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अमेरिका ने इराक़ से अपने हज़ारों सैनिकों की वापसी की घोषणा की

इस फ़ैसले को इराक़ीसरकार द्वारा देश से सभी विदेशी सैनिकों की वापसी के बढ़ते दबाव के परिणामस्वरूप देखा जा रहा है।
अमेरिका ने इराक़ से अपने हज़ारों सैनिकों की वापसी की घोषणा की

अमेरिकी सेना ने बुधवार 9 सितंबर को इराक से अपने 2,200 सैनिकों की वापसी की घोषणा की। इससे इस देश में अमेरिकी सैनिकों की कुल संख्या 5,200 से घटकर 3,000 तक हो जाएगी।

यूएस सेंट्रल कमांड के प्रमुख जनरल फ्रैंक मैकेंजी ने प्रेस को जारी एक बयान में कहा कि यह निर्णय “इराक की सेना में प्रगति को देखने और हमारे गठबंधन सहयोगियों की सरकार के साथ परामर्श और समन्वय के बाद लिया गया।"

अमेरिका और इराक सरकार ने इस साल जून महीने में देश में अमेरिकी सैनिकों की संख्या को कम करने के लिए सहमति व्यक्त की थी। अमेरिका ने इराक में कोई स्थायी बेस नहीं होने पर भी सहमति जताई है। हालांकि, अमेरिका ने इराक से जून महीने में अपने सैनिकों की वापसी की तैयारी से काफी पहले इस साल मार्च महीने में सुदूर कैम्पों से इराक में पुनःतैनाती शुरु कर दी है।

इराक से अपने सैनिकों को वापस लेने का ट्रम्प प्रशासन का निर्णय इस तथ्य का परिणाम है कि इस साल जनवरी महीने की शुरुआत में बगदाद हवाई अड्डे के बाहर ड्रोन हमले में ईरानी जनरल कासिम सुलेमानी और इराकी कमांडर अबू महदी अल-मुहांदिस की अमेरिकी हत्या के बाद देश से सभी विदेशी सैनिकों की वापसी के लिए इराक के भीतर दबाव बढ़ रहा है। इराकी संसद ने इस हत्या के बाद एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें सभी विदेशी सैनिकों को देश से वापस जाने के लिए कहा गया।

ईरान ने इराक में जनरल सुलेमानी की हत्या का बदला लेने के लिए कैम्पों पर बड़े पैमाने पर मिसाइल हमले किए थे जहां अमेरिकी सेनाओं को तैनात किया गया था। इसने घोषणा की थी कि यह तब तक चुप नहीं बैठेगा जब तक कि सभी अमेरिकी सैनिकों को मध्य पूर्व क्षेत्र से निकाल नहीं दिया जाता है। अमेरिकी सैनिक उन कैम्पों पर भी हमलों का सामना करते रहे हैं जहां वे इराकी मिलिशिया द्वारा तैनात किए गए थे।

साल 2003 में इराक पर आक्रमण के बाद अमेरिकी सैनिकों को इस देश में पहली बार तैनात किया गया था। हालांकि साल 2011 तक ज़्यादातर सेना धीरे-धीरे वापस ले ली गई थी लेकिन उनमें से कुछ सैनिकों को साल 2014 में इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (आइएसआइएस या दाइश) के ख़िलाफ़ लड़ाई में इराकी सैनिकों की सहायता के नाम पर फिर से तैनात किया गया था।

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