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बीएचयू: धार्मिक कट्टरपंथ और पाठ्यक्रमों में बदलाव के ख़िलाफ़ एकजुट हुए छात्र और नागरिक समाज के लोग, लंका गेट पर ज़ोरदार प्रदर्शन

प्रदर्शन में उपद्रवियों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई और शैक्षणिक पाठ्यक्रमों से छेड़छाड़ बंद करने की मांग की गई।
BHU

काशी हिंदू विश्वविद्यालय यानी बीएचयू में एक बार फिर सांप्रदायिक सौहार्द और धार्मिक कट्टरपंथ के खिलाफ छात्रों ने एकजुटता दिखाई है। बुधवार, 5 अप्रैल को विश्वविद्यालय के लंका गेट पर छात्र और नागरिक समाज के लोगों ने एकत्र होकर बिहार में मदरसा जलाए जाने और शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में बदलाव के विरोध में जोरदार प्रदर्शन किया। इस दौरान सद्भावना जिंदाबाद, हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई आपस में हैं भाई-भाई, धर्मनिरपेक्षता जिंदाबाद जैसे नारों से बनारस का ये प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय परिसर गूंज उठा।

बता दें कि इससे पहले भी बीएचयू में छात्रों, बुद्धिजीवियों और नागरिक समाज के लोगों ने तमाम ज्वलंत मुद्दों और जन विरोधी सरकारी नीतियों के खिलाफ समय-समय पर अपनी आवाज़ बुलंद की है। यहां के छात्र प्रशासन के खिलाफ छात्र विरोधी नीतियों को लेकर भी मुखर रहे हैं और नागरिक संशोधन कानून सीएए और एनआरसी को लेकर जेल तक जा चुके हैं। फिलहाल यहां एनसीईआरटी की किताबों में कथित बदलाव को लेकर छात्रों में काफी रोष है।

BHUप्रदर्शन में शामिल बीएचयू के पूर्व छात्र धनंजय सुग्गू के मुताबिक बिहार में मदरसे को जलाने की घटना उस कट्टरपंथी विध्वंसकारी सोच का नतीज़ा है, जो देश में धार्मिक सौहार्द और आपसी भाईचारे को बिगाड़ना चाहते हैं। फिलहाल युवाओं से रोजगार छीनकर उन्हें दंगाई बनाने की घिनौनी साजिश पूरे देश के लिए चिंता का विषय है। ऐसी घटनाएं सभ्य और लोकतांत्रिक समाज के लिए एक धब्बा हैं और पूरी मानवता जाति को शर्मसार करती हैं।

बीजेपी पर पूरे देश का भगवाकरण करने का आरोप

प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि इस समय सत्ता पर काबिज बीजेपी पूरे देश का भगवाकरण करने की कोशिश कर रही है। युवाओं को मुद्दों से भटका कर सांप्रदायिकता का खेल खेलने की कोशिश हो रही है, जिसके चलते बीते कई सालों से हर त्यौहार को बदरंग करने का खेल शुरू हो गया है। एक समुदाय विशेष के खिलाफ हमले बढ़ गए हैं और लोगों में धर्म-जाति को लेकर नया तनाव पैदा हो गया है।

छात्रों और नागरिक समाज के लोगों ने एकजुट होकर उपद्रवियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई और शैक्षणिक पाठ्यक्रमों से छेड़छाड़ बंद करने की मांग की। साथ ही देश में अमन और शांति के लिए एकता का आह्वान भी किया। इस मौके पर बड़ी संख्या में छात्रों के हाथों में एकता जिंदाबाद और धार्मिक सद्भाव की तख्तियां दिखाई दीं।

BHUबीएचयू की छात्रा अपराजिता न्यूज़क्लिक को बताती हैं कि जिन पाठ्यक्रमों को पढ़कर हम सब बड़े हुए, यहां तक की बड़े-बड़े नेताओं ने भी जिनका अनुसरण किया, आज अचानक उन पर विवाद क्यों हो रहा है। ये सभी जानते हैं कि इसके जरिए किस एजेंडे को बढ़ाने की कोशिश की जा रही है और क्यों। लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि हम लाख कोशिशोंं के बावजूद अपना इतिहास नहीं बदल सकते, बदल सकते हैं तो केवल वर्तमान और भविष्य।

