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असम: क्या BJP और AIUDF विभाजनकारी राजनीति को बढ़ावा देने के लिए 'सांठगांठ' कर रहे हैं?

जैसे-जैसे परिसीमन के ख़िलाफ़ विपक्षी दलों का विरोध जोर पकड़ रहा है, असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा और बदरुद्दीन अजमल ने एक बार फिर राजनीतिक ध्रुवीकरण करने की कोशिशें शुरू कर दी हैं।
Hemant
असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा और बदरुद्दीन अजमल। फ़ोटो: PTI 

परिसीमन का मसौदा, विपक्ष के 'गोगोइज़' को लेकर राजनीति और तीखे, विभाजनकारी बयानों ने असम के राजनीतिक आकाश को धुंधला करना शुरू कर दिया है। इस तरह का राजनीतिक माहौल, 2024 के लोकसभा चुनावों के करीब आने के कारण होने वाले सामाजिक ध्रुवीकरण की तरफ इशारा करता है।

इस बार विभाजनकारी तुरुप का पत्ता असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने खेला है। लेकिन, ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) प्रमुख और लोकसभा सांसद बदरुद्दीन अजमल भी इसमें पीछे नहीं हैं, और वे भी आग में घी डालने का काम कर रहे हैं। असम में विपक्ष और नागरिक समाज ने दोनों पर प्रतिक्रिया जताते हुए आरोप लगाया है कि वे ध्रुवीकरण की राजनीतिक चाल में शामिल हैं।

कालक्रम या क्रोनोलोजी 

असम में विधानसभा और संसदीय सीटों के परिसीमन का मसौदा भारत के चुनाव आयोग (ECI) ने 20 जून को प्रकाशित किया था। इससे, राज्य के विभिन्न संगठनों, राजनीतिक दलों और नागरिकों के बीच व्यापक असंतोष पैदा हो गया है। असम की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार को विपक्ष के एकजुट विरोध का सामना करना पड़ा।

इस महीने की शुरुआत में शिवसागर जिले के अमगुरी में मसौदे के खिलाफ हुई एक विरोध बैठक में, कांग्रेस कलियाबोर लोकसभा सदस्य गौरव गोगोई, शिवसागर के स्वतंत्र विधायक अखिल गोगोई और एजेपी अध्यक्ष लुरिनज्योति गोगोई एक-दूसरे के हाथ में हाथ डाले नजर आए, जिसके बाद राज्य के कुछ भाजपा नेताओं ने तुच्छ टिप्पणियां कीं। इनमें मंत्री रंजीत कुमार दास और पीयूष हजारिका भी शामिल हैं।

विरोध सभा, जिसमें सीपीआई और सीपीआई (एम) सहित 12 विपक्षी दल शामिल थे, ने भाजपा को परेशान कर दिया, खासकर ऊपरी असम को लेकर भाजपा अधिक परेशान है।

सरमा सहित कई भाजपा नेताओं ने लोगों को यह समझाने के लिए प्रतिकूल टिप्पणियां कीं कि परिसीमन के खिलाफ एकजुट विपक्ष का विरोध असम में पार्टी की स्थिति को प्रभावित नहीं करेगा।

दूसरी ओर, भाजपा अपने नुकसान को कम करने के लिए जो उपाय कर रही है उसने उजागर कर दिया है कि वह अहोम वोटों को नहीं खोना चाहती है। ऊपरी असम की राजनीति में अहोम समुदाय एक प्रमुख ताकत है, जो अमगुरी और लाहोवाल विधानसभा क्षेत्रों के गायब होने और शिवसागर निर्वाचन क्षेत्र के पुनर्निर्धारण से नाराज है।

यहीं से अजमल पिक्चर में आते हैं। भासनिर चार में जनता को संबोधित करते हुए अजमल ने यूसीसी (समान नागरिक संहिता) का विरोध करते हुए कहा कि अगर यह एक समान है, तो सब कुछ एक समान होना चाहिए।

अजमल ने धुबरी में अपने संबोधन में कहा, "जो मांस हम मुसलमान खाते हैं, उसे सीएम और पीएम समेत सभी को खाना होगा। क्या ऐसा होगा?"  उन्होंने यूसीसी के प्रति अपने विरोध को ऐसी तुच्छ टिप्पणियों के साथ आगे बढ़ाया, जैसे, "आप एक साड़ी पहनते हैं, और अब हम सभी को साड़ी पहननी होगी क्योंकि सब कुछ एक समान है? क्या आप इस तर्क को स्वीकार करेंगे?"

