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क्या जम्मू में कोविड के मामले कश्मीर से कम और मृत्यु दर अधिक है?

जबकि डॉक्टर वायरस के दोहरे स्वरूप (डबल म्यूटेंट) को दोष दे रहे हैं, लेकिन इस मामले में जम्मू के सरकारी अस्पतालों की दयनीय स्थिति को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है।
क्या जम्मू में कोविड के मामले कश्मीर से कम और मृत्यु दर अधिक है?
'प्रतीकात्मक फ़ोटो' साभार: India Today

रॉबिन पंडिता (25) से जब भी कोई बार-बार उसकी मां के बारे में पूछता है तो वह दुख में रो देता हैं। वह उस नज़ारे को याद नहीं करना चाहता है जब वह बार-बार बेसमेंट से कोविड ​​वॉर्ड में जाता था, और हर डॉक्टर और नर्स से गुज़ारिश करता कि उसकी मां पुष्पा पंडिता (51) को वेंटिलेटर बेड पर स्थानांतरित कर दिया जाए। पंडिता के अनुसार, अस्पताल में मौजूद लोगो में से कोई यह भी नहीं जानता था कि बायपैप मशीन कैसे लगाई जाती है, जो वेंटिलेटर का हल्का स्वरूप है, और वहां कोई वरिष्ठ डॉक्टर भी मौजूद नहीं था।

पंडिता ने कहा, "मुझे अस्पताल के एक ऐसे व्यक्ति से अनुरोध करना पड़ा जो अस्पताल आकर उपकरण को लगाने में हमारी मदद कर दे।"

इसी जद्दोजहद में करीब चार घंटे बाद, जम्मू के सरकारी मेडिकल कॉलेज में वेंटिलेटर पर पुष्पा ने दम तोड़ दिया,  और उनका दुखी और रोता हुआ बेटा पीछे छूट गया।

"मुझे माँ को अस्पताल ले जाने का बहुत खेद है। वह घर पर बेहतर थी। यहां वह शायद बच जाती, ”25 वर्षीय बेटे ने सुबकते हुए कहा।

भिन्न मृत्यु दर

जम्मू-कश्मीर के जम्मू क्षेत्र में मौत का ग्राफ बड़ी तेजी से बढ़ रहा है। कोविड-19 के पुष्टि किए गए मामले 1 अप्रैल को 1.3 लाख से बढ़कर 13 मई को 2.3 लाख हो गए थे, जबकि इसी दौरान मौतें 1,998 से बढ़कर 2,967 हो गईं थी। लेकिन आंकड़ों की यह कुल संख्या जम्मू और कश्मीर डिवीजन/संभाग दोनों में एक विचित्र अंतर को छुपाती हैं।

जैसा कि नीचे दिए गए चार्ट से पता चलता है, कश्मीर डिवीजन में दूसरी लहर के दौरान  लगातार अधिक मामलों की पुष्टि हुई है। लेकिन जम्मू डिवीजन में मामले कम रहने के बावजूद रोजाना की मृत्यु दर अधिक हैं। डेटा मीडिया बुलेटिन, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर की सरकार द्वारा नॉवेल कोरोनवायरस पर तैयार डेटा से लिया गया है, ।

पिछले पंद्रह दिनों में - 1 मई से 15 मई तक - केंद्र शासित प्रदेश के जम्मू क्षेत्र में कुल मामले 23,481 (36.5 प्रतिसत) दर्ज किए गए है, जबकि कश्मीर में 40,903 (63.5 प्रतिशत) मामले दर्ज किए गए हैं। इसी दौरान में, जम्मू में 519 मौतें (64.3 प्रतिशत) हुई हैं जबकि कश्मीर में 288 मौतें (35.7 प्रतिशत) दर्ज की गई हैं।

दोनों डिवीजन में ठीक होने वाले मरीजों की संख्या में भी काफी अंतर है। जम्मू क्षेत्र में 1 मई से 15 मई के दौरान 13,662 (33.7 प्रतिशत) रिकवरी दर्ज की गई, जबकि कश्मीर में 26,799 (66.23 प्रतिशत) रिकवरी दर्ज की गई है।

इस विकट परिदृश्य के दौरान, डॉक्टर और स्वास्थ्य विभाग दोनों क्षेत्रों के बीच आ रहे बड़े अंतर को समझाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। 2011 की जनगणना में बताया गया था कि जम्मू डिवीजन/संभाग की आबादी लगभग 54 लाख और कश्मीर डिवीजन/संभाग की आबादी 69 लाख थी। इसलिए, कोविड-19 मामलों की संख्या के बीच अंतर को समझा जा सकता है। अधिक आबादी वाले कश्मीर में अधिक केसलोएड होने की संभावना है। लेकिन जम्मू संभाग में अधिक  मौतें एक रहस्य बनी हुई हैं।

जम्मू डबल म्यूटेंट की गिरफ़्त में?

