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आज़ादी की 75वीं सालगिरह: भारतीय चाहते क्या हैं ?

यहां कुछ ऐसी प्रमुख नीतियां दी गई हैं जिनकी लोगों को बेहद ज़रूरत है लेकिन मोदी सरकार ऐसा नहीं मानती है।
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76वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर नई दिल्ली में रविवार को तिरंगे में जगमगाता नये संसद भवन की छत पर डाला गया राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह।

प्रधानमंत्री मोदी नई दिल्ली के लाल क़िले से देश को संबोधित करते हुए कार्यक्रमों या योजनाओं का जिक्र किया है जो आम तौर पर उनकी पीठ थपथपाते हैं। आज़ादी की इस 75वीं सालगिरह के मौके पर उपलब्धियों की उन अवधारणाओं को फैलाया जाता रहा है, जिसमें देशभक्ति दिखाने के लिए तिरंगा लगाने पर ज़ोर दिया गया है। कोई शक नहीं कि लोग इस बात से ख़ुश हैं कि 75 साल पहले अंग्रेज़ों को आख़िरकार निकाल बाहर कर दिया गया था। लेकिन, आज का जो जीवन है, वह बहुत से भारतीयों के लिए मुश्किल और कष्टदायक बन गया है, जिससे उनके लिए स्वतंत्रता की इस सालगिरह का कोई महत्व नहीं रह गया है।

सवाल है कि एक मज़बूत और समृद्ध देश की नींव रखने के लिए असल में किया क्या जा सकता है? लोगों को समृद्ध, एकजुट और आधुनिक सोच से ओतप्रोत होने की ज़रूरत है। कुछ ऐसी अहम नीतियां हैं, जो भारत को उस दिशा में ले जा सकती हैं। इन नीतियों और उपायों को धरातल पर लाने के लिहाज़ से पीएम मोदी के नेतृत्व में मौजूदा दिशा में भारी बदलाव की ज़रूरत होगी। लेकिन, यह तो समय आने पर तब ही तय किया जायेगा, जब सरकार चुनने का समय आयेगा।

जनकल्याण

क़ीमतों में बढ़ोत्तरी, भूख, बेरोज़गारी, महंगी स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा और पीने के पानी, आवास आदि जैसी बुनियादी मानवीय आवश्यकताओं की कमी से जूझ रहे लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए कुछ तात्कालिक उपायों को बेहतर तरीके से लागू किये जाने की ज़रूरत हैं। ऐसे में नीचे दिए गए बिंदुओं पर गौर करने की ज़रूरत है और इन्हें तुरंत अमल में लाया जाना चाहिए:

  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सार्वभौमिक बनाया जाये: सभी आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति की जाये; पूरी आबादी को इसमें शामिल की जाये;
  • बुनियादी सुविधाएं: सभी के लिए सुरक्षित पेयजल, स्वच्छता और आवास मुहैया करायी जाये;
  • रोज़गार: सभी के लिए रोज़गार मुहैया करायी जाये; मनरेगा के तहत काम का विस्तार और मज़दूरी में वृद्धि; शहरी रोज़गार गारंटी योजना लागू की जाये; बेरोज़गारी भत्ता दिया जाये';
  • नई शिक्षा नीति को ठंडे बस्ते में डाला जाये: शिक्षा पर केंद्रीय आवंटन को जीडीपी के 6% तक बढ़ाया जाये; निजी शिक्षण संस्थानों को विनियमित किया जाये; संवैधानिक मूल्यों और वैज्ञानिक सोच को मज़बूत बनाने के लिए सिलेबस और करिकुलम में सुधार किया जाये; शिक्षा में डिजिटल ग़ैर-बराबरी को ख़त्म किया जाये।
  • यूनिवर्सल पब्लिक हेल्थ केयर: इसे सरकार से वित्त पोषित किया जाये; स्वास्थ्य पर केंद्रीय व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के कम से कम 5 प्रतिशत तक बढ़ाया जाये; आवश्यक दवाओं की कीमतों में कमी की जाये; निजी स्वास्थ्य सुविधाओं को विनियमित किया जाये।

आर्थिक संप्रभुता की सुरक्षा

मोदी सरकार द्वारा देश के प्राकृतिक और औद्योगिक संसाधनों का लापरवाही से निजीकरण करके और अर्थव्यवस्था के अहम क्षेत्रों में घुसने के लिए विदेशी पूंजी को आमंत्रित करके आर्थिक संप्रभुता को बुरी तरह से तबाह कर दिया है। इसके साथ-साथ जनता के हाथों में पैसे देने से हाथ भी खींच लिये गये हैं। इससे लोगों के लिए बड़े पैमाने पर संकट उत्पन्न हो गया है और यह संकट मौजूदा समय और भविष्य दोनों के लिए है। ऐसे में जो कुछ ज़रूरी कदम उठाने की ज़रूरत है जिसे नीचे दिया गाया है:

