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‘वीर बाल दिवस’ नामकरण से खुश नहीं अकाल तख्त साहिब व एसजीपीसी

रविवार को केंद्र द्वारा मनाए जा रहे वीर बाल दिवस को एक बार फिर से खारिज करते हुए एसजीपीसी अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी ने सिखों से अपील की कि वे सिख इतिहास को कमजोर करने की सरकार की साजिश से अवगत रहें।
Harjinder Singh Dhami
फ़ोटो साभार: पीटीआई

"गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबज़ादों बाबा ज़ोरावर सिंह और बाबा फ़तेह सिंह और माता गुजरी के असाधारण साहस और बलिदान को याद करते हुए भारत सरकार ने 26 दिसंबर को दिल्ली सहित देश-विदेश में 'वीर बाल दिवस' मनाया। लेकिन अकाल तख्त साहिब और एसजीपीसी ‘वीर बाल दिवस’ नामकरण से खुश नहीं है। दोनों ने विरोध दर्ज कराते हुए कहा कि नामकरण सिख इतिहास, गुरबानी, सिख सिद्धांत और विश्वास पर होना चाहिए।"

उधर, दिल्ली में 'वीर बाल दिवस' कार्यक्रम में बोलते हुए पीएम मोदी ने कहा, "वीर बाल दिवस हमें याद दिलाएगा कि शौर्य की परकाष्ठा के समय कम आयु मायने नहीं रखती। वीर बाल दिवस हमें याद दिलाएगा कि दस गुरुओं का योगदान क्या है? देश के स्वाभिमान के लिए सिख परंपरा का बलिदान क्या है? वीर बलिदान दिवस हमें बताएगा कि भारत क्या है? भारत की पहचान क्या है?" उन्होंने कहा, "औरंगजेब के आतंक के खिलाफ गुरु गोबिंद सिंह जी पहाड़ की तरह खड़े थे, लेकिन ज़ोरावर सिंह साहब और फ़तेह सिंह साहब, जैसे कम उम्र के बालकों से औरंगबेज और उसकी सल्लतन की क्या दुश्मनी हो सकती थी। क्यों दो निर्दोष बालकों को दीवार में जिंदा चुनवाने जैसी दरिंदगी की गई?।" "वो इसलिए क्योंकि औरंगबेज और उसके लोग गुरु गोबिंद सिंह के बच्चों का धर्म तलवार के दम पर बदलना चाहते थे।

पीएम मोदी ने कहा कि जिस राष्ट्र में उसकी नई पीढ़ी जोर जुर्म के आगे घुटने टेक देती है उसका आत्मविश्वास और उसका भविष्य अपने आप मर जाता है।" खास है कि 9 जनवरी 2022 को गुरु गोबिंद सिंह के प्रकाश गुरुपर्व के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छोटे साहिबजादों के शहीदी दिवस को हर साल ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की थी। लेकिन सिखों की सर्वोच्च संस्था अकाल तख्त साहिब और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) केंद्र सरकार के ‘वीर बाल दिवस’ नामकरण से खुश नहीं है। 

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, रविवार को केंद्र द्वारा मनाए जा रहे वीर बाल दिवस को एक बार फिर से खारिज करते हुए एसजीपीसी अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी ने सिखों से अपील की कि वे सिख इतिहास को कमजोर करने की सरकार की साजिश से अवगत रहें। पूर्व में प्रधानमंत्री की घोषणा पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि, ''वे प्रधानमंत्री की भावनाओं की क़द्र करते हैं, लेकिन छोटे साहिबज़ादों की शहादत को बाल दिवस तक सीमित करना सिख भावनाओं और परंपराओं के अनुरूप नहीं है।'' 

उन्होंने एक बयान में कहा, “भारत सरकार मनगढ़ंत सिख इतिहास रचने की राह पर है और यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (DSGMC) के अध्यक्ष इसका समर्थन कर रहे हैं। सिख समुदाय की परंपराओं के खिलाफ जाकर भारत सरकार द्वारा साहिबजादों के शहादत दिवस को 'वीर बाल दिवस' के रूप में मनाना दुनिया के धार्मिक इतिहास की सबसे बड़ी शहादत और बहुमूल्य विरासत को कमजोर करने की शरारतपूर्ण साजिश है।”

ये हैं पांच कारण कि क्यों नामकरण से खुश नहीं हैं अकाल तख्त-एसजीपीसी

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, 5 कारण निम्न है। केंद्र की अधिसूचना के बाद अकाल तख्त ने चर्चा के लिए सिख विद्वानों की एक समिति बनाई। समिति की सिफारिश के बाद, अकाल तख्त साहिब ने 'वीर बाल दिवस' के बजाय ‘साहिबजादे शहादत दिवस’ के रूप में नामकरण की सिफारिश की, जिसका केंद्र ने कोई जवाब नहीं दिया।

