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'बॉयज़ लॉकर रूम' जैसी घटनाओं के लिए कौन ज़िम्मेदार है?

लड़के या पुरुषों के लिए बलात्कार को लेकर बातें करना या जोक्स बनाना, लड़कियों को ‘माल’ की तरह देखना, औरतों के वजूद और इंसानियत को नकार देना। ये सब एक तरह से बहुत आम चलन में है। आज जब एक चैट ग्रुप में हमें ये सब बातें दिखाई दे रही हैं तो लोगों में इसे लेकर गुस्सा है। लेकिन हमें अक्सर कॉमेडी शो, कॉफी विद करण और फिल्मों में यही सब देखने को मिलता है।
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बॉयज़ लॉकर रूम' जैसी घटानओं के लिए हम सिर्फ़ कुछ लड़कों, लोगों या परिवारों को दोषी ठहरा कर बच नहीं सकते। एक समाज के तौर पर इसके लिए हमें अपने अंदर, अपनी व्यापक संस्कृति के अंदर झांकने की ज़रूरत है।”

 ये कहना है महिला अधिकारों के लिए सालों से संघर्षरत कविता कृष्णन का। कविता अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (ऐपवा) की राष्ट्रीय सचिव और भाकपा-माले की पोलित ब्यूरो सदस्य हैं। उनके अनुसार 'बॉयज़ लॉकर रूम' की वारदात एक ज्यादा व्यापक बलात्कार संस्कृति की ओर इशारा करती है, जो हमारे देश के साथ-साथ विदेशों में भी है और इस समाज में होने के नाते इसकी ज़िम्मेदारी हम सभी को लेनी चाहिए।

 क्या है पूरा मामला?

बड़ा फेमिनिस्ट बनना है न सबको। अब उन्हें पता चलेगा। कहीं मुंह दिखाने के लायक नहीं रहेंगी।’ ये बातें 'बॉयज़ लॉकर रूम' में लड़कों की चैट का एक छोटा सा हिस्सा है, लेकिन हमारे पितृसत्तामक समाज में औरतों के आवाज़ उठाने पर अक्सर कुछ ऐसा ही कमेंट सुनने को मिलता है। इस पुरुष प्रधान समाज में औरतों को मर्दो से कमतर समझा जाता है, बार-बार उन पर फब्तियां कसी जाती हैं, भद्दे मजाक बनाए जाते हैं और अगर महिला इन सब के खिलाफ खड़ी हो तो उसे चुप कराने के लिए बात-बात पर उसे इज़्ज़त का डर भी दिखाया जाता है। कुछ यही कहानी 'बॉयज़ लॉकर रूम' की भी थी, जहां एक सोशल मीडिया ऐप इंस्टाग्राम पर धड़ल्ले से लड़कियों के खिलाफ अश्लील बातें चल रही थी, गैंगरेप की योजनाएं बन रही थी लेकिन जैसे ही कुछ लड़कियों ने इस ग्रुप के खिलाफ हल्ला बोला उनकी न्यूड और ऑब्जेक्टीफाइड तस्वीरों को वायरल कर दिया गया।

#boislockerroom ट्रेंड

जैसे ही सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इंस्टाग्राम के 'बॉयज़ लॉकर रूम' ग्रुप से चैट के कुछ स्क्रीनशॉट लीक हुए। ट्विटर पर #boislockerroom ट्रेंड करने लगा। इस ग्रुप की चैट्स जिसने भी पढ़ा अपना माथा पकड़ लिया। कारण साफ है ये बातें ऐसी हैं, जिसे सभ्य समाज में पढ़ना तो दूर कोई सुनना भी बर्दाश्त न करे।

ऐसी क्या बातें हो रही थीं इस ग्रुप में?

