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क्या भारत फ़ेक न्यूज़ के माहौल और इसके मुख्य ज़िम्मेदारों को चुनौती देगा?

रिपब्लिक भारत पर ऑफ़कॉम और अमित मालवीय पर ट्विटर की कार्रवाई ने भारत में व्यापक दुष्प्रचार और भ्रामक जानकारी के गिरोह को बेनक़ाब किया है।
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दक्षिणपंथ के खेमे के कुछ मीडिया सितारों के लिए दिसंबर का महीना बहुत अच्छा नहीं रहा। महीने की शुरुआत में ट्विटर ने अमित मालवीय द्वारा ट्वीट किए गए किसान प्रदर्शन के एक वीडियो को “छेड़खानी युक्त मीडिया” बताकर चिह्नित कर दिया। यह पहली बार है जब ट्विटर ने मालवीय पर इस तरह की कार्रवाई की है। जबकि उनका गलत जानकारी फैलाने का लंबा इतिहास रहा है। फिर क्रिश्मस आते-आते, ब्रिटेन के संचार नियंत्रणकर्ता, ऑफिस ऑफ कम्यूनिकेशन्स (ऑफकॉम) ने रिपब्लिक भारत पर जुर्माना और बंदिशें लगा दीं। अर्नब गोस्वामी के मालिकाना हक़ वाले रिपब्लिक टीवी का हिस्सा, इस हिंदी चैनल ने ब्रिटेन में संचार की शर्तों का उल्लंघन किया था। 

ऑफकॉम के मुताबिक़, 6 सितंबर, 2009 को भारत के चंद्रयान-2 अंतरिक्ष मिशन पर “पूछता है भारत” शो में चैनल ने “आक्रामक भाषा, नफरती भाषण, गालीगलौज और कुछ धार्मिक समूहों-समुदायों के खिलाफ़ उकसावे वाली भाषा का प्रयोग किया था।” रिपब्लिक टीवी की ब्रिटेन की कंपनी पर ऑफकॉम ने 20,000 पौंड (करीब बीस लाख रुपये) का जुर्माना लगाया है। साथ में चैनल को ऑन-एयर माफी का प्रसारण और आगे विवादित शो के दोबारा प्रसारण ना करने का निर्देश दिया है। फरवरी से अप्रैल के बीच 6 हफ़्तों में चैनल ने  ऑफकॉम से 280 बार माफ़ी मांगी थी। लेकिन इससे भी नियंत्रणकर्ता पिघले नहीं। उन्होंने माना कि इस बार जो अपराध किया गया है, उसमें प्रतिबंध और जुर्माना लगाना ही जरूरी है।

मालवीय और गोस्वामी के अलावा इस तरीके के दूसरे लोग भी भारत में खूब फले-फूले हैं। यहां नियंत्रणकर्ताओं और कानून ने उन्हें हाथ भी नहीं लगाया। दक्षिणपंथी खेमे में इन दोनों को खूब पूजा जाता है। उनकी यहां बहुत पहुंच है। यहां इनके झूठ और आरोपों का मिश्रण इस हद तक प्रभावी हो जाता है कि प्रमाणित जानकारी और सच को सार्वजनिक तौर पर चुनौती देने के लिए इनकी बातों को आधार बनाया जाता है।

इसके चलते वृहद सार्वजनिक क्षेत्र सच और जानबूझकर फैलाए गए झूठ का मिश्रण बन जाता है, जिसमें लोग उलझन में बने रहते हैं और जनविमर्श भ्रष्ट होता है। गोस्वामी ने सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या का “कवरेज” और CAA प्रदर्शन के दौरान मालवीय के लगातार झूठे ट्वीट इसी चीज के दो उदाहरण हैं। स्वतंत्र तथ्य-परीक्षणकर्ताओं ने उनके झूठ और प्रोपेगेंडा को खूब पकड़ा, लेकिन उन्हें ना तो कानून ने निशाना बनाया और ना ही उन्हें सार्वजनिक मलानत झेलनी पड़ी।

इसलिए ट्विटर और ब्रिटेन के कम्यूनिकेशन रेगुलेटर की कार्रवाईयां भारत में मीडिया-सूचना तंत्र के भीतर की लड़ाई में एक अहम मोड़ हैं। मालवीय और गोस्वामी के साथ-साथ हिंदी टेलीविजन न्यूज़ इंडस्ट्री में मौजूद दूसरे लोग, जिन्होंने पारंपरिक और सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर जानबूझकर खूब गलत जानकारी फैलाई है, जो नफरत और कट्टरपंथ पर खूब फले-फूले हैं, उन्हें अपने किए का भुगतान करने का साफ़ संदेश दिया गया है। यह संदेश भी स्पष्ट है उन्हें कानून के दायरे में निशाना बनाया जा सकता है और सार्वजनिक माफ़ी के लिए भी कहा जा सकता है।

