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माली से फ़्रांसीसी सैनिकों की वापसी साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ ऐतिहासिक जीत है

माली से फ़्रांसीसी सैनिकों को हटाने की मांग करने वाले बड़े पैमाने के जन-आंदोलनों का उभार 2020 से जारी है। इन आंदोलनों की पृष्ठभूमि में, माली की संक्रमणकालीन सरकार ने फ़्रांस के खिलाफ़ लगातार विद्रोही मुद्रा अपनाई है।
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देश में फ़्रांसीसी सैनिकों की मौजूदगी के खिलाफ़ लाखों लोग माली में लामबंद हो रहे थे और अंतत 19 फरवरी को उनके जाने का जश्न मनाया गया। फ़ोटो: मलिक कोनाटे

"फ़्रांस मुर्दाबाद! साम्राज्यवाद मुर्दाबाद!” ये वे नारे थे जो माली की राजधानी बमाको में इंडिपेंडेंस स्क्वायर में गूंज रहे थे, जहां हजारों लोग शनिवार यानि 19 फरवरी को फ़्रांसीसी सैनिकों की वापसी की घोषणा का जश्न मनाने के लिए इकट्ठे हुए थे। इमैनुएल मैक्रोन की तस्वीरों वाले  प्लेकार्ड और कट-आउट और साथ ही पूर्व उपनिवेशवादी राष्ट्रीय झंडे को आग के हवाले करते हुए  "अलविदा फ़्रांस!" कह रहे थे। 

“यह एक स्वतःस्फूर्त प्रदर्शन था। माली में "फ़्रांस विरोधी आंदोलन की कार्यकर्ता हसन यतारा ने पीपुल्स डिस्पैच को बताया कि जैसे ही हमारी सरकार ने फ़्रांसीसी सैनिकों (18 फरवरी को) को बिना देरी किए जाने के लिए कहा, हमें पता था कि हम जश्न मनाने के लिए इकट्ठा होने जा रहे हैं। 

माली से फ़्रांसीसी सैनिकों की वापसी का बिगुल बजाने वाले बड़े पैमाने के जन-आंदोलनों ने विशेष रूप से 2020 के बाद से, पिछले महीने बमाको में सैकड़ों हजारों मालियो को लामबंद किया है। इस पृष्ठभूमि में, कर्नल असिमी गोइता के नेतृत्व में माली की संक्रमणकालीन परिषद ने फ़्रांस के खिलाफ़ लगातार विरोधी रुख अपनाया है।

गोइता ने अगस्त 2020 में तत्कालीन राष्ट्रपति इब्राहिम बाउबकर कीता को सत्ता से बाहर कर  लोकप्रिय समर्थन हासिल किया था, क्योंकि प्रदर्शनकारी, कीता को देश में बिगड़ती सुरक्षा स्थिति, एक भ्रष्ट शासन, फ़्रांसीसी के अधीन रहने वाले अयोग्य प्रशासक के रूप में देखते थे। मई 2021 में एक और तख्तापलट के बाद, गोइता ने अंतरिम राष्ट्रपति का पद संभाला था।

उसके बाद से, विशेष रूप से पिछले छह महीनों में, माली ने सैन्य सहायता के लिए रूस और तुर्की की ओर रुख किया और मालियन राष्ट्रीय सेना ने सशस्त्र अलगाववादी और इस्लामी विद्रोहियों के खिलाफ लड़ाई में बड़ी जीत दर्ज की है। इसने संक्रमणकालीन सरकार के लोकप्रिय समर्थन को और मजबूत किया है, और माली और रूस के बीच गहरे गठबंधन का आधार तैयार किया है।

दूसरी ओर, फ़्रांसीसी सेना ने माली में लगभग एक दशक तक उग्रवाद विरोधी अभियानों का नेतृत्व किया लेकिन उससे माली को कोई खास सुरक्षा लाभ नहीं दिखा है। फ़्रांस के सैनिकों ने 2013 में ऑपरेशन सर्वल के बहाने देश में प्रवेश किया था, ताकि उत्तर में इस्लामी सशस्त्र समूहों के कब्जे वाले शहरी केंद्रों को खाली कराया जा सके।

माघरेब (एक्यूआईएम) में अल-कायदा का मुकाबला करने की उम्मीद में, फ़्रांस ने तुआरेग अलगाववादी आंदोलन का हाथ थामा, जिसे आजादी का राष्ट्रीय आंदोलन (फ्र॰ एमएनएलए) कहा जाता है, जबकि इस आंदोलन ने बाद में एक्यूआईएम के साथ हाथ मिला लिया था। 

