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क्या चिली की प्रगतिशील सरकार बोलीविया की समुद्री पहुंच के रास्ते खोलेगी?

बोलीविया के राष्ट्रपति लुइस एर्स ने कैलामा की लड़ाई के स्मरणोत्सव के मौके पर, चिली के राष्ट्रपति गेब्रियल बोरिक से चिली के पूर्व राष्ट्रपति सल्वाडोर अलेंदे के शब्दों की याद दिलाते हुए पूछा कि क्या चिली, प्रशांत महासागर में बोलीविया की संप्रभु पहुंच वापस करने को तैयार होगा।
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23 मार्च को कैलामा की लड़ाई के स्मरणोत्सव के दौरान, अन्य सरकारी मंत्रियों और संसद सदस्यों के साथ, उप-राष्ट्रपति डेविड चोकक्वेहुआंका के साथ बोलीविया के राष्ट्रपति लुइस एर्स नज़र आ रहे हैं। फोटो: लुइस एर्स/ट्विटर

समुद्री पहुंच के लिए बोलिवियाई लोगों के लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष और चिली में प्रगतिशील नेता गेब्रियल बोरिक के राष्ट्रपति पद संभालने के बाद से लगता है अधिक अनुकूल परिस्थितियां पैदा हो सकती हैं। 23 मार्च को कैलामा की लड़ाई और सागर दिवस के वार्षिक स्मरणोत्सव के दौरान, बोलीविया के राष्ट्रपति लुइस एर्स ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में बोलीविया के लोगों के सामने आशा व्यक्त की कि "राष्ट्रपति गेब्रियल बोरिक के नेतृत्व में, बोलीविया के लोगों पर लगी रोक खत्म हो जाएगी।"

23 मार्च, 1879 को, चिली की सेना, जिसे ब्रिटिश साम्राज्य का समर्थन हासिल था, ने प्रशांत तट पर बोलीविया के लिटोरल विभाग पर आक्रमण किया था और बोलीविया के जनरल एडुआर्डो अबरोआ को मार डाला था, उनके सैनिकों को हरा कर एंटोफ़गास्टा और कैलामा तटीय क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था, जिससे बोलीविया लैंडलॉक हो गया था यानि उसकी समुद्र तक पहुँच ख़त्म हो गई थी। हर साल, बोलिवियाई खोए हुए समुद्र और युद्ध नायक एडुआर्डो अबरोआ को श्रद्धांजलि देने के लिए पूरे देश में गंभीर कार्यक्रम करते हैं, जिन्होंने आत्मसमर्पण करने से इनकार कर दिया था और टोपाटर पुल का बचाव करते हुए सैनिकों के एक छोटे समूह के साथ सैकड़ों चिली सैनिकों के साथ बहादुरी से लड़े थे।

23 मार्च को, वार्षिक स्मरणोत्सव की शुरुआत राजधानी ला पाज़ के अबरोआ प्लाज़ा में हीरो ऑफ़ टोपाटर, एडुआर्डो अबरोआ की प्रतिमा पर पुष्प चढ़ाने के साथ हुई। जिसके बाद अपने खुदा को याद करते हुए सेना और स्कूली बच्चों ने परेड निकाली थी। इस मौके पर सभी कार्यक्रमों को राष्ट्रपति लुइस एर्स, उपराष्ट्रपति डेविड चोकहुआंका, सरकार के मंत्रियों, संसद सदस्यों और सुरक्षा अधिकारियों की देखरेख में चलाया गया। 

राष्ट्रपति एर्स ने राष्ट्र के नाम अपने एक कड़े संबोधन में आलोचना करते हुए कहा कि "बोलीवियाई समुद्र तट संसाधनों का एक अथाह स्रोत रहा है जिसने चिली की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने का काम किया है, जबकि इस स्थिति ने बोलीविया को आर्थिक क्षति दी है जिस क्षति को उसे अपने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में प्रतिदिन भुगतना पड़ता है।" उन्होंने कहा कि "इस रोक के परिणाम न केवल आर्थिक, बल्कि राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक भी हैं।" उन्होंने कहा कि "हमारी समुद्री गुणवत्ता के नुकसान और विदेशी और औपनिवेशिक सोच और व्यवहार के साथ प्रमुख वर्गों के अस्तित्व ने एक आश्रित पूंजीवादी देश के रूप में हमारी स्थिति को खराब किया है।"

