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तिरछी नज़र: बिलेटेड हैप्पी बर्थडे सरकार जी और चीतों की भी बधाई!  

इस बार चीते बस तभी तक महफूज़ हैं जब तक सरकार जी के मित्रों को उस जंगल की जरूरत नहीं पड़ जाती है जहां चीतों को छोड़ा गया है। जिस दिन सरकार जी के किसी मित्र को कोई फैक्ट्री खोलने के लिए, खुदाई कर खनिज निकालने के लिए, या फिर किसी अन्य कारणवश उस जंगल की आवश्यकता पड़ जाएगी, चीते फिर विलुप्त हो जाएंगे।

 
chita and modi

पिछले रविवारशाम के समय गुप्ता जी घर पर आ धमके। वे बहुत नाराज़ थे। उन्होंने मेरा 'न्यूज़क्लिकमें छपा व्यंग्य 'तिरछी नज़रपढ़ लिया था। वे पढ़ते तो हर बार थे और नाराज़ भी लगभग हर बार होते थे पर इतने नाराज़ पहली बार ही थे कि घर पर आ धमके थे।

 बोले, 'तुम्हें कुछ अक्ल है भी या सारी की सारी घास चरने गई है। देश में इतनी बड़ी घटना हुई हैसारा देश चीतों की बात कर रहा है और तुम हो कि घोड़ों पर ही अड़े हो। कब तुम देश के साथ चलोगेकभी तो मोदी जी की बढ़ाई में भी कुछ लिख दिया करो। कभी तो लिख दिया करो कि मोदी जी ने कितना महान कार्य किया है। एक शेर नामीबिया से आठ आठ चीतों को लाया है। देश में सत्तर साल बाद चीते दिखाई दे रहे हैं। और तुम हो कि घोड़ों पर ही लिखे जा रहे हो। अरे! घोड़े तो हर समय दिखते हैंहर समय बिकते हैं। पता नहीं तुम कब सुधरोगे'!

 मैंने उन्हें शांत करते हुए कहा, 'लिख लेंगेचीतों पर भी लिख लेंगे। इस समय तो सभी चीतों पर लिख रहे हैं। क्या अखबारक्या टीवी और क्या सोशल मीडियासभी चीतों में मशगूल हैं। वैसे भी अब चीते आ ही गए हैं। इस हफ्ते नहीं लिखा तो अगले हफ्ते तक तो ये चीते रहेंगे ही ना। इतनी जल्दी तो फिर से एक्सटिंक्ट नहीं होने वाले हैं। ये चीते कुछ दिन तो टिकेंगे ना देश में या फिर एकदम ही विलुप्त हो जाएंगे। क्यों क्या अगले हफ्ते नहीं लिख सकते हैं चीतों पर'?

 

'चीतों पर तो अगले हफ्ते भी लिख लोगे। कभी भी लिख सकते हो। पर तुमने एक ऐतिहासिक मौका गंवा दिया। मोदी जी का जन्मदिन और चीतों को छोड़ा जानाऐसा अद्भुत संयोग पूरी मानव जाति के इतिहास में एक ही बार हुआ है और आगे भी कभी नहीं होगा। और तुम उस मौके को गंवा बैठे हो। यह मौका दुबारा नहीं आएगा और तुम जिंदगी भर अफसोस करोगे'। यह कह कर गुप्ता जी मुझे अफसोस में छोड़ कर चले गए। हाय! मैंने सरकार जी के जन्मदिन पर लिखने काउनको हैप्पी बर्थडे कहने का कितना शानदार मौका छोड़ दिया। सरकार जी का जन्मदिनवह भी चीतों के साथ! चलो अब बधाईयां दे देता हूं, 'बिलेटेड हैप्पी बर्थडेसरकार जी'

 ये चीते हमारे देश से सत्तर साल पहले विलुप्त हो गए थे। सरकार जी जब दो वर्ष के ही थे तभी विलुप्त हो गए थे। शायद उन चीतों को पता चल गया था कि उनका उद्धार करने वाला पैदा हो गया है। इसकी भविष्यवाणी नास्त्रेदमस ने भी जरूर ही की होगी। और चीतों ने यह भविष्यवाणी पढ़ भी रखी होगी। इसलिए चीते जब विलुप्त हो रहे थे तो निश्चिंत थे कि सत्तर साल बाद कोई आएगा और उन्हें विदेश से मंगवा कर भारत की पवित्र भूमि पर छोड़ेगाउनका उद्धार करेगा।

