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योगी की गाय नीति : शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास से भी ज़्यादा अनुपयोगी गायों पर खर्च

उत्तर प्रदेश में प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष शिक्षा खर्च-3164, स्वास्थ्य खर्च-1009, सामाजिक कल्याण खर्च-1603 और ग्रामीण विकास खर्च-988 रुपये है लेकिन एक अनुपयोगी गाय पर खर्च-7665 रुपये होगा।
सांकेतिक तस्वीर

उत्तर प्रदेश में आवारा या छुट्टा पशु एक बहुत बड़ी समस्या बनते जा रहे हैं। इसके लिए राज्य सरकार ने समस्त स्थानीय व शहरी निकायों में अस्थायी गौशाला निर्माण का आदेश दिया है, जिसमें बहुत बड़ी धनराशि खर्च करने की आवयश्कता होगी। उत्तर प्रदेश देश का सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला राज्य है, जिसमें आम जनता के लिए विभिन्न क्षेत्रों में खर्च बढ़ाए जाने की ज़रूरत है परन्तु सरकार के लिए जनता से ज्यादा गाय ज़रूरी है। हमने अनुपयोगी होने पर छोड़ दी गई गाय पर होने वाले सरकारी खर्चों का विश्लेषण किया तो यह निष्कर्ष निकला कि एक साल में एक गाय या गोवंश के भरण-पोषण में चारे इत्यादि पर साढ़े सात हजार से भी ज़्यादा रुपये खर्च होंगे। यह आंकड़ा चौंकाने वाला था क्योंकि अभी प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य सुविधाओं पर केवल सोलह सौ रुपये खर्च होते हैं और प्रति व्यक्ति शिक्षा पर केवल तीन हजार। जिसका मतलब यह है कि सरकार का भावी रुख ऐसा है जो जनता की बजाय गाय पर अधिक तवज्जो दे रहा है। इसके साथ सच्चाई यह भी है कि राज्य के ग्रामीण क्षेत्र में करीब 78 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है और राज्य सरकार का ग्रामीण विकास में 988 रुपये प्रति व्यक्ति, प्रति वर्ष खर्चा है। इस हक़ीकत को नीचे दिए गए चार्ट के माध्यम से समझा जा सकता है-

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उत्तर प्रदेश पशुधन संख्या के लिहाज से देश का सबसे बड़ा राज्य है। 19वीं पशुगणना 2012 के अनुसार कुल 501.82 लाख गोवंशीय (गाय व बैल) +महिषवंशीय (भैस व भैंसा) पशुओं में से 195 लाख गोवंशीय पशु थे। गोवंश हमेशा से कृषि व्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। गौ हत्या पर पहले से बैन रहा है परन्तु केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद देश में ऐसा माहौल बन गया है कि कृषि-गोवंश का माहौल गड़बड़ा गया है। साथ में उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की अगुआई वाली सरकार के आने के बाद से गो-हत्या और बूचड़खानों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया था। इस सरकार ने इस प्रतिबन्ध का सख्ती से पालन किया। सभी गैरक़ानूनी स्लाटर हाउस बंद करवा दिए लेकिन गौ संरक्षण के नाम पर अपने घटकों को राजनीति चमकाने के लिये खुली छूट दे दी जिसका परिणाम यह हुआ कि लिंचिंग की घटनाएं आये दिन होने लग गईं, गाय के नाम पर दूसरे धर्म के लोगों को घृणा की नज़र से देखा जाने लगा। इस सबसे हुआ ये कि किसान गाय खरीदने के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने से भी कतराने लग गये।

योगी सरकार से यह समझ पाने में चूक हो गयी कि उनके कदमों से किसानों को कितना नुकसान होगा। आज लाखों अनुपयोगी पशु सड़कों पर खुले घूम रहे हैं और वे भूखे हैं। इस सबकी वजह से गायें अब यूपी के किसानों का सबसे बड़ा सरदर्द बन गयीं हैं। 

