Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

वेब टेलीस्कोप से खुली आकाश में एक नयी खिड़की

हम न सिर्फ बहुत दूरी पर स्थित चीजों को देख पा रहे हैं बल्कि समय में बहुत पीछे की चीजों को भी देख पा रहे हैं। इस तरह वेब टेलीस्कोप एक समय में पीछे ले जाने वाली टाइम मशीन की तरह है। वह हमें समय में पीछे देखने का भी मौका देता है।
Webb Telescope

नये वेब टेलीस्कोप ने इतना तो अब तक दिखा भी दिया है कि नासा का 10 अरब डालर का निवेश और 26 साल की मेहनत, आखिरकार कामयाब हो रहे हैं। उसने ब्रह्मांड की गहराई से जो तस्वीरें दी हैं, अपने ब्यौरों तथा गुणवत्ता में, उन सब तस्वीरों से बढक़र हैं जो हमें अब तक मिली थीं। जो पहली ही तस्वीरें आयी हैं, उनसे आम दर्शक अचंभित हैं, जबकि खगोलविद् इन तस्वीरों में मिले विवरणों तथा बहुत दूर स्थित ग्रहों आदि के स्पैक्ट्रमों की पड़ताल में लगे हैं और हमें बता रहे हैं कि इनमें क्या, क्या है? खगोलविद्या में अपना कैरियर जिन लोगों ने हबल टेलीस्कोप से पहले ही शुरू कर दिया था, उनके लिए तो यह एक ही पीढ़ी में खगोलविज्ञान में दो-दो क्रांतियों को देखने का प्रसंग है--हबल क्रांति और वेब क्रांति।

दिशा और समय

जो तस्वीरें सामने आयी हैं, अपने विवरणों में हैरान कर देने वाली हैं और भविष्य के लिए वे जो उम्मीद दिखाती हैं, उसके लिहाज से भी हैरान करने वाली हैं। इनमें एक तस्वीर एक आकाशगंगा समूह एसएमएसीएस 0723 है, जिसमें हजारों आकाशगंगाएं हैं। इसमें कुछ अब तक कभी भी दर्ज हुई, सबसे धुंधली चीजें हैं।

नासा का कहना है, ‘वेब की तस्वीर का आकार करीब-करीब रेत के एक कण जितना है, जिसे हाथ भर की दूरी पर रखा जा रहा हो- विराट अंतरिक्ष की एक अति सूक्ष्म किरिच। इस आकाशगंगा समूह का संयुक्त वजन, एक गुरुत्वाकर्षणीय लैंस की तरह काम करता है, जो और भी दूरी की आकाशगंगाओं को बहुत गुना बढ़ाकर दिखाता है। इनमें से कुछ वहां देखी जा सकती हैं, जब ब्रह्मांड एक अरब वर्ष का भी नहीं हुआ था।’

प्रकाश को हम तक पहुंचने में चूंकि काफी समय लगता है, इसलिए हम न सिर्फ बहुत दूरी पर स्थित आकाशगंगाओं को देख पा रहे हैं बल्कि उस प्रकाश को भी देख पा रहे हैं जो इन तारों/ आकाश गंगाओं से 13.1 अरब वर्ष पहले निकला था। बिग बैंग का समय 13.8 अरब साल पहले का लगाया गया है। इस तरह, हम न सिर्फ बहुत दूरी पर स्थित चीजों को देख पा रहे हैं बल्कि समय में बहुत पीछे की चीजों को भी देख पा रहे हैं। इस तरह वेब टेलीस्कोप एक समय में पीछे ले जाने वाली टाइम मशीन की तरह है। वह हमें समय में पीछे देखने का भी मौका देता है।

अगर हम ज्यादा आगे जाते हैं तो हम बिग बैंग के ‘थोड़े ही’ बाद के समय में पहुंच सकते हैं। कितने और पीछे? 30-40 करोड़ वर्ष और पीछे? इससे भी ज्यादा पीछे? इस सवाल का जवाब वेब के शोधकर्ता भविष्य में देंगे। फिलहाल तो हम इतना ही कह सकते हैं कि वेब तथा ऐसे ही अन्य उपकरणों से, अपने अंतरिक्ष के संबंध में हम और बहुत जान पाएंगे।

देखी जा रही वस्तु की दूरी जितनी ही ज्यादा होगी, उस वस्तु का प्रकाश उतना ही ज्यादा स्पैक्ट्रम के लाल वाले हिस्से की ओर खिसकता जाएगा। प्रकाश के इस लाल की ओर खिसकने (रैडशिफ्ट) को हबल प्रभाव कहा जाता है। इसलिए, वेब टेलीस्कोप, अपने से पहले वाले हबल टेलीस्कोप के मुकाबले ज्यादा इन्फ्रारैड स्पैक्ट्रम में ही काम करता है, जबकि हबल टेलीस्कोप ज्यादा दृश्यमान स्पैक्ट्रम में ही काम करता है। याद रहे कि दृश्यमान प्रकाश, समूचे इलैक्ट्रोमैग्नेटिक स्पैैक्ट्रम का एक छोटा सा ही हिस्सा है। इसीलिए, हमें रेडियो टेलीस्कोप से वेब टेलीस्कोप तक, सभी की जरूरत है, जिनमें से हरेक ब्रह्मांड की अपनी-अपनी कहानी कहता है।

ग्रहों की तत्व रचना की जानकारी वेब टेलीस्कोप में स्पैक्ट्रोमीट्रिक औजार भी हैं, जो हमें किसी सितारे को बनाने वाले तत्वों के गठन के बारे में बता सकते हैं। हम हाइड्रोजन, आक्सीजन तथा अन्य घटकों के स्पैक्ट्रम को देख सकते हैं। यह हमें दूसरी तस्वीर पर ले आता है, जो नजदीक के ही एक सितारे की, जो सिर्फ 1000 प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित है, परिक्रमा कर रहे एक ग्रह (एक्सोप्लेनेट) की तस्वीर है। सूर्य को छोड़कर, किसी अन्य सितारे की परिक्रमा करने वाले ग्रहों को, एक्सोप्लेनेट कहा जाता है। सवाल यह है कि ऐसे ग्रहों में से कितने पर पानी है और इसलिए जीवन की संभावना हो सकती है।

संबंधित एक्सोप्लैनेट, डब्ल्यूएसपी-96बी, एक विशाल गैसीय रचना है और मिल्की वे में जिन 5,000 से ज्यादा एक्सोप्लेनेटों की मौजूदगी की पुष्टि हो चुकी है, उनमें से यह एक है। इसका तापमान 600 डिग्री सेंटीग्रेड से ज्यादा है और जितने ताप तक जीवन की मौजूदगी संभव है, यह उससे उल्लेखनीय रूप से ज्यादा है। यह अपने सूर्य जैसे सितारे की बहुत ही नजदीकी से परिक्रमा करता है और साढ़े तीन दिन में अपना एक चक्कर पूरा कर लेता है। जब यह ग्रह अपने सितारे के सामने से होकर गुजरता है, उस सितारे का प्रकाश इस ग्रह के वातावरण से होकर गुजरता है। इस प्रकाश की जांच कर के हम उस चीज को देख सकते हैं, जिसे एब्सोप्र्शन स्पैक्ट्रा कहा जाता है, जिसका संबंध उस ग्रह के वातावरण द्वारा जो कुछ सोख लिया जाता है उससे होता है। इस तरह हम इस ग्रह के वातावरण के संबंध में जान सकते हैं। इस ग्रह पर जीवन मिलना तो संभव नहीं है, लेकिन भविष्य में वेब टेलीस्कोप की मदद से हम अपनी आकाशगंगा के दूसरे अनेक एक्सोप्नेटों की पड़ताल कर सकते हैं और पृथ्वी से इतर जीवन की संभावनाओं की तलाश कर सकते हैं।

वेब टेलीस्कोप से और भी तस्वीरें मिली हैं। इसमें एक तो एक-दूसरे से काफी करीब स्थित 5 आकाशगंगाओं के उस समूह से ही संबंधित हैं, जिन्हें नासा के शब्दों में कहें तो अपने कॉस्मिक नृत्य में रत देखा जा सकता है। ‘यह तस्वीर दसियों लाख नये सितारों के चमकते हुए झुंडों तथा सितारों के हाल में ही जन्म से संबंधित सितारे के फटने के क्षेत्रों से सुशोभित है। गैस, धूल तथा सितारों हिलती हुई पूंछों को, अपनी गुरुत्वाकर्षणीय अंतक्रियाओं के जरिए, अनेक आकाशगंगाओं द्वारा अपनी ओर खींचा जा रहा है।

सबसे नाटकीय यह है कि वेब ने, आकाशगंगाओं में से एक, एनजीसी 7318बी के झुंड को चीर कर गुजरने की विशाल कंपन तरंगों को पकड़ा है।’ जहां सेरिना नेबुला में एक सितारे के जन्म की तस्वीर है, वहीं दूसरी ओर सदर्न विंग प्लेनेटरी नेबुला की एक तस्वीर है, जिसमें एक मरते हुए सितारे का आखिरी ‘करतब’ देखा जा सकता है। हबल में भी इसी नेबुला की एक तस्वीर है और दोनों तस्वीरों की तुलना कर के हम जान सकते हैं कि वेब टेलीस्कोप से हमें कितने अतिरिक्त विवरण मिल सकते हैं।

