Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

हिंदी हार्टलैंड में भाजपा की जीत 

कांग्रेस पार्टी 2024 के महत्वपूर्ण राष्ट्रीय चुनाव से पहले ख़ुद को कमज़ोर पा रही है, जिससे इंडिया गठबंधन में उसकी भूमिका पर सवाल उठने लगे हैं।
shivraj
फ़ोटो : PTI

भाजपा ने मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव जीतकर हिंदी पट्टी में अपना परचम लहरा दिया है और हार के जबड़े से सचमुच की जीत छीन ली है। कांग्रेस पार्टी ने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बड़ी आसानी से जीत हासिल करने का भरोसा जताया था, जबकि राजस्थान में मुक़ाबला काफी करीबी माना जा रहा था। लेकिन जाहिर तौर पर ऐसा नहीं हुआ।

ये सेमीफ़ाइनल कांग्रेस पार्टी के अलावा, इंडिया गठबंधन के लिए एक करारा झटका साबित होगा, जिसे उसकी कट्टर प्रतिद्वंद्वी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने हरा दिया है। अब इस संभावना पर गंभीरता से विचार करने का समय आ गया है कि इस सफलता पर सवार होकर, भाजपा चुनावी और नीतिगत रुख को अपनी इच्छानुसार मोड़ने के मामले में स्वतंत्र महसूस करेगी और लोकसभा चुनाव उम्मीद से पहले कराए जा सकते हैं, हिंदुत्व से संबंधित कई नीतिगत प्रस्ताव लाए जा सकते हैं, और भी बहुत कुछ हो सकता है।

फिलहाल, विंध्य के दक्षिण में भाजपा मुक्त भारत है, जबकि उत्तर में कांग्रेस मुक्त भारत है (हिमाचल प्रदेश को छोड़कर)। अब कांग्रेस के सामने मुख्य सवाल यह है कि भविष्य में गठबंधन कैसे आकार लेंगे, जो दक्षिण में भाजपा के लिए रास्ता तैयार करेंगे (जैसे कि दक्षिण में जनता दल सेक्युलर के माध्यम से)। इसे धारणा की लड़ाई का प्रबंधन भी करना है - और पूरे हिंदी इलाके में हिंदुत्व-प्रेरित भय और नफरत के प्रसार का मुक़ाबला भी करना है।

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का चौथी बार जीतना एक मीठी जीत है, क्योंकि उन्हें अगले मुख्यमंत्री के रूप में पेश नहीं किया गया था और उनका नाम भाजपा द्वारा तैयार की गई उम्मीदवारों की तीसरी सूची में था।

कांग्रेस के लिए इन हार को पचाना मुश्किल हो रहा है क्योंकि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत या छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ कोई सत्ता विरोधी लहर नहीं थी। पूरे राजस्थान में जब चुनावी यात्रा की गई तो, औसत व्यक्ति ने सर्वसम्मति से गहलोत के  "अच्छे काम" की प्रशंसा की थी।

समस्या कई मौजूदा विधायकों के खिलाफ गुस्सा थी, जिनमें से 86 ने बावजूद इसके फिर से चुनाव लड़ा। 2003 से 2018 तक के नतीजे इस बात की पुष्टि करते हैं कि जो विधायक अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते, वे दोबारा नहीं चुने जाते हैं। 

कांग्रेस नेता और मध्य प्रदेश के अभियान का चेहरा, कमल नाथ ने भी नए चेहरों को पेश नहीं किया। ऐसा लगता है कि नाथ के पास राज्य स्तर पर खुद बहुत कम प्रशासनिक अनुभव है। और गांधी परिवार से उनकी निकटता के कारण उन्हें मध्य प्रदेश अभियान के दौरान निशाना बनाया गया।

नाथ का 'नरम हिंदुत्व' कार्ड भी काम नहीं चला। लेकिन प्राथमिक समस्या कांग्रेस पार्टी का उस नेरेटिव को विकसित करने में विफलता थी जो केवल चौहान के खिलाफ 18 साल की सत्ता पर जोर देना था। नये मतदाताओं को लुभाने के लिए यह पर्याप्त नहीं था।

