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योगीराज में एनकाउंटर की हक़ीक़तः ज़्यादातर FIR एक जैसे

एफआईआर और पोस्टमॉर्टम रिपोर्टों को बारीकी से देखने पर पता चलता है कि ज़्यादातर हत्याएं बेरहमी से की गई।

योगीराज में एनकाउंटर की हक़ीक़तः

उत्तर प्रदेश में योगीराज में राज्य से अपराध ख़त्म करने के नाम पर कई बेगुनाह लोगों को एनकाउंटर में मारे जाने का सनसनीखेज़ पहलू सामने आया है। राज्य के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ इस साल जनवरी तक 1,038 एनकाउंटर किए गए जिसमें 44 लोग मारे गए वहीं 238 लोग घायल हो गए। इस एनकाउंटर में 4 पुलिसवाले भी मारे गए।

हालांकि ग़ैर आधिकारिक आंकड़े काफी ज़्यादा हैं। बताया जाता है कि 1400 से ज़्यादा ये शूटआउट हुए हैं। कहा जाता है कि ये शूटआउट क़ानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना किए गए हैं। मारे गए लोगों में अपराधी हो भी सकते हैं और नहीं भी। 

राष्ट्रीय पुलिस आयोग (1979) से लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी -2003) और पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल- मानव तथा नागरिक अधिकार रक्षक) के मामले में 2014 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले में स्पष्ट तौर पर ऐसी हत्याओं के ख़िलाफ़ आदेश दिया है।

एनकाउंटर में मारे गए लोगों के चश्मदीद गवाहों और परिवार के सदस्यों के सबूतों तथा एफआईआर और पोस्टमॉर्टम रिपोर्टों की जांच से साफ तौर पर पता चलता है कि इनमें से ज़्यादातर हत्याएं निर्दयी हत्याएं हैं जहां ज़ाहिर तौर पर कोई मुठभेड़ नहीं हुआ।

मारे गए या घायल हुए कई लोगों के मामले में ऐसा लगता है कि पुलिस ने हत्या या घायल होने का औचित्य साबित करने के लिए मारने के बाद अपने रिकॉर्ड में अपराध की धाराएं दर्ज की है। तथ्य यह है कि आपराधिक रिकॉर्ड वाले किसी भी व्यक्ति को किसी भी परिस्थिति में मारा नहीं जा सकता है।

पुलिस केवल आत्मरक्षा करने के लिए अपराधियों पर गोली चला सकती है और वह भी तब जब उसे पकड़ने के दूसरे सभी तरीके विफल हो गए हों। सुप्रीम कोर्ट ने ओम प्रकाश तथा अन्य बनाम झारखंड के मामले में साल 2012 में स्पष्ट रूप से कहा था, "पुलिस अधिकारियों का यह काम नहीं है कि आरोपी को सिर्फ इसलिए मार दे क्योंकि वह एक ख़तरनाक अपराधी है। निस्संदेह पुलिस को आरोपी को गिरफ्तार करना होगा और उन्हें मुकदमा चलाना होगा। इस अदालत ने बार-बार उन पुलिस कर्मियों को चेतावनी दी है जो अपराधियों को मार देते हैं और घटना को एनकाउंटर की तरह पेश करते हैं। ऐसी हत्याओं की निंदा की जानी चाहिए। वे हमारे आपराधिक न्याय प्रशासन प्रणाली द्वारा क़ानूनी रूप में मान्यता नहीं दिए जाते हैं।..."

इसके विपरीत पुलिस को शक्तिशाली व्यक्ति अर्थात खुद मुख्यमंत्री की तरफ से हौसलाअफज़ाई की जा रही है और उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। योगी ने कई प्रेस सम्मेलनों में हत्याओं को स्पष्ट रूप से उचित ठहराया है और कहा है कि जब तक राज्य से अपराध खत्म नहीं हो जाता तब तक ये जारी रहेगा। उन्होंने 'मुठभेड़ों' को 'अपराध के प्रति ज़ीरो- टॉलरेंस' बताया है।
'एनकाउंटर' में मारे गए लोगों की सामाजिक स्थिति से पता चलता है कि उनमें से ज़्यादातर दलित, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और मुस्लिम लोग हैं।

चिंताजनक स्थिति

पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक 20 मार्च 2017 और 31 जनवरी, 2018 के बीच 1,142 'एनकाउंटर' हुए। मेरठ इलाके से सबसे ज़्यादा एनकाउंटर की ख़बर है जहां 449 लोग मारे गए। इसके बाद आगरा इलाके में 210 से ज़्यादा 'एनकाउंटर' हुए। एनकाउंटर के मामले बरेली तीसरे नबंर पर जहां 196 मामले सामने आए और फिर चौथे नंबर पर कानपुर है जहां 91एनकाउंटर हुए।

दिलचस्प बात यह है कि योगी आदित्यनाथ के निर्वाचन क्षेत्र गोरखपुर में 'एनकाउंटर' कम हुए।

जाहिर है गोलीबारी के मामले में पश्चिमी उत्तर प्रदेश पूर्वी इलाक़े से ज़्यादा प्रभावित हुआ है। इस एनकाइउंटर में मारे गए ज़्यादा लोग पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शामली, मुज़फ्फरनगर,सहारनपुर और बागपत के चार जिले से हैं।

'एनकाउंटर' के साथ-साथ पुलिस ने राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून (एनएसए) के तहत 167 लोगों को गिरफ्तार किया है। भीम सेना के संस्थापक और दलित कार्यकर्ता चंद्रशेखर आज़ाद भी इस सूची में शामिल हैं। पुलिस ने अब तक क़रीब 150 करोड़ रुपए की संपत्ति ज़ब्त की है।

 

अगर एनकाउंटर में मारे गए लोग अपराधी भी थे फिर भी उन्हें मारे जाने के बजाय गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए।

सभी एफआईआर की कॉपी एक जैसी

सभी एफआईआर की कॉपी में कहानी क़रीब क़रीब एक ही जैसी है कि पुलिस को कुख्यात अपराधी के बारे में जानकारी मिली और जब उसने पकड़ने की कोशिश की तो वह कार या बाइक से भागने लगा। अपराधियों ने कथित तौर पर पुलिस पर गोलियां चलाई और जवाबी कार्रवाई में पुलिस ने अपराधियों को मार गिराया।

हालांकि कुछ एफआईआर पुलिसवाले की बहादुरी को बताते हैं और उनकी बहादुरी की प्रशंसा करते हैं। अधिकांश मामलों में पिछली घटना की एफआईआर कॉपी को हु-बहु डाल दिया गया जैसे कि किस तरह आरोपी भागने में कामयाब हुए और किस तरह उन्हें मारा गया।

अधिकांश मामलों में मृतक के परिवार के सदस्यों को व्हाट्सएप से या उनके अन्य स्रोत से उनके रिश्तेदारों की मौत की ख़बर मिली न कि उन्हें पुलिस ने दी। तब वे विशेष पुलिस थाने से अपने मृतक रिश्तेदार का शव प्राप्त करते थे। यह पुलिस एनकाउंटर के मामले में पीयूसीएल बनाम महाराष्ट्र मामले में सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का पूरा उल्लंघन है, जिसमें कहा गया है कि "मौत की स्थिति में कथित आपराधिक/पीड़ित के परिजनों के जल्द से जल्द सूचित किया जाना चाहिए।"

अधिकांश मामलों में परिवारों को मृतक की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट भी नहीं दी गई।

चर्चित मामले

शामली का रहने वाले फुरक़ान को गांव के एक विवाद में कथित तौर पर शामिल होने के चलते सात साल तक जेल में था। उसके परिवार के पास पैसे नहीं थे कि फुरक़ान को जेल से बाहर निकलवा सके। हालांकि अक्टूबर 2017 में पुलिस ने अचानक उसकी जेल से रिहाई के लिए मामला सुलझाया।

 

रिहाई के दो सप्ताह बाद फुरक़ान बागपत में रहने वाले अपने एक रिश्तेदार के यहां गया था। वहां वह दुकान से सामान लेने के लिए रिश्तेदार के घर से बाहर निकला लेकिन वह कई दिनों तक घर वापस नहीं लौटा। उसके परिवार को बाद में ख़बर मिली कि फुरक़ान 'एनकाउंटर' में मारा गया है। यह कहा गया था कि वह कुख्यात अपराधी है और डकैती के 36मामलों में शामिल है और उस पर 50,000 रुपए का इनाम है।

पुलिस ने दावा किया था कि वह रूटिन जांच कर रही थी तब उसे पाया। पुलिस ने कहा कि वह और उसका सहयोगी एक बाइक से जा रहा था और पुलिस के इशारे के बाद भी वह नहीं रूका और पुलिस पर गोली चलाई। इसके बाद पुलिस ने उसके जवाब में कार्रवाई की जिसमें फुरक़ान मारा गया जबकि उसका साथ भागने में कामयाब रहा।

पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के मुताबिक़ उसका शव पर कुछ निशान पाए गए जिससे पता चलता है कि उसे प्रताड़ित किया गया। इसके अलावा गोली के निशान थे।

उसके परिवार का कहना है कि यह कैसे संभव है कि कोई जब सात सालों तक जेल में बंद था तो उस पर डकैती के 36 मामले दर्ज हैं?

उसकी हत्या के बाद उसके सभी पांच भाइयों को लूट और चोरी के विभिन्न मामलों में गिरफ्तार किया गया है। यह फ़ुरक़ान को न्याय दिलाने के लिए उसके परिवार के लिए एक बाधा बन गया है क्योंकि उसके परिवार के पास संसाधन के रास्ते ही समाप्त हो गए हैं क्योंकि काम करने वाले परिवार के सभी सदस्य जेल में डाल दिए गए हैं।

सुमित गुर्जर के मामले में काफी हंगामा हुआ और यहां तक कि एनएचआरसी को उत्तर प्रदेश पुलिस को नोटिस भेजने के लिए मजबूर किया। गुर्जर को पिछले साल 30 सितंबर को बागपत के बढ़ौत में एक बस स्टॉप से सादे लिबास पहने पुलिसकर्मियों ने उठा लिया था। घटना के बारे में पता चलने के बाद उसके परिवार ने तलाश शुरू की।

नोएडा पुलिस ने सुमित को छोड़ने के लिए कथित रूप से 3.5 लाख रुपए की पेशकश की। उसके परिवार ने ये अफवाह सुनी कि उसे किसी एनकाउंटर में मारा जा सकता हैं इसलिए उसके परिवार के लोग राज्य के शीर्ष पुलिस अधिकारी, मुख्यमंत्री कार्यालय और एनएचआरसी के पास पहुंचे लेकिन उनपर कोई ध्यान नहीं दिया गया।

 

इस बीच नोएडा पुलिस ने उस पर 25,000 रुपए का इनाम घोषित कर दिया जो जल्द ही दोगुना हो गया। अगले दिन यह घोषित किया गया कि बैंक का कैश वैन लूटने के बाद एक कार से भागने की कोशिश में सुमित को एनकाउंटर में मारा गया। पुलिस के बयान के मुताबिक तीन अन्य आरोपी भागने में कामयाब रहे। आरोपियों के भागने वाला बयान ज़्यादातर मामलों में देखा जा सकता है।

पुलिस ने दावा किया कि सुमित के ख़िलाफ़ लूट और जबरन वसूली के कई मामले दर्ज थे। हालांकि सच्चाई यह है कि सुमित के ख़िलाफ़ कभी कोई मामला पुलिस में नहीं था। सुमित गुर्जर नाम का कोई दूसरा था जो उसी चिचरेता गांव में रहता था और 2011 में उसके ख़िलाफ़ इसी तरह के मामले थे। एनएचआरसी उसके परिवार से मुलाक़ात कर उत्तर प्रदेश पुलिस को नोटिस जारी किया। हालांकि छह महीने के बाद भी इस मामले में कुछ भी नहीं किया गया है।

