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वीडियो: शोधकर्ताओं ने दर्शाया चूहों में कोविड-19 का संक्रमण और उससे लड़ती एंटीबाडीज़

चित्र में वायरस के प्रसार को दर्ज किया गया है, जिसके चलते चूहे के श्वसन मार्ग को क्षति पहुंची है। यह इस तथ्य को भी दर्ज करने में सफल रहा है कि कैसे एंटीबाडीज वायरस के प्रसार पर रोक लगाने में कारगर हैं।
वीडियो: शोधकर्ताओं ने दर्शाया चूहों में कोविड-19 का संक्रमण और उससे लड़ती एंटीबाडीज़
प्रतीकात्मक तस्वीर। चित्र साभार: विकिपीडिया 

यह देखना बेहद दिलचस्प है कि कैसे वायरस इंसानी जिस्म के भीतर प्रसार करता है और एक-एक कर शरीर के तमाम अंगों को प्रभावित करता जाता है। यह कम से कम उन वैज्ञानिकों के परिश्रम का जीता-जागता प्रमाण है, जो कोरोनावायरस महामारी के दौरान पिछले डेढ़ सालों से भी अधिक समय से इस काम में लगे हुये हैं। सामान्य ज्ञान अब यह कह सकता है कि नोवेल कोरोनावायरस एक श्वसन संबंधी वायरस है जो नासिका से शुरू होकर हमारे श्वसन प्रणाली को अपना निशाना बनाता है। 

यह वायरस हमारे शरीर के भीतर तब भारी तबाही मचा सकता है जब यह शरीर के भीतर गुणात्मक रूप से वृद्धि करना शुरू कर देता है और एक के बाद एक, दूसरे अंगों पर हमला करने लगता है। और यदि ये प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा सफाया किये जाने से पहले ही हमारे फेफड़ों में प्रवेश कर पाने में सफल हो जाते हैं तो ये अतिसूक्ष्म जीव, रोगी के जीवन के लिए खतरा पैदा करने की स्थिति में पहुँच जाते हैं। 

क्या वीडियो के माध्यम से वास्तविक-जीवन का सचित्र चित्रण संभव है?

हाँ, आंशिक तौर पर ऐसा कर पाना संभव है। वैज्ञानिक प्रयासों एवं परिष्कृत तकनीक के संयोजन ने इसे संभव बना दिया है। शोधकर्ता जीवित जीवों के भीतर वायरस के प्रसार को कैद कर पाने में सफल रहे हैं – इस मामले में एक चूहे की नासिका के जरिये उसके फेफड़ों तक छह दिनों के दौरान होने वाली घटनाओं की गतिविधयों को उन्होंने कैद कर पाने में सफलता प्राप्त की है।

इस इमेजिंग अध्ययन को वैज्ञानिक पत्रिका इम्युनिटी में एक प्री-प्रूफ प्रारूप में ऑनलाइन प्रकाशित किया गया है। इस अध्ययन का नेतृत्व येल स्कूल ऑफ़ मेडिसिन से प्रीति कुमार, प्रदीप उचिल और वाल्टर मोथेस सहित यूनिवर्सिटी डे मांट्रियल से ऐन्द्रेस फिन्ज़ी के द्वारा किया गया। 

इमेज ने वायरस के प्रसार को दर्ज किया है, जिसमें चूहे के श्वसन पथ को नुकसान पहुँचते देखा जा सकता है। इसने इस चीज को भी दर्ज किया है कि कैसे एंटीबाडीज वायरस की प्रगति पर लगाम लगाने में सक्षम हैं। शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन के हिस्से के तौर पर जिन एंटीबाडीज का इस्तेमाल किया था, उसे उन इंसानों से लिया गया था जो कोरोनावायरस एसएआरएस-सीओवी-2 से उपजे कोविड-19 से पूरी तरह से उबर चुके थे।

हालाँकि, शोध के जरिये यह भी खुलासा हुआ है कि जो एंटीबाडीज प्रतिरक्षा प्रणाली (शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र) की महत्वपूर्ण कोशिकाओं को इस अभियान में शामिल कर पाने में असमर्थ होते हैं वे संक्रमण से लड़ने में कम प्रभावी होते हैं। प्रतिरक्षा प्रणाली में कुछ ऐसी कोशिकाएं हैं जो संक्रमण को खत्म करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

