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क्या बीजेपी के दो सांसद किसी बीमार कंपनी की रिज़ोल्यूशन प्रोसेस को ‘ख़त्म’ करने की कोशिश कर रहे हैं ?

बीजेपी के दो सांसदों ने अभय लोढ़ा और सुरेंद्र लोढ़ा द्वारा प्रमोटेड एक बीमार कंपनी, टॉपवर्थ स्टील्स एंड पॉवर के इन्सॉल्वेंसी रिज़ॉल्यूशन प्रोसेस के पेशेवर प्रभारी के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के आरोप लगाये हैं। न्यूज़क्लिक के पास जो दस्तावेज़ हैं, वे बताते हैं कि रिज़ॉल्यूशन प्रोफ़ेशनल की तरफ़ से इस कंपनी में लेनदेन की धोखाधड़ी के पाये जाने के बाद दोनों सांसदों ने उसकी बर्ख़ास्तगी की मांग की थी। ख़ास छानबीन करती एक रिपोर्ट।
Topworth Steels and Power
फ़ोटो:साभार: टॉपवर्थ स्टील्स एंड पॉवर की वेबसाइट

बेंगलुरु / गुरुग्राम: झारखंड के कोडरमा से लोकसभा सांसद  अन्नपूर्णा देवी और उत्तर प्रदेश के बांदा से सांसद आरके सिंह पटेल, दोनों ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता हैं। इन नेताओं ने 23 सितंबर को टॉपवर्थ स्टील्स एंड पॉवर प्राइवेट लिमिटेड (TSPPL) के लिए कॉर्पोरेट दिवाला समाधान कार्यवाही का प्रबंधन करने वाले नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) द्वारा नियुक्त संजय गुप्ता के ख़िलाफ़ वित्तीय भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए इनसॉल्वेंसी बोर्ड ऑफ़ इंडिया को पत्र लिखे।

यह कंपनी टॉपवर्थ समूह कंपनियों की आधारभूत कंपनी है, इसपर बैंकों का 4,392 करोड़ रुपये बकाया है और 2019 में शुरू हुई दिवालिया कार्यवाही चल रही है।

मुंबई स्थित मुख्यालय वाली इस टॉपवर्थ कंपनी समूह के प्रोमोटर अभय लोढ़ा और उनके चाचा, सुरेन्द्र लोढ़ा हैं। यह समूह खनन मशीनरी, पाइप, ट्यूब और एल्यूमीनियम फ़्वॉयल सहित, इस्पात और एल्यूमीनियम उत्पादों का विनिर्माण और कारोबार करते हैं।

इस समूह की क़िस्मत हाल के सालों से ठीक नहीं रह गयी है। 14,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा के ऋणों के चलाये रखने के अलावा, इस समूह में कॉर्पोरेट इकाइयों और उनके प्रोमोटरों के ख़िलाफ़ वित्तीय भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी के कई आरोप लगाये गये हैं।

केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने टॉपवर्थ समूह की इन कंपनियों और उनके प्रमोटरों के ख़िलाफ़ छह प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज किये हैं और कई मामले अदालत में लंबित हैं। अन्य आरोपों के बीच समूह की इन कंपनियों पर बैंकों की तरफ़ से जारी साख-पत्रों (Letters of credit) के इस्तेमाल को लेकर धोखाधड़ी वाली कार्य-प्रणाली का आरोप लगाया गया है।

टॉपवर्थ स्टील्स एंड पॉवर के चेयरमैन, अभय लोढ़ा को दिसंबर 2018 में मुंबई में पुलिस ने ऐसे चेक जारी करने के आरोप में गिरफ़्तार किया था, जो बाउंस कर गये थे। लेकिन, उसी दिन उन्हें ज़मानत पर रिहा भी कर दिया गया था। हालांकि, बैंक ऋण चुकाने में धोखाधड़ी और जानबूझकर डिफ़ॉल्ट होने के आरोपी रहे कुछ अन्य व्यवसायिक दिग्गजों के उलट अभय लोढ़ा और सुरेंद्र लोढ़ा क़ानून से काफ़ी हद तक अछूते रहे हैं।

