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बनारस की पुलिस बन गई न्यायाधीश, बिना दस्तावेज़ी साक्ष्य जैन छात्रावास कर दिया दूसरों के हवाले!

"कमिश्नरेट पुलिस कोई जज नहीं है कि संपत्ति के मामले में कोई अनर्गल फैसला सुना देगी और उसे कोई मान लेगा। जिस मकसद से छात्रावास का निर्माण कराया गया है उसे कतई नहीं बदला जा सकता है।"
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पुलिस उत्पीड़न के बाद किताबें समेटकर जाने की तैयारी करते छात्र।

उत्तर प्रदेश के बनारस में कमिश्नरेट पुलिस अब न्यायाधीश की भूमिका में है। आरोप है कि महकमे के आला अफसरों की सरपरस्ती में लंका थाना पुलिस बीते 23 सितंबर 2022 की शाम नरिया इलाके के साहू शांति प्रसाद जैन छात्रावास में घुसी। कमरों का ताला तोड़ा और सारा सामान तहस-नहस कर दिया। वहां रहकर पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स ने विरोध किया तो पुलिस ने उनके साथ मारपीट और बदसलूकी की। बाद में नौ स्टूडेंट्स को उठाकर थाने ले गई और लाकअप में बंद कर दिया।

आरोप है कि गांजा-अफीम व असलहे की तस्करी और आपराधिक मुकदमों में फंसाने की धमकी देते हुए इलाके के एसीपी ने सभी स्टूडेंट्स से छात्रावास तत्काल खाली करने की अर्जी लिखवाई। साथ ही कई सादे कागजों पर दस्तखत कराया, तब उन्हें छोड़ा गया।

जैन छात्रावास के 22 कमरों में करीब 55 स्टूडेंट्स रहकर अध्ययन करते थे। पुलिस ने इनके माथे पर सबसे पहले ‘अराजकतत्व’ होने का आरोप चस्पा किया और संगीन अपराधों में फंसाने की धमकी देते हुए अगले दिन 24 सितंबर 2022 को छात्रावास खाली करा लिया।

टैंपो पर सामान लेकर जाते स्टूडेंट्स।

वाराणसी के नरिया स्थित जैन छात्रावास, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय परिसर से सटा है। कमिश्नरेट पुलिस की मदद से करोड़ों रुपये की यह संपत्ति अब दिगंबर जैन समाज काशी के कब्जे में आ गई है। मौके पर इनका बोर्ड भी लगा दिया गया है। इतना ही नहीं, जैन छात्रावास को अब धर्मशाला घोषित कर दिया गया है। 27 सितंबर 2022 को श्री दिगंबर जैन समाज से जुड़े दीपक जैन, आरसी जैन, विनोद जैन, तरुण जैन मीडिया से रुबरु हुए और छात्रावास खाली कराने के लिए पुलिस कमिश्नर ए.सतीश गणेश और उनकी पुलिस टीम की भूरी-भूरी प्रशंसा की।

जैन छात्रावास परिसर में कब्ज़े के बाद दिगंबर जैन समाज की ओर से नया होर्डिंग लगा दिया गया है।

जैन धर्मशाला खाली कराने के लिए पिछले एक हफ्ते तक चले हाईवोल्टेज ड्रामा के पीछे जो कहानी उभरकर सामने आई है उससे पुलिस अफसरों की भूमिका सवालों के घेरे में आ गई है। कमिश्नरेट पुलिस ने जिस जैन छात्रावास को दिगंबर जैन समाज से जुड़े लोगों के हवाले किया है उनमें किसी के पास ऐसा दस्तावेज नहीं है कि वह संपत्ति उनकी अथवा उनकी संस्था की है? सिवा एक पत्र के जो साल 1990 में यूपी के गृह विभाग के किसी अफसर ने बनारस पुलिस को मामले की जांच कर छात्रावास खाली कराने का निर्देश जारी किया था। इस मामले में सनसनीखेज सवाल यह खड़ा हुआ है कि कमिश्नरेट पुलिस के पास ऐसा कौन सा दस्तावेज था, जिसके आधार पर उसने जैन छात्रावास खाली कराया और उसे शहर के नामचीन कारोबारियों की संस्था के हवाले कर दिया?

कौन देगा इन सवालों का जवाब ?

 जैन छात्रावास पर कब्जा करने से पहले वहां पीले रंग के पन्ने पर दिगंबर जैन समाज की ओर से एक नोटिस चस्पा कराई गई। ऐसी छद्म नोटिस जिस पर किसी का नाम तक नहीं है। सिर्फ दस्तखत भर है, किसका है, वह भी पता नहीं? बड़ा सवाल यह है कि स्टूडेंट्स से जैन  छात्रावास खाली कराने के लिए क्या पुलिस के पास कोई अदालती निर्देश था अथवा पुलिस के अफसर खुद ही कोर्ट-कचहरी और न्यायाधीश बन गए? छात्रावास खाली कराने से पहले स्टूडेंट्स को क्या कोई कानूनी नोटिस जारी की गई?  अगर जैन छात्रावास दिगंबर जैन समाज की संपत्ति है तो पुलिस कमिश्नर ए.सतीश गणेश को धन्यवाद देने के लिए बुलाए गए संवाददाता सम्मेलन में कोई वैध दस्तावेज मीडिया के सामने क्यों नहीं रखा? क्या किसी अफसर की चिट्ठी को नजीर बनाकर करोड़ों की संपत्ति हथियाई जा सकती है? छात्रावास खाली कराने के लिए आखिर कानूनी प्रक्रिया क्यों नहीं अपनाई गई? छात्रावास में रह रहे लोग क्या पढ़ाई-लिखाई नहीं करते थे? क्या वो अपराधी और अराजकतत्व थे? गरीब छात्रों के लिए स्थापित किए गए जैन छात्रावास को क्या धर्मशाला में तब्दील किया जा सकता है?  बनारस की हजारों पुरानी इमारतों में अवैध कब्जों के मामले सिविल कोर्ट में चल रहे हैं, पर कमिश्नरेट पुलिस ने जैन छात्रावास को खाली कराने में दिलचस्पी क्यों दिखाई? जैन छात्रावास को दिगंबर जैन समाज के हवाले करने का आदेश योगी सरकार ने दिया था अथवा बनारस के कमिश्नर ए.सतीश गणेश ने? 

नरिया स्थित जैन छात्रावास पर कब्जे को लेकर खड़ा हुए ढेरों सवालों का जवाब ढूंढने के लिए न्यूज़क्लिक ने पड़ताल की तो पता चला की सब ‘गोलमाल’ है। छात्रावास को धर्मशाला में बदलने और कमिश्नरेट पुलिस की मदद से उस पर कब्जा करने वालों के पास उक्त संपत्ति का कोई आधारभूत दस्तावेज है नहीं। हालांकि छात्रावास में रहने वाले स्टूडेंट्स के पास भी कोई ऐसा अभिलेख नहीं है जिससे उनकी दावेदारी को सच माना जा सके।

लंका पुलिस ने जिस समय छात्रावास से स्टूडेंट्स को बाहर निकाला उस समय की कई तस्वीरें ‘न्यूज़क्लिक’ के पास मौजूद हैं। ढेर सारी पुस्तकें, फोल्डिंग चारपाई, गैस स्टोव आटो पर लादते हुए स्टूडेंट्स को देखकर ऐसा प्रतीत नहीं होता कि वो कोई अपराधी हों, जिनका जुड़ाव किसी बड़े माफिया गैंग से रहा होगा।

पुलिस ने यूं फेंका छात्रों का सामान

जैन छात्रावास खाली करने के लिए पुलिस ने जिन लोगों उठाया था उनमें अभिमन्यु गुप्ता बीएचयू के शोध छात्र हैं। प्रभात महान महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के शोध छात्र हैं। विनय बीएचयू में भाषा विज्ञान में रिसर्च स्कालर हैं। बृजेश, मनु और सुरेश की गिनती भी प्रतिभाशाली स्टूडेंट्स में की जाती रही है। यहां रहने वालों में बीएचयू के कुछ पुराने स्टूडेंट्स भी हैं।

जैन छात्रावास का आवंटन पहले बीएचयू के जैन समाज के सीनियर टीचर किया करते थे। छात्रावास में विधिवत मेस की व्यवस्था थी। रसोइया, सफाई कर्मचारी और कई अन्य स्टाफ की तैनाती रहा करती थी। कालांतर में छात्रावास का आवंटन बंद हो गया और सारी व्यवस्था ध्वस्त हो गई। सब कुछ स्वतःस्फूर्त चलने लगा। ग्रामीण परिवेश के गरीब छात्र आते-जाते रहे। जिनकी नौकरियां लग जाया करती थी, वो छात्रावास छोड़कर चले जाते थे।

पिछले दिनों किसान आंदोलन चला तो जैन छात्रावास में रहने वाले कुछ स्टूडेंट्स ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। दबिश देने के लिए पुलिस भी वहां जाने लगी। इसी बीच दिगंबर जैन समाज के लोगों ने पुलिस अफसरों से तालमेल बैठाया और बिना किसी वैध दस्तावेज अथवा बिना किसी कोर्ट के आदेश के करोड़ों की संपत्ति पर अपना कब्जा जमा लिया। इतना ही नहीं, छात्रावास कब्जाने के लिए कमिश्नरेट पुलिस ने पहले सभी कमरों का ताला तोड़ा और सामान निकलकर बाहर फेंक दिया। पुलिस ने उनकी साइकिलों और बाइकों की हवा तक निकाल दी। आरोप है कि पुलिस ने स्टूडेंट्स के साथ गुंडों की तरह बर्ताव किया। भगत सिंह छात्र मोर्चा-बीएचयू से जुड़े एक छात्र के कमरे में रखे कुछ पोस्टरों का वीडियो भी बनाया।

बनारस की कमिश्नरेट पुलिस के अफसर और छात्रावास पर कब्जा करने वाले जैन समाज के लोग अब मीडिया को बताते फिर रहे हैं कि जैन छात्रावास असामजिक तत्वों का अड्डा था। वहां रहने वाले स्टूडेंट्स मांस-मछली खाते थे और शराब भी पीते थे। अब उसे विधिवत खाली करा लिया गया है। पुलिस ने करोड़ों की संपत्ति जिन लोगों के हवाले की है उनमें छात्रावास पर दावा जताने वाले दिगंबर जैन समाज के अध्यक्ष अरुण जैन, प्रधान मंत्री-अरुण जैन, उपाध्याक्ष-राजेश जैन, आरसी जैन, विनोद जैन, समाज मंत्री-तरुण जैन में से अधिसंख्य लोग करोड़पति और नामचीन कारोबारी हैं। पुलिस अफसरों से इन सभी के अच्छे रिश्ते हैं। खासतौर पर उन पुलिस अफसरों से जिन्होंने विभिन्न पदों पर लंबे समय तक बनारस में नौकरियां की हैं।

टाइम्स ग्रुप के संस्थापक ने कराया था निर्माण

बनारस प्राचीन काल से ही जैन धर्म का प्रमुख केंद्र रहा है। सातवें तीर्थंकर श्री सुपार्श्वनाथ और तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ का लोकोपारी जन्म यहीं हुआ था। भदैनी और भैलूपुर में इनके मंदिर हैं। मैदागिन में एक विशाल धर्मशाला, मंदिर और एक महाविद्यालय भी है। नरिया में सन्मति निकेतन नाम का स्थान है, जहां कोई धर्मशाला नहीं है। अलबत्ता जैन मंदिर और इकलौता निःशुल्क छात्रावास है। यहां रहकर गरीब स्टूडेंट्स अध्ययन करते रहे हैं। महाकवि वृद वन, नरिया के इसी सन्मति निकेतन में रहते हुए अपनी काव्य रचना की थी। यहीं पर इनके पिता ने चैत्यालय बनवाया, जिससे धर्म की प्रभावना हुई थी।

जैन छात्रावास पर लगे शिलापट्ट के मुताबिक, उसका लोकार्पण 14 अप्रैल 1953 को किया गया था। गरीब स्टूडेंट्स के पठन-पाठन के लिए इस छात्रावास का निर्माण साहू शांति प्रसाद ने कराया था। 22 मई 1911 में जन्मे साहू शांति प्रसाद का निधन 27 अक्टूबर 1977 को गया था। साहू शांति प्रसाद ही भारतीय ज्ञानपीठ के संस्थापक रहे। इनका परिवार भारत का अग्रणी उद्यमी परिवार है। इनके परिवार के लोग टाइम्स समूह और इसकी पितृ संस्था बेनेट कोलमान ऐण्ड एवं कंपनी लिमिटेड के मालिक हैं। साहू शांति प्रसाद का संबंध अग्रवाल जैन समुदाय से है। वो मूलरूप से नजीबाबाद (बिजनौर जिला) के मूल निवासी थे। बाद में दिल्ली में कारोबार करने लगे। इनके द्वारा स्थापित भारतीय ज्ञानपीठ देश में साहित्य संबंधी गतिविधियों के संवर्धन और संरक्षण के लिए प्रमुख व प्रतिष्ठित संस्थान है।  साहू शांति प्रसाद जैन और श्रीमती रमा जैन द्वारा स्थापित ज्ञानपीठ आज भी साहित्यिक पुस्तकों का प्रकाशन करता है।  यह संस्था साल 1965 से लगातार हर साल देश के नामचीन साहित्यकारों को ज्ञानपीठ पुरस्कार और मूर्तिदेवी पुरस्कार देती आ रही है।

बनारस के नरिया में सन्मति जैन निकेतन संस्था का गठन साल 1946 में हुआ था। इसके पहले संस्थापक सचिव थे फूलचंद शास्त्री। आजादी के आंदोलन के दौरान वह साल 1942 में जेल गए। इन्हें जैन धर्म के अंदर कई सुधारवादी कार्यक्रमों का सूत्रधार भी मान जाता रहा है। वह जैन मंदिरों में दलित प्रवेश के हिमायती रहे। जैन समाज के खर्चीले रीत-रिवाजों और आडंबरों के खिलाफ उन्होंने अभियान भी चलाया था। वह जाने-माने अनुवादक थे। इनके प्रयास से ही नरिया में जैन छात्रावास के अलावा गणेशवर्णी शोध संस्थान की स्थापना हुई। साथ ही परिसर में जैन मंदिर का निर्माण भी कराया गया। यहां गणेशवर्णी शोध संस्थान है, जिसके बारे में यह तथ्य उल्लेखित है कि यह सन्मति जैन निकेतन द्वारा ली गई जमीन पर स्थापित है। गणेशवर्णी प्रतिष्ठान ने करीब 60 अधिक ग्रंथों का प्रकाशन कराया था। यह संस्था आज भी अस्तित्व में है। फूलचंद शास्त्री के पुत्र अशोक कुमार जैन (आईआईटी-रुड़की के रिटायर प्रोफेसर) इसके सचिव हैं। साहू फूलचंद जैन के प्रयास से ही सन्मति ज्ञान प्रचारिणी जैन समिति, जैन छात्रावास और जैन मंदिर का निर्माण किया गया था।

हॉस्टल पर लगे शिलापट्ट में साहू शांति प्रसाद जैन छात्रावास, सन्मति जैन निकेतन काशी, निर्माण वर्ष 11 अप्रैल सन 1953 अंकित है। संस्कृत में लिखे श्लोक में यह कहा गया है कि यह आर्थिक रूप से कमजोर और दूर-दराज से आए छात्रों के लिए इस छात्रावास की व्यवस्था मुफ्त की गई है। छात्र यहां रहकर अपनी पढ़ाई जारी रख सकते हैं और अध्ययन के बाद सम्मान, पद और आर्थिक उन्नति को प्राप्त हो सकते हैं।

जैन अभिलेखों में भी इस बात विस्तृत ब्योरा मौजूद है कि सन्मति जैन निकेतन की स्थापना विख्यात जैन विद्वान पंडित फूलचंद्र शास्त्री के नेतृत्व की गई थी। इसके लिए तत्कालीन उद्यमी रायबहादुर सेठ, हुकुम चंद, इंदौर, साहू शांति प्रसाद जैन (कोलकाता) और सेठ बैजनाथ सरवगी (रांची) जैसे परोपकारी लोगों ने आर्थिक मदद की थी। साल 1946 में जैन विद्वान फूलचंद शास्त्री ने सन्मति जैन निकेतन की स्थापना कराई और साल 1971 में उन्होंने सन्मति जैन निकेतन के परिसर में श्री गणेश वर्णी दिगंबर जैन (अनुसंधान) संस्थान, वाराणसी खुलवाया। टाइम्स ऑफ इंडिया के अध्यक्ष रहे साहू शांति प्रसाद जैन द्वारा बनवाए जैन छात्रावास में अरसे से रहकर स्टूडेंट्स अध्ययन और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे।

क्या माफिया की भेंट चढ़ गया छात्रावास?

जन-सरोकारीय पत्रकारिता करने वाले दिल्ली के एक संस्थान ‘जन-ज्वार’ की रिपोर्ट में कहा गया है, "बनारस का एकमात्र निःशुल्क जैन छात्रावास अब भूमाफिया की भेंट चढ़ गया है। 23 सितंबर, शुक्रवार को करीब शाम लगभग 6:30 बजे 15-20 की संख्या में अज्ञात पुलिसकर्मियों ने छात्रावास पर चढ़ाई कर छात्रों को भद्दी-भद्दी गालियां देते हुए कमरों में घुसकर उन्हें मारने-पीटने लगते हैं। छात्रों के मोबाइल फोन छीन लेते हैं। इतना ही नहीं बीएचयू में बीए, एमए, बीपीएड, पीएचडी और प्रतियोगी छात्रों के साथ पुलिस द्वारा अपराधियों जैसा सुलूक किए जाने से छात्र डर-सहम गए। घटना के दौरान छात्रों में अफरा-तफरी मच गई। पुलिस की बर्बरता यहीं नहीं रुकी। पुलिस ने छात्र विनय, बृजेश, मनु और सुरेश समेत कई छात्रों को थाने में ले जाकर गैर-कानूनी तरीके से बंद कर दिया। साथी ही हॉस्टल नहीं खाली करने पर गांजा, अफीम, असलहा और अन्य आपराधिक मुकदमों में फंसाने की धमकी देने लगी। पुलिसिया डर की वजह से सभी छात्र पलायन करने लगे हैं। लिहाजा, पहले ही ही आर्थिक कठिनाइयों का सामना कर रहे इन छात्रों को पढ़ाई और परीक्षा अधर में ही छूटने की आशंका है।"

"नरिया स्थित जैन छात्रावास में कुल 22 कमरे हैं। ये कमरे काफी पुराने और काम-चलाऊ हालत में हैं। आसपास 10-12 पेड़ों का छोटा सा बगीचा है। पास में ही कुआं है, जहां छात्र स्थान और कपड़े आदि साफ़ करते हैं। छात्र भोजन स्वयं बनाते हैं। ज्यादातर समय छात्र अध्ययन में जुटे रहते हैं। शौचालय और यूरिनल की स्थिति को बेहतर नहीं कहा जा सकता है। डरे-सहमे छात्र 24 सितंबर (शनिवार) को अपने-अपने कमरों में से किताब, चौकी, बेड-बिस्तरा, बर्तन व अन्य सामान समेट कर किराये के कमरे और दोस्तों के कमरे पहुंचाने में व्यस्त रहे।"

स्टूडेंट राजीव सिंह के हवाले से जनज्वार लिखता है, "हमारे पास उतने भी पैसे नहीं है कि तत्काल नए फ़्लैट या कमरे किराये पर ले सकें। ग़रीबी-ग़ुरबत में जैसे-तैसे चल रही पढ़ाई अब मुश्किल में आ गई है। कई छात्रों की यह डर सता रहा है कि जब पैसे और शहर में रहने के ठिकाने ही नहीं होंगे तो पढ़ाई बीच में छोड़कर घर तो लौटना ही होगा। समाज में हो रहे अन्याय के खिलाफ लड़ने वाले छात्रों को निशाना बनाया जा रहा है और कोई बोलने को तैयार नहीं है, यह गंभीर शोचनीय स्थिति है।"

"जानकारी जुटाने पर पता चला कि जैन छात्रावास का अपना इतिहास रहा है। बीएचयू में फीस वृद्धि, बीएचयू प्रशासन की मनमानी का विरोध, हॉस्टल में आरक्षण की मांग, जाति-महजब के मामलों में न्याय की मांग, छात्र आंदोलन और किसान आंदोलन को समर्थन आदि समते सैकड़ों मुद्दों पर इस छात्रावास के तकरीबन 50 से अधिक छात्र अग्रिम पंक्ति में खड़े होकर आंदोलन को धार देने का काम करते थे। जो स्थानीय बीजेपी नेता, दिगंबर जैन समाज काशी, पुलिस प्रशासन और बीएचयू प्रशासन के लिए आंख की किरकिरी बने हुए थे। साल 1953 में बने छात्रावास में पिछले छह दशकों से 50 से अधिक छात्र रहकर पढ़ाई व परीक्षाओं की तैयारी करते आ रहे हैं। बैगर सूचना और नोटिस के शुक्रवार की रात जैन मंदिर में बने गरीब छात्रों के लिए छात्रावास से छात्रों को पुलिस ने जबरन उठा लिया। छात्रों का आरोप है कि छात्रावास को खाली कराने के लिए लंका पुलिस और दिगंबर जैन मंदिर\समाज काशी ( शांति प्रसाद द्वारा बनवाए गए छात्रावास का ट्रस्ट अलग है) से जुड़े लोग अवैध तरीके से छात्रावास पर जबरन कब्जा करना चाहते हैं, जबकि छात्रावास को दूर-दराज से पढ़ने आए गरीब छात्रों को दिया गया था। छात्रावास की की भूमि पर सत्ता से जुड़े लोगों और भूमाफिया की नजर लंबे समय से नजर गड़ी थी। योजनाबद्ध ढंग से शनिवार की रात में चुपके से एक नोटिस भी चिपका दिया गया।"

जनज्वार की रिपोर्ट में विनय के हवाले से कहा गया है, "पिछले कुछ दिनों से कुछ संदिग्ध भू- माफिया, दिगंबर जैन मंदिर\समाज काशी व बदमाश किस्म के लोग लंका पुलिस से मिलीभगत करके हम सभी लोगों को गैर कानूनी तरीके से छात्रावास से बेदखल के फिराक में थे। उनके मसूबों के बारे में जानकारी होते बनारस के मंडलायुक्त को पत्र दिया गया। बिना किसी नोटिस या सूचना के हमारे कमरों का ताला तोड़ा गया और गैर-कानूनी तरीके से हमें पुलिस हिरासत में रखा गया। पुलिस गुंडई पर उतारू हो गई और हम सभी को डराया-धमकाया। पुलिस अब घर भी फोन कर भविष्य चौपट करने की धमकी दे रही है।" छात्र हर्ष पटेल के मुताबिक, एसीपी भेलूपुर प्रवीण सिंह ने हम सभी छात्रों को डराकर जबरन कई कागजों पर हस्ताक्षर करा लिया। साथ ही यह लिखवा लिया है कि अगले दिन शनिवार को दोपहर 12 बजे छात्रावास छोड़ देंगे। धमकी दी गई कि यदि छात्रावास खाली नहीं किया गया तो फर्जी केस में छात्रों को जेल में डाल दिया जाएगा। भूमाफिया और पुलिस गठजोड़ में हम सभी की पढ़ाई-लिखाई चौपट हो रही है।"

छात्र रामेंद्र कहते हैं, "साहू शांति प्रसाद जैन छात्रावास के स्थापनाकर्ता से जुड़े किसी व्यक्ति से हम सभी की बात नहीं कराई गई। दस्तावेजी साक्ष्य के साथ लंका थाना और एसीपी के दफ्तर में ट्रस्ट से जुड़ा कोई व्यक्ति मौजूद नहीं था। जबकि पुलिस हम सभी को यह कहकर उठा ले गई थी कि ट्रस्ट के लोगों से उनकी बातचीत कराई जाएगी। पुलिस नागरिक अधिकारों को नहीं मान रही है। हम लोगों को गांजा और अफीम की तस्करी में फंसाने की धमकी रही है। आप खुद बताइए कि क्या हम सभी स्टूडेंट्स तस्कर हैं? "

चालीस सालों से था अवैध कब्जाः पुलिस

नरिया के जैन छात्रावास से निकाले गए सभी स्टूडेंट्स परेशान हैं और इन्हें कहीं स्थायी ठौर नहीं मिला है। इन छात्रों ने पुलिस अफसरों के अलावा शासन-प्रशासन को तमाम शिकायती-पत्र भेजा है। पुलिस और कुछ लोगों का गठजोड़ कमिश्नरेट पुलिस की ओर से 26 सितंबर 2022 को सोशल मीडिया पर जारी एक ग्रुप मैसेज से भी पुष्ट होता है। बनारस शहर के तमाम व्हाट्सएप ग्रुपों में चलाए गए मैसेज में कमिश्नरेट पुलिस के हवाले से कहा गया है, "जैन धर्मशाला को 40 सालों से छात्रों की आड़ में असामाजिक तत्वों के कब्जे से मुक्त कराया गया है। दिगंबर जैन समाज ने मुक्तकंठ से इस कार्रवाई की प्रशंसा की है।  आगे इस धर्मशाला को समाज हित के कार्यों में उपयोग किया जाएगा। असामाजिक तत्वों का केंद्र बन गया था ये स्थान। नरिया इलाके के कई संभ्रांत ने भी इस कार्रवाई का स्वागत किया है।"

कुछ इसी तरह का बयान दिगंबर जैन समाज काशी अध्यक्ष दीपक जैन व उनके साथियों ने भी जारी किया है। मीडिया रिपोर्ट में कहा है कि इस प्रकरण में पूर्व में 5 मई 1990 को विशेष सचिव गृह, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा विषय का संज्ञान लेते हुए खाली कराने के लिए तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को निर्देशित किया गया था, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली। श्री दिगम्बर जैन मंदिर में कब्जा कर रह रहे असामाजिक तत्व कैंपस में मांस-मदिरा का प्रयोग करते थे और असामाजिक कार्य में लिप्त थे। जैन मंदिर कैंपस में शराब की बोतलें, अंडा और हड्डियां फेक दी जाती थीं। अहिंसक जैन समाज 40 वर्षों से यह प्रयास कर रहा है कि जरुरतमंद मरीजों के परिजन और बाहर से आने वाले दर्शनार्थियों के लिए यहां बने कमरों में रहने की सुविधा प्रदान की जा सके। श्री दिगम्बर जैन समाज ने काशी का एक प्रतिनिधिमंडल वाराणसी के पुलिस कमिश्नर ए. सतीश गनेश पुलिस मिला और उन्हें ज्ञापन सौंपा। उनके प्रयास से ही अवैध कब्जे को खाली कराने में सफलता मिली।

खास बात यह है कि दिगंबर जैन समाज काशी द्वारा बुलाए गए संवाददाता सम्मेलन में जब जैन छात्रावास से जुड़े दस्तावेजी साक्ष्य दिखाने को कहा गया तो वे संतोषजनक उत्तर नहीं दे सके। साथ ही छात्रावास पर अधिकार और कानूनी दस्तावेजों की प्रतिलिपि भी मुहैया नहीं करा सके।

पुलिस का हस्तक्षेप अवैध और अनैतिक?

छात्रों ने डीएम को पहले ही भेज दिया था शिकायती-पत्र

साहू शांतिप्रसाद जैन छात्रावास के स्टूडेंट्स विनय, मनु, सुरेश व बृजेश आदि ने शासन-प्रशासन को कई शिकायती-पत्र भेजा है,  जिसमें पुलिस और भूमाफिया के सांठगांठ का चिट्ठा खोला गया है। जैन छात्रावास से खदेड़े गए स्टूडेंट्स का आरोप है, "वे हास्टल में रहकर पढ़ाई-लिखाई और परीक्षाओं की तैयारी करते थे। पिछले कुछ दिनों से संदिग्ध भू-माफिया और बदमाश किस्म के लोग थाना पुलिस लंका से मिलीभगत करके हम सभी लोगों को गैर कानूनी तरीके से छात्रावास से बेदखल करने में जुट गए थे। हमें खदेड़ने के लिए 23 सितंबर की शाम अज्ञात पुलिसकर्मी छात्रावास पर आए और मां-बहन की भद्दी-भद्दी गालियां देते हुए कमरों में घुसकर मारपीट शुरू कर दी। हम सभी के मोबाइल फोन छीन लिए गए। भेलूपुर के एसीपी प्रवीण सिंह ने हमें डराकर-धमकाकर जबरिया अर्जी लिखवाई कि अगले दिन दोपहर 12 बजे तक हम छात्रावास छोड़ देंगे। अर्जी न लिखने पर हमें फर्जी केस में जेल में सड़ाने की धमकी दी गई। शहर के कुछ नामचीन लोगों ने पुलिस की मिलीभगत से उक्त छात्रावास पर अवैध तरीके से कब्जा कर लिया है। पुलिस को गैर-कानूनी तरीके से मारपीट करने और कमरों में घुसकर हमें बेदखल करने का कोई अधिकार नहीं है। उत्पीड़न में भू-माफिया के लंका थाना पुलिस और कई पुलिस अफसरों की साजिश, साठगांठ और मिलीभगत है।"

समाजवादी जन परिषद के अफलातून ने प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री के अलावा पुलिस कमिश्नर को शिकायती-पत्र भेजा है। पत्र में छात्रावास निर्माणकर्ता टाइम्स आफ इंडिया ग्रुप के अध्यक्ष रहे स्व. शांतिप्रसाद जैन और ‘सन्मति जैन निकेतन काशी’ के योगदान का उल्लेख करते हुए कहा है कि स्थापना काल (1953) से ही यह भवन छात्रावास रहा है। इसका संचालन’ सन्मति ज्ञानप्रचारिणी जैन समिति काशी’ करती है। इसका विवरण छात्रावास भवन में लगे संगमरमर के शिलालेख पर अंकित है। दिगंबर जैन समाज वाराणसी’ द्वारा पुलिस की मदद से कब्जा लेने की जो नोटिस लगाई गई है वह पूरी तरह से अवैध और गैर-कानूनी है। सन्मति ज्ञान प्रचारिणी जैन समिति द्वारा छात्रावास को हस्तांतरित करने और छात्रावास को धर्मशाला बनाने का विधिक प्रमाण है ही नहीं। ‘दिगंबर जैन समाज वाराणसी’ के गैर-कानूनी हित में पुलिस सहयोग दे रही है। सिविल मामलों में पुलिस का इस प्रकार का हस्तक्षेप अवैध, अनुचित और अनैतिक है।"

अफलातून ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा, "देश के बौद्धिक एवं शैक्षणिक जगत में विख्यात 'सन्मति जैन निकेतन' का योगदान अनुकरणीय रहा है। यहां निर्धन छात्रों के लिए मुफ्त छात्रावास और शोध के लिए पुस्तकालय मौजूद है। छात्रावास को धर्मशाला बताते हुए अतिक्रमणमुक्त करने के लिए कमिश्नरेट पुलिस के साथ कुछ लोग वाहवाही लूटने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि इस परिसर में धर्मशाला कभी थी ही नहीं। छात्रावास को धर्मशाला में नहीं बदला जा सकता। कमिश्नरेट पुलिस कोई जज नहीं है कि संपत्ति के मामले में कोई अनर्गल फैसला सुना देगी और उसे कोई मान लेगा। जिस मकसद से छात्रावास का निर्माण कराया गया है उसे कतई नहीं बदला जा सकता है। ऐसा प्रतीत होता है कि बगैर कोर्ट के आदेश अथवा बिना वैध कानूनी दस्तावेजों के कमिश्नरेट पुलिस ने छात्रावास से धर्मशाला बनाने के लिए अनैतिक सहयोग दिया है। हमारी संस्था पंडित फूलचंद शास्त्री के आदर्शों के साथ खड़ी है और वहां किसी तरह की व्यावसायिक गतिविधि का विरोध करती है।"

वरिष्ठ समाजसेवी व गांधीवादी नेता राजेंद्र चौधरी, जैन छात्रावास में रहने वाले स्टूडेंट्स पर पुलिसिया जुल्म और मारपीट का कड़ा विरोध करते हैं। वह कहते हैं, "जैन धर्मशाला और दिगंबर जैन समाज काशी मंदिर भी हॉस्टल की संपत्ति है। यहां के स्टूडेंट्स नागरिक कार्यों में सहयोग करते रहे हैं। दिगंबर जैन मंदिर\समाज काशी के कुछ स्वार्थी लोग छात्रावास के स्टूडेंट्स को बदनाम करते फिर रहे है और दस्तावेजी साक्ष्य मांगने पर बगलें झांकने लगते हैं। लगता है कि कमिश्नरेट पुलिस कानून व्यवस्था सुधारने के काम छोड़कर इन दिनों पूंजीपतियों और कारोबारियों का हित साधने में ज्यादा सहयोग दे रही है।"

"पुलिस की ऐसी ज्यादती अंग्रेजों के समय में भी नहीं हुई थी। कमिश्नरेट पुलिस के जैन समाज से जुड़े कुछ स्वार्थी तत्व गैर-कानून तरीके से छात्रावास को धर्मशाला में बदलकर करोड़ों की संपत्ति पर अवैध रूप से कब्जा करना चाहते हैं। यह कैसी नाइंसाफी है कि छात्रावास को यहां से उजड़ दिया जाए। बेहतर तो यह होता कि प्रशासन छात्रवास की मरम्मत कराती, गड़बड़ियों को दूर करती और पहले की तरह आवंटन, मेस आदि की व्यवस्था शुरू कराती। इस हास्टल में वही स्टूडेंट्स रह रहे थे जो पिछड़े और दलित तबके से आते हैं। मजबूरी में यहां रहकर शिक्षा ग्रहण कराते थे। अब इन्हें भी उजाड़ दिया गया। आखिर नया समाज कैसे बनेगा? "

(बनारस स्थित लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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