निष्कर्षों पर टिप्पणी करते हुए, येल स्कूल ऑफ़ मेडिसिन में संक्रामक रोगों की सहायक प्रोफेसर प्रीति कुमार, जो इस शोध पत्र की लेखिका भी हैं, को यह कहते हुए उद्धृत किया गया था: “पहली बार हम एसएआरएस-सीओवी-2 के प्रसार को एक जीवित प्राणी के भीतर रियल टाइम में प्रसार पाते देख पाने में सफल रहे। और महत्वपूर्ण बात यह है कि हम यह जान पाने में सफल रहे कि संक्रमण की प्रगति को रोकने के लिए किन क्षेत्रों पर एंटीबाडीज को जोर देने की जरूरत होती है।”

इसके लिए शोधकर्ताओं ने बायोलुमिनेस्सेंट (जीवदीप्ति) इमेजिंग (बीएलआई) के नाम से जानी जाने वाली तकनीक का उपयोग किया। बीएलआई तकनीक शरीर के भीतर घटित होने वाली प्रतिक्रियाओं द्वारा उत्सर्जित प्रकाश का उपयोग करती है। शरीर के भीतर एक छोटे से रासायनिक पदार्थ को डाला जाता है जो प्रतिक्रिया होने पर प्रकाश उत्सर्जित करता है। उन्नत सूक्ष्मदर्शी यंत्र की मदद से, फिर शोधकर्ता शरीर के भीतर वायरस के प्रसार की पड़ताल कर सकते हैं।

इन छह दिनों के दौरान वायरस के प्रसार पर नजर बनाये रखने वाले वीडियो के यू-ट्यूब लिंक को यहाँ पर पाया जा सकता है।

शोधकर्ताओं ने उन मनुष्यों के रक्त प्लाज्मा का भी इस्तेमाल किया था, जो कोविड-19 के हमले से उबर चुके थे। उनके प्लाज्मा में मौजूद एंटीबाडीज – प्रतिरक्षा प्रणाली में मौजूद प्रोटीन, जो वायरस को नष्ट करने में सक्षम हैं, ने वायरस के प्रसार को रोक दिया था, जिसे शोधकर्ताओं ने अपने इमेजिंग प्रयोगों में दर्ज किया है।

अपने निष्कर्षों में उन्होंने पाया है कि संक्रमण होने के तीन दिन बाद भी जब एंटीबाडीज दी गई तो भी वे वायरस के प्रसार को रोक पाने में सफल रहे। यहाँ पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि शोधकर्ताओं ने पाया कि जब इन एंटीबाडीज को संक्रमण होने से पहले चूहों के शरीर में प्रवेश कराया गया, तो वे संक्रमण को पूरी तरह से रोक पाने में कामयाब रहे।

येल के शोध वैज्ञानिक प्रदीप उचिल ने बताया “इमेजिंग द्वारा वायरस के प्रसार की लाइव रिपोर्टिंग का तेजी से पता लगाने में उपयोग किया जा सकता है कि क्या तीन से पांच दिनों के भीतर संक्रमण फैलने में उपचार काम करेगा या नहीं, जो कि वर्तमान एवं भविष्य में होने वाली महामारियों में बचाव के उपायों को तैयार करने के लिए एक महत्वपूर्ण समय की बचत करने वाली विशेषता है।” हालाँकि शोधकर्ताओं ने यह भी पाया है कि सभी एंटीबाडीज समान रूप से काम करने में सक्षम नहीं हैं।

वायरस के खिलाफ लड़ाई में एंटीबाडीज दो अहम भूमिकाएं निभाते हैं। अलगाव में डालने वाले एंटीबाडीज वायरस को बाँध कर रखते हैं और इसे कोशिकाओं में प्रवेश करने से रोकते हैं। दूसरे प्रकार के एंटीबाडीज के जरिये एक प्रभावकारी कार्य होता है। ये एंटीबाडीज प्रतिरक्षा प्रणाली को संकेत भेजती रहती हैं और बाकी कोशिकाओं को इस संघर्ष में भर्ती करती हैं जो अंततः उन कोशिकाओं को खत्म कर सकती हैं, जहाँ पर संक्रमण हुआ था।

कुमार को यह कहते हुए उद्धृत किया गया था कि “हम अभी तक यही समझते थे कि संक्रमण की रोकथाम के लिए वायरस को बेअसर करना ही पर्याप्त होता है, लेकिन एंटीबाडीज को शरीर में सही समय पर सही स्थान पर और सही मात्रा में मौजूद होना अति आवश्यक है। बिना प्रभावकारी कार्य के एंटीबाडीज द्वारा अकेले निष्क्रिय कर देने वाली गतिविधि उतनी प्रभावकारी नहीं है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Video: Researchers Show How COVID-19 Spreads in Mice and How Antibodies Counter it

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