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अफ़ग़ानिस्तान: तालिबान के कब्ज़े ने महिलाओं को 20 साल पहले के डरावने अतीत में धकेल दिया है!

भले ही तालिबान इस बार अपने पिछले क्रूर शासन के उलट खुद को अधिक उदार दिखाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन उसकी वापसी से अफ़गान महिलाएं अब भी आशंकित हैं, सबसे ज्यादा असुरक्षित महसूस कर रही हैं।
अफ़ग़ानिस्तान: तालिबान के कब्ज़े ने महिलाओं को 20 साल पहले के डरावने अतीत में धकेल दिया है!
'प्रतीकात्मक फ़ोटो' साभार: सोशल मीडिया

अफगानिस्तान पर तालिबान एक बार फिर कब्जा जमा चुका है। रविवार, 15 अगस्त को जब तालिबान काबुल में दाखिल हुआ तो सोशल मीडिया पर एक तस्वीर तेजी से वायरल हुई। इसमें एक ब्यूटी पार्लर का मालिक महिलाओं के पोस्टर को रंग से छिपाता दिखाई दिया। जाहिर है तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जे के साथ ही देश में महिला अधिकारों को लेकर गंभीर चिंता पैदा हो गई है।

भले ही तालिबान इस बार अपने पिछले क्रूर शासन के उलट खुद को अधिक उदार दिखाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन उसकी वापसी से अफगान महिलाएं अब भी आशंकित हैं, सबसे ज्यादा असुरक्षित महसूस कर रही हैं। महिलाओं पर अत्याचार को लेकर सोशल मीडिया पर लगातार मदद की गुहार लगाई जा रही है। उन्हें बुर्के और घर की चारदीवारी में बांध देने की खबरें हमारे सामने आ रही हैं। समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक देश के अधिकतर हिस्सों में, बहुत सी महिलाएं घर पर ही रह रही हैं। वे एक नई दुनिया में प्रवेश करने से बहुत डरी हुई हैं।

काबुल में एक पश्चिमी महिला लेक्चरर ने कहा कि राजधानी में भय का माहौल है। लेक्चरर के मुताबिक, “उन्होंने घर-घर जाकर लोगों को तलाश करना शुरू कर दिया है। वे कह रहे हैं कि उन्होंने जनता को अकेला छोड़ दिया है लेकिन यह सच नहीं है।”

बीस साल पहले नियम-कानून के नाम पर औरतों के अधिकार कुचल दिए गए थे

आपको बता दें कि इससे पहले तालिबान शासन के दौरान औरतों का पर्दा करना अनिवार्य कर दिया गया था। वो घर के बाहर ऐसे कोई कपड़े नहीं पहन सकती थीं, जिनसे उनके शरीर का कोई अंग दिखे। लड़कियों के स्कूल जाने और औरतें के बाहर जाकर काम करने पर रोक थीं। महिलाएं बिना किसी पुरुष रिश्तेदार के घर से बाहर नहीं जा सकती थीं। औरतों को पब्लिक प्लेस पर बोलने की आज़ादी नहीं थी और न वो किसी पॉलिटिक्स में शामिल हो सकती थीं। कुल मिलाकर नियम-कानून के नाम पर औरतों के अधिकार बर्बरता से कुचल दिए गए थे।

साल 2001 में पेंटागन आंतकी हमले के बाद जब अमेरिका ने अपनी सेनाएं अफगानिस्तान भेजी तब तालिबान का शासन खत्म हुआ। साल 2004 में अफगानिस्तान का संविधान बना, औरतों को कई तरह के अधिकार मिले। कई स्कूलों के दरवाज़ें लड़कियों के लिए खुल गए, औरतों ने दोबारा काम पर जाना शुरू कर दिया। लेकिन अब एक बार फिर अमेरिकी नेतृत्व वाली विदेशी सेना की वापसी के साथ ही तालिबान दोबारा अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज हो गया है और लोगों को बीस साल पुराना डर सताने लगा है।

हालांकि तालिबान ने मंगलवार, 17 अगस्त को पूरे अफगानिस्तान में ‘आम माफी’ की घोषणा की और महिलाओं से उसकी सरकार में शामिल होने का आह्वान किया। इसके साथ ही तालिबान ने लोगों की आशंका दूर करने की कोशिश की। देश के लोगों के लिए कुछ करने और उनकी ज़िंदगी सुधारने की बात कही। लेकिन सोशल मीडिया पर काबुल के एयरपोर्ट पर भागते लोगों का हुजूम, गोलियों की आवाज़ें और विमान पर चढ़ने की कोशिश करते लोगों की वायरल हो रही तस्वीरें काफी डराती हैं।

तालिबान कर रहा छवि बदलने की कोशिश!

