मतलब है कि दूसरे लोगों को उसे कुछ आधारों पर अलग किया जा रहा है। फिर भी एक राज्य की प्रशासनिक जरूरत है कि वह लोगों को नागरिकता दे। लेकिन इसका अर्थ यह भी नहीं है कि नागरिकता देने का आधार अपने आप में अतार्किक हो, स्वैच्छिक हो,सार्वभौमिक मूल्यों से अलग हो। इस नागरिकता संशोधन बिल में यही हो हो रहा है। 

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