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असम ग्राउंड रिपोर्ट : सभी बाढ़ग्रस्त इलाक़ों में सरकारी सहायता की भारी कमी

यह बाजाली जिले में पाहुमारा और कलदिया नदियों द्वारा बरपाए गए कहर पर दो-भाग की ग्राउंड रिपोर्ट का दूसरा भाग है। लोग एक-दूसरे से तथा ग़ैर-सरकारी संगठनों से कुछ सहायता पर भरोसा कर रहे हैं। सरकार के मंत्रियों और विधायकों ने अभी तक बाढ़ग्रस्त इलाक़ों का दौरा नहीं किया है।
Assam

गुवाहाटी: एक दीर्घकालिक या लंबी चलने वाली आपदा और लोगों की अंतहीन पीड़ा के मद्देनज़र – किसी भी सरकार या प्रशासन से यह अपेक्षा की जाती अहि कि वह समय पर राहत, पर्याप्त मुआवजा और संबंधित साहायता के लिए तुरंत तैयार रहेगी। असम के नजरिए से देखें तो यह एक गंभीर तस्वीर पेश करता है। हर साल राज्य में लाखों लोग बाढ़ से प्रभावित होते हैं और नतीजतन जान-माल का भारी नुकसान होता है।  

लेकिन वर्षों बाद भी, असम में लोगों को कोई राहत नहीं मिल पा रही है; इसके बजाय, जो नज़र आत है वह और भी अधिक चिंता का विषय है – अब बाढ़ का चरित्र बदल रहा है, जिसका कारण जलवायु परिवर्तन और हाल में चलाई जा रही कुछ परियोजनाएं हैं। अभी तक बाढ़ के पीड़ित या पीड़ित होने वालों लोगों बचाने के लिए कोई संगठित तंत्र विकसित नहीं हुआ है, पर्याप्त मुआवजा तो दूर की बात है।

जो एकमात्र व्यवाहरिक तंत्र काम कर रहा वह लोगों के खुद के सामूहिक प्रयास है; वे अपने गांवों के पास से गुजरने वाली नदियों पर लगातार नजर रखते हैं, तटबंधों की रक्षा करके बाढ़ को रोकने की कोशिश करते हैं और जब वे असफल हो जाते हैं, तो एक-दूसरे को सुरक्षित स्थानों पर ले जाने में मदद करने और तंबू की व्यवस्था करने का काम करते हैं। प्रभावित लोगों को आश्रय मिलने के बाद ही सरकारी एजेंसियां और मंत्री-विधायक हरकत में आते हैं। केवल कुछ लोगों को ही मुआवज़ा मिल पाता है और वह भी पर्याप्त नहीं होता है।

प्रभावित लोगों की दुर्दशा का जायजा लेने के लिए न्यूज़क्लिक ने बजाली जिले (अब बारपेटा) में कुछ स्थानों का दौरा किया। लेख के पहले भाग में, हमने पहुमारा नदी से बाढ़ग्रस्त हुए भवानीपुर और आसपास के इलाकों की स्थिति का वर्णन किया था, जिसे यहां पढ़ा जा सकता है।

‘कालदिया’ नदी में फिर आई बाढ़

भवानीपुर से कुछ किलोमीटर की दूरी पर पटाचारकुची और पाठसाला इलाके हैं, जो असम में आने से पहले भूटान से होकर आने वाली कालदिया नदी के पानी से डूब गए थे। कालदिया नदी वर्षों से पटाचारकुची और पाठशाला में तबाही मचा रही है।

न्यूज़क्लिक 23 जून को पटाचारकुची में था और उसने उन दो अस्थायी राहत शिविरों का दौरा किया जिन्हे गाँव वालों ने बनाया था, बाढ़ के पानी के अचानक तेज बहाव के कारण उन्हें अपना सामान बचाने का समय नहीं मिला था। ग्राम पंचायत का 'सोमुहिया गृह' (सामुदायिक हॉल) उनका आश्रय बन गया था, जहां 170 से अधिक लोग बड़ी तंगी के साथ रह रहे थे।  प्रभावित लोगों में से कुछ के पास केवल दो जोड़ी कपड़े थे, जबकि उन्हें नहीं पता कि उन्हें  कितने दिन वहां बिताने होंगे। कुछ को यह भी नहीं पता था कि उनके घरों में क्या कुछ बचा है या नहीं।