तालिबान दावे कर रहा है कि वो बदल चुका है और इस बार वो प्रोग्रेसिव रुख अपनाएगा। मीडिया खबरों के मुताबिक तालिबान ने कहा है कि महिलाएं अपने काम जारी रख सकती हैं। प्रेस कॉन्फ्रेंस में तालिबान की ओर से कहा गया कि वो महिलाओं को शरिया कानून के तहत अधिकार और आजादी देंगे। उन्होंने कहा कि महिलाएं हेल्थ सेक्टर और स्कूलों में काम कर सकेंगी।

मीडिया में महिलाओं के काम करने के सवाल पर तालिबान प्रवक्ता ने कहा कि जब तालिबान सरकार बन जाएगी तब साफ-साफ बताया जाएगा कि शरिया कानून के हिसाब से महिलाओं को क्या-क्या छूट मिलेगी। लेकिन एक बार बुरा दौर देख चुकी महिलाओं को तालिबान के इन वादों और दावों पर भरोसा नहीं है। वो अपने अधिकारों को लेकर चिंता में हैं।

17 अगस्त को महिलाओं ने काबुल में तालिबान के खिलाफ प्रदर्शन भी किया। ये पहली बार था जब अफगानिस्तान की महिलाओं ने तालिबान के खिलाफ प्रोटेस्ट किया। अफगानिस्तान की न्यूज़ एजेंसी Pajhwok Afghan News ने इस प्रदर्शन का वीडियो जारी किया। जिसे डॉयचे विले की पत्रकार शकीला एब्राहिमखिल ने ट्वीट किया। उनके वीडियो को अल जजीरा के अफगानिस्तान करेस्पॉन्डेंट हमीद मोहम्मद शाह ने रीट्वीट किया। मीडिया में जो इसका मोटा-माटी हिंदी मतलब सामने आया वो था- "काबुल में तालिबान के आने के बाद महिलाओं का प्रदर्शन। हमें अधिकार चाहिए, हमें सोशल सिक्योरिटी चाहिए। हमारे पास शिक्षा का, राजनीति में हिस्सेदारी का अधिकार है।

महिलाएं अपनी पहचान छुपाकर अपना दर्द जाहिर कर रही हैं!

अफगानिस्तान की अधिकांश महिलाएं तालिबान के शासन से डरी हुई हैं। सोशल मीडिया ऐसी महिलाओं के अकाउंट्स से भरा पड़ा है। कई महिलाओं ने अपनी पहचान छुपाकर अपना दर्द जाहिर किया है। ऐसे में इस वीडियो का सामने आना ऐसी कई महिलाओं के लिए हिम्मत देने वाला होगा जो खुद को घर में बंद रखने को मजबूर हैं।

खास बात ये है कि इस वीडियो में तालिबानी लड़ाका भी है जो उन महिलाओं को शांत कराने की कोशिश करता दिख रहा है लेकिन उन पर बल का प्रयोग नहीं कर रहा है। हो सकता है कि ये तालिबान की नई रणणीति का नतीजा हो, जिसके तहत वो एक बर्बर संगठन की अपनी छवि को धोने की कोशिश कर रहा है।

शरिया को लेकर तालिबान का इंटरप्रेटेशन मेल सेंट्रिक है!

मालूम हो कि तालिबान महिलाओं को अधिकार देने के लिए जिस शरिया कानून की बात कर रहा है। वो हर मुस्लिम मुल्क ने अपने-अपने तरीके से अपने यहां लागू किया है। उसमें कई तरह की विविधता है। सऊदी अरब में जो शरिया लागू है और ईरान में जो लागू है, दोनों में तरह का अंतर है। शिया का शरिया अलग है, सुन्नी का अलग है, बरेलवी और देवबंदी का अलग है इस तरह से इसके तमाम तरह के इंटरप्रेटेशन्स हैं।

हालांकि ज्यादातर जानकारों का मानना है कि पिछली बार तालिबान ने जो नियम-कानून के नाम पर महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन किया था वो इस्लाम का गलत इंटरप्रेटेशन था, इसे कोई इस्लामिक स्कूल मंज़ूरी नहीं दे सकता। लड़कियों को पढ़ने और काम करने से मना करना सरासर गलत है, इसकी इस्लाम में कोई गुंजाइश नहीं है।

