यूपी में महिला यौन हमलों के ख़िलाफ़ ऐपवा का अभियान : जगह जगह धरना और आक्रोश मार्च
उत्तर प्रदेश में महिला यौन हिंसा, दलित उत्पीड़न, बलात्कार और तत्पश्चात हत्याओं की बढ़ती घटनाओं के विरोध में अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (ऐपवा) का विभिन्न जिलों में 24 सितंबर से शुरू हुआ साप्ताहिक अभियान 30 सितंबर को समाप्त हुआ। इस अभियान के तहत कहीं आक्रोश मार्च निकला गया तो कहीं हल्ला बोल रैली हुई तो कहीं महिलाएं एक दिवसीय धरने पर बैठीं और मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा गया।
हाथरस से लेकर लखीमपुर की बेटियों को इंसाफ दिलाने की इस लड़ाई को धारदार बनाते हुए साप्ताहिक प्रदर्शन लखीमपुर खीरी, जालौन, लखनऊ, फैजाबद, सीतापुर, देवरिया, गोरखपुर, मऊ, वाराणसी, भदोही, गाजीपुर, मिर्जापुर, बलिया, चंदौली, बस्ती आदि जिलों में सफलतापूर्वक संपन्न हुए।
ऐपवा की प्रदेश अध्यक्ष कृष्णा अधिकारी ने कहा कि हाथरस से लेकर लखीमपुर खीरी, पीलीभीत, बंदायू, मेरठ, मुरादाबाद और औरैया आदि जिलों की विभत्स घटनाएं यह साबित कर रही है कि योगीराज में महिला और दलित उत्पीड़न अपने चरम पर है। जिसकी पुष्टि ख़ुद नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के सरकारी आंकड़े कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि लखीमपुरखीरी से लेकर मुरादाबाद की शर्मनाक घटनाएं बता रही है कि उत्तर प्रदेश महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं है। अपराधियों और बलात्कारियों के मंसूबे बढ़े हुए है उन्हें क़ानून का कोई खौफ नहीं है।
लखीमपुर में पीड़ित परिवार से मिलती ऐपवा की टीम
कृष्णा अधिकारी कहती हैं कि हाल ही में घटित लखीमपुर के निघासन की घटना ने उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश को स्तब्ध कर दिया, जहाँ दो नाबालिग दलित बहनों की बलात्कार के बाद न केवल हत्या कर दी गई बल्कि उन्हें उन्हीं के दुपट्टे से बांधकर पेड़ पर लटका दिया गया।
उनके नेतृत्व में ऐपवा का एक जाँच दल जब पीड़ित परिवार से मिलने उनके गाँव तमोलीन पुरवा पहुँचा तो मृतक युवतियों की माँ ने बताया कि बेटियों के न मिलने पर जब वह निकट के पुलिस थाने गई तो बजाए उसकी बात सुनने के एक महिला पुलिस कर्मी ने उनके साथ अभद्र व्यवहार कर थप्पड़ मारा। पुलिस का ऐसा रवैया बेहद शर्मनाक है। इस मामले में पुलिस द्वारा बार बार बयान बदलना भी उसकी संवेदनहीनता को दर्शाता है।
लखीमपुर खीरी: पीड़ित परिवार के घर पुलिस का पहरा
अभी प्रदेश इस स्तब्धकारी घटना से उभरा भी नहीं था कि लखीमपुर के ही भीरा थाना क्षेत्र से एक और युवती के मौत की खबर आती है, दुष्कर्म में विफल होने के कारण 12 सितंबर को शोहदों के हमले का शिकार बनी और उस हमले के चलते उसकी मृत्यु हो गई। कृष्णा अधिकारी कहती हैं यहाँ भी पुलिस की भूमिका सवालों के घेरे में आई क्योंकि मीडिया में आई खबरों के मुताबिक मृतका के भाई का आरोप था कि शोहदों की शिकायत वाली जो तहरीर उनकी माँ ने पुलिस को दी थी उसे बदल दिया गया और पुलिस ने अपने मुताबिक तहरीर लिखी जो आरोपियों को बचाती है। कृष्णा कहती हैं सबसे पहले तो पुलिस का चेहरा संवेदनशील बनाने की जरूरत है और बेहद जरूरत है मामलों की गंभीरता को देखते हुए ज्यादा से ज्यादा फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाये जाएं।
ऐपवा राज्य सचिव कुसुम वर्मा कहती हैं, महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर हम बेहद नाजुक दौर से गुजर रहे हैं। प्रदेश में सामूहिक बलात्कार और तत्पश्चात हत्याओं की बेताहाशा बढ़ती घटनाएं यह साबित करती हैं कि महिलाएं ही नहीं हमारी नाबालिग बच्चियाँ भी किस कदर असुरक्षित माहौल में जी रही हैं। उन्होंने कहा कि बलात्कार की घटनाओं में शीघ्र न्याय के लिए अब फास्ट ट्रैक अदालतों की संख्या बढ़ाने की जरूरत है अन्यथा मामले सालों लटके रहेंगे जो एक स्वस्थ न्याय प्रणाली पर सवालिया निशान लगाता है।
