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‘विशालतम’ प्रतिमा की क़ीमत गुजरात के आदिवासी चुका रहे हैं

आदिवासियों की भूमि चली गई और वे विस्थापन का सामना कर रहे हैं, कुछ गांवों में आदिवासी अपनी तैयार फसल को बचाने में लगे हैं क्योंकि क़रीब 3,000 करोड़ रुपए की लागत से बनी 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' की पृष्ठभूमि की सुंदरता बढ़ाने के लिए बांध से पानी छोड़ा गया था ताकि वीआईपी को दृश्य आकर्षक दिखे।
statue of unity

नर्मदा ज़िले में क़रीब 3,000 करोड़ रुपए की लागत से निर्मित 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' से महज़ 500 मीटर की दूरी पर पांच झोपड़ियां मौजूद हैं। इनमें से एक 60 वर्षीय महिला अंबाबेन पुनाभाई का घर है जो कभी नवागम गांवों और लिम्डी के लिम्डी समूह ग्राम पंचायत की सरपंच थीं।

नवागम उन गांवों में से एक है जहां नर्मदा नदी के बांध में पानी बढ़ने से ये इलाक़ा डूब जाएगा। चूंकि 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' का अनावरण 31अक्टूबर होना है, इससे पहले बांध से पानी नदी में छोड़ी जाएगी ताकि वीआईपी और मेहमान नदी में पानी के भरे होने के साक्षी बन सकें।

अंबाबेन ने न्यूज़़क्लिक को बताया, "नवागम में लगभग 40 एकड़ जमीन 31 अक्टूबर तक डूब जाएगा। किसानों ने सब्जियों की खेती की जो लगभग तैयार है। किसी ने हमें नहीं बताया कि बांध से पानी छोड़ा जा रहा है। हम समय के साथ पानी के स्तर में वृद्धि देख रहे हैं और भूमि धीरे-धीरे डूब रहा है।"

अंबाबेन कहती हैं, "किसान खेतों में काम कर रहे हैं जितना वे कर सकते हैं उतना बचाने के लिए प्रयास कर रहे हैं," वे नवागम के अन्य आदिवासी लोगों के साथ मौजूद हैं, उनके ज़मीन धीरे-धीरे डूब रहे हैं।

अंबाबेन के पुत्र संजय तदवी और नवगम के निवासी कहते हैं, "एक परिवार के पास 2-4 एकड़ ज़मीन है। ग़रीब आदिवासी परिवार हैं जो जीने के लिए ज़मीन के छोटे टुकड़े पर फसल और सब्जियां उगाते हैं। अब जब ये ज़मीन डूब जाएगा तो उनमें से ज्यादातर लोगों को खुद को या अपने परिवार को खिलाने पिलाने का कोई साधन नहीं होगा।"

केवडिया कॉलोनी में मजदूरी करने वाले संजय जो 200 रुपए प्रतिदिन कमा लेते हैं, कहते हैं, "सरदार सरोवर बांध को जाने वाली सड़क का निर्माण होने पर हम पहले से ही अपनी भूमि का एक बड़ा हिस्सा खो चुके हैं। गुजरात सरकार ने हमें प्रति परिवार 5 एकड़ भूमि और 18 साल से ऊपर की उम्र के लोगों के लिए नौकरियों का वादा किया था। लेकिन न ही हमें ज़मीन का कोई टुकड़ा आवंटित किया गया और न ही हमें कोई नौकरी मिली। हमने ज़िला अधिकारियों को गांधीनगर में मुख्यमंत्री के कार्यालय भेजने के लिए ज्ञापन और पत्र प्रस्तुत किए हैं, लेकिन सब व्यर्थ हो गया। लंबी चुप्पी के बाद, उन्होंने हमें बताया कि ये परियोजना हमें पीड़ित सूची में शामिल करने से चूक गई और आश्वासन दिया कि बांध बनने पर नाम शामिल किए जाएंगे। पुनर्वास के बजाय हमने 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' के लिए सड़क को चौड़ा करने के लिए अधिग्रहित शेष भूमि भी मैंने गंवा दिया और शेष भूमि पानी के स्तर में वृद्धि के कारण डूब जाएगा।"