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2018 की अनुमानित गोवंश की संख्या 238 लाख है जिसमें अनुपयोगी गोवंश की संख्या करीब 43 लाख है, हमारा यह आकलन पिछली पशु गणना के दौरान रही वृद्धि दर के आधार पर है इसमें यह वृद्धि दर तब रही जब बूचड़खानों और गौ हत्या पर पूर्णतया प्रतिबंध नहीं था। राज्य में अनुपयोगी गोवंश में लगातार बढ़ोतरी होती जा रही है, पिछली 2007 की पशुगणना से 2012 की पशुगणना में दूध दे रही गायों की संख्या में 26 प्रतिशत की वृधि हुई और जो गायें दूध नहीं दे रही थी उनमें करीब 40 प्रतिशत वृद्धि दर रही, जो यह दर्शाता है कि बड़े स्तर पर गाय बांझपन का शिकार हो रही हैं जिसके कारण बहुत बड़ी संख्या में अनुपयोगी गोवंश लगातार बढ़ता जा रहा है। अगर इस समस्या का जल्द ही कोई स्थायी समाधान नहीं किया गया तो जल्द भी समस्या विकराल रूप धारण कर लेगी और जिसके परिणाम बहुत गंभीर होंगे।

कृषि कार्य में मशीनों के अधिक उपयोग होने से बैल का उपयोग  खत्म हो गया है। इस कारण वर्तमान में बैल अनुपयोगी होते जा रहे हैं। आमतौर पर गाय की उम्र लगभग 14-15 वर्ष होती है जिसमें से वह 2-8 वर्ष की आयु तक ही दूध देती है इसके बाद गाय दूध देने की लिहाज से अनुपयोगी हो जाती है  और इसके पालन पोषण पर बहुत ज्यादा खर्चा करना पड़ता है। किसान पहले गाय से दूध मिलना बंद होने पर गायों को बेच दिया करते थे। साथ में बैलों को भी तब बेच दिया जाता था जब वो कृषि-कार्यो के लिहाज से से पूरी तह अनुपयोगी हो जाते थे। इस वजह से उन्हें नई गाय खरीदने के लिए एकमुश्त राशि मिल जाती थी परन्तु अब इन अनुपयोगी गोवंश को कोई खरीद नहीं रहा है। किसान पहले से ही आर्थिक तंगी से जूझ रहा है ऐसे में वह गौवंश के अनुपयोगी हो जाने पर उनके लिए चारे की व्यवस्था एवं जानवरों पर होने वाले अन्य खर्चों को वहन करने में असमर्थ है।

इलाहाबाद जिले में गाय पालने वाले किसान राजेश त्रिपाठी का कहना है कि एक गाय पर महीने में 7000 से 8000 रुपये तक का खर्च आता है। दूध देना बंद कर देने के बाद गाय अनुपयोगी हो जाती है और बछड़ो और बैलो का खेती में उपयोग खत्म हो गया हैं। ऐसे में किसान उनको खुले में छुट्टा छोड़ दे रहे हैं और जिसके कारण फसलों को नुकसान हो रहा है और सड़कों पर यह दुर्घटनाओं का कारण बन रहे हैं। राजेश त्रिपाठी ने सितम्बर 2015 में 400 गाय और 100 भैसों को पालना शुरू किया था और दूध देना बंद कर देने और कुछ की मृत्यु हो जाने के कारण उनके पास अब 265 गाय और 85 भैंस रह गयी हैं|

बाँझपन भी गोवंश के अनुपयोगी होने का एक बड़ा कारण है, ऐसे में यह जरूरी है कि पशुधन विभाग इस और ध्यान दे और बड़े स्तर पर गोवंश को बांझपन का शिकार होने के कारण अनुपयोगी होने से बचाए। इसके लिए जरूरी है कि राज्य सरकार द्वारा पशुओं के लिए चिकित्सा एवं पशुपालन की दूसरी योजनाओं के बेहतरी से संचालन के लिए अपने रिक्त पड़े पदों को भरे और साथ ही नई नियुक्तियां भी करे। एक और तो जहाँ बड़े स्तर गौशालाओ का प्रबंधन करने के लिए पर अतिरिक्त कर्मचारियों की आवयश्कता है वहीं पशुपालन विभाग में पद रिक्त हैं|

योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली प्रदेश की भाजपा सरकार ने  02 जनवरी 2019 को एक शासनादेश जारी करते हुए कहा कि प्रदेश के समस्त ग्रामीण व शहरी स्थानीय निकायों (यथा-ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत, जिला पंचायत, नगर पंचायत, नगर पालिका, नगर निगमों) में अस्थायी गोवंश आश्रय स्थल बनाये जायेंगे। जिनमें संरक्षित गोवंश की संख्या के 70 प्रतिशत की संख्या को आधार मानते हुए शासन भरण-पोषण हेतु 30/- रुपये प्रतिदिन-प्रति पशु हेतु अनुदान देगा। इस बारे में हमनें आगरा में पशुपालन विभाग में कार्यरत एक अधिकारी से बात की, उन्होंने बताया कि शासनादेश के अनुसार बतायी गयी संख्या में गौशालाओं का निर्माण होना बहुत मुश्किल है क्योकि इतने बड़े स्तर पर भूमि का मिल पाना मुश्किल है, उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे हमे भूमि मिलती जाएगी हम गौशालाओं का निर्माण करते जायेंगे।

प्रदेश में अनुपयोगी गोवंश से उत्पन्न होने वाली गंभीर समस्या के स्थायी निदान पर कार्य करने की आवयश्कता है क्योकि राज्य सरकार ने अपने शासनादेश में कहा है कि यह गौशालाएं अस्थायी होंगी और किसी भी समय किसी को भी संपूर्णतया हटाया जा सकता है। बरेली जिले के एक गौ-पालक मो. नदीम का कहना है कि इन अस्थायी गौशालाओं के निर्माण से स्थायी समाधान नहीं निकलेगा क्योंकि इतने बड़े स्तर पर मौजूदा व्यवस्था को देखते हुए मॉनिटरिंग संभव नहीं है और यह भी कहा कि भरण पोषण के लिए दी जाने वाली राशि बहुत ही कम है।

बूचड़खानों और गोवंश की खरीद-फरोख्त पर रोक लगने के कारण रजिस्टर्ड बूचड़खाने से होने वाले मीट उत्पादन में भारी गिरावट देखने को मिली है जबकि इनमें गायों को नहीं ले जाया जाता है बल्कि जिसमें केवल भैंस, बकरी, भेड़ और सूअर के मीट उत्पादन शामिल हैं। पशुपालन विभाग द्वारा जारी आंकड़ों में बताया गया है कि राज्य के रजिस्टर्ड बूचड़खानों में 2015-16 से 2017-18 में भारी प्रतिशत गिरावट दर्ज हुई है।

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गौशाला पर आने वाली लागत:

प्रदेश में अनुपयोगी गोवंश को आश्रय स्थलों में रखने के लिए सरकार गौशाला बनाने जा रही है। इसके लिए  सरकार को गोवंश के चारे व दाने आदि में 365 दिनों के लिए करीब 3300 करोड़ रूपये की आवयश्कता होगी।