एसजीपीसी कार्यकारिणी ने इस वर्ष 11 अक्टूबर को इस संबंध में एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें केंद्र से 'वीर बाल दिवस' से साहिबजादे शहादत दिवस का नाम बदलने का अनुरोध किया गया, लेकिन केंद्र सरकार ने इस प्रस्ताव पर विचार नहीं किया।

अकाल तख्त व एसजीपीसी ने कहा कि छोटे साहिबजादों की शहादत को ‘वीर बाल दिवस’ तक सीमित रखना उनकी शहादत और सिख परंपराओं की भावना के अनुरूप नहीं है। सिख इतिहास, सिद्धान्तों और परंपराओं की दृष्टि से दासवेन पातशाह (दसवें गुरु) के साहिबजादों का अतुलनीय बलिदान महान योद्धाओं के समान है।

सिख इतिहास में साहिबजादों को ‘बाबा’ (पवित्र पुरुषों के लिए सम्मान की अवधि) शब्द से सम्मानित किया जाता है। उन्होंने कहा कि नामकरण सिख इतिहास, गुरबानी, सिख सिद्धांत और विश्वास पर होना चाहिए।

एसजीपीसी का मानना है कि समुदाय की परंपराएं, मान्यताएं और सरोकार बहुत ही अनोखे और अतुलनीय हैं, इसलिए उनसे संबंधित कोई भी निर्णय अकाल तख्त साहिब के आदेश पर लिया जाना चाहिए और केंद्र सरकार को कोई एकतरफा निर्णय नहीं लेना चाहिए। 

मामले में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी के सदस्य गुरबचन सिंह ग्रेवाल ने कहा कि जब 'वीर बाल दिवस' नाम लिया जाता है तो साहिबज़ादों का नाम और उनके बलिदान का ज़िक्र नहीं आता। इस नाम में साहिबज़ादों और शहादत शब्द जोड़ने की मांग की गई थी। सरकार द्वारा ऐसा करने के संकेत भी दिए गए थे, लेकिन ऐसा नहीं किया गया।" ग्रेवाल ने भी दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सदस्य जो इन दिनों भाजपा के साथ हैं, के इस मसले पर स्टैंड नहीं लेने को दु:खद बताया।

'बच्चों का खेल बना दिया'

बीबीसी की एक खबर के अनुसार शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की सदस्य किरणजोत कौर ने शहीद दिवस को दिन का नाम देने की जगह स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल कराने की मांग की थी। उन्होंने कहा, "साहिबज़ादों की शहादत को नज़रअंदाज़ करते हुए ग़ैर सिख सरकार ने छोटे साहिबज़ादों के शहादत दिवस का नाम 'वीर बाल दिवस' रखा है। मोदी सरकार ने इसे बच्चों का खेल बना लिया है।

'फ़ैसला ख़ारिज होना चाहिए'

सिखों के समूह दल खालसा के प्रवक्ता कंवरपाल सिंह ने इस घोषणा पर नाराज़गी जताते हुए कहा था कि सरकार को सिखों के धार्मिक मामलों में दख़ल देने का कोई अधिकार नहीं है। दल खालसा के अनुसार, छोटे साहिबज़ादों के शहादत दिवस को 'वीर बाल दिवस' के रूप में मनाना सही नहीं होगा, इसलिए इस फ़ैसले को ख़ारिज किया जाना चाहिए। वहीं, दमदमी टकसाल प्रधान हरनाम सिंह खालसा ने 26 दिसंबर को साहिबज़ादों के साहस और शौर्य का जश्न मनाने के लिए देश भर में सार्वजनिक अवकाश घोषित कर 'वीर बाल दिवस' मनाने के पीएम मोदी के फ़ैसले की सराहना की थी।

साहेबज़ादों की शहादत

सिख इतिहास में पौष या पूस का महीना (दिसंबर के मध्य से शुरू) बहुत दुखद होता है। दसवें गुरु साहिब श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के परिवार का बिछड़ना, साहिबज़ादों और माता गुजरी जी की शहादत, ये सारी त्रासदी इसी महीने में हुई थी। 17वीं शताब्दी में पंजाब के सरहिंद सूबे में नवाब वज़ीर ख़ान ने माता गुजरी और छोटे साहिबज़ादे बाबा ज़ोरावर सिंह और बाबा फ़तेह सिंह जी को फ़तेहगढ़ साहिब की ठंडी मीनार में कै़द कर दिया था और बाद में छोटे साहिबज़ादे बाबा ज़ोरावर सिंह जी और बाबा फ़तेह सिंह जी को दीवार में ज़िंदा दफ़्न कर दिया था।

साभार: सबरंग 

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