  • पीएसयू और सरकारी विभागों के निजीकरण की प्रकिया को पलट दिया जाये; राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन((एनएमपी) को ठंडे बस्ते में डाला जाये;
  • सरकारी एजेंसियों को पानी, बिजली, सार्वजनिक परिवहन, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी सस्ती सेवायें मुहैया करायी जाये;
  • एमएसएमई को बढ़ावा दिया जाये;
  • बहुत ज़्यादा अमीर हो चुके लोगों पर कर लगाया जाये;
  • बहुत ज़रूरी बुनियादी ढांचे के निर्माण, रोज़गार पैदा करने और घरेलू मांग को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक निवेश में बढ़ोत्तरी की जाये;
  • भूमि सुधार को लागू किया जाये;
  • सहकारी खेती, उत्पादन और विपणन के माध्यम से कृषि का विकास किया जाये, भारत की खाद्य सुरक्षा को मज़बूत किया जाये।

गणतंत्र के धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, संघीय चरित्र को मज़बूत किया जाना ज़रूरी

आज़ादी के बाद से भारत में संघ परिवार और उसकी राजनीतिक शाखा यानी भाजपा की ओर से धार्मिक कट्टरता को मुख्यधारा की राजनीति में लाकर लोगों की एकता पर इस तरह का व्यवस्थित हमला कभी नहीं देखा गया है। संघ परिवार और भाजपा जनविरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ चलने वाली लड़ाई को नुक़सान पहुंचा रहे हैं और अल्पसंख्यकों, दलितों, आदिवासियों और वंचित वर्गों के लिए हिंसक ख़तरा पैदा करने के अलावा बुनियादी मुद्दों से भी ध्यान हटा रहे हैं। संविधान के तीनों स्तंभ- धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र और संघवाद ख़तरे में हैं, क्योंकि शक्तियों का केंद्रीकरण और लोकतांत्रिक संस्थानों की तबाही जारी है। इसलिए धर्मनिरपेक्षता, यानी धर्म को राज्य से अलग करने और राजनीति को संवैधानिक सिद्धांत के रूप में शामिल करने की ज़रूरत है। सरकार को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के आधार पर नफ़रत और हिंसा के अभियानों के साथ-साथ सभी ग़ैर-क़ानूनी निजी सेनाओं और निगरानी समूहों पर भी प्रतिबंध लगाना चाहिए। लिंचिंग के ख़िलाफ़ एक सख़्त क़ानून पारित किया जाना चाहिए। सभी धार्मिक अल्पसंख्यकों के जीवन, स्वतंत्रता और अधिकारों की मज़बूती के साथ रक्षा की जानी चाहिए। व्यवस्था और राज्य संस्थानों से मौजूदा हुक़ूमत की ओऱ से लगाये गये सांप्रदायिक कार्यकर्ताओं को साफ किया जाना चाहिए। भेदभावपूर्ण सीएए को निरस्त किया जाना चाहिए और प्रस्तावित एनपीआर/एनआरसी से तौबा करना चाहिए।

संविधान, यूएपीए द्वारा गारंटीकृत लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए IPC, AFSPA और राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) में राजद्रोह के प्रावधान को निरस्त किया जाना चाहिए और मृत्युदंड को ख़त्म कर दिया जाना चाहिए। आंशिक सूची वाले आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली की शुरूआत सहित चुनावी सुधारों को लाया जाना चाहिए और चुनावी बॉन्ड योजना को ख़त्म किया जाना चाहिए।

केंद्र-राज्य के बीच के रिश्ते को राज्यों को अधिक शक्तियों के साथ पुनर्गठित किया जाना चाहिए। केंद्रीय अधिभारों और चुंगियों को साझा करके राजकोषीय संघवाद को मज़बूत करने की ज़रूरत है, जिन्हें कि इस समय राज्यों के साथ साझा नहीं किया जा रहा है। अंतर्राज्यीय परिषद, योजना आयोग और राष्ट्रीय विकास परिषद को पुनर्जीवित किया जाना चाहिए। जम्मू-कश्मीर की स्वायत्तता के साथ-साथ उसके पूर्ण राज्य के दर्जा को बहाल किया जाना चाहिए और अनुच्छेद 370/35A को निरस्त किया जाना चाहिए।

