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2002 नरोदा गाम हिंसा मामला: ‘नहीं मिला न्याय’

“नरोदा गाम : 12 साल की बच्ची समेत हमारे 11 नागरिक मारे गए थे। 21 साल बाद 67 आरोपियों को बरी कर दिया गया। क्या हमें क़ानून के शासन का स्वागत करना चाहिए या इसके ख़त्म होने पर निराश होना चाहिए?”
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अहमदाबाद: गुजरात की एक विशेष अदालत ने बृहस्पतिवार को 2002 के नरोदा गाम हिंसा के मामले में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पूर्व मंत्री माया कोडनानी, विहिप नेता जयदीप पटेल और बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी समेत सभी 67 आरोपियों को बरी कर दिया। इस दंगे में 11 लोग मारे गए थे।

अहमदाबाद स्थित एसआईटी मामलों के विशेष न्यायाधीश एसके बक्शी की अदालत ने गोधरा मामले के बाद भड़के भीषण दंगों में से एक नरोदा गाम दंगों से जुड़े इस बड़े मामले में सभी आरोपियों को बरी कर दिया। इस मामले की जांच उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल ने की थी।

बता दें कि गोधरा में 27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस की बोगी में आग लगाए जाने के बाद राज्यभर में दंगे भड़क गए थे। इस मामले की जांच उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल ने की थी, जिसके बाद नरोदा गाम में दंगे हुए थे।

इस मामले में कुल 86 आरोपी थे, जिनमें से 18 की सुनवाई के दौरान मौत हो गई, जबकि एक को अदालत ने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 169 के तहत साक्ष्य के आभाव में पहले ही आरोपमुक्त कर दिया था।

जिन आरोपियों को बरी किया गया उनमें कोडनानी, विहिप (विश्व हिंदू परिषद्) नेता जयदीप पटेल और बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी शामिल हैं।

इस मामले पर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं भी सामने आई हैं।

राज्यसभा के सदस्य एवं वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने नरोदा गाम दंगा मामले में सभी 67 आरोपियों को बरी करने के गुजरात की अदालत के फैसले की शुक्रवार को आलोचना की और सवाल उठाते हुए ट्वीट किया, “नरोदा गाम : 12 साल की बच्ची समेत हमारे 11 नागरिक मारे गए थे। 21 साल बाद 67 आरोपियों को बरी कर दिया गया। क्या हमें कानून के शासन का स्वागत करना चाहिए या इसके ख़त्म होने पर निराश होना चाहिए?”

इसके बाद उन्होंने पत्रकारों से कहा, “किसी की हत्या हुई थी। यह पता लगाना जांच एजेंसी का काम है कि यह (हत्याएं) किसने की। जांच एजेंसियों ने पता लगाया। क्या यह जांच एजेंसियों की विफलता नहीं है कि वे उन्हें न्याय के दायरे में नहीं ला पाईं ?”

सिब्बल ने कहा, “क्या जांच एजेंसियां दोषमुक्ति या सज़ा की मांग कर रही हैं? मुझे यकीन है कि जांच एजेंसी अपील दायर नहीं करेगी। मुझे आश्चर्य है कि क्या अदालतें सुनवाई के दौरान सामने आ रही अन्याय की कहानियों को लेकर मूक दर्शक बनी रहेंगी?”

कांग्रेस ने शुक्रवार को आरोप लगाया कि अभियोजन पक्ष की चूक की वजह से अहमदाबाद के नरोदा गाम में गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के सभी 67 आरोपी बरी कर दिए गए। साथ ही पार्टी ने उम्मीद जतायी कि न्याय मिलने में भले ही देरी हो, लेकिन उससे इनकार नहीं किया जाएगा।

पार्टी ने कहा कि वह इस मामले पर नज़र रखेगी और वह इस जघन्य अपराध के कारण जान गंवाने वालों और उनके परिवारों के साथ है।

कांग्रेस के महासचिव (संचार) जयराम रमेश ने एक बयान में कहा, “हम बयान जारी करने के लिए अदालत के विस्तृत फैसले का इंतजार करेंगे, लेकिन यह स्पष्ट है कि अभियोजन पक्ष की ओर से अपनी भूमिका निभाने में स्पष्ट रूप से चूक हुई है। अभियोजन पक्ष और अभियोजक इसके खिलाफ तुरंत व गंभीरता से आगे अपील करके इस बात को झूठा साबित कर सकते हैं।”

उन्होंने कहा, “न्याय एक अधिकार है जिसे निरंतर निगरानी के माध्यम से सुनिश्चित किया जाना चाहिए। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस मामले पर नज़र रखेगी। हम जघन्य अपराध के कारण जान गंवाने वालों और उनके परिवारों के प्रति अपना समर्थन दोहराते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि भले ही न्याय में देरी हो, लेकिन उससे इनकार नहीं किया जाएगा।”

पीड़ितों के परिवारों के एक वकील ने कहा कि फैसले को गुजरात उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी जाएगी क्योंकि उन्हें “न्याय नहीं मिला।”

वहीं आरोपियों और उनके रिश्तेदारों ने घटना के 21 साल से अधिक समय बाद आए इस फैसले को “सत्य की जीत” करार दिया है।

(न्यूज़ एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

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