देश के प्रमुख ने जोर देकर कहा कि "बोलीविया के समुद्र का अधिकार अक्षम्य और अभेद्य है।" इस संबंध में, राष्ट्रपति एर्स ने कहा कि "राजनयिक संबंधों की पुनर्स्थापना (चिली के साथ) केवल लंबित समुद्री मुद्दे के समाधान के माध्यम से हो सकती है।"

राष्ट्रपति ने कहा कि "बोलीविया और चिली के पास अधिक अवसर हैं यदि वे एक साथ काम करते हैं, पिछली शताब्दियों की गलतियों पर काबू पा सकते हैं और लोगों की कूटनीति आगे बढ़ सकती है, जिसमें विश्वास के साथ आपसी संवाद पैदा होगा।" उन्होंने कहा कि "बोलीविया और चिली के पास लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई एकीकरण, हमारे क्षेत्र में एक नए इतिहास के निर्माण और एक बहुध्रुवीय दुनिया के निर्माण में योगदान करने के लिए बहुत कुछ है जिसमें एक भी वर्चस्व वाला राष्ट्र नहीं है।"

बहुराष्ट्रीय राज्य के राष्ट्रपति ने चिली के अपने समकक्ष से चिली के पूर्व राष्ट्रपति सल्वाडोर अलेंदे के शब्दों को याद करते हुए आह्वान किया कि "चिली पर बोलीविया का एक शताब्दी पुराना कर्ज है और हम एक ऐतिहासिक समाधान लेने के लिए तैयार हैं। बोलीविया को संप्रभु प्रशांत के तट अब मिल जाने चाहिए।”

राष्ट्रपति एर्स ने अपने संदेश को समाप्त करते हुए कहा, "हमें यकीन है कि जल्द ही, हमारे कारावास यानि समुद्र से रोक के अन्याय को सुधारा जाएगा और हम समुद्र के साथ अपने पैतृक और संप्रभु संबंधों का पुनर्गठन करेंगे, एक अधिकार जिसके साथ हम बोलीविया के रूप में पैदा हुए थे, और जिसे हम कभी नहीं छोड़ेंगे।"

कैलामा की लड़ाई 

कैलामा की लड़ाई प्रशांत युद्ध में हुई पहली लड़ाई थी, जो जिसे 1879 और 1884 के बीच चिली और बोलीविया-पेरू गठबंधन के बीच लड़ा गया था। युद्ध तब शुरू हुआ जब बोलिवियाई सरकार ने लिटोरल विभाग में काम कर रहे चिली और ब्रिटिश संयुक्त खनन कंपनियों पर कर बढ़ा दिया था। जब कंपनियों ने नए कर का भुगतान करने से इनकार कर दिया, तो बोलीविया की सरकार खानों का राष्ट्रीयकरण करने के लिए आगे बढ़ी थी। जवाब में, चिली ने बोलीविया पर युद्ध की घोषणा की, जो पांच साल तक चला, जिसमें 18,000 बोलिवियाई मारे गए और प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक संसाधनों के साथ 120,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र और प्रशांत महासागर पर 400 किमी समुद्र तट पर आक्रमण किया गया था। चिली की सेना ने पेरू के विभिन्न हिस्सों पर भी आक्रमण किया था, जिन्होंने बोलीविया का समर्थन करने के लिए सेना भेजी थी। चिली ने पेरू की राजधानी लीमा पर एक साल से अधिक समय तक कब्जा कर लिया, लेकिन बाद में वापस कर दिया और पेरू के दक्षिणी क्षेत्रों जैसे एरिका, पिसागुआ और इक्विक पर कब्ज़ा जारी रखा। 