फुरक़़ान के ही मामले की तरह यूपी पुलिस ने सुमित के दो भाइयों राज सिंह और कमल सिंह पर बलात्कार का मामला दर्ज कर दिया और कथित तौर पर उसके परिवार से बलात्कार का मामला वापस लेने के बदले सुमित के मामले को वापस लेने के लिए दबाव डाला जा रहा है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लगातार होने वाला एनकाउंटर अब राज्य के पूर्वी इलाकों में भी पहुंच गया है।
चन्नू सोनकर और रामजी पासी के मामले में इनके परिवार के सदस्यों के बयान के मुताबिक़ संकेत मिलता है कि एनकाउंटर किया गया। सोनकर को उसके घर के पास से एक बगीचे से पकड़ा गया था। परिवार ने कहा कि जब वह देर रात तक वापस नहीं लौटा तो चिंतित परिवार के लोगों ने उसको फोन किया। उसने परिवार को बताया कि वह जहानगंज पुलिस थाने में था।

अगले दिन दो पुलिसकर्मी कथित तौर पर सोनकर के घर पहुंचे और उसके पिता झब्बू सोनकर को बताया कि चानू का इलाज जिला अस्पताल में किया जा रहा है। बाद में उन्हें ख़बर मिली कि उसे 'एनकाउंटर' में मार दिया गया

रामजी पासी ने आज़मगढ़ के जियापुर का पंचायत चुनाव जीता था और इसके लिए उसके अपने गांव के प्रभुत्व जातियों के साथ विवाद हो गया था। उसके परिवार का आरोप है कि उन्होंने पहले उसे झूठे मामलों में फंसाने की कोशिश की इसमें असफल रहने के कारण उसे पुलिस ने उसके घर से उठा लिया और 'एनकाउंटर' में मार दिया।

उत्तर प्रदेश मानवाधिकार आयोग ने आजमगढ़ के पासी, मुकेश राजबहार, जयहिंद यादव और इटारसी के अमन यादव की 'एनकाउंटर' में हत्या को लेकर जांच शुरू किया है। जयहिंद यादव का शरीर पर 21 गोली के निशान मिले हैं। बाइक से जाते समय पुलिस द्वारा पीछा करने के दौरान उस पर गोली चलाई गई।

इस साल 3 फरवरी को नोएडा में एक वाहन पर पुलिस ने गोली चलाई जो एक शादी समारोह में शामिल होने के बाद से लौट रहा था। पुलिस जीप ने इस वाहन का पीछा किया और वाहन में मौजूद लोगों पर गोली चलाई। जितेंद्र यादव नाम के एक जिम ट्रेनर की गर्दन गोली लगी जबकि उसके भाई सुनील यादव के पैर में गोली लगी।

पुलिस ने इसे 'एनकाउंटर' के रूप में बताने की कोशिश की ठीक उसी कहानी की तरह जैसे कोई ख़तरनाक अपराधी भागने की कोशिश कर रहा था। हालांकि, बाद में उसे अपने बयान को बदलना पड़ा क्योंकि पीडि़तों का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था और सब इंस्पेक्टर जिनने उन्हें गोली मारी थी उसे निलंबित कर दिया गया और उसे हिरासत में ले लिया गया। सब इंस्पेक्टर के साथी सिपाही का अभी भी पता नहीं है।

शामली और मुजफ्फरनगर से ग़रीब मुस्लिमों के पांच मामले मीडिया में रिपोर्ट किए गए थे। मुजफ्फरनगर के नदीम (30) और जन मोहम्मद (24), सहारनपुर के शामशद और मंसूर दोनों की उम्र 35 वर्ष और शामली के वसीम (17) थे। ये सभी छोटे अपराध को लेकर काफी समय पहले जेल की सजा काट चुके थे। ये सभी पुलिस के रिकॉर्ड में दर्ज थे क्योंकि इनका अतीत आपराधिक था और इनके ठिकाने के बारे में पुलिस को पता चल गया था। इसलिए कथित एनकाउंटर में मारना पुलिस के लिए आसान हो गया।

 

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