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बेरोज़गारी, महंगाई और सांप्रदायिक नफ़रत से कराहते देश को बचाने के लिए जारी हुआ ‘बनारस घोषणा-पत्र’

बनारस में अर्से बाद गांधीवादी, मार्क्सवादी, अंबेडकरवादी सोच और पर्यावरण आंदोलनों से जुड़े लोगों के बीच बेरोज़गारी, महंगाई और सांप्रदायिकता के ख़िलाफ़ साझा मुहिम चलाने पर सहमति बनी, जिसमें संयुक्त रूप से "बनारस घोषणा-पत्र" जारी किया गया।
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बेरोजगारी, महंगाई और सांप्रदायिक नफरत से कराहते देश को बचाने के लिए बनारस के राजघाट स्थित सर्वसेवा संघ में देश भर से आए ऐसे योद्धाओं ने भाजपा के खिलाफ बिगुल फूंका जिनका हौसला आपातकाल में इंदिरा सरकार भी नहीं तोड़ पाई थी। दो दिवसीय राष्ट्र निर्माण समागम में जन-सरोकारों और लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए मुहिम चला रहे गांधी, विनोबा व जयप्रकाश नारायण की परंपरा से जुड़े स्वयंसेवक ही नहीं, किसानों-मजदूरों के लिए आवाज बुलंद करने वाले जनवादी सोच के लोग भी शामिल हुए।

संघर्ष वाहिनी समन्वय समिति के बैनर तले आयोजित इस कार्यक्रम में मौजूदा सत्ता के सबसे बड़े हथियार सीबीआई और ईडी से डरे बगैर फासीवादी ताकतों से सीधा मुकाबला करने का संकल्प लिया गया। साथ ही ऐसे लड़ाकों की टोली तैयार की गई जो आपातकाल की कैद से गुजर चुके हैं और अभी भी जातिवादी व सांप्रदायिक ताकतों से मुकाबला करने की ताकत रखते हैं। राष्ट्र निर्माण समागम में आए एक्टिविस्टों ने जनहित के मुद्दों पर जनजागरण और जनप्रतिरोध के जरिए साल 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा सरकार के ताबूत में आखिरी कील ठोंकने का संकल्प दोहराया। साथ ही मोदी मोदी सरकार की दमनकारी नीतियों पर जोरदार हमला भी बोला।

13 व 14 अगस्त 2022 को आयोजित राष्ट्र निर्माण समागम में देश भर से आए सौ से अधिक सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आरएसएस और भाजपा के कारपोरेट घरानों से गठजोड़ पर विस्तार से चर्चा की। सामाजिक कार्यकर्ताओं को बताया गया कि जनहित के मुद्दों पर देशव्यापी आंदोलन चलाने के लिए जगह-जगह बैठकें आयोजित की जा रही हैं। युवा संगठन हल्ला बोल, छात्र युवा हुंकार और युवा मंच मिलकर रोजगार के सवाल पर आंदोलन, पदयात्रा और जनसंवाद आयोजित कर रहे हैं। अब जनता को बताना पड़ेगा कि आरएसएस, भाजपा और कारपोरेट घरानों का गठजोड़ योजनाबद्ध ढंग से लोकतांत्रिक संस्थाओं को व्यवस्थित तरीके से खत्म करने के लिए मुहिम चला रहा है। फासीवादी ताकतों के दमन और आतंक से जनता को सावधान करने की जरूरत है। निर्णय लिया गया कि आसमान छू रही महंगाई और बेरोजगारी से त्रस्त जनता को नई राह दिखाने के लिए देश भर में पदयात्राएं निकाली जाएंगी और जनता के साथ बड़े पैमाने पर संवाद कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।

