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सरकार जिस बीपीसीएल को निजी हाथों में बेच रही है, उसने 12,581 करोड़ रुपये का रिकॉर्ड मुनाफ़ा कमाया

सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की जिस कंपनी भारत पेट्रोलियम कॉरपारेशन लि. (बीपीसीएल) को निजी हाथो में बेचने जा रही है, उसने उसे जबरदस्त मुनाफ़ा कमाकर दिया है। बीपीसीएल का मुनाफ़ा सात गुना बढ़कर 19,041.67 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। सवाल यही बना हुआ है कि सरकार लाभ में और सुचारु रूप से चलने वाली कंपनी को निजी हाथों में क्यों सौंपना चाहती है
सरकार जिस बीपीसीएल को निजी हाथों में बेच रही है, उसने 12,581 करोड़ रुपये का रिकॉर्ड मुनाफ़ा कमाया
Image courtesy :BS

नई दिल्ली: सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की जिस कंपनी भारत पेट्रोलियम कॉरपारेशन लि. (बीपीसीएल) को निजी हाथो में बेचने जा है। उसने जबरदस्त मुनाफ़ा कमाकर दिया है। बीपीसीएल का मुनाफा सात गुना बढ़कर 19,041.67 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। सवाल यही बना हुआ है कि सरकार लाभ में और सुचारु रूप से चलने वाली कंपनी को निजी हाथों में क्यों सौंपना चाहती है? जबकि इसके कर्मचारी इसका लगातार विरोध कर रहे है।

सरकार देश की तीसरी सबसे बड़ी तेल रिफाइनरी और दूसरी सबसे बड़ी पेट्रोलियम मार्केटिंग कंपनी का निजीकरण करने जा रही है। सार्वजनिक क्षेत्र की  बीपीसीएल ने बुधवार को 12,851 करोड़ रुपये के लाभांश की घोषणा की। इसमें से आधे से अधिक राशि सरकार को जाएगी।

सरकार ने कंपनी के निजीकरण के लिये प्रक्रिया शुरू की हुई है।

शेयर बाजार को दी सूचना में बीपीसीएल ने कहा, ‘‘कंपनी के निदेशक मंडल ने 2020-21 के लिये प्रति इक्विटी 58 रुपये अंतिम लाभांश देने की सिफारिश की है। इसमें 10 रुपये के शेयर पर एक बारगी 35 रुपये का विशेष लाभांश शामिल है।’’ यह सिफारिश शेयरधारकों की मंजूरी पर निर्भर है।

यह लाभांश कुल 12,581.66 करोड़ रुपये बैठता है। इसमें 7,592.38 करोड़ रुपये का विशेष लाभांश शामिल है।

सरकार को इस लाभांश में से 6,665.76 करोड़ रुपये के साथ लाभांश वितरण कर भी मिलेगा। सरकार बीपीसीएल में अपनी पूरी 52.98 प्रतिशत हिस्सेदरी बेच रही है।

यह लाभांश 2020-21 में पहले दिये गये 21 रुपये प्रति शेयर अंतरिम लाभांश के अतिरिक्त है।

कंपनी ने यह नहीं बताया कि उसने रिकार्ड लाभांश क्यों दिया है। हालांकि, बीपीसीएल ने असम में नुमालीगढ़ रिफाइनरी में 61.5 प्रतिशत हिस्सेदारी ऑयल इंडिया लि., इंजीनियर्स इंडिया लि. और असम सरकार के समूह को बेचकर 9,876 करोड़ रुपये प्राप्त किये।

दूसरी तरफ, बीपीसीएल ने बीना रिफाइनरी में ओ क्यू एस ए ओ सी (पूर्व में ओमान ऑयल कंपनी) की 36.62 प्रतिशत हिस्सेदारी 2,399.26 करोड़ रुपये में खरीदी।

इस खरीद-फरोख्त में कंपनी को शुद्ध रूप से 7,477 करोड़ रुपये की प्राप्ति हुई। यह राशि बुधवार को घोषित विशेष लाभांश के करीब करीब बराबर है।

कंपनी को वित्त वर्ष 2020-21 में एकल आधार पर 19,041.67 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ हुआ। रिकार्ड लाभ का कारण हिस्सेदारी बिक्री के साथ बचे माल भंडार की वजह से रिफाइनिंग मार्जिन बेहतर रहना है।

इससे पूर्व वित्त वर्ष 2019-20 में कंपनी का लाभ 2,683.19 करोड़ रुपये रहा था।

वित्त वर्ष 2020-21 की जनवरी-मार्च तिमाही में कंपनी का शुद्ध लाभ 11,940.13 करोड़ रुपये रहा जो एक साल पहले 2019-20 की इसी तिमाही में 2,777.62 करोड़ रुपये था।

कंपनी को कच्चे तेल को ईंधन में परिवर्तित करने पर 4.06 डालर प्रति बैरल की कमाई हुई जबकि पिछले साल उसका सकल रिफाइनिंग मार्जिन 2.50 डालर प्रति बैरल था।

इसके अलावा पिछले वित्त वर्ष में कंपनी ने विदेशी मुद्रा के मामले में भी 199.75 करोड़ रुपये का लाभ हासिल किया जबकि इससे पिछले वर्ष उसे इसमें 1,662.34 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था।

सवाल है कि सरकार क्यों चाहती है निजीकरण?

कोरोना माहमारी और लॉकडाउन के दौरान बीपीसीएल ने लिक्विड पेट्रोलियम गैस (LPG) और भारत के अन्य ईंधन उत्पादों की महत्वपूर्ण आपूर्ति सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। फिर भी सरकार इसे बेचना चाहती है ,जानकारों का कहना है कि सरकार को संकट में BPCL की भूमिका को अपनी आंखे खोलकर देखना चाहिए और सार्वजनिक क्षेत्र के भीतर लाभ कमाने वाली तेल मार्केटिंग कंपनी को बनाए रखना चाहिए।

बीपीसीएल में सरकार अपनी समूची 52.98 प्रतिशत हिस्सेदारी बेच रही है। कंपनी के कर्मचारियों की संख्या 20,000 है।  

इसको लेकर ही कर्मचारी लगातार सवाल कर रहे हैं कि जब कंपनी मुनाफे में है और अपना काम बेहतरी से कर रही है ,ये बात सरकार भी मानती है फिर भी सरकार इसे बेचने पर क्यों तुली हुई है ?

आपको बता दें कि 2019  नवंबर महीने में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बीपीसीएल सहित शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया , पावर जनरेटर इंडिया और नॉर्थ ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पावर कॉर्प में सरकार की हिस्सेदारी को बेचने की मंजूरी दी थी। सरकार ने इसे रणनीतिक विनिवेश कहा था और बताया कि इससे जो राशि प्राप्त होगी, उसका उपयोग सामाजिक योजनाओं के वित्त पोषण में किया जाएगा जिससे लोगों को लाभ होगा।

हालांकि बीपीसीएल के कर्मचारी सरकार के इस फैसले का लगातार विरोध कर रहे थे और उन्होंने सरकार से सवाल किया था कि वो लाखों करोड़ों की बहुमूल्य कंपनी को कौड़ियों के दाम पर क्यों बेच रही है और कंपनी का निजीकरण करना देश के लिए आत्मघाती साबित होगा।

बीपीसीएल मुंबई (महाराष्ट्र), कोच्चि (केरल), बीना (मध्य प्रदेश), और नुमालीगढ़ (असम) में प्रतिवर्ष 38.3 मिलियन टन की संयुक्त क्षमता के साथ चार रिफाइनरियों का संचालन करती है, जो भारत की 249.8 मिलियन टन की कुल शोधन क्षमता का 15.3 प्रतिशत है.

BPCL के कर्मचारी सहित विपक्षी दल कांग्रेस, CPI (M) और अन्य क्षेत्रीय दलों सहित कई विपक्षी दलों ने बीपीसीएल की बिक्री का विरोध किया हैं।

(समाचार एजेंसी भाषा इनपुट के साथ)

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