पंचायत घर का वह कमरा जहां कम से कम 20 लोग दिन-रात रहते हैं।

आश्रय गृह में रह रहे लोगों ने न्यूज़क्लिक को 19 जून से अपनी स्थिति के बारे में बताया। चकला गाँव की डालिमी बर्मन अपने सात महीने के बच्चे के साथ बड़ी कठिनाई झेलते हुए रह रही है। उसे डर है कि शिविर में उसका बच्चा गंभीर रूप से बीमार पड़ सकता है।

डालिमी बर्मन ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, "ज्यादातर समय शिविर में बिजली नहीं होती है। मच्छर और अन्य कीड़े वास्तविक समस्याएँ पैदा करते हैं। पहली रात मोमबत्ती के बिना ही गुज़री।" उनके पति और परिवार के अन्य सदस्य सभी शिविर में रह रहे हैं।

एक कोने में, पंचायत घर में, वे अपना मुख्य भोजन, खिचड़ी बनाने के लिए चूल्हा जला रही  हैं।

इन हालातों में, महिलाओं को शौचालय, पीने के पानी और निजी स्थानों की बुनियादी सुविधाओं के बिना बड़ी समस्याओं से गुजरना पड़ता है। मासिक धर्म और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को सबसे अधिक परेशानी होती है।

डालिमी बर्मन ने कहा कि उनका धान का भंडार खराब हो गया है, और उनकी दो गायें गायब हैं, उनका यह गंभीर नुकसान और आने वाले वर्ष के लिए एक दुखद संकेत है।

सरकार से राहत सामग्री के बारे में पूछे जाने पर, ग्रामीणों ने न्यूज़क्लिक को बताया कि उन्हें एक गैर सरकारी संगठन से चावल, दाल, आलू आदि मिले हैं। उन्हे नहीं पता था कि जो राहत एनजीओ उन्हे दे रहा है क्या वह सरकार द्वारा प्रदान की जा रही हैं। 

एक बुजुर्ग ने कहा कि, "इसकी संभावना नहीं है। सरकार के विधायक और मंत्रियों का मीडिया की तरफ अधिक झुकाव है। वे जो भी छोटी-छोटी चीजें करते हैं, उसका विज्ञापन करते हैं। अगर उन्होंने राहत प्रदान की होती, तो कोई फोटो लेने जरूर आता।" 

पीने के पानी के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, "यहां का ट्यूबवेल (बोरिंग) ठीक से काम नहीं कर रहा है। एनजीओ ने पानी के पैकेट दिए हैं। हमारी मुख्य निर्भरता हमारे साथी ग्रामीणों पर है जिनके घर अभी भी बाढ़ से बचे हुए हैं। वे शिविर में आते हैं और नियमित रूप से हमारा हाल पूछते रहते हैं।” पीड़ित सामूहिक प्रयासों पर भरोसा कर रहे हैं, जो बाढ़ के दौरान असम में हर जगह देखा जा सकता है।

रुनु दास कुवारा गोबिंदपुर गांव से हैं और वह अपने 10 साल के लड़के के साथ शिविर में रह रही हैं। उनके पति की कुछ साल पहले मौत हो गई थी। वह एक दिहाड़ी मजदूर है और कभी-कभी अपने बेटे और खुद की जीविका चलाने के लिए नौकरानी के रूप में भी काम करती है।

"मेरा बेटा अभी भी नाबालिग है और उसने स्कूल जाना बंद कर दिया है। एक या दो साल बाद वह भी कमाना शुरू कर देगा। पिछले साल, कलदिया में बाढ़ के कारण हम लगभग एक महीने तक बेघर हो गए थे और सरकार द्वारा घोषित मुआवजा भी नहीं मिला था। उसने पूछा कि क्या हम इस बार कुछ बेहतर होने की उम्मीद कर सकते है?" यही स्थिति चकला गांव की 60 वर्षीय विधवा गोलापी बर्मन की भी है।

डोलोईगांव की बिजोया दास पटाचारकुची शहर (अपने गांव से कुछ किलोमीटर दूर) में कुछ परिवारों में नौकरानी के रूप में काम करती हैं। वह दो बच्चों की मां हैं। उनके पति एक खेतिहर मजदूर हैं जिनके पास धान के कुछ खेत हैं।