ट्रोल आर्मी खड़ी कर रही भाजपा

राष्ट्र निर्माण समागम के उद्घाटन सत्र में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने मोदी सरकार को आड़े हाथ लिया और कहा, "न्यायपालिका की हालत इतनी दयनीय हो गई है कि वह मानवाधिकारों की रक्षा करने के बजाय,  खुद मानवाधिकारों का हनन करने में जुट गई है। तीस्ता सीतलवाड़ और हिमांशु कुमार के खिलाफ फ़ैसले का उदाहरण हमारे सामने है। भारत में अब एक ऐसी अपसंस्कृति खड़ी की जा रही है जो देश का बेड़ा गर्क कर देगी। देश को अंधेरी सुरंग की ओर ले जाया जा रहा है, जहां लोकतंत्र सिर्फ पैसे का खेल बनकर रह गया है। देश में ज्यूडिशियल, इलेक्टोरल, एजूकेशनल और इंस्टिट्यूशनल रिफॉर्म्स की जरूरत है,  लेकिन खड़ी की जा रही है सोशल मीडिया की ट्रोल आर्मी। बेतहाशा महंगाई, बेरोजगारी के खिलाफ आवाज उठाने की जरूरत है। यह सिर्फ समय की जरूरत नहीं, हम सबकी जिम्मेदारी है। देश को नई मुसीबत और मुश्किलों से उबारने के लिए राष्ट्रव्यापी जनांदोलन खड़ा करने की जरूरत है।"

बेरोजगारी का मुद्दा उठाते हुए प्रशांत भूषण ने कहा, "यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर यूथ लामबंद हो सकता है। बेरोजगारी और महंगाई के मुद्दे पर ज्यादा से ज्यादा लोग हमारी मुहिम के साथ जुड़ सकते हैं। भाजपा सरकार से रोजगार के कानूनी अधिकार की मांग होनी चाहिए। मांग यह भी उठनी चाहिए कि सभी सरकारी रिक्तियां छह महीने के अंदर विश्वसनीय तरीके से भरी जाएं और निजीकरण पर रोक लगाई जाए। ठेके पर नौकरियों की व्यवस्था खत्म हो।"

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए जेपी आंदोलन से जुड़े प्रखर नेता प्रो. आनंद कुमार ने कहा, "देश में आजकल हिन्दू होने का अलग नशा है। कुछ दशक पहले देश ने सिख होने का नशा भी देखा है। 1947/48 के दौर में इस देश ने मुसलमान होने के नशे का असर भुगता है। हमारे सामने दो लक्ष्य हैं। पहला- गांधी, विनोबा और जयप्रकाश के विचारों से प्रभावित लोग लोकशक्ति के आधार पर स्वराज रचना के लिए एकजुट हों, ताकि राष्ट्रीय चुनौतियों का मुकाबला किया जा सके। दूसरा, एक जैसे राय वाले संगठनों से जुड़े सक्रिय लोगों और वाहिनी परंपरा से जुड़े स्वयंसेवियों के बीच सहयोग के आधार पर जन-जागरण और जन-प्रतिरोध की पुख्ता रणनीति तैयार की जाए। साल 2024 के लोकसभा चुनाव में फासीवादी ताकतों को तभी पराजित किया जा सकेगा जब हमारा मकसद सिर्फ जनहित होगा। हमें ऐसे लड़ाके तैयार करने होंगे जो जोखिम उठाने का हौसला रखते हों। मुहिम को तभी बल मिलेगा, जब फासीवादी ताकतों की कमजोरियों को हम समझेंगे और जनता को समझाएंगे। सांप्रदायिक और तानाशाह शासकों को हराने के लिए धीरज का होना चाहिए।"

जनता बेहाल, कारपोरेट घराने मालामाल

इंदिरा गांधी के आपातकाल की चर्चा करते हुए प्रो. कुमार ने कहा, "गांधी, विनोबा और जयप्रकाश की परंपरा से जुड़े लोग आपातकाल की लंबी कैद से गुजर चुके हैं। मौजूदा सत्ता के सबसे बड़े हथियार से इन्हें कतई डराया-धमकाया नहीं जा सकता है। बिना मुकदमे के लंबी कैद से भी इन्हें डराया नहीं जा सकता है। देश में यह ऐसी जमात है जो जातिवादी और सांप्रदायिक ताकतों का मुकाबला कर सकती है। इनकी क्षमता पर भरोसा किया जा सकता है, क्योंकि ये लोग विपरीत परिस्थियों से जूझने की दिमागी तैयारी रखते हैं। मीडिया में चल रहे प्रचार से प्रभावित होने की बजाय जन-साधारण के मन को समझने की कोशिश करनी चाहिए। महंगाई के बोझ से हर घर कराह रहा है, मगर सरकारी पार्टी का धन भंडार और मुट्ठी भर अरबपतियों का संपत्ति सागर लगातार बढ़ रहा है। समझने की बात है कि ऐसी स्थिति में भला कौन खुश हो सकता है? जब सरकारी प्रतिष्ठानों में 60 लाख से ज्यादा नौकरियां मौजूद हों और हर साल दो करोड़ लोगों को रोजगार देने का अधूरा व झूठा वादा हो तो बेरोजगारी से युवा आतंकित होंगे ही। आखिर यह जिम्मेदारी किसकी है? देश के बैंकों से हजारों करोड़ लेकर विदेश चले गए घोटालेबाजों के प्रति सरकारी उदासीनता के बारे में देश को जवाब चाहिए। इन ज्वलंत मुद्दों को ढांपने के लिए कब्रिस्तान-शमशान, हिन्दू-मुसलमान, भारत-पाकिस्तान जैसे जुमले उछाले जा रहे हैं। मौजूदा दौर में सत्ता प्रतिष्ठान की नीति और नीयत दोनों का इम्तिहान है। अब जनता की चुप्पी और भरोसा टूटने लगा है। मौजूदा समागम इसी सच का उदाहरण है। जेपी को जिन हालात में संपूर्ण क्रांति का आवाहन करना पड़ा था, आज देश के हालात उनसे कहीं अधिक बदतर हो चुके हैं।"

समाजवादी चिंतक प्रो. आनंद ने साफ-साफ कहा, "सरकारी एजेंसियों की मदद से अपने आलोचकों का मुंह बंद करने की बीमारी सिर्फ असफल सरकारों में ही पाई जाती है। अगर हमारा दामन साफ है तो एक नहीं, हजार जांचें करा ली जाएं, सच को आंच नहीं आएगी। आने वाले दिनों में सत्ताधीशों की कायराना हरकतों का पूरा हिसाब मांगा जाएगा। सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों की जननी हमारा समाज है। हमारा समाज जिस तरह निकम्मी सरकारों को इतिहास के कूड़ेदान में फेंक देता है वैसे ही निकम्मे विपक्ष का भी विकल्प समाज की शक्तियों से पैदा किया जाता है। नेहरू, इंदिरा, वाजपेयी के शासन में ऐसा ही हुआ था तो मोदी का शासन भी अपवाद साबित नहीं होगा।"

कमज़ोर लोगों से हमारी लड़ाई

समागम को संबोधित करते हुए जनवादी नेता अखिलेंद्र प्रताप सिंह ने कहा, "देश पहले भी निरंकुश सत्ता की बरगदी जड़ों को उखाड़कर फेंक चुका है। इन दिनों हमारी लड़ाई तो ऐसे लोगों से है, जिनकी जड़ें बेहद कमजोर हैं। प्रदेश और खासकर बनारस के लोगों की जिम्मेदारी बड़ी है, जिन्होंने बुलडोजर की अपसंस्कृति को गले लगाया है। विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका ही नहीं, प्रेस की आजादी भी खतरे में है। महंगाई और बेरोजागरी मार झेल रही जनता पर जीएसटी की मार ने ऐसा असर डाला है कि करोड़ों लोगों को दो वक्त की रोटी का इंतजाम करना दुश्वार हो गया है।"

"गौर करने की बात यह है कि देश में रोजगार पैदा करने वाले सरकार के लाभकारी उपक्रम पूंजीपतियों के हवाले किए जा रहे हैं। देश आर्थिक रूप से दिवालिएपन का शिकार होता जा रहा है। वैश्विक स्तर पर रुपये की कीमत और विदेशी मुद्रा भंडार में जबर्दस्त गिरावट ने जनता को ऐसे भंवर में फंसा दिया है, जिससे बाहर निकलने का जनता को कोई उपाय नहीं सूझ रहा है। भाजपा ने देश में फासीवाद का खतरा पैदा किया है। आरएसएस और भाजपा के साथ कारपोरेट घरानों के गठजोड़ से लोकतांत्रिक संस्थाओं का दिवाला पिटता जा रहा है। अब देर किए बगैर इनके खिलाफ लड़ाई शुरू करनी होगी।"

समाजवादी चिंतक विजय नारायण, रामधीरज, फिरोज गुड्डी, शुभमूर्ति, हिमांशु कुमार, किरन, मजहर,रामचंद्र राही, पूर्व सांसद डीपी राय, अमरनाथ भाई, रामजन, बल्लभाचार्य, मदन, राजीव, खालिद, बासंती, कंचन, किरन, रामशरण, नीति भाई, धनंजय, अनुज, मंथन के अलावा जागृति राही ने मोदी सरकार की नीतियों की कड़ी आलोचना करते हुए भाजपा सरकार पर कई बड़े सवाल खड़े किए और कहा, "किसानों-मजदूरों का शोषण, उनके प्रति सरकार की वादाखिलाफी, उपज का लाभकारी मूल्य देने से इनकार और कृषि व मजदूर विरोधी कानूनों ने अन्नदाता का जीवन बद से बदतर बना दिया है। नतीजा, किसानों की आत्महत्या और गांवों से उनका पलायन दोनों का ग्राफ आसमान छू रहा है। करोड़ों श्रमिकों की नौकरी और पेंशन की गारंटी नहीं रह गई है। नई शिक्षा नीति ने स्टूडेंट्स के लिए कठिन स्थिति पैदा कर दी है। शिक्षा व्यवस्था पूंजीपतियों के हाथ में चली गई है, जिससे गरीब और मध्यम तबके के बच्चों की पढ़ाई मुश्किल हो गई है। स्वास्थ्य और सुरक्षा के क्षेत्र में भी निजीकरण हो रहा है। जोड़-तोड़ से सरकारें बनाने और गिराने का खेल चालू हुआ तो राजनीति से शालीनता व सभ्य भाषा की जगह खुल्लम-खुल्ला अपशब्दों का प्रयोग शुरू हो गया। नाजुक दौर से गुजर रहे देश में योजनाबद्ध तरीके से अब भाईचारे की कमर तोड़ी जा रही है। ज्ञानवापी और मथुरा का विवाद इस बात के नजीर हैं।"

बनारस घोषणा पत्र 

बनारस में अर्से बाद गांधीवादी, मार्क्सवादी, अंबेडकरवादी सोच और पर्यावरण आंदोलनों से जुड़े लोगों के बीच बेरोजगारी, महंगाई और सांप्रदायिकता के खिलाफ साझा मुहिम चलाने पर सहमति बनी, जिसमें संयुक्त रूप से "बनारस घोषणा-पत्र" जारी किया गया। भारत की आजादी की 75वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर 11 राज्यों के तमाम स्वयंसेवकों की ओर से सर्व सम्मति से जारी बनारस घोषणा-पत्र में कहा गया है, "बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद को ध्वस्त करने की साजिश किसी आस्था के कारण नहीं, राजनीतिक फायदा उठाने और देश को सांप्रदायिक आधार पर देश को बांटने के लिए की जा रही है। यह सरकार देश का संविधान बदलकर मनुवादी व्यवस्था लागू करना चाहती है। इसके पीछे अल्पसंख्यकों, दलितों, पिछड़ों और महिलाओं को अघोषित रूप से गुलाम बनने का मकसद है।"  

"जनविरोधी कार्यों से अलोकप्रिय हो रही भाजपा जानबूझकर देश में सांप्रदायिक विभाजन पैदा कर रही है। इस सरकार पर पूंजीपतियों का नियंत्रण है, इसलिए उनके फायदे के लिए आम जनता का दोहन करना भाजपा सरकार की मजबूरी बन गई है। इनकी जनविरोधी नीतियों के कारण किसान, पशुपालक, छोटे उद्यमी व व्यापारी उजड़ रहे हैं। बड़े उद्योगों में आटोमैटिक मशीनें लगाकर श्रमिकों की छंटनी की जा रही है। बड़े पूंजीपतियों को कम दर पर ब्याज दिया जा रहा है और छोटे किसानों व व्यापारियों को महंगा कर्ज भी जल्द नहीं मिल रहा है। यह सरकार बैंकों की रकम हड़पने वालों को दिवालिया घोषित करने की योजना चला रही है। सरकारी प्रश्रय मिलते ही लुटेरे पूंजीपति विदेश भाग रहे हैं और देश कंगाल होता जा रहा है। गरीबों पर जीएसटी थोपी जा रही है।"

बनारस घोषणा-पत्र में यह भी कहा गया है, "सरकारी सीबीआई, एनआईए, ईडी आदि एजेंसियों का दुरुपयोग कर लोकतंत्र को खत्म करने पर तुल गई है। उसने कानूनों में इतने खतरनाक बदलाव कर दिए हैं जिससे लोकतंत्र के लिए उठने वाली आवाज को हमेशा के लिए जेल में डाल दिया जाए। दुर्भाग्य से इस सरकार ने न्यायपालिका पर भी नियंत्रण करने का औजार खोज लिया है। जनमानस को बदलने के लिए पूंजीपतियों द्वारा नियंत्रित मीडिया उसे अंध समर्थन दे रहा है। मौजूदा समय में सरकार लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव जीने में असमर्थ है। इसलिए उसने चुनाव आयोग पर भी नियंत्रण हासिल कर लिया है। पदाधिकारियों को डरा-धमकाकर चुनाव को प्रभावित कर रही है। चुनाव पर सबसे ज्यादा असर पूंजीपतियों से मिलने वाले कालाधान और इलेक्शन बांड का पड़ रहा है। इनके हजारों करोड़ के चंदे के लिए देशऱ का लोकतंत्र बिक गया है। विपक्षी दल भी सिर्फ चुनावी मशीन बनकर रह गए हैं। ऐसे में जरूरत है कि देश भर के अहिंसक सामाजिक संगठनों, जिनका मकसद चुनाव जीतना नहीं, उन्हें राष्ट्र नव-निर्माण के लिए एकजुट किया जाए। बेरोजगारी, महंगाई, चुनाव सुधार, लोकतांत्रिक संस्थाओं के पुनर्जीवन और राष्ट्रीय एकता के लिए पूरे देश में जन आंदोलन चलाया जाए।"

बनारस घोषणा-पत्र जारी करने से पहले राष्ट्र निर्माण को गति और दिशा देने के लिए आगामी दस महीनों में एक लाख नौजवान, दस हजार सत्याग्रही तैयार करने का निर्णय लिया गया। इस बाबत राष्ट्रीय संवाद/निर्माण अभियान समिति बनाने और हर समिति में 30 से 40 सदस्यों को शामिल करने के अलावा संयोजक मंडल बनाने का प्रस्ताव पारित किया गया। राष्ट्र निर्णाण समागम के मौके पर सर्वसेवा संघ की ओर से प्रकाशित अहिंसक क्रांति के पाक्षिक मुखपत्र सर्वोदय जगत के नए अंक का लोकार्पण किया गया।

(लेखक वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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