एसिड अटैक और 25 सर्जरी ; शाहीन आबाद कर रहीं सैंकड़ों उजड़ी ज़िदंगियां
"तू शाहीं है परवाज़़ है काम तेरा, तिरे सामने आसमां और भी हैं"
अल्लामा इक़बाल की इन पंक्तियों को दिल्ली की शाहीन मलिक ने बखूबी अपने जीवन में उतारा है। शाहीन एक एसिड अटैक सर्वाइवर हैं और अपने ही जैसे सैकड़ों लोगों के लिए आज एक सहारा बनी हुई हैं। वो सिर्फ संघर्ष में जीत की एक मिसाल ही नहीं, बल्कि एक रास्ता भी हैं, जो दर्द से कराहते लोगों को राहत की ओर ले जाता है। शाहीन की संस्था ‘Brave Souls Foundation’ आज देश के कोने-कोने से आईं एसिड अटैक सर्वाइवर्स का 'अपना घर' है। ये संस्था सर्वाइवर महिलाओं को न सिर्फ रहने का ठिकाना देती है, बल्कि उनकी मनोवैज्ञानिक, कानूनी और सामाजिक लड़ाइयों में भी साझेदार बनती है।
न्यूज़क्लिक ने दिल्ली के जंगपुरा में स्थित शाहीन मलिक के अपना घर का दौरा किया और वहां की मर्म लेकिन हौसला देने वाली तमाम कहानियों को जानने की कोशिश की। यहां हमने शाहीन मलिक से भी बातचीत की जो आज इन सभी सर्वाइवर्स को अंधेरे में एक मशाल की तरह प्रेरणा दे रही हैं। पेश से अपना घर का आंखों देखा हाल...
शाहीन का ऑफिस ठीक अपना घर के सामने है, इसका दरवाज़ा खोलते ही आपकी नज़रें अल्लामा इक़बाल के शे'र पर टिक जाती है, जिसे आपने इस स्टोरी के शुरू में पढ़ा, शाहीन खुद भी अपने लिए सबसे बड़ी प्रेरणा मानती हैं। इसी दीवार पर आपको शाहीन की तस्वीर के साथ ही कई अन्य एसिड अटैक सर्वाइवर्स की एक जिंदादिल तस्वीर लगी है, जो दर्द में भी मुस्कुराहट को बयां करती है। इसके अलावा भी आपको यहां दीवारों पर कई अच्छे कोट देखने को मिलते हैं, जिसमें हार न मानने की जिद दिखाई देती है।
बचपन से संघर्ष करती रही हैं शाहीन
शाहीन बताती हैं कि उनका जन्म एक ऐसे रूढ़िवादी परिवार में हुआ जो लड़कियों के बाहर निकलने या पढ़ाई-लिखाई को लेकर उत्साही नहीं था। लेकिन शाहीन को अपनी जिंदगी में कुछ अलग करना था, उन्हें उस पितृसत्ता के दायरे से बाहर निकलना था इसलिए उन्होंने साल 2007 में अपना घर छोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने पंजाब टेक्निकल यूनिवर्सिटी के एमबीए प्रोग्राम में एडमिशन लिया और अपना खर्च चलाने के लिए एजुकेशन काउंसलर की नौकरी भी की। उसी दौरान साल 2009 में उन पर एसिड अटैक हुआ, जिसने उन्हें और उनके सपनों को पूरी तरह तोड़ दिया। फिर वो अपने घर बहुत कुछ खो कर पहुंच गईं और करीब तीन साल अपने एक कमरे में कैद रहीं।
एसिड कैसा होता है ये शाहीन को अपने अटैक से पहले पता नहीं था, क्योंकि न तो इससे पहले उन्होंने इससे कभी कोई काम किया था न ही कभी देखा था। लेकिन उस दिन 19 नवंबर 2009 को उन्हें इसके बर्बादी की ताकत पता चली। इस अटैक ने उन्हें मानसिक पीड़ा के साथ ही भयंकर शारीरिक दर्द भी दिया, जिसे वो आज भी याद कर कांप उठती हैं। अब तक शाहीन की 25 सर्जरी हो चुकी है और अभी भी एक दशक बाद उनका इलाज़ जारी है।
शाहीन बताती हैं कि उन पर एसिड डालने वाले लोग उनके साथ काम करने वाले ही थे, जो उनके अच्छे काम को पचा नहीं पा रहे थे। उनकी मेहनत और बोल्डनेस उन लोगों को चुभने लगी थी, जिसके चलते उन्होंने उन पर ये एसिड अटैक किया। जिसमें शाहीन ने अपने सुंदर चेहरे के साथ ही अपनी आंखें तक खो दी। उन्हें इलाज़ मिलने में भी देरी हुई, जिसका खामियाज़ा उन्हें आजीवन भुगतना पड़ेगा।