गाय के भरण-पोषण पर निर्धारित यह धनराशि काफी कम है, जबकि कामधेनु योजना में प्रति गाय के लिए चारे व दाने पर होने वाला व्यय ज्यादा बताया है, एक गाय अपने शुष्ककाल (जब वह दूध नहीं देती है) तो प्रत्येक दिन करीब 17 किलो चारा व दाना खाती है और 17 किलो चारे व दाने की कीमत करीब 3-4 रुपये प्रति किलो के हिसाब से 50 से 70 रुपये होती है। ऐसे में गाय सही से चारा न मिलने के कारण कुपोषण का शिकार होगी और बीमार रहेगी। राज्य सरकार ने पहले से ही संरक्षित गायों के केवल 70 प्रतिशत के भरण-पोषण के लिए अनुदान की बात कही है, ऐसे में स्थानीय निकाय जो पहले से ही सीमित संसाधनों में अपनी योजनाओं को चला रहे है वो इस अतिरिक्त आर्थिक बोझ को कैसे वहन कर पाएंगे।   

अस्थायी गौशाला के निर्माण के लिए पूंजीगत व्यय

अस्थायी गोशाला के निर्माण के लिए कुल कितना पूंजीगत खर्च आएगा इसके लिए राज्य सरकार या पशुपालन विभाग की तरफ से अभी कोई आंकड़े उपलब्ध नहीं कराये गए हैं। हमने अस्थायी गौशाला के बनाने में आने वाले खर्च को जानने के लिए हमने राज्य सरकार की पूर्व में संचालित कामधेनु योजना में दिए गये खर्च को आधार मानकर गौशाला को बनाने का अनुमानित खर्च करीब 21 लाख माना है। सरकार की तरह से जारी शासनादेश में बताया गया है कि प्रदेश के समस्त ग्रामीण व शहरी स्थानीय निकायों  में अस्थायी गोवंश आश्रय स्थल बनाये जायेंगे। प्रदेश में कुल 60623 ग्रामीण शहरी स्थानीय निकाय है, इस प्रकार राज्य सरकार पूरे प्रदेश में 60623 अस्थायी गौशालाएं बनाएगी। जिन पर अस्थायी गौशाला बनाने में 21 लाख प्रति गौशाला के हिसाब से करीब 12700 करोड़ रुपयों का खर्च आएगा। यह राशि एक बार खर्च होगी, परन्तु यदि राज्य सरकार फिर से कोई स्थायी गौशाला बनाएगी तो उसके लिए अलग से धनराशि की आवयश्कता होगी।

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इस प्रकार योजना के क्रियान्वयन के लिए इस वर्ष 16000 करोड़ रुपयों की आवयश्कता होगी, जिसमें 3300 करोड़ चारे के लिए है जो गौवंशो की संख्या बढ़ने पर और बढ़ जाएगी। गौवंश के लिए होने वाला यह खर्चा उत्तर प्रदेश के कुल बजट का 4 प्रतिशत है। राज्य में 2018-19 के बजट में कृषि क्षेत्र के लिए 11589 करोड़ रुपयों का प्रावधान है जो कि गौशालों के खर्च का 72 प्रतिशत है। लेख में हमने ऊपर प्रति पशु होने वाले खर्चे का अनुमान दिया है। यह अनुमान हमने पिछली पशुगणना में अनुपयोगी गोवंश में रही वृधि पर एक साल में भरण पोषण पर होने वाला खर्च है, और इसकी तुलना में प्रति व्यक्ति शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास आदि पर खर्चा बजट 2018-19 में अनुमानित बजट और 2011 की जनगणना के आधार पर बताया गया है। 

यदि इसी तरह सरकार प्रतिबंध बरकरार रखेगी तो प्रदेश में अनुपयोगी गोवंश बहुत बड़ी समस्या बन जाएंगे, अस्थायी गौशालाओं का निर्माण स्थायी समाधान नहीं है क्योंकि इससे बहुत सी बाते जुड़ी हुई हैं जैसे इतने गौशालाओं के लिए इतने बड़े स्तर पर जमीन नही मिल पाएगी, उनके लिए चारे की व्यवस्था करना बाहुत मुश्किल होगा क्योंकि किसान दूसरी फसलों को छोड़कर केवल चारा नही उगा सकते हैं| इसलिए जरूरी है कि सरकार इसको धर्मिक रंग न देकर एक स्थायी व सुचारू समाधान निकाले।

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