मालियन सेना के निर्माण और क्षेत्र को स्थिर बनाने के लिए विस्तारित जनादेश के साथ, 2014 में ऑपरेशन बरखाने मिशन को विकसित करने के लिए सैनिक वहीं बने रहे। इस ऑपरेशन में कनाडा के सैनिकों को भी शामिल किया गया था। 2,400 फ़्रांसीसी सैनिकों को अतिरिक्त सहायता प्रदान करने के लिए, 2020 में बनाए गए टास्क फोर्स ताकुबा के तहत 14 यूरोपीय देशों से कई सौ अन्य सैनिकों को लाया गया था।

इस अवधि के दौरान फ़्रांसीसी नेतृत्व के तहत, हिंसा की घटनाएं 2014 में 115 से बढ़कर 2021 में 1,007 हो गईं थी। हिंसा पड़ोसी देशों में भी फैल गई थी, जहां ऑपरेशन बरखाने के तहत शेष 2,000-2,500 फ़्रांसीसी सैनिक तैनात हैं।

माली में फ़्रांस और उसके पश्चिमी सहयोगियों ने इस्लामवादी उग्रवाद के खतरे के खिलाफ जो सुरक्षा कवच बनाने का लक्ष्य रखा था उसने जनता के बीच अपनी विश्वसनीयता खो दी थी, जिसके चलते उन पर 2011 में लीबिया पर युद्ध छेड़ने का आरोप लगाया गया था, और उन्हें एक कब्जे वाली ताकत के रूप में देखा जाने लगा था। 

यह इस संदर्भ में यहाँ जन-आंदोलनों का दौर शुरू हुआ और कर्नल गोइता ने दो तख्तापलट के बाद सत्ता को समेकित किया और फ़्रांस पर निर्भरता दूर कर और अन्य शक्तियों, मुख्य रूप से रूस और तुर्की के साथ सुरक्षा साझेदारी की और पर्याप्त सुरक्षा लाभ अर्जित किया।

यतारा ने बताया कि "रूस ने एक मजबूत और एकीकृत मालियन राष्ट्रीय सेना बनाने में मदद करने में रुचि दिखाई थी।" "लेकिन फ़्रांसीसी चाहते थे कि हमारी सेना माली की संपत्ति में अपने हितों की रक्षा के लिए उनके अधीन लड़े। क्योंकि एक मजबूत राष्ट्रीय सेना का होना उनके औपनिवेशिक हितों के खिलाफ था।”

"फ़्रांस को माली में लोकतंत्र की परवाह नहीं है"

रूस के साथ माली के विकासशील संबंधों के बारे में बढ़ती चिंता के बीच, फ़्रांस के विदेश मंत्री जीन-यवेस ले ड्रियन ने फरवरी 2022 में चुनाव कराने से इनकार करने का हवाला देते हुए पिछले महीने संक्रमणकालीन सैन्य परिषद को "नाजायज" कहा था।

सुरक्षा की कमी के कारण, "आज की स्थिति में देश का 70 प्रतिशत हिस्सा स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव नहीं करा सकता है। ”माली में घाना के राजदूत नेपोलियन अब्दुलई ने पीपुल्स डिस्पैच को बताया कि राजनीतिक दल इन क्षेत्रों में प्रचार में नहीं जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि सार्थक चुनाव अगले साल तक पर्याप्त सुरक्षा तैयारी कर और विभिन्न समूहों के बीच शांति सुनिश्चित कर राजनीतिक संवाद करने के बाद ही हो सकते हैं।

"फ़्रांसीसी माली में लोकतंत्र की परवाह नहीं करते हैं," यतारा ने कहा, "वे केवल एक बहाने के रूप में चुनाव का इस्तेमाल कर रहे हैंऔर हमें ब्लैकमेल कर रहे हैं: 'चुनाव कराओं नहीं तो हम आपको मान्यता नहीं देंगे।' लेकिन देश को अब सुरक्षा की जरूरत है, क्योंकि यह नौ साल से युद्ध में है।” उन्होंने कहा कि, चुनाव के लिए देश को पर्याप्त रूप से सुरक्षित बनाने के लिए  "कम से कम छह से आठ महीने लगेंगे, लेकिन अब हम तय करेंगे कि हम कब चुनाव में जा रहे हैं; हमें फ़्रांसीसियों के साथ इस पर चर्चा करने की आवश्यकता नहीं है।"

