भारत में पत्रकारिता और लोकतंत्र की परवाह करने वाले सभी लोगों को न्यूज़क्लिक पर हो रहे हमले का विरोध करना चाहिए : नंदिता हक्सर
मैं पत्रकारों पर हो रहे हमलों, कार्यकर्ताओं और लेखकों की गिरफ़्तारियों के बारे में पढ़ती रही हूँ और देख रही हूँ कि असहमति के लोकतांत्रिक दायरे किस तरह से सिमटते जा रहे हैं।
पत्रकार गीता सेशु के एक अध्यनन के अनुसार 2010 से 2020 के दौरान 150 से ज्यादा पत्रकारों को गिरफ़्तार किया गया है, हिरासत में लिया गया है और उनसे पूछताछ की गई है। इनमें से 40% मामले अकेले साल 2020 में सामने आए हैं।
स्वतंत्र समाचार वेबसाइट न्यूज़क्लिक के कार्यालयों और पत्रकारों के घरों पर प्रवर्तन निदेशालय द्वारा इस सप्ताह मारा गया छापा अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता, असहमति और लोकतांत्रिक दायरों पर हो रहे हमले की ही एक कड़ी है। लेकिन व्यक्तिगत पत्रकारों पर हो रहे हमलों की तुलना में न्यूज़क्लिक पर पड़े छापों के व्यापक राजनीतिक निहितार्थ हैं।
न्यूज़क्लिक वर्षों तक युवा पीढ़ी के पत्रकारों की प्रतिभा और रचनात्मकता का एकाग्रचित्त परिपोषण करते हुए एक स्वतंत्र समाचार मंच के रूप में उभरा है। मुझे 2009 का वो पहला जर्जर स्टूडियो याद है, जहाँ संस्थान के संस्थापक प्रबीर पुरकायस्थ ने पूर्वोत्तर की किसी घटना के बारे में मेरा साक्षात्कार लिया था। स्टूडियो के नाम पर सिर्फ़ एक कमरा था। वहाँ मौजूद लोगों को यह भी ठीक से पता नहीं था कि उपकरणों को कैसे सँभालते हैं, कैमरों को कैसे पकड़ते हैं, और रौशनी के साथ प्रयोग कैसे करते हैं।
राजनीति का पाठ
टीवी प्रस्तुतकर्ताओं जैसी कोई आभा या ग्लैमर के बिना पुरकायस्थ ज्यादातर साक्षात्कारों को खुद ही लिया करते थे। 2019 में न्यूज़क्लिक की दसवीं वर्षगाँठ पर उन्होंने दर्शकों को बताया कि उन्होंने यह संस्थान इसलिए शुरू किया था क्योंकि राजनीति सीखने के लिए हमारी पीढ़ी की तरह पढ़ने के बजाय युवा पीढ़ी दृश्य मीडिया का सहारा लेती है। न्यूज़क्लिक युवाओं को मीडिया के उस माध्यम से राजनीति सिखाने का एक तरीक़ा था जिसके साथ वो सबसे अधिक सहज महसूस करते हैं।
तब से, न्यूज़क्लिक ने बड़ी संख्या में प्रतिभाओं को अपनी तरफ आकर्षित किया है। यह उनके लिए सामूहिक रूप से विकसित होने का एक स्थान बन गया है। एक बार मेरा साक्षात्कार लेने आई एक युवा पत्रकार ने मुझसे कहा कि वह न्यूज़क्लिक से प्यार करती है, क्योंकि वहाँ देश के सभी हिस्सों और विभिन्न पृष्ठभूमि से आने वाले पत्रकार काम करते हैं।
न्यूज़क्लिक ने लगातार सत्ता को सच का आईना दिखाया है। यह न केवल तात्कालिक राजनीतिक सरोकारों पर बल्कि विज्ञान, प्रौद्योगिकी से लेकर संस्कृति और राजनीति तक कई मुद्दों पर अपनी बात रखता रहा है। इन सब के बीच, नये कृषि क़ानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर बैठे किसानों के प्रदर्शन की इस संस्थान ने असाधारण रिपोर्टिंग की है। किसानों के प्रदर्शन से जुड़ी खबरों को 4 करोड़ से अधिक लोगों ने देखा।
