मनरेगा मज़दूरों के धरने का 50वां दिन: जंतर-मंतर पर क्यों गूंजा 'शेम छे, गेम छे'?
"तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है"
फाइलों में मौसम गुलाबी होता है, और बारिश हसीन लेकिन ये मौसम किसान, मज़दूर और ग़रीबों के लिए वैसे नहीं होते जैसे दिल्ली में बैठकर ऐप चलाने वाले सरकारी तंत्र के लिए। (बता दें कि मज़दूरों का आरोप है कि आधार आधारित पेमेंट और ऐप आधारित हाज़िरी उन्हें मनरेगा से दूर कर रही है।)
फ़रवरी के सर्द मौसम से दिल्ली के जंतर-मंतर पर बैठे मनेरगा (Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Act) मज़दूरों ने यहीं बैठे-बैठे मौसम को बदलते देख लिया, सर्द हवा अब गर्म झोकों में बदल चुकी है, धरनास्थल पर पड़ने वाली गुनगुनी धूप, गर्म-रुखी हवा में तब्दील हो चुकी है, नीम के पेड़ों से गिरते पीले पत्ते बता रहे हैं कि मौसम बदल चुका है लेकिन यहां पिछले 50 दिन से बैठे मज़दूरों की मांग और तकलीफ आज भी जस की तस बनी हुई है। वही मांग जिसे बंगाल, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, कर्नाटक से आए मज़दूर अपनी-अपनी बोली भाषा में दोहरा चुके हैं लेकिन जाने वो कौन सी ज़बान है जिसे संसद में बैठने वाले समझते हैं।
झारखंड के लातेहार से आई कृपा खाखा हो या फिर गुजरात से आई कावेरी, चंपा बेन, ललिता बेन, सावित्री, अनीता, रमती बेन या नवली बेन सब बस एक ही बात दोहरा रही हैं कि सरकार ने रोज़गार गारंटी देने वाली योजना को इतना पेचीदा बना दिया कि जो योजना ग़रीब की दो जून की रोटी का सहारा थी, अब ग़रीब उससे भी महरूम हो रहे हैं। खाद्य सुरक्षा और रोज़गार की गारंटी देने वाली योजना में क्या अब सरकार की दिलचस्पी नहीं रही?
धरने के 50 दिन
दिल्ली के जंतर-मंतर पर मनरेगा मज़दूरों का ‘‘100 दिन’’ का धरना चल रहा है। जिसमें बारी-बारी से देश के अलग-अलग हिस्सों से आ रहे मज़दूर अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहे हैं।
फ़रवरी में हमें बिहार से आए मनरेगा मज़दूर मिले, फिर बंगाल से आए, होली के बाद 15 मार्च को अर्थशास्त्री और सामाजिक कार्यकर्ता प्रो. ज्यां द्रेज़ के साथ झारखंड से आए मज़दूर मिले, इनमें आदिवासी इलाक़े लातेहार से आई कृपा खाखा मिलीं, 'झारखंड नरेगा वॉच' के संयोजक जेम्स हरेंज (James Herenj) मिले। यूपी, राजस्थान, कर्नाटक से मनरेगा मज़दूरों के आने का सिलसिला जारी रहा। वक़्त गुज़र रहा था, चेहरे बदल रहे थे, बोली, भाषा बदल रही थी, लेकिन मांगें वही थी, परेशानी वही थी, ‘100 दिन’ के इस धरने ने अपना आधा सफर तय कर लिया और इस वक़्त जंतर-मंतर पर गुजरात और हिमाचल से आए मनरेगा मज़दूर बैठे हैं।
Day 46: गीतों के द्वारा युवा पीढ़ी को जोड़ने की कोशिश ✊🏽✊🏽
सुनिए यह बेहतरीन गीत छत्तीसगढ के मज़दूरों द्वारा pic.twitter.com/ASeI9vn5P7— NREGA Sangharsh (@NREGA_Sangharsh) April 9, 2023
जंतर-मंतर पर‘100 दिन’ का धरना
दरअसल देशभर के इन मज़दूरों की ओर से ‘100’ दिन की रोज़गार गारंटी के लिए ‘‘100 दिन’’ का धरना चल रहा है, जिसमें कोशिश की जा रही है कि हर वक़्त धरना स्थल पर कम से कम 100 मज़दूर मौजूद रहें। 13 फ़रवरी से शुरू हुए इस धरने को आज 50 दिन हो चुके हैं पर क्या किसी को इनकी परवाह है? क्या सरकार को इतने दिन बाद भी इस बात का एहसास नहीं हुआ कि एक सरकारी योजना में उलझे ग़रीब मज़दूर देश की राजधानी पहुंच रहे हैं?
