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जम्मू में आप ने मचाई हलचल, लेकिन कश्मीर उसके लिए अब भी चुनौती

आम आदमी पार्टी ने भगवा पार्टी के निराश समर्थकों तक अपनी पहुँच बनाने के लिए जम्मू में भाजपा की शासन संबंधी विफलताओं का इस्तेमाल किया है।
AAP
प्रतिनिधि चित्र। चित्र साभार: पीटीआई 

14 अप्रैल को, आम आदमी पार्टी (आप) ने अपने पहले शक्ति प्रदर्शन के लिए उधमपुर के भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के मजबूत गढ़ को चुना। इसका नेतृत्व वरिष्ठ स्थानीय राजनीतिज्ञ बलवंत सिंह मनकोटिया द्वारा किया गया, जिन्होंने हाल ही में अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व वाली आप में शामिल होने के लिए जम्मू-कश्मीर पैंथर्स पार्टी से अपना नाता तोड़ लिया था।

अपने भाषण के दौरान मनकोटिया बुनियादी मुद्दों पर अड़े रहे। न्यूज़क्लिक के साथ अपनी बातचीत के दौरान उन्होंने कहा, “आम लोगों को धोखा देने के लिए राजनीतिक दलों के द्वारा राजनीतिक नारेबाजी का इस्तेमाल किया जाता है। हमारा संदेश स्पष्ट है: हम यहाँ पर रोजगार, स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा और बिजली प्रदान कराने के लिए हैं। लोगों के पास इन मुलभूत जरूरतों तक पहुँच हो जाने के बाद ही हम अन्य मुद्दों पर चर्चा करेंगे।” मनकोटिया का आगे कहना था कि जम्मू-कश्मीर में अन्य क्षेत्रीय दलों के तुलना में हमारी पार्टी अलग रास्ता अपनाएगी, जो दावा करते हैं कि क्षेत्र की समस्याएं शासन से संबंधित होने के बजाय राजनीतिक हैं। 

उन्होंने दावा किया कि पार्टी की जन-केंद्रित राजनीति ही उनके पैंथर पार्टी को छोड़कर आप में शामिल होने के पीछे की प्रेरक शक्ति रही है। उन्होंने कहा, “आप की नीतियों में कोई छिपा हुआ एजेंडा नहीं है, इसी इसी चीज ने मुझे आकर्षित किया, और यही वजह है कि इतने सारे लोग यहाँ पर हमारा समर्थन करने के लिए उपस्थित हुए हैं।”

मनकोटिया के बाद, कई अन्य नेताओं ने भी आप का दामन थामा है। सबसे हाल ही में पूर्व शिक्षा मंत्री हर्ष देव सिंह शामिल हुए हैं, जो 7 मई को पैंथर्स पार्टी के कई अन्य कार्यकार्ताओं के साथ आप में शामिल हो गये हैं।

पंजाब में अपने प्रदर्शन को आधार बनाते हुए, पार्टी ने यहाँ पर एक हलचल पैदा कर दी है और जम्मू क्षेत्र में पहले से ही धारणा युद्ध में बढ़त हासिल कर ली है। हालाँकि, इसका पहला लक्ष्य इस क्षेत्र में खुद को एक दुर्जेय विपक्ष के तौर पर स्थापित करने का है, जिसे वह लोकतंत्र के लिए यह बुनियादी बात मानता है और जो विभाजनकारी राजनीति एवं हिंसा का एक विकल्प प्रदान करता है।

आप ने अपनी दिल्ली-स्टाइल वाली शासन प्रणाली का उदाहरण पेश करते हुए जम्मू में नौकरियों, स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा एवं सुशासन दे पाने में भाजपा की विफलता का इस्तेमाल भगवा पार्टी के मोहभंग समर्थकों तक अपनी पैठ बनाने के लिए किया है। लेकिन यह जम्मू नहीं बल्कि कश्मीर है जहाँ पर पार्टी की ताकत की असल परीक्षा होनी है।

अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर के विशेष राज्य के दर्जे को खत्म करने का समर्थन करने वाली सबसे पहली विपक्षी पार्टी आप थी। 

कश्मीर में लोग राज्य के विशेष दर्जे को समाप्त किये जाने के लिए आप के समर्थन से सकते की स्थिति में थे, जिसके बारे में कई लोगों का कहना है कि घाटी में मतदाताओं के द्वारा इस बात को याद रखा जायेगा।

कांग्रेस बनाम आप 

राजनीतिक विश्लेषकों का मत है कि जम्मू में आप का उदय भाजपा के भीतर चिंता का कारण बन सकता है।