जुलाई 2012 में नागपुर में बीजेपी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष,नितिन गडकरी के बेटे की शादी के रिसेप्शन में ये दोनों सैकड़ों मेहमानों में से दो मेहमान थे। गडकरी इस समय नई दिल्ली की नरेंद्र मोदी के अगुवाई वाली भाजपा सरकार में केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग के साथ-साथ सूक्ष्म,लघु एवं मध्यम उपक्रम मंत्री हैं।

टॉपवर्थ समूह की कई कंपनियां पिछले चार सालों से अपना क़र्ज़ नहीं चुका पा रही हैं। इस समूह की नौ कंपनियां अपने कर्ज़दारों की तरफ़ से क़ायम किये गये मुकदमों का सामना कर रहे हैं। इन मामलों को एनसीएलटी ने मंज़ूर कर लिये हैं और इस समूह की सात कंपनियों में दिवाला समाधान की कार्यवाही चल रही है।

न्यूज़क्लिक के हाथ लगे टीएसपीपीएल की रिज़ॉल्यूशन प्रक्रिया से जुड़े दस्तावेज़ों के मुताबिक़,कंपनी के लिए काम कर रहे रिज़ॉल्यूशन प्रोफ़ेशनल (RP),संजय गुप्ता की तरफ़ से की गयी एक वित्तीय समीक्षा में पाया गया कि टीएसपीपीएल ने "सम्बन्धित पक्षों और सम्बन्धित कंपनियों को फ़ंड डायवर्ट किया गया है।" इसके लिए बैंकों को एनसीएलटी में जाने से पहले एक अंतरिम रिज़ॉल्यूशन प्रोफ़ेशनल (IRP) नियुक्त करना होगा। क़र्ज़ लेने वाली कॉरपोरेट इकाइयों के वित्तीय लेनदारों से बनी समिति यानी कि लेनदारों की समिति (COC) की दूसरी बैठक तक एक फ़ैसला लिया जाना है कि क्या आईआरपी को ही आरपी के तौर पर जारी रखना है या फिर उसकी जगह एक नया आरपी नियुक्त किया जाना है। यह इतना अहम क्यों है,यह बात आगे साफ़ हो जायेगी।

हमारे हाथ लगे दस्तावेज़ों से पता चलता है कि आईआरपी,जिसने दुर्ग, छत्तीसगढ़ स्थित टीएसपीपीएल के स्टील प्लांट के संचालन का काम संभाला था, उसने सुनिश्चित किया कि प्लांट का संचालन जारी रहे और मज़दूरों के वेतन और वैधानिक बक़ाया का भुगतान किया जाय, दोनों ही लोढ़ा “आईआरपी की जानकारी या सहमति के बिना कंपनी के रोज़-ब-रोज़ के मामले में सक्रिय रहे” और ...”प्लांट को रोकने के लिए ... (और) परिसंपत्ति (कंपनी का मूल्य) को अधिकतम करने को लेकर आईआरपी को प्रतिबंधित करने की ख़ातिर एक अभियान चलाया जाता रहा है”।

सामने आता एक स्कैंडल 

टीएसपीपीएल के ऑडिट किये गये वित्तीय विवरणों से पता चलता है कि इस कंपनी ने अपने "सम्बद्ध पक्षों और समब्द्ध कंपनियों को फ़ंड डाइवर्ट किया है।" 2019-20 में इस कंपनी की बिक्री की 98% रक़म सिर्फ़ दो कंपनियों की थी और इसकी 90% से ज़्यादा की ख़रीद भी उन्हीं दो कंपनियों में थी, जिनमें से ज़्यादातर इकलौते इकाई,यानी स्पार्टाकस इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड (SIPL) की थी,जो "टीएसपीपीएल की ओर से तमाम ख़र्च और भुगतान करती है।"

इस ऑडिट रिपोर्ट में आगे कहा गया है,"इस व्यवस्था के चलते संपूर्ण टीएसपीपीएल वर्ष 2019-20 में 100% बिना किसी बैंकिंग परिचालन के साथ चल रही थी।”