"पिछले साल भी हमारे धान के खेत नष्ट हो गए थे और इस साल भी यही हुआ है।"

न्यूज़क्लिक को आश्रय शिविर में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं मिला जो सरकारी नौकरी में हो। सरकारी सहायता में उदासीनता और अपर्याप्तता इन परिवारों को बर्बाद कर देती है।

असम के खाद्य और आपूर्ति मंत्री रंजीत दास इस निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं (असम में परिसीमन मसौदे की घोषणा की गई है, और कुछ निर्वाचन क्षेत्र बदल सकते हैं)। लेकिन, आपूर्ति मंत्री अपने विधानसभा क्षेत्र के बाढ़ पीड़ितों को तत्काल आवश्यक सामग्रियों की आपूर्ति नहीं करते दिख रहे हैं। 23 जून की दोपहर तक रंजीत दास आश्रय शिविर का दौरा नहीं कर पाए थे। 

पहले यह एक सड़क थी; पानी ने तटबंध को तोड़ दिया और ऐसे बहने लगा मानो पहले यहाँ कोई नदी बहती हो। 

क्या यह केवल बाढ़ है जिसके बारे में सरकार अनसुनी कर देती है या लोगों के दैनिक संघर्ष, उनकी आजीविका और सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर भी ध्यान नहीं देती है? न्यूज़क्लिक ने अरबिंद दास से मुलाकात की, जो पंचायत घर का प्रबंधन करते हैं। उन्होंने एक चौंकाने वाली जानकारी  का खुलासा किया। 

उन्होंने कहा कि, "मैं 20 साल से पंचायत घर की देखभाल कर रहा हूं; यकीन मानिए, मैंने अभी तक कोई वेतन नहीं लिया है।"

ऐसा कैसे हो सकता है कि 20 साल तक एक व्यक्ति ने पंचायत में सेवा की और उसे कोई वेतन नहीं मिला? अरबिंद दास का मामला सरकार की संवेदनशीलता की कमी को दर्शाता है।

"मैं रंजीत दास से तीन बार मिला, और हर बार, उन्होंने कहा कि मेरा केस ले लिया जाएगा और मुझे कुछ वेतन मिलेगा। लेकिन मैंने वह दिन अभी तक नहीं देखा। मैं लोगों की सेवा कर रहा हूं; वे मुझसे प्यार करते हैं और मुझे कुछ देते हैं। मैं मेरे पास कुछ जमीन है जहां मैं धान उगाता हूं, जिस पर मैं और मेरी पत्नी मीना दास जीवित हैं। वे कहते हैं कि, हम लोगों के आशीर्वाद पर जी रहे हैं।”

अरबिंद दास के दो बेटों की कुछ साल पहले मौत हो गई थी। 

क्या पिछले कुछ वर्षों में प्राकृतिक कारणों ने ही बाढ़ की स्थिति को बदतर बनाया है? लोगों में ज्यादा स्पष्टता भी नहीं है। हालाँकि, उनमें भूटान में कुरिचु बांध को लेकर संदेह है।

कुरिचु जलविद्युत परियोजना एक संयुक्त भारत-भूटान परियोजना है, और भूटान में ऐसे कई अन्य बांध हैं; कुछ कार्य कर रहे हैं, और कुछ निर्माणाधीन हैं।

अरबिंद दास ने कहा कि, "इस साल, कुरिचु से अतिरिक्त पानी छोड़ा गया है, और कालदिया का जल स्तर अचानक बढ़ गया।" उन्होंने यह भी कहा कि कालदिया क्षेत्र में काफी समय से बाढ़ आ रही है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में स्थिति और खराब हो गई है। 

पटाचारकुची के एक शोधार्थी ने भी न्यूज़क्लिक को बताया कि बाढ़ पूरी तरह से प्राकृतिक नहीं है। तो "सवाल यह उठता है कि, सिर्फ 15 दिनों की बारिश से इतनी बाढ़ कैसे आ सकती है? मुझे लगता है कि अगर भूटान ने पानी नहीं छोड़ा होता तो बाढ़ इतने बड़े पैमाने की नहीं होती।"

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Assam Ground Report: Lack of Govt Aid Common Theme Across all Flooded Areas

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