50 दिन के धरने की टाइमलाइन
यह धरना 'नरेगा संघर्ष मोर्चा' के बैनर तले हो रहा है जिसमें देश भर से आ रहे मनरेगा मज़दूर हिस्सा ले रहे हैं। धरने के 50 दिन हो गए, इस दौरान धरने ने क्या कुछ देखा इसपर हमने 'नरेगा संघर्ष मोर्चा' से जुड़े कार्यकर्ता राजशेखर से बातचीत की।
राजशेखर बताते हैं :
* 13 फ़रवरी 2023 को ये धरना बिहार के मज़दूरों के साथ शुरू हुआ था, जो जंतर-मंतर पर दो सप्ताह तक रहे थे। इस दौरान हमने कई प्रेस कॉन्फ्रेंस की और कई स्टेटमेंट जारी किए। बिहार के मज़दूरों के जाने के बाद पश्चिम बंगाल के मज़दूर आए और उन्होंने अपने हालात यहां बयां किए, उन्होंने बताया कि नरेगा सौ दिन की गारंटी देता है लेकिन उन्हें काम नहीं मिल रहा
* 3 मार्च को एक अहम प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई जिसमें वृंदा करात ने हिस्सा लिया और हमने इस बात को उजागर करने की कोशिश की कि किस तरह से मज़दूरों के अधिकारों पर हमला किया जा रहा है।
* इसके बाद होली की वजह से 10 दिन तक धरने पर कोई नहीं था।
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* 14 मार्च को कई नागरिक समूहों और श्रमिक संगठनों ने दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में एक ब्रीफिंग का आयोजन किया जिसमें कई विपक्षी दलों के सांसद जैसे संजय सिंह, दिग्विजय सिंह, उत्तम कुमार रेड्डी, कुमार केतकर, एस.सेंथिलकुमार और जवाहर सरकार शामिल हुए। इस ब्रीफिंग में सरकार पर मनेरगा को धीरे-धीरे ख़त्म करने की कोशिश का आरोप लगाया गया। इस कार्यक्रम में प्रो. ज्यां द्रेज़ ने आरोप लगाया कि सरकार ने मनेरगा पर तीन तरफा हमला किया है साथ ही उन्होंने कहा कि, "नरेगा एक ऐतिहासिक क़ानून है, इसकी उपलब्धि को याद रखने की ज़रूरत है और यह भी याद रखने की ज़रूरत है कि यह किसी राजनीतिक पार्टी की ओर से नहीं बल्कि जन भागीदारी और आंदोलन के ज़रिए संभव हुआ था।"
नरेगा एक ऐतिहासिक कानून है जो पिछले बीस वर्षों में साबित हुआ है। भारत ने दिखाया है कि यह किया जा सकता है। इस उपलब्धि को याद रखने की ज़रूरत है और यह भी याद रखने की ज़रूरत है कि यह किसी राजनैतिक पार्टी द्वारा नही बल्कि जन भागीदारी और आंदोलन के ज़रिए संभव हुआ था- साथी Jean Dreze ✊🏽 pic.twitter.com/MrCBjs3MbQ
— राजShekhar (@ShekharnotSekar) March 15, 2023
* 21 मार्च को मंत्रालय (Ministry of Rural Development, MoRD) के साथ बैठक हुई, जिसमें एक बार फिर मांगों को दोहराया लेकिन कोई आश्वासन नहीं मिला।
राजशेखर बताते हैं कि उन्होंने दिल्ली के अलग-अलग विश्वविद्यायलों में पब्लिक मीटिंग भी आयोजित की लेकिन,
* 24 मार्च को दिल्ली यूनिवर्सिटी में एक पब्लिक मीटिंग का आयोजन किया गया जिसमें प्रो. ज्यां द्रेज़ भी शामिल थे आरोप है कि वहां से उन्हें जबरन हटा दिया गया और प्रो. ज्यां द्रेज़ और दूसरे कार्यकर्ताओं के साथ ही 23 छात्रों को हिरासत में ले लिया गया और बाद में छोड़ दिया गया।