1904 में, एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए गए और बोलीविया ने चिली के एरिका बंदरगाह को कर-मुक्त कर दिया था और एरिका-ला पाज़ रेलमार्ग नेटवर्क के निर्माण के बदले में आधिकारिक तौर पर अपने तटीय क्षेत्रों को चिली को सौंप दिया था। 1920 में, बोलिवियाई प्रतिनिधिमंडल ने नव-निर्मित राष्ट्र संघ, वर्तमान संयुक्त राष्ट्र के अग्रदूत, से 16 साल पहले हस्ताक्षरित संधि की समीक्षा करने का अनुरोध किया था। हालांकि, अनुरोध अगले वर्ष तक बिना किसी निर्णय के समाप्त हो गया था। तब से, पिछले 102 वर्षों में, बोलीविया ने चिली को संधि को संशोधित करने के लिए मनाने के लिए कई प्रयास किए और चिली ने इसका विरोध करना जारी रखा था। बोलीविया ने चिली पर आरोप लगाया था वह समुद्र में एक बंदरगाह और भूमि गलियारे तक संप्रभु पहुंच प्रदान करने के वादों और दायित्वों का पालन नहीं कर रहा है। 1978 में, बोलिविया ने कैलामा की लड़ाई में हारे हुए समुद्री क्षेत्र पर संप्रभुता के समाधान की मांग करने वाली वार्ता की विफलता के कारण चिली के साथ राजनयिक संबंध तोड़ दिए थे।

हाल के दशकों में, पूर्व राष्ट्रपति इवो मोरालेस की सरकार ने भी इस मामले पर चिली के साथ बातचीत करने का प्रयास किया था। 2006 में, मोरालेस और चिली के राष्ट्रपति मिशेल बाचेलेट ने बातचीत का एक दौर शुरू किया था। 2011 में, दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच ला पाज़ में बोलीविया की समुद्री मांग पर चर्चा करने के लिए एक बैठक आयोजित की गई थी, लेकिन बिना किसी परिणाम बातचीत समाप्त हो गई थी। 

2013 में, चिली के पूर्व राष्ट्रपति सेबेस्टियन पिनेरा के बातचीत से इनकार करने के बाद, बोलीविया ने अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में एक मुकदमा दायर किया, जिसमें चिली को इस मुद्दे पर बातचीत की मेज पर आने के लिए मजबूर करने की मांग की गई थी। 2015 में, उस अदालत ने मुकदमे को संबोधित करने के लिए खुद को सक्षम घोषित किया और मुकदमा शुरू हुआ। प्रक्रिया के बाद, 2018 में, अदालत ने फैसला सुनाया कि चिली के पास बोलीविया के लिए प्रशांत महासागर तक संप्रभु पहुंच के लिए बातचीत करने का कानूनी दायित्व नहीं है। स्पष्ट निर्णय के बावजूद, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने दोनों देशों को स्वेच्छा से "अच्छे पड़ोसी की भावना से" बातचीत करने के लिए आमंत्रित किया ताकि बोलीविया की मांग का समाधान खोजा जा सके।

समुद्र तक बोलीविया की पहुँच न होने से उसे भारी आर्थिक और सामाजिक नुकसान उठाना पड़ा है। अनुमान है कि समुद्र तक पहुंच न होने की वजह से बोलीविया को वार्षिक आर्थिक विकास में 1 प्रतिशत घाटा होता है। फिर भी, बोलीविया के लिए, यह न केवल एक क्षेत्रीय विवाद और आर्थिक विकास का मामला है, बल्कि लैटिन अमेरिका में ब्रिटिश साम्राज्यवाद की छिपी विरासत को मिटाने की एक राजनीतिक लड़ाई भी है। राष्ट्रपति लुइस एर्स की सरकार, चिली प्रशासन के बीच वैचारिक निकटता को देखते हुए, राष्ट्रपति गेब्रियल बोरिक की नई सरकार के साथ इस मुद्दे को हल करने की उम्मीद रखती है।

साभार : पीपल्स डिस्पैच 

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