इसमें इस बात का ज़िक़्र किया गया है कि एसआईपीएल, टॉपवर्थ समूह के साथ जुड़ी हुई है, क्योंकि इसके निदेशकों में से एक निदेशक, इस समूह के अध्यक्ष-अभय लोढ़ा के कार्यकारी सहायक हैं। स्पार्टाकस इंडस्ट्रीज़ के पास अपना कोई कर्मचारी नहीं था और इसका प्रबंधन टीएसपीपीएल के कर्मचारी कर रहे थे।

हालांकि 2019-20 में कंपनी की कुल रिकॉर्ड बिक्री 379.63 करोड़ रुपये की रही, जबकि इसके बैंक खाते 1 करोड़ से कम की प्राप्ति दिखाते हैं। ग़ौरतलब है कि ये बिक्री तब की गयी थी, जब कंपनी रिज़ॉल्यूशन की कार्यवाही से गुज़र रही थी। बिक्री के ज़रिये प्राप्त हुई रक़म टीएसपीपीएल के लेनदारों को देय होना था, लेकिन उन्हें कंपनी के बैंक खाते में दर्शाया गया था

रिज़ॉल्यूशन प्रोफ़ेशनल बदल दिये गये

गुप्ता की अगुवाई वाली एक फ़र्म,प्राइमस रिज़ॉल्यूशन को जुलाई 2020 में कंपनी के लिए आरपी नियुक्त किया गया था, जिसकी जगह कॉस्ट एकाउंटेंट,दुष्यंत सी.दवे (जो नई दिल्ली स्थित सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठ वक़ील,दुष्यंत दवे से अलग शख़्स हैं) के नेतृत्व वाली मुंबई स्थित एक फ़र्म, आईआरपी डिकोड रिज़ॉल्वेंसी (डीआर) को आईआरपी नियुक्त किया गया था, और यह नियुक्ति एनसीएलटी की तरफ़ से की गयी थी।

फ़रवरी 2020 में डिकोड रिज़ॉल्वेंसी को टीएसपीपीएल के लिए आईआरपी के तौर पर नियुक्त किया गया था। नाम न छापे जाने की शर्त पर इस लेख के लेखकों से बात करते हुए एक सूत्र ने दावा किया,“उस आईआरपी ने तुरंत बड़े पैमाने पर हुए उस घोटाले को पकड़ लिया,जिसमें एक साल में तक़रीबन 400 करोड़ रुपये के पूरा के पूरे टर्नऑवर को बैंकों को बताये बिना ही तीसरी पार्टी के ज़रिये डायवर्ट कर दिया गया था। यह रक़म सही मायने में ऋणदाता बैंकों को मिलनी चाहिए थी।”

सुरेंद्र लोढ़ा ने एनसीएलटी के सामने एक याचिका दायर की,जिसमें एक अन्य आईआरपी, क्षितिज छावछरिया को दवे की जगह नियुक्त किये जाने की मांग की गयी थी। छावछारिया एक अन्य टॉपवर्थ समूह कंपनी, क्रेस्ट स्टील एंड पॉवर की रिज़ॉल्यूशन प्रक्रिया का प्रबंधन करने वाले आरपी हैं। लेकिन,उस याचिका को एनसीएलटी ने खारिज कर दिया था।

टीएसपीपीएल की दिवालिया प्रक्रिया 29 जनवरी, 2020 को शुरू हुई थी, लेकिन दवे की अगुवाई वाली कंपनी, डीआर को 28 फ़रवरी को आईआरपी के तौर पर की जाने वाली इसकी नियुक्ति को लेकर सूचित किया गया। दवे ने इंस्टीट्यूट ऑफ़ कॉस्ट अकाउंटेंट्स ऑफ़ इंडिया के इंसॉल्वेंसी प्रोफ़ेशनल्स एजेंसी (आईपीए) को उसी दिन इस नियुक्ति के मुख़्तारनामे (AFA) के लिए दरख़्वास्त दिया और अगले ही दिन टीएसपीपीएल के आईआरपी के तौर पर उनकी नियुक्ति को लेकर एक सार्वजनिक ऐलान कर दिया गया।