Delhi police abruptly stopped Jean Dreze, Richa Singh, Com. Somnath and students at Delhi University while conducting a program at DU Arts Faculty on the ongoing attack on NREGA by the central government. pic.twitter.com/7z84lHznT7
— NREGA Sangharsh (@NREGA_Sangharsh) March 24, 2023
* 25 मार्च को जंतर-मंतर पर इसी मुद्दे पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की गई जिसमें न सिर्फ़ मज़दूरों के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई गई बल्कि अभिव्यक्ति के अधिकार को ख़त्म करने की कोशिश के मुद्दे को भी उठाया गया।
* 27 मार्च को राजस्थान से आए मनरेगा मज़दूरों ने अपनी आवाज़ उठाई, इस दौरान एक बार फिर जंतर-मंतर पर शोषण के ख़िलाफ़ नारे गूंजे और गीतों के माध्यम से सरकार का ध्यान खींचने की कोशिश की गई।
जंतर-मंतर पर एक बार फिर पुराने आंदोलन के दौरान लिखे गीत गूंजे
NREGA dharna @NREGA_Sangharsh Dharna का आज 39वां दिन है। हम काम के अधिकार का गीत गाते हैं - हल चला के खेतों को, मैने ही सजाया रे,
गेहूँ, चावल, मक्के के, दानों को उगाया रे,
चूल्हा भी जलाया मैने, धान भी पकाया रे,
रहूँ क्यों भूखे पेट रे? कि मेरे लिये काम नहीं #mgnrega pic.twitter.com/wOtDtfBcnJ— MKSS - Mazdoor Kisan Shakti Sangathan (@mkssindia) April 2, 2023
राजशेखर बताते हैं, “3 अप्रैल को MoRD( Ministry of Rural Development) के साथ छठी मीटिंग हुई, इसमें हमारे साथ राजस्थान के मनरेगा मज़दूरों के साथ आए निखिल डे भी मौजूद थे। मज़दूरों ने अपनी परेशानी बताई कि किस तरह आधार आधारित पेमेंट और ऐप आधारित हाज़िरी उन्हें मनरेगा से दूर कर रही है।” इसके अलावा राजशेखर बताते हैं कि इस बार सेक्रेटरी ने कुछ आश्वासन दिए और सरकार की तरफ से आधार आधारित पेमेंट सिस्टम को लागू करने की डेडलाइन को हटाने का आश्वसन दिया हालांकि अब तक उसका कोई भी पब्लिक ऑर्डर जारी नहीं किया गया है।
Scrap 31 March Deadline, Restore Flexible Payment System for MGNREGA
PRESS RELEASE: 30th March 2023 by NREGA Sangharsh Morcha
31 मार्च की समय सीमा समाप्त करो, मनरेगा के लिए सरल भुगतान प्रणाली बहाल करो pic.twitter.com/wYnXtxTOjz— NREGA Sangharsh (@NREGA_Sangharsh) March 30, 2023
अब तक कौन-कौन से राज्य के मज़दूर आ चुके हैं?
दिल्ली के जंतर-मंतर पर ‘100 दिन’ के धरने में अब तक बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक के मज़दूर आ चुके हैं और इस वक़्त गुजरात, हिमाचल के मज़दूर धरना दे रहे हैं।
धरने पर बैठी गुजरात से आईं मनरेगा मज़दूर
धरने पर बैठे मज़दूरों की मुख्य मांगें क्या हैं?