लेकिन ये टिप्‍पणियां असम की सबसे गहरी बात यानी असमिया (असोमिया) और पूर्वी बंगाल मूल के मुसलमानों को प्रज्वलित करने के लिए पर्याप्त नहीं थीं। सार्वजनिक संबोधन के बाद अजमल ने मीडिया में टिप्पणी की कि असम मिया (पूर्वी बंगाल मूल के प्रवासी मुस्लिम) के बिना अधूरा है, उन्होंने अपने बयान को सही ठहराने के लिए कहा कि असोमिया (असमिया) शब्द असोम और मिया का एक संयोजन है, जिसे तथ्यों की सरासर विकृति के रूप में माना जाता है।

विशेष रूप से, अजमल को अपने पूरे भाषण में पूर्व सीएम, कांग्रेस के दिवंगत तरूण गोगोई पर हमला करते हुए देखा गया, और उन्हें पूर्वी बंगाल मूल के मुसलमानों की पीड़ाओं के लिए उन्हे दोषी ठहराया, चाहे वह निष्कासन हो, एनआरसी (नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर) और अन्य हो।

अपनी एक टिप्पणी में उन्होंने कहा कि, "ये सब तरूण गोगोई की देन है। उन्होंने हमारे लोगों को बसाया और अब उन्हें बेदखल किया जा रहा है। उन्हें क्यों बेदखल किया जा रहा है? अगर गोगोई ने हमारे लोगों को स्थायी भूमि स्वामित्व दे दिया होता, तो कोई भी ऐसा नहीं कर पाता।" एनआरसी या डी-वोटर या सीमा पुलिस की शुरुआत किसने की?"

उसी दिन सरमा और अधिक आक्रामक हो गए और उन्होंने मीडिया में अजमल की टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "यदि ऊपरी असम से युवा इकट्ठा होते हैं, तो मैं गुवाहाटी से मियाओं को साफ कर दूंगा और उनसे सारा आर्थिक नियंत्रण छीन लूंगा।"

सरमा ने कहा, "असम के लोगों को अजमल के बयान पर प्रतिक्रिया देनी चाहिए, उन्हें कृषि, कैब ड्राइवर, बस ड्राइवर और अन्य सभी आर्थिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए आगे आना चाहिए ताकि मिया को खत्म करने में मेरी मदद की जा सके।"

हालांकि, उन्होंने कहा कि हमें (असमियों को) इसे अपने काम के ज़रिए अंज़ाम देना होगा, न कि शारीरिक रूप से लड़कर। लेकिन, सरमा न केवल विपक्षी राजनीतिक नेताओं, बल्कि नागरिक समाज की भी आलोचना से बच नहीं सके।

सरमा के बाद, भाजपा विधायकों और मंत्रियों द्वारा ऐसे विभाजनकारी बयान दिए गए, जिनमें दिगंता कलिता (विधायक, कमलपुर), पीयूष हजारिका (कैबिनेट मंत्री) और असम भाजपा अध्यक्ष और रंगिया विधायक भाबेश कलिता शामिल थे।

विपक्षी नेताओं ने लगाया मिलीभगत का आरोप

पड़ोसी राज्य मणिपुर, दो महीने से अधिक समय से जातीय हिंसा का सामना कर रहा है, क्या असम को निकट भविष्य में ऐसी ही स्थिति का सामना करने का डर है? यह सवाल कई लोगों को चिंतित कर रहा है। सौभाग्य से, भाजपा और एयूडीएफ नेता अपनी ध्रुवीकरण रणनीति में व्यस्त होने के बावजूद अभी तक कोई स्पष्ट संकेत नहीं दिखा रहे हैं। दरअसल, विपक्ष आक्रामक तरीके से इसका मुकाबला करता दिख रहा है, चाहे वह सरमा और अजमल का मुकाबला करना हो या उनके खिलाफ FIR दर्ज करना हो।

असम प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भूपेन बोरा ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, "सीएम सरमा कहते हैं कि बीजेपी को मुस्लिम वोटों की ज़रूरत नहीं है। वह यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि एआईयूडीएफ मुस्लिम वोटों को सुरक्षित रखे। बीजेपी को हिंदू वोटों की ज़रूरत है, और एआईयूडीएफ को मुस्लिम वोटों की ज़रूरत है। लेकिन, हिंदू और मुस्लिम दोनों का वोट एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी को ही मिलेगा। सरमा और अजमल ऐसा नहीं चाहते। लेकिन, असम में यह आसानी से नहीं होगा।"

इस चर्चा के बीच कि अजमल, धुबरी लोकसभा सीट कांग्रेस से हार जाएंगे, बोरा ने कहा कि अगर अजमल हार जाते हैं, तो उनका कोई भविष्य नहीं होगा, यह दर्शाता है कि एआईयूडीएफ नेता को इस बार अपनी सीट पर चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।

उन्होंने आरोप लगाया, ''यही कारण है कि सरमा अजमल को चुनाव हारने से बचाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।''

बोरा ने 2021 के चुनाव अभियान के दौरान लल्लनटॉप के साथ सरमा के वायरल साक्षात्कार का भी उल्लेख किया, जहां उन्होंने कहा था कि अजमल उन्हें सीएम के रूप में देखना चाहते थे, उन्होंने कहा कि अजमल के साथ उनके अच्छे संबंध थे। सरमा ने यह भी कहा कि अगर वह अजमल से कहेंगे तो वह उनका समर्थन करेंगे और हर राज्यसभा चुनाव में उन्होंने अजमल के लिए कुछ वोटों का प्रबंध किया था।