लेकिन, यह एएफ़ए 21 दिन बाद ही दवे को 20 मार्च को जारी किया जा सका था। तथ्य तो यही है कि वैधानिक दिवाला और दिवालियापन संहिता के मुताबिक़ उन्होंने पहले जो सार्वजनिक घोषणा की थी, वह कथित तौर पर आईआरपी की आचार संहिता का उल्लंघन थी।

संजय गुप्ता ने जुलाई में दुष्यंत सी. दवे को बदल दिया और उसी महीने दवे को इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी बोर्ड ऑफ़ इंडिया (IBBI) की अनुशासनात्मक समिति की तरफ़ से कारण बताओ नोटिस दिया गया। 29 अक्टूबर को आईबीबीआई की आजीवन सदस्य,मुकुलिता विजयवर्गीय ने दवे को चेतावनी दी कि भविष्य में वह एएफ़ए प्राप्त किये बिना किसी भी नये असाइनमेंट को पहले ही स्वीकार न करें।

सत्तारूढ़ राजनीतिक पार्टी का प्रवेश

गुप्ता ने जब टीएसपीपीएल के सीओसी द्वारा देव को आरपी के तौर पर जब बदल दिया गया, इसके बाद 23 सितंबर को गुप्ता के ख़िलाफ़ इन आरोपों को लेकर आईबीबीआई और दिवालिया कंपनी के लेनदारों में से एक,पंजाब नेशनल बैंक (PNB) को भाजपा के दो लोकसभा सांसदों ने पत्र लिखे थे। एक चिट्ठी अन्नपूर्णा देवी यादव की थी और दूसरी चिट्ठी आर के सिंह पटेल की थी।

दिलचस्प बात यह है कि दोनों सांसद “दूसरी पार्टियों से बीजेपी में आये हुए” नेता हैं। सिंह पटेल पहले समाजवादी पार्टी से उत्तर प्रदेश की मानिकपुर विधानसभा से विधायक (MLA) थे। अन्नपूर्णा देवी ने भी अपनी राजनीतिक निष्ठा बदल दी है। वह पहले कोडरमा से राष्ट्रीय जनता दल की विधायक थीं।

दोनों नेताओं ने आरोप लगाया था कि गुप्ता ने कंपनियों को इस बात के लिए अनुबंधित किया था कि वह ‘तक़रीबन’ कच्चे माल के विक्रेताओं और तैयार माल के खरीदारों की तरह काम करेंगे, और उन्होंने यह आरोप भी लगाया था कि टीएसएसपीएल को बाज़ार प्रचलित मूल्य के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा मूल्य पर कच्चे माल ख़रीदने के लिए मजबूर किया जा रहा है और इन्हें कृत्रिम रूप से गिरे हुए भाव पर बेचा जाता है, जिससे इस फ़र्म को नुकसान होता है। कथित तौर पर एक व्हिसल-ब्लोअर की तरफ़ से दी गयी रिपोर्ट के आधार पर उन्होंने इस बात का दावा किया कि गुप्ता अनुबंधित कंपनियों को पैसे दे रहे थे।

इंडो-एशियन न्यूज़ सर्विस (IANS) में छपी आनंद सिंह की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, बीजेपी के इन दो सांसदों ने व्हिसल-ब्लोअर के हवाले से कहा कि गुप्ता ने आरपी के तौर पर चुने जाने के लिए कम असाइनमेंट फ़ीस ली थी और “नियुक्त होने के बाद, ऑडिटर्स को बदलना और अपने वफ़ादारों को कंपनी के सलाहकार के रूप में नियुक्त करना शुरू कर दिया था, और पेश होने और ड्राफ़्ट बनाने वाले किसी अच्छे वक़ील की तरह फ़ीस दिये जाने के अलावे अपने कर्मचारी को 3 लाख रुपये प्रति माह के कानूनी सलाहकार के रूप में नियुक्त करना भी शुरू कर दिया था।"