प्रसार भारती की विदेश सेवा में काम कर चुके नदीम अहमद बताते हैं कि शरिया को लेकर तालिबान का जो इंटरप्रेटेशन है वो बहुत ज्यादा पितृसत्तात्मक यानी मेल सेंट्रिक है। इस्लाम औरतों को कई बेसिक अधिकार देता है जैसे राइट टू लाइफ, राइट टू एजुकेशन, प्रॉपर्टी का अधिकार, ‘खुला’ का अधिकार। कुरान में भी ज्यादा इल्म देने की बात कही जाती है जो मर्द और औरत दोनों पर लागू होती है। कोई भी निकाह इस्लाम में बिना औरत की मर्ज़ी से नहीं हो सकता। कुरान में कहा गया है कि जो व्यक्ति लड़का औऱ लड़की में कोई फर्क नहीं करे, बराबर का अधिकार दे, ऐसे ही लोग जन्नत में जाएंगे। तालिबान औरतों के साथ जो भी करता है, उसकी इजाज़त शरिया में नहीं है।

ऐसी बहुत सी मीडिया रिपोर्ट्स आई हैं, जिनमें बताया गया है कि अफगानिस्तान के अलग-अलग इलाकों में कब्जा करने के बाद तालिबान वहां के युवा पुरुषों और महिलाओं के साथ बर्बर व्यवहार कर रहा है। इन सबके बीच अफगानिस्तान की औरतें अपना दर्द बयां कर मदद मांग रही हैं।

अफ़गान औरतें लगा रही हैं दुनिया से मदद की गुहार

फिल्म मेकर सहारा करीमी ने 13 अगस्त को एक ओपन लेटर लिखा, “जब तालिबान सत्ता में था, तब स्कूल जाने वाली लड़कियों की संख्या शून्य थी। तब से, स्कूल में 9 मिलियन (90 लाख) से अधिक अफगान लड़कियां हैं। तालिबान द्वारा जीते गए तीसरे सबसे बड़े शहर हेरात के विश्वविद्यालय में 50% महिलाएं थीं। ये अविश्वसनीय उपलब्धियां हैं, जिन्हें दुनिया नहीं जानती। इन कुछ हफ्तों में तालिबान ने कई स्कूलों को तबाह कर दिया है और 20 लाख लड़कियों को फिर से स्कूल से निकाल दिया है। मैं इस दुनिया को नहीं समझती। मैं इस चुप्पी को नहीं समझती। मैं खड़ी हो जाऊंगी और अपने देश के लिए लड़ूंगी, लेकिन मैं इसे अकेले नहीं कर सकती। मुझे आप जैसे सहयोगी चाहिए। हमारे साथ क्या हो रहा है, इस पर ध्यान देने में इस दुनिया की मदद करें।”

अफगानिस्तान की महिला अधिकार कार्यकर्ता मरियम अताही ने जर्मनी के न्यूज़ पोर्टल डॉयचे विले से बातचीत में कहा, “मुझे डर है कि वो लोग आएंगे और मुझे मार डालेंगे। क्योंकि मैं बीते 20 बरसों से तालिबानी विचारधारा के खिलाफ जाकर महिलाओं के अधिकारों की बात कर रही हूं।"

13 अगस्त को इरान की एक पत्रकार ने एक रोती हुई अफगान लड़की का वीडियो शेयर किया। इस वीडियो में लड़की कहती है, “हमें गिना नहीं जाता, क्योंकि हमने अफगानिस्तान में जन्म लिया है। किसी को हमारी परवाह नहीं है। इतिहास में हम धीरे-धीरे मर जाएंगे।”

20 साल में जो कुछ औरतों ने हासिल किया, कहीं एक झटके में सब खत्म न हो जाए!

गौरतलब है कि बीते 20 सालों में अफगान की औरतों ने कई अहम तरक्की हासिल की है। लड़कियां स्कूल जाने लगीं, औरतों ने दोबारा काम पर जाना शुरू कर दिया। औरतों के अधिकारों के लिए काम करने वाले कई सारे ऑर्गेनाइज़ेशन्स अफगानिस्तान में खुल गए। संसद तक औरतों ने अपनी पहुंच बना ली। एक फीमेल कैंडिडेट मसूदा जलाल प्रेसिडेंट तक का चुनाव लड़ीं, प्रांतों में गवर्नर्स के चुनावों में भी महिलाओं ने हिस्सा लिया ओर इस पद तक पहुंचीं। जज के पद पर भी महिलाएं आसिन हुईं। धीरे-धीरे औरतों ने खुद के हालात को सुधारा और अपने लिए एक मुकम्मुल जगह बनाई। लेकिन अब तालिबान का दोबारा अफगानिस्तान में कब्ज़ा पाना, औरतों के लिए सबसे खतरनाक है। 20 साल में जो कुछ भी अफगान की औरतों ने हासिल किया, उन्हें डर है कि कहीं एक झटके में ये सब खत्म न हो जाए। तालिबान हमेशा से महिलाओं को लेकर काफी सख्त शरिया कानून लागू करने का हिमायती रहा है। इनमें उनके पहनावे से लेकर काम न करने के नियम तक शामिल हैं। इसलिए औरतों को डर है कि कहीं 1996 से 2001 के बीच का समय वापस न आ जाए।

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