बोरा ने सरमा के कार्यभार संभालने के बाद जुलाई 2021 में सीएमओ के उस सर्कुलर का भी जिक्र किया, जिसमें सभी एसपी (पुलिस अधीक्षक) और डीएफओ (जिला वन अधिकारी) को निर्देश दिया गया था कि वे अगरु का पेड़ ढोने वाले किसी भी व्यक्ति या वाहन को तब तक न रोकें जब तक कि ऐसा होने का सबूत न हो कि उन्हे वन इलाकों से लिया गया है। 

अजमल एक इत्र विशेषज्ञ है, और अगरु के पेड़ इत्र बनाने का मुख्य घटक हैं। बोरा ने कहा कि ये सभी पिछले उदाहरण और सरमा और अजमल के अब विभाजनकारी राजनीति में उतरने का समय, "उनके नापाक सांठगांठ का उदाहरण देते नज़र आते हैं।"

एक्सोम नागरिक समाज के महासचिव परेश मालाकार ने इस मुद्दे पर न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि, "जाहिर तौर पर अजमल और हिमंत बिस्‍वा सरमा एक-दूसरे के पूरक हैं, और जब चुनाव नजदीक आ रहे हैं तो उनकी विभाजनकारी राजनीति तेज हो गई है। साथ ही, उनकी लोकप्रियता में भी भारी गिरावट आई है।" 

उन्होंने कहा कि, ''लेकिन उनके उकसावे का जवाब नहीं देने के लिए असम के लोगों को धन्यवाद।'' उन्होंने कहा कि इन विभाजनकारी युक्तियों की एक लंबी अवधि होती है।

"बांग्लादेश से निरंतर प्रवास का कोई सबूत नहीं है, और असम आंदोलन के बाद से असम के लोगों ने सीखा है कि समाज में सह-अस्तित्व कैसे बनाया जाए। हालांकि, इस तरह की राजनीति बार-बार सामने आती है, और हमें उसका विरोध करना चाहिए। इतने उकसावे के बाद भी लोगों का शांत रहना अच्छी बात है, लेकिन यह याद रखना जरूरी है कि एक चिंगारी पूरे शहर को जला सकती है, इसलिए हमें सतर्क रहने की जरूरत है। क्योंकि हमने देखा है कि मणिपुर में क्या हुआ है।'' 

सीपीआई (एम) ने सरमा और अजमल के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई

17 जुलाई को सीपीआई (एम) ने गुवाहाटी के लतासिल पुलिस स्टेशन में पुलिस शिकायत दर्ज कराई है। शिकायत पत्र में आग्रह किया गया है कि पुलिस सरमा और अजमल के खिलाफ आईपीसी की उचित धाराएं लगाए। शिकायत में नफरत फैलाने वाले भाषण के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का भी उल्लेख किया गया है, जहां अपराधी पर आईपीसी की धारा 153ए, 153बी, 295ए और 505 लग सकती है।

शिकायत पर राज्य सचिव सुप्रकाश तालुकदार और सीपीआई (एम) की केंद्रीय समिति के सदस्य इस्फाकुर रहमान ने हस्ताक्षर किए हैं। न्यूज़क्लिक से बात करते हुए, तालुकदार ने सहमति व्यक्त की कि सरमा और अजमल एक दूसरे के पूरक हैं।

"असम के मुख्यमंत्री पूर्वी बंगाल मूल के मुसलमानों पर ध्यान केंद्रित कर ध्रुवीकरण की राजनीति कर रहे हैं, और अजमल आग में घी डालने का काम कर रहे हैं। हिमंत बिस्वा ने जो कहा वह ऐसी बात है जिसकी एक मुख्यमंत्री से उम्मीद नहीं की जा सकती है। उन्होंने कहा कि, कोई मुख्यमंत्री दो समुदायों के खिलाफ नफरत भड़काने का प्रयास कैसे कर सकता है?" 

मणिपुर की घटनाओं का जिक्र करते हुए तालुकदार ने कहा कि, ''हिमंत बिस्वा नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस के प्रमुख हैं, और अब, जब मणिपुर नियंत्रण से बाहर हो गया है, तो बीजेपी कुछ नहीं कर पा रही है। पीएम मोदी पृथ्वी पर हर जगह जा सकते हैं लेकिन मणिपुर जाने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं। वे आग लगाते हैं और आग जब सभी को अपनी चपेट में ले लेती है तो वे वहां से भाग जाते हैं।''

                         

 गुवाहाटी के लतासिल पुलिस स्टेशन में सरमा और अजमल के खिलाफ सीपीआई (एम) की एफआईआर की कॉपी।

उसी दिन, राज्यसभा के विपक्षी सांसद अजीत भुइयां ने असम के सीएम के खिलाफ एक और प्राथमिकी दर्ज की थी। उन्होंने दिसपुर पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज कराई। भुइयां की एफआईआर में आईपीसी की धारा 153 और 295 का भी जिक्र है। 

अंग्रेजी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें : 
Assam: Are BJP and AIDUF’s Badaruddin Ajmal ‘Colluding’ to Propel Divisive Politics?

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