उदाहरणों के तौर पर लक्ष्मी स्टील इंडस्ट्रीज, भिलाई से लौह अयस्क के छर्रों की ख़रीद और कृत्रिम रूप से उच्च क़ीमतों पर रायपुर स्थित अनिमेश इस्पात प्राइवेट लिमिटेड से दक्षिण अफ़्रीका से आयातित कोयले का हवाला दिया गया था।

हमने टीएसपीपीएल के आरपी, संजय गुप्ता को 30 नवंबर को ई-मेल भेजा था,जिसमें उनके ख़िलाफ़ लगाये गये आरोपों पर उनकी प्रतिक्रिया मांगी थी, लेकिन इस लेख के छपने के समय तक हमें कोई जवाब नहीं मिला है।

गुप्ता को क्लीन चिट

हालांकि टीएसपीपीएल के सीओसी के सदस्यों ने इस बात का दावा किया कि गुप्ता ने क़ायदे से बाहर या ग़ैर-क़ानूनी कुछ भी नहीं किया है। नाम नहीं छापे जाने की शर्त पर इस लेख के लेखकों को एक सूत्र ने बताया कि सीओसी के सदस्यों ने इसके उलट दुर्ग में कंपनी के प्लांट को चलाने में अपने प्रदर्शन को लेकर अपनी संतुष्टि जतायी है।

गुप्ता ने कथित तौर पर कहा कि हालांकि कुछ "बदमाश ..." इस संचालन में बाधा पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन,"वह" लगातार "यह सुनिश्चित करने की दिशा में काम करते रहे हैं कि संचालन" सुचारू तौर पर चलता रहे, प्लांट की क्षमता के इस्तेमला में ‘बढ़ात्तरी’ हो, लागतों को ‘बचाया जाय’ और यह सुनिश्चित किया जाय कि जिन 1,000 कर्मचारी को छह महीने से वेतन का भुगतान नहीं किया गया है, उनकी बकाया राशि दी जा सके।

हालांकि, सीओसी के सदस्यों ने भाजपा के इन दो सांसदों की तरफ़ से भेजे गये उन पत्रों का कोई ज़िक़्र तक नहीं किया था, बैठक के सीओसी सदस्यों की बैठक की रिपोर्ट में कहा गया कि गुप्ता की प्रतिष्ठा को धुमिल करने के लिए "ग़लत-सलत आरोप" लगाने की कोशिश की जा रही है,जबकि कंपनी को चालू रखने, श्रमिकों को पारिश्रमिक और जनता के पैसे को बचाने की ख़ातिर इस आरपी की जमकर तारीफ़ की गयी है। इन रिपोर्टों में इस बात का ज़िक़्र किया गया है कि सीओसी ने इस बात को लेकर "संकल्प” ज़ाहिर किया है कि ... सीओसी इस आरपी और उनकी टीम के साथ एकजुट है।”

प्रसंगवश इस बात का यहां उल्लेख करना ज़रूरी है कि एक अलग सिलसिले में भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के एक प्रतिनिधि ने गुप्ता के उस तरीक़े के लिए तारीफ़ की थी,जिसमें उन्होंने टॉपवर्थ समूह के किसी दूसरी कंपनी, यानी कि टॉपवर्थ पाइप्स एंड ट्यूब्स प्राइवेट लिमिटेड। (TPTPL) के विघटन को कामयाबी के साथ "संभाला" था। गुप्ता ने टीपीटीपीएल के आरपी के तौर पर काम किया था और इसके बाद इस दिवालिया फ़र्म के लिए जब कोई बोली लगाने वाला तक नहीं था, तब इसे समेटने के लिए गुप्ता को ख़ास तौर पर नियुक्त किया गया था।

जिस स्रोत का ऊपर ज़िक़्र किया गया है, उसने न्यूज़क्लिक को बताया,“ यह चिंता की बात है कि सत्ता पक्ष से जुड़े जिन दो सांसद ने कंपनी के प्रमोटरों पर धोखाधड़ी के जो आरोप लगाये हैं,उन आरोपों को उजागर करने के बजाय, वे आरपी को हटाने या मानको के अनुरूप बताने की कोशिश करते हुए उनका मौन समर्थन कर रहे हैं।”