एसिड अटैक का भयानक दर्द, दो दर्जन से ज्यादा सर्जरी
एसिड अटैक का दर्द शाहीन भरे गले से बताते हुए कहती हैं कि जब उन पर अस्पताल में पानी डाला जा रहा था, तो उन्हें ऐसा लग रहा था मानो उनके शरीर में हज़ारों सुईयां एक साथ चुबोई जा रही हैं। सर्जरी के बाद जब उन्हें अपने ही चेहरे से घिन आ रही थी। उनसे चला नहीं जा रहा था, वो खाना नहीं खा पाती थीं, खुद को उतना लाचार और बेबस महसूस करती थीं कि उन्होंने सुसाइड करने तक की सोच ली और अपनी कई गोलियां एक साथ निगल गईं। हालांकि उनकी किस्मत अच्छी थी और वो बच गई लेकिन अब उनकी हालत और खराब हो चुकी थी, उनके जख्मों से खून बाहर आने लगा था और यही समय था जब और सर्जरी और दवाइयों ने उन्हें अंदर से निचोड़ दिया लेकिन एक रास्ता भी दिखाया।
शाहीन कहती हैं कि उन्हें अब एहसास हो चुका था कि मौत उनके नसीब में नहीं और हार कर उन्हें जीना मंजूर नहीं और यहीं से उन्होंने करीब 3-4 साल बाद 2013में नौकरी की तलाश शुरू की। कभी बड़े सपने रखने वाली लड़की को अब छोटी नौकरी भी अपनी ड्रीम जॉब लगने लगी थी, क्योंकि शाहीन की दवाइयों का खर्च बहुत ज्यादा था और वो एक तरीके से अपने परिवार पर बोझ बनती जा रही थीं। यहां शाहीन को एक एनजीओ में अपने जैसे लोगों के साथ काम करने का मौका मिला और फिर एक बार शाहीन के पंखों ने उड़ान भरी। 2021 में शाहीन ने खुद एक एनजीओ शुरू कर लिया, जो एसिड अटैक सर्वाइवर्स के लिए शेल्टर होम के साथ ही उनके रिहैबिलिटेशन और शिक्षा, रोज़गार के लिए भी काम करता है। शाहीन उन्हें इलाज़ से लेकर मुआवज़ा, कानूनी मदद समेत हर जरूरी मदद मुहैया करवाने का प्रयास करती हैं।
हालांकि उनका ये सफर इतना आसान भी नहीं था क्योंकि शाहीन का खुद का केस अभी तक अदालत में लटका है, उनके चेहरे के साथ ही उनकी एक आंख पूरी तरह खराब हो गई है और समाज का नज़रिया आज भी उनके और उन जैसे अनेक महिलाओं के लिए कुछ खास नहीं बदला है। उनके एनजीओ ने भी तमाम आधिकारिक औपचारिकता के बाद फंडिंग और पहचान को लेकर संघर्ष किया। लेकिन शाहीन ने कभी हार नहीं मानी, वो आगे बढ़ती और लड़ती रहीं। उनकी टीम ने सैकड़ों सर्वाइवर्स को मुआवज़ा, मुफ्त इलाज और साइकोलॉजिकल ट्रीटमेंट उपलब्ध करवाई।
अपनों के छोड़े लोगों के लिए 'अपना घर', हर जरूरी सुविधाओं से है लैस
उनके शेल्टर होम 'अपना घर' में अभी भी दर्जनों महिलाएं रह रही हैं, जो अपने इलाज़ के साथ ही पढ़ाई और रोज़गार के नए स्किल्स भी सीख रही हैं। यहां रहने वाली सर्वाइवर रेशमा बानो कुरैशी ने न्यूयॉर्क फैशन वीक में रैंप वॉक तक किया है। यहां रहने वाली महिलाओं को कंप्यूटर से लेकर कॉर्पोरेट जॉब तक की ट्रेनिंग दी जाती है। 'अपना घर' को खुले अभी महज़ दो साल ही हुए हैं। लेकिन ये 300 से अधिक उजड़ी जिंदगी को फिर से संवारने का जरिया बना है।