* मनरेगा में NMMS (National Mobile Monitoring Software) से हाज़िरी प्रणाली को वापस लिया जाए। (यह ऐप आधारित प्रणाली है।)
* आधार आधारित भुगतान प्रणाली (ABPS) को वापस लिया जाए।
* हर हाल में मनरेगा मज़दूरों को 15 दिन के अंदर मज़दूरी का भुगतान हो।
* योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार को रोकने के लिए नियमित सामाजिक अंकेक्षण (ऑडिट) सुनिश्चित किया जाए।
इन सभी मांगों में सबसे अहम मांग है - ऐप आधारित (NMMS) हाज़िरी को रद्द करना और आधार आधारित भुगतान प्रणाली (ABPS) को वापस लेना।
ऐप आधारित हाज़िरी से परेशान मज़दूर
जंतर-मंतर पर धरने में शामिल होने आ रहे मनरेगा मज़दूरों में हमें ज़्यादातर महिलाएं दिखीं। इस धरने के 50 दिन पूरे होने को थे। हम एक बार फिर जंतर-मंतर पर पहुंचे जहां छत्तीसगढ़ से आए मज़दूर जा रहे थे और गुजरात के मज़दूर आ रहे थे। ये वो दिन था जब देश के दो अलग-अलग हिस्से के मज़दूर एक दूसरे से मिल रहे थे। छत्तीसगढ़ के सरगुजा से आईं निर्मला केरकेट्ट और गुजरात के पंचमाल से आईं करुलता ने हमें बिल्कुल एक सी ही परेशानी बताई। मनरेगा में ऐप आधारित हाज़िरी सिस्टम की वजह से दूर-दराज के इलाकों में वक़्त से पहले पहुंच जाने पर काम करने के बावजूद नेटवर्क न होने की वजह से हाज़िरी नहीं लग पा रही और जिसकी वजह से उनके पूरे दिन की मेहनत और दिहाड़ी बर्बाद हो रही है।
गुजरात से आईं मनेरगा मज़दूर
गुजरात के पंचमाल से आईं करुलता बताती हैं कि उनके साथ 42 महिलाएं आई हैं। वे बताती हैं कि, "दाहोर का इलाक़ा ऐसा है जहां आदिवासी परिवार हैं, जैसे नायक और राठवा, ये इलाक़ा बहुत ही सूखा है, बारिश पर ही निर्भर रहने वाला, यहां रहने वाले लोग जंगल पर निर्भर रहते हैं लेकिन उससे पूरे साल के खाने का इंतज़ाम नहीं हो पाता इसलिए इन लोगों को दूसरे शहरों में जाना पड़ता है (पलायन) जैसे गेंहू काटने के लिए या फिर ज़्यादा दिनों तक मिलने वाली मज़दूरी के लिए।"
आगे वो कहती हैं, "ऐसे में जो महिलाएं पीछे घरों पर रह जाती हैं उनके लिए मनरेगा बहुत मददगार साबित होता है क्योंकि इसमें गांव पर ही काम मिल जाता है, सब लोग जान-पहचान के होते हैं तो सुरक्षा की नज़र से भी उन्हें ठीक लगता है लेकिन अगर मनरेगा ऐप आधारित हाज़िरी और आधार आधारित भुगतान पर आधारित हो जाएगा तो उनके लिए काम करना मुश्किल हो जाएगा।"
वहीं छत्तीसगढ़ के सरगुजा से आईं निर्मला केरकेट्ट बताती हैं कि, “NMMS ऐप की वजह से मज़दूरों को बहुत-सी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। ऐप से सुबह-शाम हाज़िरी लगाने में बहुत सी दिक्कतें आ रही हैं। 11 बजे के अंदर-अदर हाज़िरी लगानी पड़ती है, वक़्त पर पहुंचने पर अगर नेटवर्क सही नहीं है तो हाज़िरी नहीं लगती और उस दिन का पैसा चला जाता है। इससे पहले मज़दूर बहुत ही हंसी-खुशी से काम करते थे लेकिन अब मज़दूर इससे दूर होते जा रहे हैं। मनरेगा एक ऐसी योजना है जिसमें महिला और पुरुष दोनों को समान काम का समान दाम मिलता है जो उन्हें इस बात का एहसास दिलाता था कि महिला-पुरुष समान हैं लेकिन ऐप आने की वजह से हालात फिर से पहले जैसे हो जाएंगे। पुरुष पहले कमाने बाहर पलायन कर जाते थे लेकिन मनरेगा की वजह से वे अपने घर पर ही काम करके बच्चों के साथ रह सकते थे पर अब फिर से एक बार वही हालात बन रहे हैं।"
"धरना चलता रहेगा"
हमने जब निर्मला से पूछा कि 50 दिन का धरना हो चुका है और अगर सौ दिन के पूरे होने पर भी आपकी मांगें नहीं मानी गईं, तो मनरेगा मज़दूर क्या करेंगे?