आपातकाल के अंतिम दिनों में मैंने पहली बार प्रबीर पुरकायस्थ को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में देखा था। वह हाल ही में तिहाड़ जेल से रिहा हुए थे और उन्होंने जेल से अपनी पढ़ाई पूरी की थी। बाद में, मैंने उनके साथ एक अदालती मामले पर काम किया, जहाँ हमने दूरसंचार क्षेत्र के निजीकरण को चुनौती दी। मैं दिल्ली साइंस फ़ोरम के उनके काम से परिचित हूँ, जिसका उद्देश्य विज्ञान को लोकप्रिय बनाना है, और वर्तमान में यह काम वो न्यूज़क्लिक के माध्यम से कर रहे हैं।
मैं उनसे सीधे तौर पर बात नहीं कर पाई हूँ इसलिए मैं यह नहीं कह सकती कि वो न्यूज़क्लिक पर वर्तमान हमले के अनुभव की तुलना आपातकाल के अपने अनुभव के साथ कैसे करेंगे। लेकिन आपातकाल के दौरान भले ही पत्रकारों को गिरफ़्तार कर लिया गया था और सेंसरशिप लगा दी गई थी, लेकिन संस्थानों को नष्ट नहीं किया गया था, जैसा कि अब किया जा रहा है।
यह विडंबना है कि इंडियन एक्सप्रेस, जो आपातकाल के दौरान सेंसरशिप के ख़िलाफ़ लड़ाई में सबसे आगे था, ने प्रवर्तन निदेशालय द्वारा उपलब्ध कराई गई चुनिंदा जानकारी के आधार पर उस व्यक्ति के ख़िलाफ़ लेख प्रकाशित किया जिस व्यक्ति पर उससे राजनीतिक और वैचारिक मतभेद रखने वाले भी ऐसा निजी आक्षेप नहीं लगा सकते हैं।
यह अविश्वसनीय लगता है कि इंडियन एक्सप्रेस एक ऐसी संस्था द्वारा लीक की गई सूचना के आधार पर लेख लिखेगा जिसकी अपनी विश्वसनीयता बहुत अधिक नहीं है और उन छापों के विषय में लिखेगा जो स्पष्ट रूप से असमति का गला घोंटने के लिए डाले गए हैं।
असहमति का दमन
न्यूज़क्लिक ने अपनी छवि को ख़राब करने संबंधी ख़बरों के बारे में बयान जारी कर कहा है:
“हमें यह जानकर बेहद निराशा हुई कि कथित तौर पर प्रवर्तन निदेशालय द्वारा प्रदान की गई जानकारी के आधार पर मीडिया में रिपोर्टें प्रकाशित की गईं। भ्रामक तथ्यों को चुनिंदा तौर पर लीक किया जाना कुछ और नहीं बल्कि न्यूज़क्लिक की छवि को धूमिल करने और हमारी पत्रकारिता को बदनाम का कुत्सित प्रयास है। यह क़ानूनी और खोजी प्रक्रिया की मर्यादा का भी उल्लंघन है।
जैसा कि 10 फ़रवरी के हमारे संपादकीय वक्तव्य में उल्लेख किया गया है कि ये छापे उन लोगों के पीछे सरकारी एजेंसियों को लगा देने की प्रवृत्ति का हिस्सा प्रतीत हो रहा है, जो सत्ता प्रतिष्ठान की हाँ में हाँ मिलाने से इंकार करते हैं।”
देशभर के प्रमुख मीडिया हस्तियों ने न्यूज़क्लिक पर छापे की निंदा की है। न्यूज़क्लिक ने मीडिया की स्वतंत्रता को जीवंत बनाए रखने में जो भूमिका निभाई है, उसके प्रति गहरे सम्मान के आधार पर कई लोगों ने एकजुटता के बयान जारी किए हैं।