श्रमजीवी वर्ग और किसान

मौजूदा हुक़ूमत में श्रमजीवी वर्ग और किसानों को सबसे ज़्यादा नुक़सान उठाना पड़ा है, हालांकि इस शोषण की जड़ें इतिहास में दूर तक फैली हुई हैं। श्रमिक वर्ग के परिवारों को सम्मान के जीवन को सुनिश्चित करने के लिए अकुशल श्रमिकों के लिए कम से कम 26,000 रुपये प्रति माह का वैधानिक न्यूनतम वेतन, जो कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से जुड़ा हुआ हो, ज़रूरी है। चारों श्रम क़ानूनों को ख़त्म किया जाये साथ ही सभी श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा की गारंटी मिलनी चाहिए।

सभी किसानों और सभी फ़सलों के लिए वैधानिक एमएसपी C2+50 प्रतिशत फ़ॉर्मूले के आधार पर लागू की जानी चाहिए। केंद्र सरकार की ओर से एकमुश्त पूर्ण कर्जमाफ़ी होनी चाहिए, ताकि असहनीय क़र्ज़ से मुक्ति दिलायी जा सके। कृषि श्रमिकों को मज़दूरी और सामाजिक सुरक्षा पर एक केंद्रीय क़ानून के संरक्षण के तहत ले आना चाहिए।

सामाजिक न्याय

मोदी सरकार के शासन में दलितों और आदिवासियों के ख़िलाफ़ भेदभाव और हिंसा में बढ़ोत्तरी हुई है, वहीं केंद्र की ओर से होने वाले वित्तीय आवंटन मानदंडों से कम रहा है। जाति उत्पीड़न लगातार फल-फूल रहा है और अक्सर इसे सत्ताधारी दलों की ओर से प्रोत्साहित किया जाता है। जाति उत्पीड़न को ख़त्म करने की लड़ाई लड़ने वाले दलितों और आदिवासियों के बुनियादी मानवाधिकार को सुनिश्चित करने के लिए विशेष उपायों की ज़रूरत है। अनुसूचित जाति के लिए विशेष घटक योजना के लिए एक केंद्रीय क़ानून और इसके कार्यान्वयन की निगरानी को लेकर एक अधिकार संपन्न समिति वाली एक अनुसूचित जनजाति उप-योजना लायी जानी चाहिए। वन भूमि, आजीविका और संस्कृति से जुड़े आदिवासी अधिकारों को लेकर जो संवैधानिक और क़ानूनी प्रावधान हैं, उनकी रक्षा की जानी चाहिए। निजी क्षेत्र में नौकरियों का आरक्षण क़ानून के ज़रिये सुनिश्चित किया जाये। क़ानूनी तरीक़ो से मैला ढोने की प्रथा को सख़्ती के साथ ख़त्म किया जाना चाहिए और इस प्रथा के साथ-साथ अस्पृश्यता के किसी भी रूप के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। वन अधिकार अधिनियम को सख़्ती और तेज़ी के साथ लागू किया जाना चाहिए। ओबीसी की गणना के लिए एक जाति जनगणना की जानी चाहिए।

महिलाओं के अधिकार

एक ओर संघ परिवार और भाजपा की प्रतिगामी विचारधारा और दूसरी ओर नवउदारवादी आर्थिक नीतियों के दोहरे हमलों से महिलाओं के अधिकारों को ज़बरदस्त झटका लगा है। महिलाओं का रोज़गार लगातार कम होता जा रहा है, साथ ही उनकी भी मज़दूरी कम है और समान काम करने वाले पुरुषों के मुक़ाबले तो बहुत ही कम है। रोज़गार रणनीतियों के हिस्से के रूप में महिलाओं को रोज़गार मुहैया कराये जाने वाले विशेष प्रयास किए जाने चाहिए। एनएफएचएस-5 की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक़, महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा बेरोकटोक जारी है, जिसमें 30% महिलाओं के साथ शारीरिक और यौन हिंसा की रिपोर्टें हैं। इसे क़ानूनी तौर पर और साथ ही जन जागरूकता के ज़रिये हल किये जाने और सामूहिक कोशिश के माध्यम से पितृसत्तात्मक मानसिकता को ख़त्म किये जाने की ज़रूरत है।

पर्यावरण

पर्यावरण संरक्षण क़ानूनों को निरंतर कमज़ोर पड़ने से रोका जाना चाहिए। सभी के लिए समान ऊर्जा को सुनिश्चित किया जाना चाहिए और लोगों की भागीदारी से वनों, जल संसाधनों, आर्द्रभूमि और पहाड़ों और अन्य नाज़ुक क्षेत्रों के संरक्षण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा दिया जाना चाहिए और सभी तरह के प्रदूषण को नियंत्रित किया जाना चाहिए साथ ही इसका उल्लंघन करने वालों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई की जानी चाहिए।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करेंः

75th Anniversary: What Do Indians Want?

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