डॉक्टरों ने तर्क दिया है कि कश्मीर क्षेत्र की तुलना में जम्मू में डबल म्यूटेंट सहित कोरोनावायरस के वेरिएंट अधिक प्रचलित हैं।

“जम्मू, कश्मीर की तुलना में शेष भारत से बेहतर तौर पर जुड़ा हुआ है। पंजाब जैसे राज्य के आसपास के इलाकों में डबल म्यूटेंट वायरस अधिक प्रचलित है और कई यात्री वहां से आए हैं या लगातार आते हैं। इसके अलावा, मरीजों को अस्पताल में देर से भर्ती किया जा रहा हैं – जबकि मरीजों की स्थिति पहले से ही काफी गंभीर होती हैं,” जीएमसी के डॉ भारत भूषण ने बताया।

जबकि इस डबल म्यूटेंट वायरस का असर अधिक है - जो अधिक संक्रामक है और शायद अधिक गंभीर बीमारी का कारण बनता है - जम्मू में मृत्यु दर में वृद्धि के पीछे यह एक बड़ा कारक हो सकता है, इसलिए जम्मू में सरकारी अस्पतालों की जर्जर हालत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

अस्पताल हालात को संभालने में नाकाम

जम्मू के प्रमुख सरकारी अस्पतालों में से एक - गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) के कोविड ​​वार्ड की अंदररुनी स्थिति काफी गंभीर है। जीएमसी के भीतर जिन परिवारों के रिश्तेदारों की मृत्यु हो गई है, उनके अनुसार अस्पताल के कई वेंटिलेटर खराब पड़े हैं, ऑक्सीजन की आपूर्ति अपर्याप्त है, और कई रोगियों को खुद के भरोसे छोड़ दिया जाता है।

पुष्पा की मृत्यु से कुछ घंटे पहले ही रॉबिन को अपनी मां के लिए एक बायपैप मशीन की व्यवस्था करने के लिए कहा गया था। सामान्य हालात में मशीन की क़ीमत 30,000-40,000 रुपये की होती है वह मशीन उनके लिए 1 लाख रुपये में उपलब्ध हुई थी। 

“मुझे पैसे की चिंता नहीं थी। मैं बस यही चाहता था कि मेरी मां ज़िंदा रहे। डॉक्टरों ने कहा कि उनके पास वेंटिलेटर उपलब्ध नहीं है। इसलिए, मुझे उस मशीन का इंतज़ाम करना होगा जिसे वेंटिलेटर के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है," पंडिता ने न्यूज़क्लिक को बताया।

पंडिता याद करते हैं कि हर रात ऑक्सीजन की आपूर्ति में कमी आती थी और मरीज सांस लेने के लिए अक्सर हांफते रहते थे। "रात में, मैंने देखा कि ऑक्सीजन की कमी के कारण लोग मेरे सामने मर रहे थे।"

सूत्रों के मुताबिक, पीएम केयर्स के तहत जीएमसी को मुहैया कराए गए वेंटिलेटर खराब पाए गए हैं। वे अस्पताल के स्टोररूम में पड़े हैं और उन पर "अनफंक्शनल" लिखा हुआ था। दूसरी ओर, अस्पताल ने इस तरह के आरोपों का खंडन किया है और दावा किया कि सभी वेंटिलेटर चालू हैं।

“हमारे पास 118 वेंटिलेटर हैं और सभी काम कर रहे हैं। पहले इनके संचालन में कुछ समस्या आ रही थी, लेकिन अब इसे ठीक कर लिया गया है। लोग खुद ही बायपैप वेंटिलेटर खरीद रहे हैं जो गलत है, ”शशि सुदन, प्रिंसिपल, जीएमसी, ने न्यूज़क्लिक को बताया।

जब डॉक्टर सुदन से फॉन पर पूछा गया कि मरीजों के रिशतेदारों से खुद बायपैप वेंटिलेटर खरीदने के लिए क्यों कहा जा रहा हैं, तो सुदन फोन पटक दिया और कोई जवाब नहीं दिया। 

न्यूज़क्लिक ने पहले पंजाब और जम्मू के पुंछ और राजौरी जिलों में पीएम केयर्स फंड से मुहैया कराए गए खराब वेंटिलेटर के बारे में बताया था। कई राज्यों ने जब खराब मशीनों के बारे में शिकायत की तो पीएम मोदी ने सभी वेंटिलेटर के ऑडिट के आदेश दिए है।

14 मई को को जीएमसी में जब ज्ञान चंद (80) बेहोश हो गए थे तो करीब चार घंटे तक उन्हे लावारिस छोड़ दिया गया था और सुबह सवेरे उनकी मौत हो गई। उनके बेटे, सोमनाथ कथूरिया (51) ने बताया कि उनकी मृत्यु से कुछ घंटे पहले, डॉक्टरों की सिफारिश पर उन्होंने जिस बाइपेप  मशीन की व्यवस्था की थी, उसका इस्तेमाल भी नहीं किया जा सका।