टॉपवर्थ की तरफ़ से बीजेपी को मिले दान

इस सूत्र ने आरोप लगाते हुए बताया,"राजनेताओं,कुछ बैंकरों और इन बीमार कंपनियों के प्रमोटरों के बीच एक गहरी मिलीभगत है।"

राजनीतिक सुधारों की वकालत करने वाले एक नागरिक समाज संगठन, एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफ़ॉर्म्स की तरफ़ से जुटायी गयी जानकारी के मुताबिक़, पिछले एक दशक में टॉपवर्थ समूह की कंपनियों ने भाजपा को 6.3 करोड़ रुपये का दान दिया है। यह जानकारी भारत निर्वाचन आयोग के रिकॉर्ड पर आधारित है।

वित्तीय वर्ष 2009-10 और 2014-15 के बीच टॉपवर्थ समूह की निम्नलिखित पांच कंपनियों ने भाजपा को जो दान दिये थे, उसके विवरण हैं:

  1. टीपीटीपीएल  (2014-15 में 1 करोड़ रुपये);
  2. टॉपवर्थ ऊर्जा एंड मेटल्स प्राइवेट लिमिटेड (2014-15 में 1 करोड़ रुपये);
  3. टीएसपीपीएल (2014-15 में 1 करोड़ रुपये और 2009-10 में 15 लाख रुपये);
  4. क्रेस्ट स्टील एंड पावर प्राइवेट लिमिटेड (2014-15 में 1 करोड़ रुपये; 2013-14 में 1 करोड़ रुपये और 2009-10 में 15 लाख रुपये); और
  5. अक्षत मर्केंटाइल प्राइवेट लिमिटेड (2014-15 में 1 करोड़ रुपये)।

इस बात पर ग़ौर किया जाना चाहिए कि जब इनमें से कुछ कंपनियां "बीमार" या "दिवालिया" बतायी गयी थीं और कामगारों के वेतन और साथ ही सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बकाये का भुगतान करने नहीं कर पायी थी,इसके बावजूद इन कंपनियों ने सत्तारूढ़ राजनीतिक दल की तिज़ोरी में अंशदान कैसे दिये।

सवालों के घेरे में बीजेपी नेताओं की भूमिका

हालांकि, टीएसपीपीएल का छत्तीसगढ़ में अपना स्टील प्लांट है, लेकिन वहीं टॉपवर्थ समूह की अन्य कंपनियों का महाराष्ट्र और गुजरात में परिचालन होता है। हालांकि, वे दो सांसद, जिन्होंने आईबीबीआई और पीएनबी को चिट्ठियां लिखी थीं, दोनों के दोनों इन तीन राज्यों में से किसी भी राज्य से नहीं हैं।

हमने दोनों सांसदों को ईमेल के ज़रिये प्रश्नावली भेजी और 30 नवंबर से 7 दिसंबर के बीच हमने उन्हें कई फ़ोन कॉल किये, जिनमें हमने उनसे एक दिवालिया कंपनी, टीएसपीपीएल से जुड़े मामले में उनकी रुचि बताने के सिलसिले में सवाल किये थे।

अन्नपूर्णा देवी ने हमारे कॉल का दो बार जवाब दिया और कहा कि वह हमें बाद में कॉल करेंगी। लेकिन, उन्होंने ऐसा नहीं किया। तीसरी बार, ख़ुद को उनका सहयोगी बताने वाले एक शख़्स ने हम में से एक से बात की और हमें उस प्रश्नावली को भेजने के लिए कहा, जिसे हमने व्हाट्सएप से पहले ही ईमेल कर दिया था, लेकिन उस प्रश्नावली को हमने फिर भेज दिया। लेकिन, अभी तक कोई जवाब नहीं मिल पाया है।

हम फ़ोन के ज़रिये आरके सिंह पटेल तक नहीं पहुंच सके। उन्होंने हमारे ईमेल का भी जवाब नहीं दिया।