उन्होंने हाथरस कांड को याद करते हुए कहा कि जिस कांड में इंसाफ के लिए न केवल देश बल्कि विदेशों में भी आवाजें उठी उसमें अभी तक पीड़ित परिवार को न्याय नहीं मिल पाया है तो जरा सोचिये जो मामले दबे रह जाते हैं उनका हश्र क्या होता होगा। उन्होंने प्रदेश सरकार द्वारा निर्भया फंड को भी न्यूनतम खर्च करने पर अफसोस ज़ाहिर किया।
वे कहती हैं स्वयं केंद्र सरकार का महिला एवम् बाल विकास मंत्रालय की रिपोर्ट कहती है कि निर्भया फंड का कम खर्च करने वालों में उत्तर प्रदेश भी शामिल है। वर्ष 2021- 22 में निर्भया फंड के तहत मात्र 62 प्रतिशत ही प्रदेश सरकार ने खर्च किया।
उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार अपने 6 महीने के कार्यकाल के कसीदे गढ़ते हुए, एनसीआरबी के सरकारी आंकड़ों को नकारते हुए यूपी में विकास और कानून व्यवस्था का रिपोर्ट कार्ड जारी कर रहे हैं। साथ ही अपराध पर काबू पाने, महिलाओं पर हिंसा, हत्या, बलात्कार पर रोक लगाने एवं हर महिला के लिए यूपी को सुरक्षित करने के बजाय यह कहकर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं कि यूपी पुलिस अपराधियों को 24 घण्टे में गिफ्तार कर ले रही है। जबकि सच तो यह है कि हाथरस की दलित लड़की को आज तक न्याय नहीं मिला। लखीमपुर खीरी, पीलीभीत, बदायूं, मुरादाबाद, उन्नाव आदि जिलों की शर्मनाक घटनाओं से यह बात सामने या रही है कि उत्तर प्रदेश में अपराधियों और बलात्कारियों के मंसूबे बढ़े हुए हैं, उन्हें कानून का कोई भय नहीं है।
तो वहीं राजधानी लखनऊ में ऐपवा की मुखर आवाज़ कमला गौतम कहतीं हैं जब राजधानी में खुलेआम गैंगरेप की घटनाएँ हो रही हैं, बलात्कारियों के हौंसले बुलंद हैं तो जरा सोचिये दूर दराज के क्षेत्रों और गाँवों में महिला यौन हिंसा की तस्वीर क्या होगी।
नाबालिग बच्चियों, युवतियों से सामूहिक बलात्कार की प्रत्येक दिन सामने आने वाली घटनाएँ, महिला सुरक्षा के लिए खासी चिंता का विषय बनती जा रही हैं, जहाँ एक ओर खबर आती है कि बलात्कारियों से अपनी जान बचाने के लिए एक लड़की नग्न अवस्था में सड़क पर बदहवास भागने को मजबूर हुई (मुरादाबाद) तो दूसरी घटना से भी दिल दहल उठता है जहाँ गैंगरेप की शिकार हुई युवती बेहोशी की हालत में सड़क किनारे मिलती है (प्रतापगढ़)। बरेली में एक गर्भवती महिला ने अपने कोख में पल रहे बच्चे को सामूहिक दुष्कर्म के चलते खो दिया तो वहीं गोरखरपुर में एक युवती को तब गैंग रेप का शिकार बनाया गया जब वह खेत में शौच के लिए गई थी। बीते दिन तीन महीने में गोरखपुर से चार सामूहिक बलात्कार की घटनाओं की खबर बैचेनी पैदा करती है। अमूमन हर जिले की यही स्थिति है।
बेहद खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि जितनी भी महिला यौन हिंसा की घटनाएं हो रही हैं उनमें सबसे अधिक दलित समुदाय की बेटियों के साथ हिंसा घटित होते हम देख रहे हैं। हम देखते हैं कि ऐसे अधिकांश मामलों में पुलिस का रवैया असंवेदनशील रहा और जन दबाव पड़ने पर ही वे कोई उचित कार्रवाई करती है।
अपने जनान्दोलन के जरिये ऐपवा ने, महिला यौन हिंसा की घटनाओं का निवारण फास्ट ट्रैक अदालतों के माध्यम से कराये जाने, बढ़ते मामलों की गंभीरता को देखते हुए अधिक से अधिक फास्ट ट्रैक अदालतों का गठन के साथ ही पुलिस की भूमिका को अधिक संवेदनशील बनाया जाने, घटनाओ की गम्भीरता को देखते हुए भी तुरंत संतोषजनक कदम न उठाने वाले जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों को तत्काल बर्खास्त कर कानूनी कार्यवाही करने, बलात्कारियों और हत्यारों के लिए कड़ी से कड़ी सजा की गारंटी किये जाने के साथ यौन हमलों की शिकार हर बेटी के लिए शीघ्र न्याय की व्यवस्था होने की माँग रखी।
राज्य सचिव कुसुम ने बताया कि अभी तो ऐपवा का आंदोलन जिलेवार था लेकिन महिला सुरक्षा की माँग करते हुए उनका यह आंदोलन निकट भविष्य में राजव्यापी स्वरूप लेगा जिसमें सैकड़ों महिलाएं राजधानी लखनऊ कूच करेंगी।
कैमरे की नज़र में आंदोलन
बनारस
भदोही
लखनऊ
लखीमपुर खीरी
सीतापुर
जालौन
देवरिया
(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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