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बनारसः मस्जिद में ठहरे जमातियों को पुलिस ने खदेड़ा, मुतवल्ली और मौलवियों को नोटिस, लोगों में गुस्सा

"भारत में धार्मिक क्रिया-कलाप प्रतिबंधित नहीं है। ऐसे मामलों में पुलिस धारा 145 सीआरपीसी के तहत नोटिस जारी नहीं कर सकती है। बनारस में लगभग सभी मस्जिदों के मौलवियों और मुतवल्लियों को नोटिस जारी की गई है, जो संप्रदाय विशेष के लोगों को डराने-धमकाने की कार्रवाई मानी जा सकती है।"
Tablighi Jamaat

उत्तर प्रदेश के बनारस में पुलिस ने तब्लीग़ी जमात की इंट्री रोक दी है। 27 अगस्त को शहर के कुछ चुनिंदा मस्जिदों में ठहरे जमातियों को कमिश्नरेट पुलिस ने सिर्फ बाहर निकाला, बल्कि उन्हें खदेड़कर रेलवे स्टेशनों पर भेज दिया। जमातियों को भविष्य में बनारस नहीं आने की हिदायत दी गई है। इस बीच कमिश्नरेट पुलिस ने मस्जिदों के मौलवियों और मुतवल्लियों को नोटिस देते हुए भविष्य में जमात की कोई भी मीटिंग अथवा अन्य आयोजन नहीं करने की चेतावनी दी है।  आजाद अधिकार सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमिताभ ठाकुर ने इस मामले में कड़ी आपत्ति जताते हुए बनारस के कमिश्नरेट पुलिस के खिलाफ राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से शिकायत की है।

बनारस में तब्लीग़ी जमात कोरोना महामारी के दौर में चर्चा में आई थी। यह ऐसी संस्था है जो कागजों पर काम नहीं करती। इनकी कोई न वेबसाइट है,  न रजिस्टर और न ही कोई लेखा-जोखा। जालीदार टोपी, खुली दाढ़ी, पायजामा और कुर्ता जमातियों की पहचान होती है। ये खुद को अल्लाह की फौज कहते हैं और पूरे साल धार्मिक प्रचार में जुटे रहते हैं। मीडिया से इनका कोई सरोकार नहीं होता। बनारस की कुछ चुनिंदा मस्जिदों में इनकी मजलिसें होती रहती हैं। 27 अगस्त 2023 को इलाके की भोज बाबा की मस्जिद में जमातियों के मौजूद होने की आदमपुर थाना पुलिस को सूचना मिली। आनन-फानन में पुलिस मौके पर पहुंची और सभी को मस्जिद से निकाला गया और खदेड़कर कैंट रेलवे स्टेशन पर भेज दिया गया। पुलिस ने नई सड़क, नदेसर समेत शहर के कई मस्जिदों में तब्लीग़ी जमात के खिलाफ अभियान चलाया। जिन मस्जिदों में जमाती पाए गए, सभी को रेलवे स्टेशनों पर भेज दिया गया।

बनारस कमिश्नरेट पुलिस ने उन सभी मस्जिदों के मौलवियों और मुतवल्लियों को दफा 149 सीआरपीसी की नोटिस जारी की है, जहां अक्सर तब्लीग़ी जमात के लोग जुटा करते हैं। ऐसी ही एक नोटिस आदमपुर थाना पुलिस के प्रभारी निरीक्षक ने बनारस के छित्तनपुरा निवासी नसीम अहमद पुत्र हाजी बशीर अहमद को जारी की है। 29 अगस्त 2023 को जारी नोटिस में कहा गया है, "आपके मस्जिद में जमातियों की कोई मीटिंग अथवा कार्यक्रम आयोजित नहीं किया जाएगा। आपको सख्त निर्देश दिया जाता है कि शांति व्यवस्था बनाए रखने में अपना सहयोग दें। किसी भी हालत में बिना शासन-प्रशासन की अनुमति के कोई कार्यक्रम आयोजित नहीं किया जाएगा। अगर आप द्वारा कोई ऐसी मीटिंग अथवा कार्यक्रम आयोजित किया जाता है अथवा इस तरह के कार्यक्रम में भाग लिया जाता है तो आपके विरुद्ध नियमानुसार सख्त से सख्त विधिक कार्रवाई की जाएगी। "

मानवाधिकार आयोग से शिकायत

बनारस के मस्जिदों के मौलवियों और मुतवल्लियों को पुलिस द्वारा जारी नोटिस को आजाद अधिकार सेना ने गंभीरता से लिया है। सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमिताभ ठाकुर ने पुलिस की नोटिस को गैर-कानूनी बताते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को शिकायत भेजी है। अमिताभ ने कहा है, "धार्मिक आयोजनों पर रोक लगाया जाना प्रथम दृष्टया संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 का सीधा उल्लंघन जान पड़ता है। " उन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप करते हुए विधि विरुद्ध आदेश देने वाले पुलिस अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।

आजाद अधिकार सेना की प्रवक्ता डॉ. नूतन ठाकुर ने ‘न्यूज़क्लिक’ के लिए बात करने पर कहा, "बनारस पुलिस का नोटिस भारतीय संविधान का उल्लंघन है। भारत में धार्मिक क्रिया-कलाप प्रतिबंधित नहीं है। ऐसे मामलों में पुलिस धारा 145 सीआरपीसी के तहत नोटिसें जारी नहीं कर सकती है। बनारस में लगभग सभी मस्जिदों के मौलवियों और मुतवल्लियों को नोटिस जारी की गई है, जो संप्रदाय विशेष के लोगों को डराने-धमकाने की कार्रवाई मानी जा सकती है। किसी भी जमात को धार्मिक आयोजन करने से नहीं रोका जा सकता है। बनारस पुलिस ने जिस तरह का कार्रवाई की है वह न्यायोचित नहीं है, क्योंकि जमात के लोग राष्ट्र विरोधी कार्य नहीं, बल्कि धर्म का प्रचार कर रहे थे।"

नोटिस का मामला गरमाया 

बनारस में मस्जिदों के मौलवियों और मुतवल्लियों को दफा 149 सीआरपीसी का नोटिस जारी किए जाने का मामला गरमाता जा रहा है। मस्जिदों के संचालकों को नोटिस जारी करने के बाद पुलिस के अफसर इस बारे में मीडिया से कुछ भी कहने से बच रहे हैं, जबकि मुस्लिम समुदाय की धार्मिक संस्थाएं इसे अपने वजूद पर हमला करार दे रही हैं। बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली संस्था अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के संयुक्त सचिव एमएम यासीन कहते हैं, "बनारस की कमिश्नरेट पुलिस ने कई मस्जिदों से तब्लीग़ी जमात के लोगों को बेदखल करते हुए राज्य छोड़ने की हिदायत दी। बाद में मस्जिदों के मौलवियों को पुलिस ने नोटिसें जारी कर दी। पुलिस ने जो भी किया है, गलत किया है। उनका कृत्य विधि और संविधान के खिलाफ है।"

यासीन कहते हैं, "27 अगस्त की रात को बनारस के कई मस्जिदों से जमातियों को पुलिस ने बाहर निकाला और उन्हें जबरिया स्टेशनों पर ले जाकर छोड़ा। जमात के लोग कोई गलत काम नहीं कर रहे थे। वो अपने धर्म की बातें सिर्फ अपने लोगों से रहे थे। वो धर्मांतरण नहीं कर रहे थे। बनारस में सालों से जमातें आती रही हैं और धर्म के प्रचार के लिए आगे भी आती रहेंगी। हमने पुलिस की कार्रवाई पर कड़ा एतराज जताया है।"

क्या है तब्लीग़ी जमात

बनारस के वरिष्ठ पत्रकार अतीक अंसारी कहते हैं, "भारत में तीन इस्लामिक जमात हैं। इनमें जमात-ए-इस्लामी हिंद, जमीयत उलेमा-ए-हिंद और तब्लीग़ी जमात शामिल हैं। दिल्ली के हजरत निजामुद्दीन में दुनिया की सबसे बड़ी इस्लामिक संस्था तब्लीग़ी जमात का मरकज यानी हेडक्वार्टर है। जमात के लाखों सदस्य दुनिया के 80 से अधिक देशों में हैं, जिनमे पाकिस्तान, बांग्लादेश, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और अमरीका ख़ास हैं। मौलाना साद अपनी जमात के लाखों लोगों के रूहानी लीडर भी हैं। तब्लीग़ी जमात को लेकर यह भी कहा जाता है कि इन्हें बाकी दुनिया में क्या चल रहा है, उससे कोई मतलब नहीं। यही वजह भी है कि इस्लाम की बाकी संस्थाएं इन्हें बहुत पसंद नहीं करती हैं। जमात के लोग सिर्फ अल्लाह की बातें करते हैं। वो लोगों से कहते हैं कि आप मस्जिद आइए और रोज पांच वक्त की नमाज पढ़िए। वो नमाज करने का तरीका सिखाते हैं और जरूरी आयतें भी याद कराते हैं। तब्लीग़ी जमात दुनिया की सबसे बड़ी इस्लामिक जमात है, जिसके करोड़ों सदस्य हैं। जमात में शामिल लोग गश्त पर निकलते हैं, जिनमें एक अमीर होता है और वही टीम लीडर होता है। वही बात करता है और बाकी लोग सुनते हैं। जमात वालों की नज़रों में टीवी, फ़ोटो और फ़िल्में धर्म के ख़िलाफ़ हैं।"

"कोरोना महामारी के दौर में तब्लीग़ जमात और दिल्ली के हज़रत निज़ामुद्दीन स्थित उसका मरकज़ तमाम मीडिया चैनलों और अख़बारों की सुर्ख़ियां बना था। कुछ खबरिया चैनलों ने जमात को कोरोना वायरस फैलाने का वाली जमात बताना शुरू कर दिया था। तब्लीग़ी जमात ऐसे लोगों के समूह को कहा जाता है जो कुछ दिनों के लिए खुद को पूरी तरह तब्लीग़ी मिशन को को समर्पित कर देते हैं। इस दौरान उनका अपने घर, कारोबार और सगे-संबंधियों से कोई संबंध नहीं होता है। वे गांव-गांव, शहर-शहर, घर-घर जाकर मुसलमानों के बीच इस्लाम की बुनियादि शिक्षा का प्रचार करते हैं। इस दौरान इस्लामी शिक्षा के मुताबिक़ जिंदगी गुज़ारने के तौर तरीक़े सीखने और सिखाने का दौर चलता है। जमात से जुड़े लोग बाक़ी लोगों से अपने साथ जुड़ने का आग्रह करते हैं। इस तरह उनके घूमने को गश्त कहा जाता है।"

पत्रकार अतीक यह भी बताते हैं, "बहुत लोग जानते हैं कि तब्लीग़ी जमात की स्थापना 1927 में एक सुधारवादी धार्मिक आंदोलन के तौर पर हुई थी। यह धार्मिक आंदोलन इस्लाम की देवबंदी विचार धारा से प्रभावित और प्रेरित है। देवबंद से जुड़े तमाम मौलाना अपने नाम में अपने पैदा होने की जगह का नाम बड़े फख्र से जोड़ते हैं। यह पुराना चलन है और आज भी जारी है। जमात के मजलिसों पर पाबंदी लगाया जाना गैरकानूनी और विधि विरुद्ध है। बनारस में कमिश्नरेट पुलिस की इस कार्रवाई से मुस्लिम समुदाय के लोग भयभीत हैं। अल्पसंख्यक समुदाय को डरा कर रखना अनुचित और गैर-कानूनी है। अंकुश तो उन लोगों पर लगाया जाना चाहिए जो धर्म का चोला ओढ़कर सड़कों पर नंगा-नाच करते हैं और पुलिस तमाशबीन की भूमिका में होती है।"

(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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