ले ड्रियन की टिप्पणियों को "शत्रुतापूर्ण और अपमानजनक" बताते हुए, माली की सरकार ने 31 जनवरी को माली से फ़्रांसीसी राजदूत जोएल मेयर को निष्कासित कर दिया था। यह इन घटनाओं का ही नतीज़ा था कि 17 फरवरी को फ़्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने माली से "व्यवस्थित" तरीके से सैनिकों को वापस बुलाने के निर्णय की घोषणा की थी। 

”पेरिस से जारी बयान में कहा गया है कि "मालियन संक्रमणकालीन अधिकारियों द्वारा कई अवरोध लगाने की वजह से, कनाडा और यूरोपीय देशों को ऑपरेशन बरखाने के साथ-साथ और टास्क फोर्स ताकुबा डीम द्वारा राजनीतिक, ऑपरेशन और कानूनी शर्तों को अब लड़ाई में अपनी वर्तमान सैन्य भागीदारी को प्रभावी ढंग से माली में आतंकवाद को खत्म करने के लड़ाई में दिक्कत हो रही थी। मैक्रोंन ने कहा कि गोसी, मेनका और गाओ में तीन सैनिक ठिकाने चार से छह महीने की अवधि में बंद हो जाएंगे।

अगले दिन, माली की संक्रमणकालीन सरकार ने, परामर्श किए बिना फ़्रांस और उसके यूरोपीय सहयोगियों द्वारा लिए गए इस निर्णय का जवाब देते हुए एक विज्ञप्ति जारी की, जिसमें कहा गया कि "माली की सरकार फ़्रांसीसी अधिकारियों को बिना किसी देरी के, राष्ट्रीय क्षेत्र से ताकुबा सदस्य और मालियन अधिकारियों की देखरेख में बलों - बरखाने ऑपरेशन और टास्क फोर्स को वापस लेने के लिए आमंत्रित करती है।”

माली में इस संभावना को ऐतिहासिक के तौर पर मनाया जा रहा है। यतारा ने कहा कि "हम फ़्रांस के एक पुराने उपनिवेश हैं, और हम वास्तव में कभी भी स्वतंत्र नहीं हुए थे।" उन्होंने शिकायत की कि, जनता में इतनी मजबूत फ़्रांस विरोधी भावना होने के बावजूद, माली के नेताओं ने अब तक इसे कभी प्रतिबिंबित नहीं किया था, और पूर्व औपनिवेशिक स्वामी के प्रति विनम्र बने रहे।

“लेकिन यह सरकार अब जो कर रही है वह माली में पहले कभी नहीं हुआ। इसे मालियन लोगों का पूरा समर्थन हासिल है क्योंकि यह हमारी आजादी के लिए लड़ने को तैयार है। “अंतर्राष्ट्रीय मीडिया यहां की स्थिति को इस तरह से चित्रित करने की कोशिश करता है जैसे कि किसी सैन्य तानाशाह ने लोकतंत्र से सत्ता हासिल कर ली है और अब वह फ़्रांस के खिलाफ जा रहा है। लेकिन ऐसा नहीं है और वे लोकप्रिय इच्छा के संकेत देते हुए पिछले महीने फ़्रांस विरोधी प्रदर्शनों की व्यापकता की ओर इशारा करते हैं। 

जबकि इस क्षेत्र में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के भविष्य के बारे में बहुत चिंता जताई जा रही है, विज्ञप्ति में कहा गया है, "माली की सरकार याद दिलाना चाहती है कि (यह) .. यदि नाटो ने 2011 में लीबिया में हस्तक्षेप नहीं किया होता तो यह जरूरी नहीं होता। यह हस्तक्षेप, जिसने इस क्षेत्र में सुरक्षा की स्थिति को मौलिक रूप से बदल दिया और जिसमें फ़्रांस को अफ्रीकियों की बड़ी नाराजगी का सामना करना पड़ा, जो विशेष रूप से माली में और सामान्य रूप से साहेल में वर्तमान सुरक्षा समस्याओं की जड़ है।

फिर भी, फ़्रांसीसी समर्थन के बिना सशस्त्र समूहों से लड़ने में सक्षम होने के मामले में विश्वास व्यक्त करते हुए, बयान में कहा गया है कि "संक्रमणकालीन अधिकारियों ने अपने संप्रभु अधिकार का इस्तेमाल करते हुए, साझेदारी में विविधता लाने की सक्रिय कार्रवाई की है और इस प्रकार सक्षम बनाने के लिए जबरदस्त प्रयास किए हैं। पिछले छह महीनों में, विशेष रूप से चुनाव कराने के लिए परिस्थितियों का निर्माण करने की दृष्टि से, जमीन पर सुरक्षा स्थिति में वृद्धि करते हुए मालियन सशस्त्र बलों की शक्ति में वृद्धि हुई है।