इसपर निर्मला का कहना था, "पचास दिन हो गए लेकिन अभी तक सरकार का जवाब नहीं आया, अभी तो यह धरना ‘100 दिन’ का है लेकिन अगर सरकार ने नहीं सुना तो आगे भी ये धरना चलता रहेगा।"
"फैसला वापस लिया जाना चाहिए"
वे (निर्मला) आगे कहती हैं, "मैं सरकार से कहना चाहती हूं कि हम उनको दोष नहीं देते, हो सकता है कि उन्होंने अच्छा सोच कर ये ऐप बनाया हो, सोचा होगा कि इससे बेहतर मॉनिटरिंग होगी लेकिन ज़मीन पर इसकी हक़ीक़त अलग है। लोगों को फायदा नहीं हो रहा है। मज़दूर इसको समझ नहीं पा रहे हैं, उल्टा इससे मज़दूरों को नुक़सान हो रहा है इसलिए ऐप आधारित हाज़िरी के फैसले को वापस लिया जाना चाहिए।"
मनरेगा मतलब "जीवादोरी"
गुजरात की मनरेगा मज़दूरों के साथ आईं नीता जो 'नरेगा संघर्ष मोर्चा' से जुड़ी हैं, वो बताती हैं कि, "गुजरात में मनरेगा को "जीवादोरी" (लाइफ लाइन) कहा जाता है। ये बहुत ही महत्वपूर्ण योजना है जो मान-सम्मान के साथ काम करने का मौका देती है।"
वे बताती हैं कि, "हमने गुजरात में साइट पर देखा है कि 60 से 70 फीसदी महिलाएं काम करती हैं। ये उनके लिए बहुत ही ज़रूरी है। घर के पुरुष जब पलायन कर जाते हैं तो वे घर पर ही अपनी तमाम ज़िम्मेदारियों को पूरा करने के साथ ही मनरेगा में काम करके पैसा कमाया करती थीं लेकिन 252 रुपये के लिए उन्हें अब बहुत परेशान होना पड़ रहा है, पहले ही समय पर पैसा नहीं मिलता था, अब ऐप आधारित हाज़िरी होने पर तो और परेशानी बढ़ जाएगी।"
नीता बताती हैं, "ऐप आधारित हाज़िरी की वजह से मनरेगा में मुख्य तौर पर तीन तरह की परेशानियां आ रही हैं :
पहली : मेट दीदी से अपेक्षा की जाती है कि वे नौ बजे से पहले वर्कसाइट पर पहुंच जाए ताकि नेटवर्क मिल जाए, नौ बजे पहुंचने के लिए उन्हें कम से कम 7 बजे निकलता होता है, वो भी घर का सारा काम निपटा कर, ये उनकी मुश्किलें बढ़ा देता है।
दूसरी : नेटवर्क नहीं मिलता, उन्हें ऊंची जगह तलाश करनी पड़ती है जैसे किसी टावर पर चढ़कर हाज़िरी अपलोड करनी पड़ती है।
तीसरी : वो जो हाज़िरी लगाती है वो GRS (Gram Rojgar Sevak) की रिपोर्ट में कुछ अलग ही दिखता है जैसे अगर कोई नहीं आया तो वे गैरहाज़िर मार्क करती है लेकिन रिपोर्ट में हाज़िर दिखता है।"
नीता आरोप लगाते हुए कहती हैं, "कहा तो ये गया था कि इससे भ्रष्टाचार कम होगा लेकिन अगर कोई नहीं आया है तो वो हाज़िर कैसे दिख सकता है?”
गुजरात के मज़दूरों के साथ मिलकर छत्तीसगढ़ से आए मनरेगा मज़दूर कुछ ऐसे ही सवाल उठा रहे थे और उन्हें अपने गीतों की शक्ल में कुछ यूं बयां कर रहे थे :
“जनता केंद्र सरकार को देखकर बोली
शेम छे, शेम छे, शेम छे”
और मनरेगा की स्थिति को देखकर अब मज़दूर बोले:
“कि ये तो गेम छे, गेम छे, गेम छे”
यूपी, बिहार से आए मज़दूर हों या फिर गुजरात या झारखंड से सभी की जो सबसे ख़ास और कॉमन मांग है वो ये कि ऐप आधारित हाज़िरी सिस्टम के फैसले को वापस लिया जाए। हालांकि धरने के 50 दिन बाद भी अबतक कोई ख़ास आश्वासन मिलता दिखाई नहीं दे रहा है।
ऐसे में सवाल ये है कि जिस योजना को ग़रीबों को रोज़गार व सहारा देने के लिए लाया गया था क्या उन ग़रीबों को भगवान भरोसे ही छोड़ दिया जाएगा?
एक सवाल ये भी है कि अगले साल 2024 में लोकसभा चुनाव है, अब देखना होगा कि कौन सी पार्टी इन मनरेगा मज़दूरों की आवाज़ को मुद्दा बनाकर जनता के बीच जाती है।
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