छह गांव - नवागम, वाघारीया, लिम्डी, केवडिया, कोठी और गोरा - साधू बेट के बिल्कुल पास हैं जो 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' का क्षेत्र है जो बुरी तरह प्रभावित हुआ है। इनमें से, वाघारीया ने अपनी सारी भूमि खो दी है, जबकि केवडिया गांव ने लगभग 90% भूमि गंवाई है।

ज़ाहिर है, केवडिया के ग्रामीणों को सिर्फ एक हफ्ते पहले विस्थापित कर दिया गया था जब साधु बेट को जाने वाली सड़क को दो लेन से बढ़ाकर चार लेन किया जा रहा था। तीव्र प्रतिरोध के बीच, पुलिस ने अंधाधुंध लाठी बरसाई जिसमें महिलाएं भी घायल हो गईं और ग्रामीणों को 24 घंटे तक हिरासत में रखा गया। जब ग्रामीण लोग अपनी रिहाई के बाद गांव लौटे तो देखा कि सड़क से लगे सभी घर ध्वस्त थे। केवडिया के निवासी अब कुछ किलोमीटर दूर पथरीली जमीन पर रह रहे हैं। सरोजबेन जिन्होंने इस विरोध का नेतृत्व किया था और कुछ अन्य लोग लगातार पुलिस की निगरानी में हैं और इस मुद्दे पर बात करने से इनकार कर दिया।

उद्घाटन से पहले पुलिस की तैनाती

इस इलाके में आदिवासियों के साथ काम कर रहे एक कार्यकर्ता लखनभाई ने न्यूज़़क्लिक को बताया, "30 अक्टूबर की शाम तक साधु बेट के आस-पास के गांवों के चारों तरफ प्रत्येक घर के सामने पुलिस कर्मियों को तैनात किया जाएगा, स्थानीय लोगों को उनके घरों से बाहर निकलने से रोक दिया जाएगा।"

उन्होंने कहा, "इस तरह वीआईपी के इस क्षेत्र में आने पर स्थानीय लोगों को अपनी ज़मीन पर स्वतंत्र रूप से चलने से प्रतिबंधित कर दिया जाता है।"

वाघरीया गांव के सरपंच गोविंद भाई तदवी कहते हैं, "सड़क को चौड़ा करते समय पानी की पाइपलाइन और क्षेत्र के कई हैंडपंप को नष्ट कर दिया गया है। क्षेत्र के छह गांवों में पीने के पानी का कोई साधन नहीं है। जब हमने ज़िला अधिकारियों से संपर्क किया तो उन्होंने आँखें बंद कर ली। बाद में इस परियोजना के लिए काम कर रही है कंपनी लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) ने टैंकरों द्वारा पानी वितरित करने की व्यवस्था की। टैंकर सड़क के किनारे रहने वाले लोगों को दिन में दो बार पानी देते हैं। लेकिन जिन ग्रामीणों के घरों को ध्वस्त कर दिया गया था और वे सड़क से दूर जाने को मजबूर हुए हैं उनके पास टैंकर का पानी तक पहुंचता है। ऐसी स्थिति को अब एक महीने हो गए हैं।"

वे कहते हैं, "टैंकर के माध्यम से प्रत्येक परिवार को मिलने वाला पानी पर्याप्त नहीं है।"

'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' की परियोजना के कारण वाघरीया के सभी निवासियों को विस्थापित कर दिया गया है। पूरे गांव में से लगभग 1,500 लोगों की आबादी में सिर्फ 15 विस्थापित परिवारों को एक क्षेत्र में मिट्टी की झोपड़ियों में पुनर्वास किया गया है जहां बिजली या पेयजल जैसी सुविधाएं नहीं हैं। शेष परिवार को अपने घरों से बहुत दूर भूमि स्वीकार करने के लिए मजबूर किया जा रहा है।

गोविंदभाई कहते हैं, "हमारे परिवार को हमारे घर से करीब 60 किलोमीटर दूर दाभोई के पास पंसोली गांव में एक आवासीय प्लॉट की पेशकश की गई थी, और आवासीय प्लॉट से करीब 10 किलोमीटर दूर तेल तालव में खेती की भूमि आवंटित की गई थी। कैसे कोई किसान रोज़ाना अपने खेत पर खेती के लिए 10 किलोमीटर का सफर कर सकता है?"