ये नेटवर्क स्कूल गोइंग, लगभग 15 से 18 साल के लड़कों का था। जिसमें लड़कियों के बारे में घटिया बातें होती थीं। उनकी तस्वीरें एडिट करके शेयर की जाती थीं, जिस पर उनकी शारीरिक बनावट, लुक्स और शरीर के अंगों के बारे में मज़ाक बनते थे। इन नाबालिग लड़कियों का यौन शोषण, रेप और गैंगरेप करने जैसी भी बातें होती थी।

कुछ चैट्स के नमूने

  • एक लड़का लिखता है जितनी भी लड़कियों ने स्टोरीज़ डाली हैं नउनकी न्यूड्स लीक कर देते हैं। कुछ-कुछ की हैं मेरे पास।
  • इसके जवाब में दूसरे लड़के ने लिखामैं भेजता हूं। तब तक ये भेज दो किसी को। नया अकाउंट बनाओ। किसी को पता नहीं चलेगा। अब उन्हें पता चलेगा कि ये सब ब*** करने का क्या नतीजा होता है। अब मुंह बंद रखेगी ये सा*। बड़ा फेमिनिस्ट बनना है न सबको। उन्हें पता चलेगा। कहीं मुंह दिखाने के लायक नहीं रहेंगी।
  • 'हम उसका आसानी से रेप कर सकते हैं’ और ‘जहां तुम कहोगे, मैं आ जाऊंगा। हम उसका गैंगरेप करेंगे’।

और इसके बाद लड़कों का एक और ग्रुप एक्टिव हो गयाजिसका नाम-Jai ka skirt skrt gang रखा गया। इसमें अब लड़कों ने स्क्रीनशॉट शेयर करने वाली लड़कियों से कैसे बदला लिया जाए इसकी प्लानिंग शुरू कर दी।

 महिलाओं पर घटिया जोक्स आम चलन बन गया है

 न्यूज़क्लिक से बातचीत में कविता कृष्णन कहती हैं, “लड़के या पुरुषों के लिए बलात्कार को लेकर बातें करना या जोक्स बनाना, लड़कियों को ‘माल’ की तरह देखना, औरतों के वजूद और इंसानियत को नकार देना। ये सब एक तरह से बहुत आम चलन में है। आज जब एक चैट ग्रुप में हमें ये सब बातें दिखाई दे रही हैं तो लोगों में इसे लेकर गुस्सा है। लेकिन हमें अक्सर कॉमेडी शो, कॉफी विद करण और फिल्मों में यही सब देखने को मिलता है। यहां तक कि स्कूलों में टीचर्स या प्रशासन के द्वारा लड़कियों को उनके कपड़ों के लिए शर्मिंदा किया जाता है, ये बहुत कॉमन है। शायद ही देश में कोई ऐसा स्कूल हो जहां आपको ये सुनने में न मिले। तो हम क्या सिखा रहे हैं, ये सोचने की बात है।”

 ‘बॉयज़ लॉकर रूम’ की घटना को लेकर पैरेंटिंग पर उठते सवालों पर कविता का कहना है कि ये सिर्फ पैरेंटिंग या परवरिश का मसला नहीं है। शायद ही कोई मां-बाप अपने बच्चों को ऐसी बातें सिखाता होगा। बच्चे जो सोचते या सीखते हैं उसमें घर के साथ-साथ बाहर के माहौल और समाज का भी बहुत योगदान होता है।

 हम महिला विरोधी सोच को पाल-पोस रहे हैं

 वो कहती हैं, “हम अक्सर कुछ लोगों पर किसी भी घटना का दोष मड़कर चलते बनते हैं। जबकि असल बात तो ये है कि समाज में इस तरह की घटना की जिम्मेदारी हम सभी को लेनी चाहिए। कुछ ही दिन पहले जब निर्भया के दोषियों को फांसी की सज़ा हुई तो कई लोगों ने इसका जश्न मनाया। ऐसा कहा गया कि ये फांसी समाज में एक मिसाल बनेगी, बलात्कार की संस्कृति को धक्का पहुंचेगा। लेकिन आज ये हम सब के सामने है कि कुछ लोगों की फांसी से ये सब नहीं रुकने वाला। क्योंकि हर रोज हम अपने समाज में महिला विरोधी सोच और संस्कृति को पाल-पोस रहे हैं।”