 नेहरू तो सिर्फ कबूतर उड़ाया करते थे। वह भी सफेद कबूतर। हो सकता है कभी अपने जन्मदिन पर भी उड़ाए हों। चीतों को उड़ानेमतलब छोड़ने की बात तो नेहरू जी के ख्वाब में भी नहीं आई होगी। उनके बाद के किसी सरकार जी के ज़ेहन में भी चीते छोड़ने की बात शायद ही आई हो। 2012 में मनमोहन सिंह जी भी बस चीते मंगवाने ही वाले थे। अगर चीते मंगवा भी लेते तो जंगल में चुपचाप ही छोड़ देते। हो सकता है खुद भी नहीं छोड़तेकिसी मंत्री या अफ़सर से ही छुड़वा देते। वे भी इतनी दूर की नहीं सोच सकते थे कि चीते छोड़ने को भी इवेंट बनाया जा सकता है। इसका भी लाभ उठाया जा सकता है।

 सरकार जी ने चीतों को जो सम्मान दिया वह और कोई भी नहीं दे सकता था। उन्होने अपने जन्मदिन पर चीतों को छोड़ा। और इसको इवेंट भी बना दिया। उनको छोड़ने के लिए शंघाई सहयोग संगठन के सम्मेलन को भी जल्दी समाप्त करवाया और जल्दी ही वापस लौट आए। सरकार जी हर उस चीज का सम्मान करते हैं जिससे उनका लाभ हो सकता है। और ऐसी कोई चीज है ही नहीं जिसका सरकार जी लाभ न उठा पाएं। तो सरकार जी ने चीतों का भी लाभ उठा लिया। उन्हें भी इवेंट बना दिया।

 चीतों को जन्मदिन पर छोड़ें जाने काइसे इवेंट बनाने कासरकार जी को तो लाभ हुआ हीचीतों को भी बहुत लाभ हुआ। क्या बच्चेक्या बूढ़े सभी का चीतों के बारे में सामान्य ज्ञान बहुत बढ़ गया। चीते कितना तेज भागते हैंकैसे शिकार करते हैंजंगल में कहां रहते हैंचीते क्या खाते हैंक्या पीते हैंसब कुछ जनता को पता चल गया। यहां तक कि चीते कहां मूतते हैं और कहां हगते हैंअब पब्लिक सब जानती है। इतना ज्ञान तो सिविल सर्विसेज की तैयारी करने वालों को भी चीतों के बारे में नहीं होता है जितना ज्ञान आम जनता को सरकार जी द्वारा अपने जन्मदिन पर चीतों को छोड़ने पर हो गया है।

 पिछली बार चीतों का सफाया चीतों का शिकार करने पर हुआ था। राजा महाराजा और अंग्रेज चीतों का बहुत शिकार करते थे। पर अब तो चीतों के शिकार पर पूरी पाबंदी है। उनका शिकार कोई नहीं कर सकता है। पर चीते फिर विलुप्त होंगे और जरूर होंगे। पिछली बार तो लाखों साल में हुएअबकी बार जल्दी ही होंगे। पिछली बार चीते अपने शिकार के कारण विलुप्त हुए अब जंगल के शिकार के कारण विलुप्त होंगे। चीतों के शिकार पर भले ही पाबंदी हैजंगल के शिकार पर तो कोई पाबंदी नहीं है ना। जंगलों का शिकार तो सरकार स्वयं ही करती है। तो इस बार चीते बस तभी तक महफूज़ हैं जब तक सरकार जी के मित्रों को उस जंगल की जरूरत नहीं पड़ जाती है जहां चीतों को छोड़ा गया है। जिस दिन सरकार जी के किसी मित्र को कोई फैक्ट्री खोलने के लिएखुदाई कर खनिज निकालने के लिएया फिर किसी अन्य कारणवश उस जंगल की आवश्यकता पड़ जाएगीचीते फिर विलुप्त हो जाएंगे। तब एक बार फिर से सरकार जी का जन्मदिन आएगा और चीतों को विदेश से मंगवा कर छोड़ने के इवेंट का आयोजन होगा।

 इस बार तो मैं चूक गया पर उस बार मैं नहीं चूकुंगा। सरकार जी को समय से ही जन्मदिन की शुभकामनाएं दुंगा। पर इस बार तो 'बिलेटेड हैप्पी बर्थडेसरकार जी'

 

(व्यंग्य स्तंभ तिरछी नज़र के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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