यह लोग कैसे काम करते हैं

ऑफकॉम की रिलीज के मुताबिक़, “सितंबर में पैनल चर्चा के दौरान गोस्वामी और उनके अतिथियों ने इस तरह के वक्तव्यों का इस्तेमाल किया, जो पाकिस्तानी लोगों के खिलाफ़ नफरती भाषण के दायरे में आते हैं। यह वक्तव्य पाकिस्तानी लोगों के खिलाफ़ अभद्र और उकसावे भरे व्यवहार की श्रेणी में आते हैं।” रिलीज़ के मुताबिक़, गोस्वामी ने कहा था, “उनके वैज्ञानिक, डॉक्टर, नेता, राजनेता सारे के सारे आतंकवादी हैं। यहां तक कि उनके खिलाड़ी भी। हर बच्चा वहां आतंकी है। आप एक आंतकी संस्था से व्यवहार कर रहे हैं। हम वैज्ञानिक बनाते हैं, तुम आतंकी बनाते हो।” शो में आए एक गेस्ट “जनरल सिन्हा” ने पाकिस्तानी लोगों को भिखारी कहा और पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य हमले की धमकी दी थी।

पिछले साल 1200 करोड़ रुपये के मूल्यांकन वाले मीडिया हॉउस को 20 लाख रुपये के जुर्माने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन ऑफकॉम ने जिस ऑनएयर माफ़ी की मांग की है, उससे मीडिया हॉउस को बहुत चोट पहुंचेगी। इन प्रतिबंधों की बड़े पैमाने पर चर्चा हुई है। इनसे गोस्वामी को लानत महसूस होनी चाहिए, जो भारत के मीडिया नियामक तंत्र को धता बताने के आदी हैं। उनकी विभाजनकारी और चीख-चिल्लाहट से भरी तेज आवाज पत्रकारिता की आड़ में जारी है। व्यक्तिगत लोगों और विपक्ष पर उनके लगातार हमलों ने झूठ को वैधानिकता दिलवाई है, इससे बड़ा आतंक पैदा हुआ है। इस पर मीम भी बहुत बनते हैं। लेकिन गोस्वामी को कभी ना तो माफी मांगनी पड़ी हैं और ना ही कभी जुर्माना भरना पड़ा है।

इसी तरह ट्विटर और दूसरे प्लेटफॉर्म्स पर मालवीय के झूठ को दर्जनों बार स्वतंत्र तथ्य परीक्षणकर्ताओं ने बेनकाब किया है। इसमें CAA विरोधी प्रदर्शनकारियों और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में हुए कथित भाषणों की झूठी जानकारी, महिलाओं के साथ जवाहर लाल नेहरू की शरारत भरी कोलाज़, कांग्रेस, खासकर राहुल गांधी के खिलाफ़ अभद्र शब्दों का प्रयोग, चुनाव प्रचार के बारे में भ्रामक जानकारी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पक्ष में गोल-मोल बातों का प्रयोग शामिल है। इसके बावजूद मालवीय बेदर्द और ढीठ बने हुए हैं। बीजेपी के खेमे में मालवीय को जो जगह प्राप्त हुई है, उससे प्रेरणा के चलते, उनके इस “काम” को बढ़ावा ही मिलता है। ऊपर से जब स्वतंत्र न्यूज चैनल उन्हें अपने पैनल में विशेषज्ञ के तौर पर बुलाते हैं, तो उन्हें वैधानिकता मिलती है।

मालवीय बीजेपी के आदमी हैं और उनसे बीजेपी के विचार को आगे बढ़ाने की उम्मीद की जाती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें झूठ, गलत जानकारी और अपने एजेंडे के लिए छेड़खानी भरे वीडियो फैलाने का लाइसेंस मिल जाता है। गोस्वामी अपने पत्रकार होने पर गर्व करते हैं, उन्हें सच्चाई, स्वतंत्रता और संतुलन के ऊंचे मानकों को बनाए रखना चाहिए था। अकादमिक जगत से जुड़े क्रिस्टोफे जैफरलॉट और विहांग जुमले के शोध से पता चलता है कि उनके चैनल पर आने वाले कार्यक्रम बीजेपी, खासकर मोदी के पक्ष में बेइंतहां ढंग से झुके होते हैं। वे सरकार के आलोचकों को “देशद्रोही” या भारत का दुश्मन बताते हैं। इस साल जब ऑफकॉम के सामने रिपब्लिक भारत अपना बचाव कर रहा था, तो कंपनी ने कहा कि “वरिष्ठ प्रबंधन और प्रोडक्शन टीम को नफरती बयानबाजी और अपमानजनक वक्तव्यों को पहचानने के तरीकों पर पूरी ब्रीफिंग दी गई है।” लेकिन यहाँ सवाल उठता है कि फिर चैनल ऑन एयर क्यों इतने बड़े स्तर पर नफरती बयानबाजी चलाता है?

आगे का रास्ता

इन लोगों को मालूम है कि इनके काम का कितना असर होता है। यही तो इनका लक्ष्य है। यह संयोग नहीं है। अभी तो ट्विटर को ऐसे ही और भी कदम उठाने होंगे। साथ ही ऑफकॉम की कार्रवाई ने गलत जानकारी, झूठ और नफरत से जूझने के लिए आगे का रास्ता बताया है। लेकिन इन कार्रवाईयों से कोई फौरी नतीजा नहीं निकलेगा। इनसे भारत के मीडिया जगत के बुरे लड़के (और लड़कियां) अच्छे नहीं हो जाएंगे और ना ही तुरंत कोई बुनियादी बदलाव आने वाला है।

पहली बात, इन कार्रवाईयों से मालवीय, गोस्वामी और उन्हें मानने वालों को थोड़ी शर्मिंदगी उठानी पड़ सकती है। लेकिन सच्चाई और स्वच्छ विमर्श के लिए उनकी नापसंदगी को देखते हुए ऐसा लगता नहीं है कि वे रुकने वाले हैं या फिर खुद में कुछ बदलाव करने वाले हैं। एक दंडात्मक कार्रवाई का उद्देश्य सिर्फ सजा देना नहीं, बल्कि सामने वाले को अपनी गलती का अहसास कराना और उसे सुधार के लिए प्रेरित करना होता है। लेकिन मालवीय या गोस्वामी में से किसी से भी इस बदलाव की आशा करना कठिन है, आखिर उनका काम झूठ, गलत जानकारी और आरोप-प्रत्यारोप से ही तो फलता-फूलता है।

दूसरी बात, इन कार्रवाईयों ने भारत के झूठ, फर्जी जानकारी और प्रोपेगेंडा तंत्र के बड़े खिलाड़ियों को दुनिया के सामने बेनकाब किया है। यह दुनिया अब भी प्रमाणित जानकारी और सच्चाई की कद्र करती है। यह एक इशारा है कि गलत जानकारी और प्रोपेगेंडा फैलाने के दोषी लोगों को बेनकाब, नियंत्रित किया जा सकता है, उन्हें निगरानी रखनी वाली संस्थाओं के सामने घसीटा जा सकता है। भारत में भी उनके मिथ्या आरोपों को कानून के सामने घसीटा जा सकता है। इसका नतीज़ा भारत में कानूनी प्रक्रिया की स्वतंत्रता और अखंडता पर निर्भर करता है। यह वक़्त और बहुत कोशिश मांग सकता है, लेकिन दरवाजे खुले हुए हैं। आज तक न्यूज़ चैनल पर एक एंकर ने ऑन एयर एक शख्स से पाकिस्तान जाने को कह दिया। लेकिन कानून के रखवालों या मीडिया नियंत्रणकर्ताओं ने अब तक उसे सेंसर नहीं किया।  

तीसरी बात, ट्विटर जैसी बड़ी कंपनियों ने बताया है कि अगर उनकी मंशा हो तो वे कार्रवाई कर सकती हैं, यह कमजोर या कड़क भी हो सकती है, यह कार्रवाई प्रमाणित ट्विटर हैंडल्स पर भी हो सकती है। लेकिन एक दर्जन ट्वीट में से सिर्फ़ एक पर ही कार्रवाई करना पर्याप्त नहीं है। यह ट्विटर हैंडल्स पर कार्रवाई की एक नियमित प्रक्रिया शुरुआत होनी चाहिए। इस कार्रवाई में राजनीतिक संबंध से तटस्थता रखी जानी चाहिए। तभी हम जनविमर्श में थोड़ी सभ्यता, बुद्धिमत्ता और सच्चाई देख सकेंगे।

कम जाने-माने ट्विटर हैंडल्स को बहुत छोटे कृत्यों, बल्कि कई बार कोई खास अपराध ना करने पर ही कंपनी ने प्रतिबंधित करने जैसी कार्रवाई तक की है। मालवीय के हर सच्चे या झूठे शब्दों का समर्थन करने वाले बहुत सारे लोग ट्विटर को पहले ही ‘लेफ्ट-लिबरल’ प्लेटफॉर्म कहकर निंदा करते रहे हैं, लेकिन यह नफरती भाषण और झूठ को अपने मंच पर फैलने देने की वज़ह नहीं बन सकता। फ़ेसबुक और गूगल की तरह ही ट्विटर भी मोदी सरकार की नज़र में भला बने रहने की मंशा रखता है। लेकिन सवाल उठता है कि ऐसा किस कीमत पर होगा।

फिलहाल के लिए यह बहुत अहम है कि मालवीय को छेड़खानी भरा मीडिया डालने के लिए बेनकाब किया गया और गोस्वामी ब्रिटेन के प्रशासन से नफ़रती भाषण के लिए माफी जरूर मांगें।

लेखिका मुंबई आधारित वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं। वे राजनीति, शहरों, मीडिया और जेंडर पर लिखती हैं। यह उनके निजी विचार हैं।

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

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