अपराजिता के अनुसार मध्यकालीन भारत के इतिहास से अगर मुगल काल गायब हो जाए, तो जरा सोचिए 1857 की क्रांति के मुखिया रहे बहादुर शाह जफर को हम कैसे जानेंगे? उस दौर को नहीं पढ़ाएंगे तो सुरदार, तुलसी कबीर, रैदास जैसे महान व्यक्तित्वों से कैसे रूबरू होंगे। इसी तरह अगर निराला, सुमित्रानंदन पंत और फिराक गोरखपुरी के पाठ भी हटा दिए जाते हैं, तो हिंदी लिटरेचर में एक बड़ा शून्य हो जाएगा। जो न सिर्फ शिक्षा विरोधी होगा, बल्कि ज्ञान विरोधी और देश विरोधी भी होगा।

संविधान और उसकी मूल भावना को बचाने के लिए प्रतिबद्ध

विश्वविद्यालय की पीएचडी स्कॉलर रौशनी हेनरिक हेन की लिखी पंक्ति 'जहां वे आज किताबें जलाते हैं, अंत में एक दिन वहीं वे इंसानो को भी जलाएंगे।' को याद करते हुए कहती हैं, “10 मई 1933 को जर्मनी में किताबों को जलाया गया था। हिटलर के दीवानों ने तर्क, ज्ञान और बुद्धि की तमाम बातों को जलाकर खूब डांस किया था। महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने इस घटना के बाद जर्मनी छोड़ दिया था। सालों बाद आज जब हम बिहार में मदरसे और लाइब्रेरी जलाए जाने को देखें तो जर्मनी की ये भयानक रात हमें याद रखनी चाहिए।

रौशनी आगे बताती हैं,"हिटलर, गोएबल्स से लेकर दुनिया भर के बड़े आक्रांताओं को देखते हुए हम समझते हैं कि राज सिंहासन जीतने से ज्यादा नशा विश्वविद्यालय को जीतने में आता है। और यही वो करना चाह रहे हैं। लेकिन हम ऐसा होने नहीं देंगे, हम अपनी संस्कृति और विरासत के साथ ही अपने संविधान और उसकी मूल भावना को बचाने के लिए भी प्रतिबद्ध हैं।"

BHUप्रदर्शन का हिस्सा रहे डॉ धनंजय त्रिपाठी के मुताबिक आज देशभर में दक्षिणपंथी विचारधारा का बोलबाला है। वो लोग पुस्तकालय जला रहे है, दूसरे धर्म, विचार और समझ वालों को मार रहे हैं। इतिहास में दर्ज सभ्यता के विकास क्रम को शुतुरमुर्ग की तरह रेत में अपना सर धंसाकर झुठला रहे हैं। सिलेबस में सांप्रदायिक और तर्कहीन तरीके से पाठ को कम कर रहे हैं। क्योंकि संघ परिवार वैज्ञानिक सोच और प्रगतिशीलता का विरोधी है। जबकि आइडिया ऑफ इंडिया सब तरह के रंगों से मिलकर बना है। असहमति की अभिव्यक्ति को स्थान देना हमारी थाती है। इसे हम सब संजोकर रखेंगे किसी भी कीमत पर।

ध्यान रहे कि राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद यानी एनसीईआरटी इन दिनों अपने पाठ्यक्रम में बदलाव कर रहा है। इसके पीछे वजह तो स्कूली बच्चों के कंधों से बस्ते का बोझ कम करना बताया जा रहा है लेकिन कई शिक्षाविदों और आलोचकों का कहना है कि हालिया बदलाव एक विचारधारा और राजनीति को चुभने वाली विषयवस्तु को हटाने के प्रयास ज्यादा लग रहे हैं। इन तमाम बदलावों को लेकर कई तबकों से शिकायतें भी आ रही हैं। सबसे ज्यादा विरोध हिंदी साहित्य के पाठ्यक्रम में हुए बदलाव पर हो रहा है। इस विरोध का कारण इसमें निराला और फिराख गोरखपुरी की कविताओं को पाठ्यक्रम से हटा दिया गया है। सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ और रघुपति सहाय ‘फिराक गोरखपुरी’ जैसे बड़े कवियों को हिंदी साहित्य के पाठ्यक्रम में स्थान न दिये जाने पर साहित्यकारों ने भी हैरानी जताई है।
 

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