इंजीनियरिंग का कमाल

जहां वैज्ञानिक, वेब टेलीस्कोप से मिल रहे तथा भविष्य में मिल सकने वाले, अंतरिक्ष के विवरणों से चमत्कृत हैं, वहीं अंतरिक्ष में एक ऐसे टेलीस्कोप के निर्माण की इंजीनियरिंग के उपलब्धि भी अपने आप में काफी हैरानी पैदा करने वाली है। वेब टेलीस्कोप को, अलग-अलग हिस्सों में, 15 लाख किलोमीटर दूर अंतरिक्ष में ले जाया गया था और वहां पर सुदूर नियंत्रण के जरिए इन हिस्सों को जोडक़र टेलीस्कोप खड़ा किया गया। अब इस टेलीस्कोप को उस जगह पर रखा गया, जहां सूर्य के गुरुत्वाकर्षणीय खिंचाव को, पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षणीय खिंचाव निष्प्रभावी बना देता है, जिसे खगोलविद् Lagrange point कहते हैं। इस क्रम में एक भी गलती का अर्थ होता, इस मिशन पर पर्दा गिर जाना। और इंजीनिरिंग टीम ने ऐसी 300 से ज्यादा संभावित गलतियों की निशानदेही की थी। ऐसी एक भी गलती से, 10 अरब की यह परियोजना, अपना काम शुरू करने से पहले ही खत्म हो गयी होती।

वेब टेलीस्कोप में 6.5 मीटर का शीशा लगा है, जो इसकी प्रकाश एकत्रित करने वाली सतह को, हबल टेलीस्कोप से छह गुना बड़ा बनाता है। इससे, इसके जरिए दृश्यता उल्लेखनीय रूप से बढ़ जाती है। हबल टेलीस्कोप के विपरीत, जिसमें दृश्यमान प्रकाश का प्रयोग किया जाता है, वेब का टेलीस्कोप उष्मा के प्रति कहीं ज्यादा संवेदनशील है क्योंकि इसमें स्पैक्ट्रम के इन्फ्रारैड हिस्से का प्रयोग किया जाता है। इसीलिए, इसे पृथ्वी से इतनी दूरी पर लगाया गया है। वेब टेलीस्कोप में एक प्रकाश/रौशनी से बचाव की व्यवस्था भी है, जो शीशे का ताप शून्य से 220 डिग्री सेंटीग्रेड नीचे बनाए रखती है। यह उसके काम करते रहने के लिए बहुत जरूरी है। वर्ना ताप बढऩे से दूरस्थ सितारों का इन्फ्रारैड विकीरण परे धकेल दिया जाता।

बेशक, विज्ञान के क्षेत्र में सभी बड़ी प्रगतियां तो भारी लागत के बल पर नहीं होती हैं, लेकिन कई मामलों में विज्ञान में बड़ी प्रगतियों के लिए औद्योगिक स्तर के प्रयासों की जरूरत होती है, जिसके लिए लंबी-चौड़ी टीमों तथा विशाल बजटों की जरूरत होती है। बेशक, ऐसा भी नहीं है कि अब आइंस्टीन या बोस जैसी असाधारण निजी वैज्ञानिक प्रतिभाओं के कारनामों की गुंजाइश ही नहीं रह गयी है। फिर भी, भौतिकी के प्रयोगात्मक पक्ष में बड़ी प्रगतियों के लिए अब बड़े-बड़े बजटों और बड़ी-बड़ी टीमों की जरूरत होती ही है। लोग हिग्स तो याद करते हैं, पर अक्सर हिग्स बोसोन के बोसोन वाले हिस्से को भुला देते हैं, जबकि यह सत्येन बोस के योगदान का सूचक है।

प्राथमिकता विध्वंस पर निर्माण की

अपनी 10 अरब डालर की लागत के साथ, वेब टेलीस्कोप अब मनुष्य द्वारा निर्मित सबसे महंगा उपकरण हो गया है। उसने 4 अरब डालर की लागत से निर्मित हैल्ड्रॉन कोलाइडर को भी दूसरे स्थान पर धकेल दिया है। बेशक, अब ज्ञान को आगे बढ़ाना महंगा हो गया है। फिर भी, विमान वाहक पोत के मुकाबले तो यह लागत कम ही है। अमेरिका के नवीनतम विमान वाहक पोत, जेराल्ड फोर्ड की लागत 13 अरब डालर थी। इसे मानव सभ्यता के साथ मजाक ही कहा जाएगा। हम निर्माण के साधनों से कहीं ज्यादा विनाश के साधनों पर खर्च करने के लिए तैयार हैं और वह भी सिर्फ शासकों की साम्राजी हवस को पूरा करने के लिए।