 टीवी शोज़स, फिल्में और स्टैंडअप कॉमेडी से बढ़ावा

कविता रोज़ाना महिलाओं के साथ होने वाली छोटी-बड़ी घटनाओं को सीमित दायरे में न रखकर इसे बड़ी अनहोनी की तैयारी के रूप में देखती हैं। टीवी शोज़स, फिल्में और स्टैंडअप कॉमेडी में महिलाओं पर अश्लील टिप्पणियां, जोक्स और छींटाकशी को एक बड़ा उकसावा बताती हैं।

अपनी मित्र शिवानी नाग के एक पोस्ट का जिक्र करते हुए कविता कहती हैं, “मेरी एक मित्र जो अम्बेडकर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं उन्होंने ‘कॉफी विद करण’ का एक वाक्या शेयर किया है। शो में हंसी-मजाक करते हुए ऐसी बातें होती हैं कि अगर आप एक हैट्रोसैक्सुअल पुरुष हैं और आपको अगर गनप्वाइंट पर किसी पुरुष के साथ सेक्स करना होता तो आप किसे चुनेंगे। हम सभी जानते हैं कि गनप्वाइंट पर क्या होता है लेकिन इन सब के बावजूद हम ऐसी बातों में बिना वजह हंसते हैं। कुछ नहीं बोलते। जबकि ये किसी लॉकर रूम का हिस्सा नहीं खुलेआम भद्दा और घटिया मज़ाक है। अगर किसी महिला ने आवाज उठा दी तो उसे फेमिनिस्ट या सेंसेटिव बता कर ताने मारना हमारी आदत बन गई है। लड़कियों को हर रोज कपड़ों को लेकर शर्मिंदा करना, उन पर छींटाकशी करना तो बहुत आम है। इसमें लगभग हर स्कूल प्रशासन से लेकर पुलिस और पॉलिटिकल पार्टिस तक इसमें शामिल हैं।” 

राजनीतिक संस्कृति से अलग नहीं

कविता के अनुसार बॉयज़ लॉकर रूम की बातचीत को हम राजनीतिक संस्कृति से काटकर नहीं देख सकते हैं। आए दिन पॉलिटिकल पार्टी के नेता महिला विरोधी बयान देते रहते हैं। उन पर कोई कार्रवाई तक नहीं होती।

सफूरा ज़रगर की प्रेगनेंसी का जिक्र करते हुए कविता बताती हैं, “अभी हाल ही में भाजपा के विधायक उम्मीदवार रहे कपिल मिश्रा ने सफूरा ज़रगर की प्रेगनेंसी को लेकर जिस तरह की टिप्पणी की है वो कितनी जायज है? ‘आई सपोर्ट नरेंद्र मोदी’ पेज़ से सफूरा को लेकर बकवास बातें की जा रही हैं। सफूरा की प्रेगनेंसी, उसके कपड़े, उसका हिजाब कई तरह की अनर्गल बातें हो रही हैं। तो ये सब क्या है, क्या इसे पॉलिटिकल बॉयज़ लॉकर रूम या संघी लॉकर रूम कहा जाए! जिसमें किसी भी महिला, जो सरकार के खिलाफ बोलती है, को निशाना बनाया जाता है। तो इस संस्कृति को हम क्या कहेंगे? मोदी जी जिनको फॉलो करते हैं वो लोग डेली इस तरह की बातें बोलते हैं तो वो किस लॉकर रूम की बातें हैं? डेली मुझे ऐसी बातें, रेप करने की धमकियां आती हैं। इन लोगों को भी पहचानने की जरूरत है। ये विदेशी संस्कृति नहीं है। ये हमारे देश के अंदर ही पनपी हुई मानसिकता है।

गौरतलब है कि आईपीसी की धारा 354सी और आईटी अधिनियम की धारा 66ई के तहत तस्वीरों से छेड़छाड़ करना और निजी अंगों की तस्वीरें शेयर करना अपराध है। दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए दिल्ली पुलिस और इंस्टाग्राम दोनों को नोटिस जारी किया है और इस ग्रुप के सभी लड़कों को गिरफ्तार करने की मांग की है। जिसके बाद पुलिस ने कुछ गिरफ्तारियां भी की हैं, हालांकि ये सवाल अभी भी बरकरार है कि ऐसी कुछ घटनाओं पर जन आक्रोश उमड़ कर फिर अगले ही दिन सब नार्मल क्यों हो जाता है?

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