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"लखनऊ में लगवाए गए रिकवरी के होर्डिंग न्यायसम्मत नहीं"

सेवानिवृत्त आईपीएस अफसर एसआर दारापुरी ने कहा कि हम जिला प्रशासन के इस कदम को संयुक्त रूप से अदालत में चुनौती देंगे और इन होर्डिंग को फौरन हटाने और इन्हें लगाने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करेंगे।
Anti-CAA Protests

लखनऊ जिला प्रशासन ने संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ 19 दिसम्बर, 2019 को शहर में प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसक घटनाओं में सार्वजनिक सम्पत्ति को पहुंची क्षति की भरपाई के लिये आरोपियों के फोटो वाली होर्डिंग जगह-जगह लगवा दी है। जानकारों का कहना है कि न्यायसम्मत नहीं है और यह भीड़ को उकसाने वाली कार्रवाई जैसा है।

प्रशासन ने प्रदर्शन के दौरान राजधानी में हुई हिंसा में सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले कथित प्रदर्शनकारियों के नाम और पते भी होर्डिंग के जरिये सार्वजनिक कर दिये हैं। प्रशासन ने उनकी फोटो लगी हुई होर्डिंग्स उन इलाकों में लगवायी हैं, जहां उन पर तोड़फोड़ करने का इल्जाम लगा है।

जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश ने शुक्रवार को बताया, ''राजस्व अदालत के स्तर पर नुकसान की भरपाई के लिए उपद्रवियों के खिलाफ रिकवरी नोटिस जारी किया गया है। इस हिंसक प्रदर्शन में 1.61 करोड़ रुपये कीमत की सम्पत्ति का नुकसान हुआ है।''

उन्होंने बताया, ''हजरतगंज समेत चार थाना क्षेत्रों में डेढ़ करोड़ रुपये से अधिक नुकसान की वसूली के लिए तीन आदेश जारी किए जा चुके हैं। आगे अगर पुलिस साक्ष्य उपलब्ध कराएगी तो बाकी आरोपियों से भी वसूली होगी।''

इन होर्डिंग में सामाजिक कार्यकर्ता सदर जाफर की तस्वीर भी है। सदफ ने प्रशासन के इस कदम को निहायत आपत्तिजनक बताते हुए कहा कि वह इसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करेंगी।

उन्होंने 'भाषा' से बातचीत में कहा कि किसी को उस इल्ज़ाम के लिए इस तरह कैसे जलील किया जा सकता है जो अभी अदालत में साबित नहीं हुआ है। यह हिंदुस्तान है, अफगानिस्तान नहीं।

कानूनी मसलों को इस तरह जनता के सामने नहीं लाया जा सकता। हमें अदालत से जो जमानत मिली है उससे संबंधित आदेश में लिखा है कि हमारे खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं हैं। फिर सरकार आखिर किस हक से हमें रुसवा कर रही है।

सदफ ने कहा ''हमने पलायन नहीं किया है। हमसे जब भी कहा गया तब हमने अदालत और पुलिस के सामने हाजिरी दी है। आखिर हमें इस तरह से निशाना क्यों बनाया जा रहा है? सरकार यह बताए कि क्या उसने हवाई अड्डों पर विजय माल्या और नीरव मोदी के पोस्टर लगवाये थे?’’
उन्होंने तंज करते हुए कहा, ‘‘अगर सरकार ने ऐसा किया होता तो यह दोनों देश का पैसा लेकर दूसरे देश न भागे होते।’’

प्रशासन द्वारा लगाए गए पोस्टरों में सेवानिवृत्त आईपीएस अफसर एसआर दारापुरी की भी तस्वीर है। दारापुरी ने राज्य सरकार के इस कदम को अवैध बताया है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने ऐसे पोस्टर लगवाकर हमारी इज्जत को मिट्टी में मिला दिया है।

उन्होंने कहा कि वह गृह विभाग के सचिव, पुलिस महानिदेशक तथा पुलिस आयुक्त को इस सिलसिले में पत्र लिख कर सूचित कर रहे हैं कि यदि इसकी वजह से उन्हें कोई परेशानी हुई तो इसके लिए प्रशासन स्वयं जिम्मेदार होगा।  

दारापुरी ने कहा कि हम जिला प्रशासन के इस कदम को संयुक्त रूप से अदालत में चुनौती देंगे और इन होर्डिंग को फौरन हटाने और इन्हें लगाने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करेंगे।

जिलाधिकारी प्रकाश ने बताया कि सभी को नोटिस जारी होने की तिथि से 30 दिन की मोहलत दी गयी है। अगर निर्धारित समय तक राशि नहीं जमा की गई तो आरोपियों की संपत्ति कुर्क कर ली जाएगी।

जिलाधिकारी ने कहा कि उपद्रवियों के पोस्टर और होर्डिंग लगाने से दूसरे लोगों को सबक मिलेगा कि वे भविष्य में किसी के बहकावे में आकर हिंसा या तोडफोड़ ना करें। नहीं तो इसी तरह उनके घर के बाहर भी पोस्टर चस्पा कराये जा सकते हैं।

मालूम हो कि सीएए के खिलाफ 19 दिसम्बर, 2019 को लखनऊ में आहूत प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़क उठी थी। इस दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हुए संघर्ष में तोड़फोड़ और आगजनी हुई थी। इस वारदात में एक व्यक्ति की मौत भी हो गयी थी और बड़ी संख्या में लोग जख्मी हुए थे। पुलिस इस उपद्रव के लिए प्रदर्शनकारियों पर आरोप लगाती है, जबकि प्रदर्शनकारियों का कहना है कि उनका प्रदर्शन शांतिपूर्ण था और उनके ख़िलाफ़ साज़िश की गई है।

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

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