इसके बाद, हमने 30 नवंबर को अभय लोढ़ा, सुरेंद्र लोढ़ा, दिनेश कुमार खारा, एसबीआई के अध्यक्ष (जो कि टीएसपीपीएल और टॉपवर्थ समूह की अन्य कंपनियों के ऋणदाताओं के संघ का नेतृत्व करता है) के साथ-साथ बैंक के मीडिया संपर्क पर इस प्रश्नावली को ईमेल कर दिया। इस लेख के छपने तक, ऊपर जिन लोगों का ज़िक़्र किया गया है,उनमें से किसी की तरफ़ से कोई जवाब नहीं मिला था। अगर उनमें से किसी का जवाब आता है, तो इस लेख को अपडेट कर दिया जायेगा।

टॉपवर्थ ग्रुप के ख़िलाफ़ और भी इल्ज़ाम

टॉपवर्थ समूह में वे 14 कंपनियां शामिल हैं, जो छत्तीसगढ़ और गुजरात के अलावा महाराष्ट्र के मुंबई और नागपुर में पंजीकृत हैं। इसका कॉर्पोरेट मुख्यालय मुंबई में है। अभय लोढ़ा मुंबई में रहते हैं और सुरेंद्र लोढ़ा नागपुर से हैं।

सीबीआई ने जुलाई और नवंबर 2018 के बीच बैंक ऑफ़ बड़ौदा (BoB), एसबीआई, और यूको बैंक की शाखाओं की शिकायतों के आधार पर टॉपवर्थ समूह के कई कंपनियों और अधिकारियों के ख़िलाफ़ छह एफ़आईआर दर्ज किये। न्यूज़क्लिक के पास मौजूद इस एफ़आईआर में साख-पत्र (LC) की धोखाधड़ी को लेकर विस्तार के साथ आरोप लगाये गये हैं। उनमें आरोप लगाये गये हैं कि इन कंपनियों ने कुछ बैंक अधिकारियों की मिलीभगत से इन्हें अंजाम दिया और कच्चे माल के लिए आपूर्तिकर्ताओं को भुगतान करने के लिए ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से एलसी हासिल की।

निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट के तहत एसबीआई की तरफ़ से टॉपवर्थ समूह की कंपनियों के ख़िलाफ़ विभिन्न अदालतों में बाउंस चेक के दस मामले भी दायर किये गये हैं। जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि ऋण चुकाने को लेकर दिये गये 10 करोड़ रुपये के चेक के बाउंस होने के सिलसिले में मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत ने एक शिकायत के आधार पर उनके ख़िलाफ़ ग़ैर-जमानती वारंट जारी करने के बाद अभय लोढ़ा को मुंबई में दिसंबर 2018 में गिरफ़्तार कर लिया गया था।

बीओबी ने 31 मई, 2019 को मीडिया में सार्वजनिक नोटिस जारी किये,जिनमें अभय लोढ़ा और सुरेंद्र लोढ़ा सहित दो टॉपवर्थ समूह कंपनियों के निदेशकों को विलफुल डिफॉल्टर घोषित कर दिया।

अब जो सवाल उठता है,वह यह है कि देश का सबसे बड़ा बैंक,एसबीआई,जो कि टॉपवर्थ समूह का सबसे बड़ा लेनदार भी है, अभी तक उसने इसे विलफुल डिफ़ॉल्टर घोषित क्यों नहीं कर सका है। कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के कंपनी रजिस्ट्रार पर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध आंकड़े बताते हैं कि टॉपवर्थ समूह के 14,300 करोड़ रुपये से ज़्यादा के उधार में से एसबीआई ने इसे 8,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा का उधार दिया है।

इससे एक और सवाल पैदा होता है कि क्या भारत के सत्तारूढ़ दल के दो सांसदों की गतिविधियां टॉपवर्थ समूह और उसके प्रमोटरों-अभय लोढ़ा और सुरेन्द्र लोढ़ा का समर्थन कर रही हैं ?

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। इस लेख के लिए शोध सहायता, सरोदिप्तो सान्याल की तरफ़ से मुहैया करायी गयी है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

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