इस घर में आपको एक ड्रॉइंग रूम, बढ़िया किचन, कई बेडरूम और सीखने-सिखाने की बढ़िया व्यवस्थित एक्टिविटी रूम देखने को मिलता है, जो किसी भी सर्वाइवर के लिए एक सुकून का आशियाना है। यहां रहने वाली महिलाएं आउटिंग के लिए जाती हैं, जिसमें सेमिनार से लेकर इनके मनोरंजन तक का ध्यान रखा जाता है, जिससे ये अपने दर्द को भूलकर अपनी खुशियों को समेट सकें।
शाहीन सभी सर्वाइवर्स को मैसेज देती हैं कि एसिड अटैक ने भले ही उनका चेहरा, उनकी पहचान उनसे छीन ली हो लेकिन उनका हौसला, उनकी हिम्मत कोई उनसे नहीं छिन सकता। इसलिए जिंदगी में हार कभी नहीं माननी चाहिए, बल्कि उन्हें हराने का संकल्प करना चाहिए जिन्होंने आपके साथ गलत किया है। क्योंकि ये सबसे जघन्य अपराध है, जिसमें न सिर्फ शारीरिक और मानसिक पीड़ा होती है बल्कि समाज का बहिष्कार भी झेलना पड़ता है। लोग सर्वाइवर को ही गलत समझते हैं। इसलिए वो समाज के लोगों से भी अपील करती हैं कि इन सर्वाइवर्स को अलग न समझे, इन्हें आगे बढ़ने का मौका दें।
एसिड बैन और अटैक को लेकर बने कानून, जमीन पर ढीला क्रियान्वयन
गौरतलब है कि साल 2013 में महिलाओं पर बढ़ते एसिड अटैक को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने देश में दुकानों में तेजाब की बिक्री पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने ये भी कहा कि तेज़ाब की बिक्री के वक्त खरीदने वाले को अपनी कोई पहचान पत्र दिखाना होगा। लेकिन आज भी देश में धड़ल्ले से एसिड बिक रहा है। राष्ट्रीय आपराधिक रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार साल 2014 से लेकर 2018 के बीच देश में तेजाब हमलों के 1,483 मामले सामने आए। वहीं 2019 में 150, 2020 में 105 और 2021 में 102 मुकदमे दर्ज हुए। वहीं अगर सज़ा की बात करें, तो साल 2018 में 28, 2019 में 16 और साल 2020 में 18 व्यक्तियों को दोषसिद्ध किया गया। पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में देश के सभी मामलों का लगभग आधा हिस्सा है।
हमारे देश में एसिड अटैक के अपराध के लिए आईपीसी की धारा 326A और 326B के तहत सजा का प्रावधान है। यानी अगर कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी पर तेजाब फेंकता है तो उसे कम से कम 10 साल की सजा और अधिकतम उम्रकैद हो सकती है। इसके साथ ही यह गैरजमानती अपराध की श्रेणी में आता है, यानी इस मामले में आरोपियों को कोर्ट से जमानत नहीं मिलेगी। सुप्रीम कोर्ट एसिड अटैक पर कहता है कि अगर किसी पर तेजाब से हमला किया गया है तो उसे कम से कम 3 लाख रुपये मुआवजा देना होगा। मुआवजे के एक लाख तो 15 दिनों के अंदर ही देना होगा। जबकि, बाकी के दो लाख रुपये दो महीने के अंदर देने होंगे।
हालांकि शाहीन मानती हैं कि ये सभी कानून सिर्फ कागज़ों तक ही सीमित है, जमीन पर इनकी हक़ीकत कुछ और ही है। अदालत में मामले सालों-साल लटके रह जाते हैं, पीड़िता की आधी से ज्यादा जिंदगी कोर्ट कचहरी के चक्कर में गुजर जाती है और अपराधी बेखौफ घूमते रहते हैं। वो इन मामलों में सेंसेटाइजेशन की बात कहती हैं। समाज से लेकर पुलिस, डॉक्टर और ज्यूडिशियरी हर जगह सर्वाइवर्स के लिए सेंसेटाइज होना बहुत जरूरी है, जिससे वो अपना खो चुका आत्मविश्वास वापस हासिल कर सकें, जिंदगी में आगे बढ़ सकें।
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