गोविंदभाई आगे कहते हैं, "हमने अपने मूल घर से इतनी दूरी पर ज़मीन स्वीकार करने से इंकार कर दिया। बाद में हमें 5 लाख रुपए की पेशकश की गई लेकिन हमने उनसे इनकार कर दिया क्योंकि मेरे परिवार के पास जो ज़मीन है उसका बाजार मूल्य क़रीब 1 करोड़ रुपए से ज्यादा है।"

वह कहते हैं, "छह एकड़ भूमि जो कि हमारे परिवार के पास बांध के तट पर अभी भी है वह दो दिनों में डूब जाएगा। मुझे नहीं लगता कि हमने जिस कपास की खेती की है उसे हम बचा सकते हैं। कपास के कई बोरे की ओर इशारा करते हुए वे कहते हैं, यह फसल जिसे वह अब तक बचा पाए हैं।

'हम अपनी भूमि नहीं छोड़ेंगे'

लखनभाई कहते हैं, "स्थानीय लोगों को कभी विश्वास में नहीं लिया गया या नहीं कहा गया कि इस तरह के बड़े पैमाने के पर्यटक स्थान उनके घरों के आसपास बनाए जाएंगे। सरदार सरोवर बांध के आरंभ के बाद से इलाके के आदिवासी अपनी भूमि गंवा रहे हैं। अब उन्होंने इस तरह की एक विशाल प्रतिमा का निर्माण कर दिया है, फूलों की घाटी और भारत श्रेष्ठ भवन (हर राज्य के गेस्ट हाउस) का निर्माण इसके साथ होगा। क्या सरकार कभी सोचती है कि किसकी ज़मीन पर वे परियोजनाएं बना रहे हैं? यहां स्थानीय लोग पूरी तरह से कृषि पर निर्भर हैं। अगर उनकी भूमि छीन ली जाती है तो वे कैसे जीवित रहेंगे। हम अपनी ज़मीन नहीं छोड़ेंगे।"

एक स्थानीय आदिवासी नेता प्रफुल वासव द्वारा इस ज़िले में विरोध और बंद का आह्वान किया गया है। गुजरात के 15 जनजातीय बहुल जिलों के लगभग 100 जनजातीय संगठनों ने इस मुद्दे का समर्थन किया है। इस परियोजना को लेकर बनी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपानी की तस्वीर वाली पोस्टर्स को आदिवासी फाड़ रहे हैं।

नर्मदा ज़िले में आदिवासियों के प्रतिरोध को देखते हुए भारी पुलिस बल तैनात किया गया है। ज़ाहिर है, पोस्टर्स की सुरक्षा के लिए पुलिस कर्मियों को भी तैनात किया गया है।

वसावा कहते हैं, "नर्मदा ज़िले की 85% आबादी आदिवासी हैं। ज़िले की भूमि पांचवीं सूची के तहत संरक्षित है। विधि के अनुसार, यदि भूमि अधिग्रहण की जानी है तो ग्राम सभा को इसे देने के लिए सहमत होना चाहिए। लेकिन नर्मदा बांध या 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' के निर्माण के लिए गुजरात सरकार ने संबंधित गांवों के ग्राम सभा की अनुमति लेने को ज़रूरी नहीं समझा। बांध के लिए 13 गांवों से भूमि अधिग्रहित की गई है। इन गांवों के जनजातियों को बांध के चलते खोई भूमि के लिए न तो पैसा मिला है और न ही कहीं ज़मीन।"

वसावा कहते हैं, "कुल 72 गांवों में 75,000 आदिवासी ग्रामीण 'स्टैच्यू ऑप यूनिटी' की परियोजना से प्रभावित हुए हैं। सरकार हमारे घरों, भूमि और संस्कृति को नष्ट कर रही है। यह जल, जंगल, ज़मीन की लड़ाई है।" 

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