वरिष्ठ पत्रकार एवं टिप्पणीकार, ज़फर चौधरी ने न्यूज़क्लिक को बताया, “2015 चुनावों के बाद से भाजपा का जम्मू क्षेत्र में आधिपत्य बना हुआ है। बाकी के सभी अन्य दल जम्मू क्षेत्र में राजनीतिक एवं शारीरिक रूप से अक्षम हो चुके हैं, जिसमें 2018 में पिछली निर्वाचित सरकार के पतन और उसके बाद के घटनाक्रम में राज्य की विशेष स्थिति को समाप्त किया जाना भी शामिल है। आप के द्वारा इसके मतदाता आधार पर सेंध लगाने की योजना के साथ, उम्मीद की जानी चाहिए कि भाजपा के सामने आप एक बड़ी चुनौती पेश करे।” 

विशेषज्ञों के मुताबिक पूरे भारत में आप की सफलता का ग्राफ इस बात की ओर संकेत करता है कि इसने उन क्षेत्रों में प्रगति की है जहाँ पर कांग्रेस का लगातार पतन होता जा रहा है। अब चूँकि कांग्रेस किसी समय जम्मू में एक बड़ी ताकत हुआ करती थी और आज भी वहां पर उसके पास कुछ समर्थन मौजूद है, ऐसे में आप के लिए यह लाभदायक स्थिति है कि वहां से उसे समर्थन मिल सके। विख्यात राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर नूर मोहम्मद बाबा ने न्यूज़क्लिक के साथ अपनी बातचीत में बताया, “जहाँ कहीं भी आप ने एक प्रभाव डाला है, वहां पर उसने कांग्रेस के आधार को कब्जा लिया है।” उन्होंने आगे कहा, “जम्मू में यह अपना प्रभाव बना सकती है जहाँ कांग्रेस कभी एक प्रमुख भूमिका में थी।”

उन्होंने आगे कहा कि जम्मू पिछले कुछ समय से भाजपा के पीछे खड़ा रहा है, लेकिन कुछ नाराजगी भी देखने को मिल रही है, जो आप को वहां पर कुछ जगह दे सकती है। उन्होंने कहा, “जम्मू में भाजपा के वर्चस्व में कुछ बिखराव है। पिछले कुछ समय से जम्मू में भाजपा को अच्छा-खासा समर्थन हासिल है, लेकिन जम्मू में भी कुछ नाराजगी की स्थिति बनी हुई है, इसलिए आप कोशिश करे तो वे वहां टिक सकते हैं।” 

कांग्रेस समर्थकों का मानना है कि आप का वैकल्पिक शासन का मॉडल जम्मू-कश्मीर में काम नहीं आने वाला है क्योंकि इस क्षेत्र के मुख्य मुद्दे हमेशा से राजनीतिक प्रकृति के रहे हैं। ये मुद्दे यदि समूचे दक्षिण एशिया को नहीं तो कम से कम पूरे देश की राजनीति को प्रभावित करते रहे हैं। नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ़ इंडिया (एनएसयूआई) के जम्मू विश्वविद्यालय के उपाध्यक्ष, विकास बधोरी ने न्यूज़क्लिक को बताया, “इस क्षेत्र के राजनीतिक पहलुओं को नजरअंदाज कर सिर्फ विकास पर ध्यान केंद्रित करना उनके (आप)  लिए कोई बेहतर रणनीति नहीं होने जा रही है। कांग्रेस इस क्षेत्र में एक प्रमुख ताकत बनी हुई है। इसे विपक्ष की अग्रणी भूमिका निभाने के लिए अपनी प्राथमिकताओं को सही ढंग से निर्धारित करना होगा।”

बधोरी ने आगे कहा कि आप ने कुछ समय के लिए हलचल तो अवश्य मचाई है, लेकिन अनुच्छेद 370 पर अपनी ढुलमुल स्थिति के कारण इसकी लोकप्रियता, कांग्रेस की तुलना में, लगातार कम हो रही है, जो कि शुरू से ही इसके बारे में पूरी तरह से स्पष्ट रुख रखे हुए है। यही वजह है कि कांग्रेस इस क्षेत्र की प्रमुख विपक्ष बनी हुई है। जम्मू-कश्मीर में आप के नेतृत्व का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, “पंजाब और दिल्ली के विपरीत, आप ने उन नेताओं पर भरोसा जताया है, जिन्हें अन्य दलों के द्वारा ख़ारिज कर दिया गया था।”

जम्मू-कश्मीर के लिए आप के आईटी प्रमुख हरप्रीत सिंह के अनुसार, पार्टी लोगों के साथ अपने रिश्ते को लेकर कहीं अधिक चिंतित है। उनका कहना था, “हमने अखनूर, सांबा और कठुआ जैसे भाजपा के मजबूत गढ़ों में अपनी बैठकें आयोजित करनी शुरू कर दी है। और हम अपने आप से यह सब नहीं कर रहे हैं; बल्कि जो लोग हमें उन इलाकों में आमंत्रित कर रहे हैं, वे ही इन सभाओं के आयोजन की जिम्मेदारी निभा रहे हैं।”

सिंह ने कहा कि भाजपा देश को धार्मिक आधार पर बाँट रही है और एक क्षेत्र को दूसरे क्षेत्र के भीतर फिट करने की कोशिश कर रही है। लेकिन हमारा धर्म से कोई लेना-देना नहीं है, बल्कि इसके बजाय हमारा सारा ध्यान क्षेत्रीय विकास पर केंद्रित है जबकि लोग अपनी-अपनी आस्था के मुताबिक उसका पालन करने के लिए स्वतंत्र हैं। उन्होंने आगे कहा, “भाजपा लोगों की भावनाओं के साथ खेल रही है और क्षेत्र में उन्हें कठपुतली की तरह अपने इशारों पर नचा रही है।”

उन्होंने विस्तार से बताया कि हमारी पार्टी जानबूझकर ध्रुवीकरण के मुद्दों में नहीं उलझ रही है। उन्होंने कहा, “हमें नहीं लगता कि उन चर्चाओं को शुरू करने का यह सही समय है।” सिंह के अनुसार, अन्य दलों के विपरीत आप, बड़े-बड़े सपनों को नहीं बेच रही है। उन्होंने अपनी बात में आगे जोड़ते हुए कहा, “लोग हमारे दिल्ली और पंजाब मॉडल की ओर देख रहे हैं और खुद से अपने फैसले ले रहे हैं।”

कश्मीर के साथ मुश्किलें 

विशेषज्ञों का मानना है कि राजनीतिक रूप से आहत कश्मीरियों की सोच पर कब्जा जमाने में आप के लिए काफी मुश्किलें हैं और पार्टी का भविष्य इस बात से तय होगा कि एक बार जब यहाँ पर मरघट वाली चुप्पी टूटेगी तो राजनीतिक रूप से पूरी तरह से तैयार होने के बाद घाटी की राजनीति किस करवट लेगी, इस बारे में अभी से कुछ नहीं कहा जा सकता है।

कश्मीर विश्वविद्यालय में राजनीतिक विज्ञान विभाग के प्रमुख, प्रोफेसर गुल मोहम्मद वानी ने न्यूज़क्लिक को बताया, “जम्मू-कश्मीर में मुस्लिम मतदाता राजनीतिक रूप से आहत है, और उनके लिए आप को समर्थन देने के लिए आधार बहुत कम है। इसके अलावा, आप के द्वारा अनुच्छेद 370 को निरस्त किया जाने का समर्थन करना और नरम हिंदुत्व के मामले में बड़े पैमाने पर भाजपा का अनुसरण करने के लिहाज से पहले से कुछ धारणाएं बनी हुई हैं।”

जैसा कि पिछले अनुभव से पता चलता है कि घाटी की राजनीतिक प्रतिक्रिया ही इस बात को निर्धारित करती है कि जम्मू कैसे प्रतिक्रिया करेगा। प्रोफेसर वानी कहते हैं, “अगर घाटी में लोगों ने गुपकार-गठबंधन या इसके नेताओं को समर्थन दिया तो जम्मू के लोग भाजपा में वापस लौट सकते हैं।”

इसके अलावा यह कि पार्टी केंद्र शासित प्रदेश से एक भी प्रमुख नेता को अपनी ओर आकर्षित कर पाने में विफल रही है, जिसके चलते इस क्षेत्र में इसकी संभावनाओं को नुकसान होने की संभावना है। वानी ने अपनी बात में जोड़ते हुए कहा, “आप ने घाटी से बड़े पैमाने पर छूट गए नेताओं को चुना है क्योंकि घाटी के सभी दलबदलू नेताओं को अन्य राजनीतिक दलों ने पहले ही अपने दलों में शामिल कर लिया है।”

इसके साथ ही, पार्टी का अभी तक स्थानीय लोगों के दिलोदिमाग पर बहुत कम छाप पड़ा है, और वे पार्टी को “एक और राजनीतिक दल के तौर पर देखते हैं जिसने कश्मीरियों की भावनाओं के लिए कोई चिंता नहीं दिखाई है।”

दक्षिण कश्मीर के एक कानून के छात्र ने नाम न छापे जाने का अनुरोध करते हुए न्यूज़क्लिक को बताया, “यह भी किसी अन्य राजनीतिक दल की तरह सिर्फ चुनाव जीतने की फिराक में है और इसका हमारी आकांक्षाओं से कोई लेना-देना नहीं है। इससे बेहतर तो भाजपा ही है क्योंकि वे एक स्पष्ट अतार्किक रुख अपनाते हैं और लोगों को अपना समर्थन करने या ख़ारिज करने का विकल्प देते हैं।”

पार्टी का वैचारिक दृष्टिकोण पूरी तरह से हैरान करने वाला है, और इसने इन क्षेत्रों में अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रहे अत्याचारों के खिलाफ कभी आवाज नहीं उठाई है। उक्त छात्र का कहना था, “बहुसंख्यकों को अपनी ओर आकृष्ट करने के लिए उनके द्वारा नरम हिंदुत्व को बढ़ावा दिया जा रहा है। क्षेत्र से कांग्रेस को उखाड़ने के लिए आप कहीं न कहीं भाजपा की मददगार साबित हो सकती है।”

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

AAP Creates Buzz in Jammu, Faces Challenges in Kashmir

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