फ़्रांसीसी संकट का पड़ोसी साहेल देशों पर पड़ेगा असर
हालाँकि, अनिश्चितता बनी हुई है, क्योंकि मैक्रोन ने "निमंत्रण" को "बिना देरी किए वापस लेने" के निर्णय को ठुकरा दिया है। अभी, माली और फ़्रांस को वापसी के कार्यक्रम पर सहमत होना बाकी है। "इस पर काम करना होगा। यह एक कठिन प्रक्रिया है। अब्दुलई ने कहा कि इतनी बड़ी संख्या में सैनिकों की आवाजाही में बड़े पैमाने पर योजना बनाना शामिल है, विशेष रूप से सहारा में शत्रुतापूर्ण इलाके में यह कठिन है। ” 

"जिहादियों और स्थानीय आबादी पर निर्भर", अब्दुलई इस संभावना से इंकार नहीं कर सकते हैं कि फ़्रांसीसी सैनिकों की वापसी "व्यवस्थित" नहीं हो सकती है जैसा कि मैक्रोन का इरादा लगता है।

"आबिदजान (आइवरी कोस्ट की राजधानी) से बुर्किना फासो के रास्ते नाइजर तक फ़्रांसीसी आपूर्ति की हालिया आवाजाही याद है?" उन्होंने बतया कि, नवंबर में नाइजर और बुर्किना फासो में उनके मार्ग के साथ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे। इन विरोधों की पृष्ठभूमि में बुर्किना फासो ने पिछले महीने एक लोकप्रिय सैन्य समर्थित तख्तापलट भी देखा है।

"अगर फ़्रांसीसी सैनिक नागरिक आबादी पर गोली चलाते हैं, तो यह फ़्रांसीसी विरोधी भावना को बढ़ाएगा और नियामे में शासन को प्रभावित करेगा," राजधानी नाइजर, जहां मैक्रोन अब माली से हटाए जाने वाले सैनिकों को स्थानांतरित करने का इरादा रखता है।

मैक्रोन ने कहा, "इस सैन्य अभियान का केंद्र अब माली नहीं बल्कि नाइजर होगा... और शायद क्षेत्र के सभी देशों में अधिक संतुलित तरीके से होगा जो इसे चाहते हैं।" लेकिन फ़्रांस के पूर्व उपनिवेशों में प्रदर्शनकारियों के मुताबिक, "इस क्षेत्र के देश ऐसा नहीं चाहते हैं", केवल वे सरकारें उत्सुक हैं – जो अपनी आबादी में मजबूत फ़्रांसीसी विरोधी भावना से अलग राय रखती हैं - पश्चिमी सरकारों से तरफ़दारी के लिए बेताब हैं, यहां तक ​​कि इस जोखिम में भी कि वे ऐसा कर अपनी घरेलू वैधता खो सकते हैं।

नाइजर के राष्ट्रपति मोहम्मद बाज़ौम का मामला ऐसा ही है, जिन्होंने अपने देश में बढ़ते फ़्रांस विरोधी प्रदर्शनों के बीच, फ़्रांसीसी सैनिकों को माली से आने और नाइजर के अंदर अपनी सीमा पर स्थिति का जायजा लेने के लिए आमंत्रित किया है।

बाज़ौम ने कहा कि "हमारा लक्ष्य माली के साथ लगी हमारी सीमा को सुरक्षित रखना है," और भविष्यवाणी की कि फ़्रांसीसी वापसी के बाद, माली "और भी अधिक प्रभावित होगा और वहाँ आतंकवादी समूह मजबूत होंगे। हम जानते हैं कि वे अपना प्रभाव बढ़ाने में सक्षम होंगे।"

नाइजर में इस विरोध आंदोलन के नेताओं में से एक, माकोल ज़ोडी ने चेतावनी दी है, "हमारे क्षेत्र पर सेना का दोबारा से डिप्लोयमेंट अस्वीकार्य और असहनीय है ... हम उन्हें एक कब्जे वाली ताकत मानेंगे"

"कोई भी देश जो आज फ़्रांसीसी सैनिकों को स्वीकार करेगा, जनता उस सरकार के खिलाफ हो जाएगी। अब्दुलई ने कहा कि फ़्रांस एक बुरी खबर है।” "मुझे लगता है कि साहेल में नव-उपनिवेशवाद के खिलाफ एक आंदोलन चल रहा है। युवा हथियार उठा रहे हैं। वे वास्तविक विकास चाहते हैं जो उनकी संस्कृति और इतिहास को नष्ट न कर सके।”

साभार : पीपल्स डिस्पैच

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