“नर्सों और तकनीशियनों ने मेरे पिता को जीवित करने के लिए तीन बार उपकरण को उनके मुह में धकेला। वे यह कहते हुए चिल्ला पड़े कि मशीन उन्हे चोट पहुँचा रही है। तो, नर्स ने एक नोट छोड़ा जिस पर लिखा था कि मरीज काफी असहयोगी था। मेरे पिता की मृत्यु के बाद भी वे नहीं आए,” सोमनाथ, जो कोविड के लिए पॉज़िटिव पाए गए और वे घर पर आइसोलेशन में हैं, ने न्यूज़क्लिक को उक्त बातें बताई। 

चूंकि सोमनाथ ने पांच दिन तक अपने पिता के अटेंडेंट के रूप में सेवा की थी उन्हे अस्पताल में भर्ती होने का डर सता रहा है। अस्पताल में “मरीजों की देखभाल के लिए कोई वरिष्ठ डॉक्टर मोजूद नहीं रहता हैं। नर्सों को ही मरीजों की देखभाल के लिए अनुरोध करना पड़ता है। अटेंडेंट को पीपीई किट या सुरक्षा गियर भी नहीं दिए जाते हैं। जीएमसी एक मुर्दाघर बन गया है, ”उन्होंने बताया। 

सोमनाथ की बेटी, कशिश, (20) ने भी जांच के लिए अपना स्वाब दिया है, उसने बताया कि अटेंडेट को ही सफाई से लेकर मरीजों को खिलाने से लेकर कपड़े बदलने तक का सारा काम करना पड़ता है। “अटेंडेंट को डॉक्टरों की तलाश करनी पड़ती है और फिर उनसे मरीज को देखने का अनुरोध करना पड़ता है। स्थिति ऐसी है।"

जरूरत को देखते हुए, अस्पताल में डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्य कर्मियों की संख्या बहुत कम लगती है, जिसके परिणामस्वरूप मरीजों की ओर अपर्याप्त ध्यान दिया जाता है और देखभाल भी कम होती है। जीएमसी के मरीज़ों ने न्यूज़क्लिक को बताया कि वरिष्ठ डॉक्टर एक या दो बार दूर से मरीज़ों को देखने आते हैं और फिर चले जाते हैं।

हम “डॉक्टरों की आशंकाओं या उनके डर को समझते हैं। उनके भी परिवार हैं, लेकिन हमने क्या गलत किया है? मेरी माँ के साथ जानवर जैसा व्यवहार क्यों किया गया,” यह सब बताते हुए  पंडित की आँखों में आंसू आ गए।

वायरस की तीव्रता को मानने में देरी?

एक और परिकल्पना यह की जा रही है कि जम्मू में उच्च मृत्यु दर का कारण अस्पतालों में देर से भर्ती होना है।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) ने जम्मू-कश्मीर में मौतों की संख्या में हुई वृद्धि को देखते हुए जम्मू-कश्मीर में कोविड​​-19 के घातक परिणाम का एक अध्ययन किया है, जिससे जम्मू में सवाल और आशंकाएं पैदा हुईं। अध्ययन कहता है कि जम्मू-कश्मीर में मरने वाले 93 फीसदी मरीजों का टीकाकरण नहीं हुआ था है। सात प्रतिशत को केवल पहली ही खुराक ही मिली थी। छियालीस प्रतिशत मौतें पॉज़िटिव जांच के तीन दिनों के भीतर हुईं हैं। कुल मौतों में से 43 प्रतिशत मौतें उन लोगों की हुई है जो मृत्यु से 1-3 दिन पहले अस्पताल पहुंचे थे।

ऐसा लगता है कि वायरस उन प्रकारों में से एक है जो बहुत तेजी से फैलता है और जिसके लक्षण गंभीर होते है, लेकिन यह इस बात का भी संकेत देता है कि रोगियों को अस्पताल तब लाया जा रहा है जब बीमारी काफी बढ़ जाती है। हालांकि इस बारे में एनएचएम की ओर से कोई स्पष्टीकरण नहीं आया है। न्यूज़क्लिक से बात करते हुए, यासीन चौधरी, निदेशक, एनएचएम ने कहा, “मेरे पास इसमें जोड़ने के लिए कुछ अधिक नहीं है। हमने मौत के पीछे के कारणों का विश्लेषण प्रस्तुत कर दिया है।”

न्यूज़क्लिक की डाटा एनालिटिक्स टीम के पीयूष शर्मा ने डेटा एकत्रित किया और उसका मिलान किया है।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Why Does Jammu Region Have Less Cases But Higher Deaths Than Kashmir?

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