अपने बयानों में, पत्रकारों ने पत्रकारिता की हालत पर अपनी पीड़ा व्यक्त की है, जैसा कि एक ने कहा कि ट्वीट्स के बारे में या किसानों या दलितों या मुसलमानों द्वारा विरोध करने पर मध्यम वर्ग को होने वाली परेशानियों के बारे में रिपोर्ट लिखना ही पत्रकारिता का काम रह गया है। पी. साईनाथ ने न्यूज़क्लिक के पत्रकारों को "सत्ता का स्नेटोग्राफ़र" होने के इनकार करने के लिए बधाई दी। वरिष्ठ पत्रकार, पामेला फ़िलिपोस ने कहा कि न्यूज़क्लिक “अपने दैनिक प्रयासों के माध्यम से अर्थ और अंतर्दृष्टि” प्रदान करता है।
यह सर्वविदित है कि प्रबीर पुरकायस्थ ने कभी भी अपनी राजनीतिक विचारधारा और एक कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता को छिपाने की कोशिश नहीं की। लेकिन अपनी पीढ़ी के कई कम्युनिस्टों से अलग उन्होंने वास्तव में एक लोकतांत्रिक संस्था का निर्माण किया। फिर भी, न्यूज़क्लिक ने यह भी दिखाया है कि उसकी ताक़त संगठन में निहित है, न कि एक अस्पष्ट "ग़ैर-पार्टी राजनीतिक निरूपण" पर आधारित है।
पुरकायस्थ ने एक मज़बूत संस्थान बनाया है और विचारधारा और राजनीतिक विश्लेषण में निहित अपनी स्पष्ट दृष्टि से इसका नेतृत्व किया है और दिशा प्रदान की है। न्यूज़क्लिक की रिपोर्टिंग राजनीति और राजनीतिक विश्लेषण से मिलकर विकसित हुई है जो इसे उन राजनीतिक आंदोलनों का एक मज़बूत सहयोगी बनाता है जो नव-उदारवादी और फ़ासीवादी विचारधारा और संस्थानों को चुनौती देते हैं। इसीलिए न्यूज़क्लिक की निष्ठा पर हुए हमले का विरोध हम सभी को करना चाहिए जो न केवल पत्रकारिता की बल्कि लोकतंत्र की भी परवाह करते हैं।
अगर मैं अपनी बात कहूँ तो प्रबीर पुरकायस्थ और न्यूज़क्लिक ने मुझे अपनी बात रखने का मौक़ा दिया है, तब जब वे मेरे विचारों से सहमत नहीं थे। न्यूज़क्लिक ने मुझे कॉमरेडों और दोस्तों के बड़े समुदाय का एक छोटा-सा हिस्सा बनने का अवसर दिया जबकि मैं भौतिक रूप से उनसे बहुत दूर हूँ। यह एक ऐसी जगह है जिसकी अहमियत मेरे लिए किसी भी दूसरी चीज़ से ज़्यादा है क्योंकि यह वो जगह है जहाँ से हम एक समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष भारत के सपने को जीवित रखते हुए अपने सपनों के भारत के लिए संघर्ष जारी रख सकते हैं।
यह लेख scroll.in में प्रकाशित नंदिता हक्सर के अंग्रेज़ी लेख का हिंदी अनुवाद है। नंदिता हक्सर एक मानवाधिकार वकील और लेखिका हैं। आपकी हाल ही में द फ़्लेवर्स ऑफ़ नेशनलिज़्म के नाम से किताब भी आई है। लेखिका की सहमति से यह अनुवाद TRICONTINENTAL: Institute for Social Research (Delhi) ने किया है।
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