इसमें तो कोई शक ही नहीं है कि वेब टेलीस्कोप, खगोलविदों में नये रास्ते खोलेगा। इसके सहारे हम ब्रह्मांड के बारे मेें तो पहले से बहुत ज्यादा जान ही सकेंगे, इससे हमें उस डॉर्क मैटर को खोजने में भी शायद मदद मिलेगी, जो अब तक मनुष्य की पकड़ से बाहर बना रहा है। वैसे तो इस काम के लिए एक खास टेलीस्कोप स्थापित किया जा रहा है, फिर भी वेब टेलीस्कोप इस खोज में एक महत्वपूर्ण पूरक भूमिका अदा करेगा। दूसरे, इससे आधुनिक खगोलविद्या की सबसे बड़ी बहसों में से एक को हल करने में मदद मिल सकती है: कि अंतरिक्ष के विस्तार की वास्तविक दर क्या है? यह संख्या, जिसे हबल कान्स्टेंट भी कहा जाता है, अंतरिक्ष के हरेक मेगापरसेक (मोटे तौर पर 32.6 लाख प्रकाश वर्ष) विस्तार की दर के बराबर होगी। इस दर के माप में प्रयोग की गयी पद्धति के हिसाब से इस सिलसिले में दो आंकड़े सामने आते हैं, 67 और 73. अन्य खगोलीय मापों को लेकर जिस तरह की सटीक सहमतियां बन चुकी हैं उन्हें देखते हुए, इन दो संख्याओं के बीच अंतर कुछ बहुत ही ज्यादा है। जहां खगोलविदों ने इसे ‘‘हबल टेंशन’’ का नाम दिया है, इसे हबल सिरदर्द ही कहना ज्यादा सही होगा।

स्वतंत्रता, प्रेम और प्रगति

वेब टेलीस्कोप के संबंध में आखिर में एक बात और। अनेक वैज्ञानिक इससे नाखुश हैं कि इस अद्भुत नयी वेधशाला का नाम वेब जैसे व्यक्ति के नाम पर रखा गया है, जो आजीवन एक नौकरशाह रहा था और जो उस दौर में नासा का निर्देशन कर रहा था जब अमरीकी संघीय सरकार तथा नासा द्वारा सक्रिय रूप से समलैंगिकता विरोधी नीति को चलाया जा रहा था और इसी आधार पर कर्मचारियों को बर्खास्त किया जा रहा था। इन वैज्ञानिकों ने एक अभियान छेड़ा है कि वेब टेलीस्कोप का नाम बदलकर हैरियट टबमैन स्पेस टेलीस्कोप कर दिया जाए। जिन हैरियट टबमैन की स्मृति में इस टेलीस्कोप का नाम रखने की मांग की जा रही है, उन्होंने अमेरिका के दक्षिणी हिस्से से दासप्रथा से बचकर भागने वालों के लिए, एक भूमिगत रेलमार्ग चलाया था। टेलीस्कोप का नाम बदलने के अभियान का नेतृत्व कर रहे चंदा प्रेस्कोड-वेइस्टेन, सारा टट्टल, लूसिएनी वाल्कोविएज तथा ब्राइन नॉर्ड के वक्तव्य के एक अंश से मैं अपनी इस टिप्पणी को खत्म करना चाहूंगा: ‘मानवता को नुकसान पहुंचाए जाने के इतिहास में हां में हां मिलने वालों का महिमामंडन करने का समय अब खत्म हो चुका। हमें टेलीस्कोप का नाम प्यार से उन लोगों के नाम पर रखना चाहिए, जो हमसे पहले आए तथा जिन्होंने हमें स्वतंत्रता के रास्ते पर आगे बढ़ाया और हमें उन लोगों के प्रति प्रेम से यह नाम रखना चाहिए जो आगे आने वाले हैं।’ हमें अपनी स्वतंत्रताओं से वंचित रखने वालों का महिमामंडन तो नहीं ही किया जाना चाहिए।

(The author acknowledges he was greatly helped in writing this piece by his conversations with Prof. Sabyasachi Chatterjee, former faculty at the Indian Institute of Astrophysics and former president of the All India Peoples Science Network.)

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

Webb Telescope Opens New Window in the Sky

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest