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एल्गार परिषद मामला: 4 साल बाद कार्यकर्ता-पत्रकार गौतम नवलखा को ज़मानत 

2023 में ज़मानत देने के बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश पर लगी रोक को हटाते हुए सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा, अभी तक आरोप तय नहीं हुए हैं...मुकदमा पूरा होने में कई-कई साल लगेंगे।
Gautam

नई दिल्ली: मानवाधिकार कार्यकर्ता व पत्रकार गौतम नवलखा जिन्हें 2018 भीमा कोरेगांव/एल्गार परिषद मामले में उनकी कथित भूमिका के लिए यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया था उनको आज यानी मंगलवार 14 मई को सुप्रीम कोर्ट द्वारा बॉम्बे हाई कोर्ट की रोक हटाने के बाद जमानत दे दी गई। 

शीर्ष अदालत सत्तर वर्षीय कार्यकर्ता को जमानत देने के बॉम्बे हाईकोर्ट के दिसंबर 2023 के आदेश के खिलाफ राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की अपील पर सुनवाई कर रही थी। नवलखा नवंबर 2022 से नवी मुंबई में नजरबंद हैं। इससे पहले, अप्रैल 2020 में गिरफ्तारी के बाद उन्हें तलोजा जेल में कैद किया गया था।

नवलखा मानवाधिकार कार्यकर्ता और पीपल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (पीयूडीआर) के पूर्व सचिव हैं।

बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि जस्टिस एमएम सुंदरेश और एसवीएन भट्टी की पीठ ने रोक को बढ़ाने से इनकार कर दिया क्योंकि बॉम्बे हाई कोर्ट का आदेश विस्तृत था और सुनवाई पूरी होने में कई साल लग जाएंगे।

शीर्ष अदालत का हवाला देते हुए इस रिपोर्ट में कहा गया, "हम रोक को आगे नहीं बढ़ाना चाहते हैं क्योंकि उच्च न्यायालय के आदेश में जमानत देने की विस्तृत जानकारी दी गई है। मुकदमे को पूरा होने में कई साल लगेंगे। विवादों पर विस्तार से चर्चा किए बिना, हम रोक को आगे नहीं बढ़ाएंगे।" 

पीठ ने यह भी कहा कि लंबे समय से जेल में बंद नवलखा के खिलाफ अभी भी आरोप तय नहीं किये गये हैं।

पीठ ने नवलखा को निर्देश दिया है कि वह अपनी नजरबंदी के दौरान सुरक्षा खर्च के लिए एनआईए को 20 लाख रुपये का भुगतान करें।
साल 2023 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह देखते हुए नवलखा को जमानत दे दी थी कि यह अनुमान लगाने के लिए कोई सामग्री नहीं थी कि उन्होंने गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम या यूएपीए के तहत 'आतंकवादी कार्य' किया था।

नागपुर विश्वविद्यालय की पूर्व प्रोफेसर 62 वर्षीय शोमा सेन जिन्हें इसी तरह के आरोप (कथित माओवादी लिंक) के मामले में गिरफ्तार किया गया था उनको छह साल जेल में बिताने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2024 में जमानत दे दी थी। उन्हें मुकदमे का सामना करना बाकी था।
भीमा कोरेगांव/एल्गार परिषद मामले में जमानत पाने वाले 16 आरोपियों में से नवलखा सातवें हैं। जिन अन्य कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों, वकीलों को जमानत मिली है, उनमें शोमा सेन, सुधा भारद्वाज, आनंद तेलतुंबडे, वर्नोन गोंसाल्वेस, अरुण फ़रेरिया और वरवरा राव (बीमारी को लेकर) शामिल हैं। जेल में बंद और बीमार 84 वर्षीय फादर स्टेन स्वामी की साल 2021 में न्यायिक हिरासत में मृत्यु हो गई।

यह मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे शहर के शनिवारवाड़ा में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन में दिए गए कथित 'भड़काऊ' भाषणों और माओवादी लिंक से जुड़ा है। पुणे पुलिस ने दावा किया था कि भाषणों के कारण अगले दिन शहर के बाहरी इलाके में स्थित कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा भड़क उठी थी। 

पुणे पुलिस ने यह भी दावा किया था कि इस सम्मेलन को माओवादियों का समर्थन प्राप्त था। बाद में मामले की जांच हुई, जिसमें एक दर्जन से अधिक कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों को आरोपी बनाया गया और गिरफ्तार किया गया। इस मामले को 2020 में एनआईए (केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत) को कथित तौर पर महाराष्ट्र सरकार की अनुमति के बिना स्थानांतरित कर दिया गया। उस समय महा विकास अघाड़ी की सरकार थी।

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