नाथ ने कई कांग्रेस उम्मीदवारों को वित्तीय सहायता प्रदान नहीं की, लेकिन धन जुटाने के लिए पार्टी का संघर्ष एक समृद्ध भाजपा के मुकाबले, एक महत्वपूर्ण बाधा नज़र आई। आख़िरकार, कुछ समय पहले भाजपा के आंतरिक आकलन में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में पार्टी के लिए अंधकारमय भविष्य की भविष्यवाणी की गई थी।

तो फिर, बदलाव (कांग्रेस के पास अब तक 40.3 प्रतिशत का वोट शेयर और भाजपा के पास लगभग 49 प्रतिशत का वोट शेयर) क्या व्याख्या करता है? पहली बात तो यह है कि कांग्रेस खुद अपनी शुरुआती बढ़त बरकरार रखने में विफल रही क्योंकि उसके पास ग्रामीण और शहरी मध्य प्रदेश में संगठनात्मक ताकत की कमी थी। 

इसके अलावा, इस बार, भाजपा ने मध्य प्रदेश और उससे आगे के आदिवासी इलाकों में भी पैठ बनाई है, साथ ही केंद्र के वादों पर सवार होकर, जैसे कमजोर आदिवासी समूहों के लिए एक नया मिशन, बिजली, आवास, शिक्षा और अन्य लाभों के लिए 25,000 करोड़ रुपये का वादा किया है। इसकी घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छत्तीसगढ़ में दूसरे दौर के मतदान से दो दिन पहले 15 नवंबर को झारखंड में की थी।

छत्तीसगढ़ में, जो भी पार्टी बस्तर की 20 सीटें जीतती है, उसके बारे में कहा जाता है कि उसने राज्य जीत लिया है। लेकिन इस बार, वोट कांग्रेस और भाजपा के बीच बट गए, जिससे संकेत मिलता है कि कांग्रेस अपनी बेल्ट में पकड़ खो रही थी। 

पीछे देखने पर लगता है कि बघेल खरगोश के साथ दौड़ नहीं सकता था और शिकारी कुत्ते के साथ शिकार नहीं कर सकता था। उन्होंने पंचायत (अनुसूचित इलाकों तक विस्तार) अधिनियम को गंभीरता से लागू नहीं किया और अपने आदिवासी समर्थकों के बीच सद्भावना खो दी।

भगेल की सामाजिक कल्याण योजनाओं ने अच्छा काम किया है, और उनका किसानों से जुड़ाव है, लेकिन भाजपा के प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण और धान की खरीद कीमतों में बढ़ोतरी और कम आय वाले परिवारों के लिए 500 रुपये में रियायती रसोई गैस सिलेंडर के अलावा शराबबंदी के खिलाफ ठोस अभियान चलाया गया जिसने, इसके पक्ष में काम किया है।

धान की कीमतों में बढ़ोतरी का मुकाबला करने के लिए, बघेल ने 200 यूनिट बिजली, ग्रामीण गरीबों के लिए 17.5 लाख घर और तेंदू पत्तों के लिए 6,000 रुपये प्रति बोरी, वार्षिक गृह लक्ष्मी योजना के अलावा 3,200 रुपये प्रति क्विंटल खरीद के अपने वादे के साथ धान की कीमतों में बढ़ोतरी का मुकाबला करने की कोशिश की जिसमें 15,000 रुपये की नकद सब्सिडी, इत्यादि शामिल थी। लेकिन भाजपा ने अपनी प्रतिज्ञा (प्रत्येक गरीब विवाहित महिला को प्रति वर्ष 12,000 रुपये) दी, जिसने महिला मतदाताओं की बढ़ती संख्या को आकर्षित किया।

उदाहरण के लिए, मध्य प्रदेश में, शिवराज चौहान ने लाडली बहना योजना जैसी लक्षित योजनाओं के साथ महिला मतदाताओं को सावधानीपूर्वक लुभाया। चुनाव से छह महीने पहले इसे 1.2 करोड़ महिलाओं के लक्ष्य को सामने रखकर पेश किया गया, भुगतान में बढ़ोतरी (3,000 रुपये) का वादा भाजपा के पक्ष में जाता दिख रहा लगता है। इस चुनाव में भाजपा को मिले छह फीसदी वोटों का श्रेय भी इसी योजना को दिया जा रहा है।

भाजपा मध्य प्रदेश और राजस्थान दोनों में आदिवासी वोटों पर जीत हासिल करने के लिए बहुत प्रयास कर रही है। इंदौर में एक रेलवे स्टेशन का नाम भील समुदाय के एक आदिवासी प्रतीक तंत्र्या भील के नाम पर रखने और आदिवासी जिलों में विधवाओं और वृद्ध लोगों को वित्तीय सहायता प्रदान करना फायदेमंद साबित हुआ है।

राजस्थान में, भाजपा ने आदिवासी बहुल इलाकों में भुखमरी और कुपोषण की खबरों और गहलोत और सचिन पायलट के बीच छींटाकशी का फायदा उठाया, जिन्होंने अपने अभियान को टोंक इलाके के आसपास सीमित कर दिया, लेकिन भाजपा ने यहां युवाओं के साथ तालमेल बनाया है।

1993 के बाद से, राजस्थान में सरकारें लगातार बदलती रही हैं। इसने इसे बरकरार रखा। गहलोत को उम्मीद रही होगी कि सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना को पुनर्जीवित करने के अलावा उनकी स्वास्थ्य बीमा और शहरी रोजगार गारंटी योजना फिर से उन्हे जीतने में मदद करेंगी। शायद योजनाएं बहुत देर से शुरू की गईं और महज़ वादे बनकर रह गईं।

दरअसल, प्रधानमंत्री और गृह मंत्री लगातार कांग्रेस पार्टी पर अल्पसंख्यकों, खासकर मुस्लिमों का तुष्टिकरण करने का आरोप लगाते रहे। हर रैली में बीजेपी नेता और उनके आरएसएस या वीएचपी के सहयोगी लगातार अयोध्या में होने वाले राम मंदिर के उद्घाटन का जिक्र करते रहे। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में व्यावहारिक रूप से हर रैली में, जनता को सरकार द्वारा प्रायोजित अयोध्या दौरे का वादा किया गया, जबकि मध्य प्रदेश सरकार के तहत पहले से ही एक मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना चल रही है।

उत्तर प्रदेश की सीमा से सटे चंबल और ग्वालियर इलाकों की महत्वपूर्ण सीटों पर हार का खामियाजा कमलनाथ को भुगतना पड़ा। समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव का यह आरोप कि कमलनाथ ने उनके साथ सीट-बंटवारा करने से इनकार कर दिया था, यह कहते हुए कि, "अरे भाई, छोडो, अखिलेश-वखिलेश" को छोड़ो, जैसे व्यवहार ने राजनीतिक समायोजन के युग में अति-महत्वाकांक्षा होने उससे नुकसान उठाने का काम किया है। आख़िरकार कांग्रेस ने पाया कि अन्य पार्टियाँ उसके वोट शेयर में सेंध लगाने की इच्छुक हैं।

गहलोत ने सीपीआई (एम) और हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के साथ चुनावी गठबंधन नहीं किया, लेकिन इससे जाट वोट विभाजित हो गए। यहां तक कि गुज्जर वोट भी बंट गए और बीजेपी की झोली में जा गिरे। 

क्या तीन केंद्रीय मंत्रियों और चार संसद सदस्यों को पैराशूट से उतारने की भाजपा की रणनीति सफल हो गई है? जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव कई हफ्तों से राजस्थान में डेरा डाले हुए हैं। क्या अभियान में तेजी ला सकते हैं और स्थानीय कैडर को सक्रिय कर सकते थे? ऐसा लगता होता है कि वे ऐसा कर सकते थे।

लेकिन ये चुनाव नुकसान और लाभ के प्रति धारणा की लड़ाई को उजागर करते हैं। जहां कई पेपर लीक घोटालों के कारण राजस्थानी युवा गहलोत सरकार के खिलाफ हो गए थे, वहीं मध्य प्रदेश में लगातार पेपर लीक और भर्ती घोटालों का चौहान की किस्मत पर कोई असर नहीं पड़ता नज़र आता है।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि कांग्रेस को हिन्दी पट्टी/काउ बेल्ट में बढ़त हासिल करने के लिए युवा और अधिक गतिशील नेताओं की जरूरत है जो जनता से जुड़े हों। इसे अधिक पिछड़े वर्ग और दलित नेताओं की भी जरूरत है, लेकिन इसका अनुमान लगाना कठिन है कि लोकसभा चुनाव से पहले बचे ये कुछ महीने इसके लिए काफी हैं या नहीं।

लेखिका एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार निजी हैं। 

इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

BJP Sweeps Hindi Heartland

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest