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बंगाल पंचायत चुनाव : विपक्ष ने टीएमसी की 'कमज़ोर नस' भ्रष्टाचार को बनाया मुद्दा

इसके अलावा, टीएमसी के प्रति मुस्लिमों का मोहभंग ग्रामीण चुनावों में ममता के समर्थन को नुकसान पहुंचा सकता है।
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फाइल फ़ोटो। PTI

कोलकाता: पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव 2023 में मतदाताओं के प्रति वाम-कांग्रेस की प्रतिबद्धता का पूरा का पूरा जोर 'लोगों की पंचायतें' बनाने पर है, जो भ्रष्ट प्रथाओं और आतंक और डराने-धमकाने की रणनीति को खत्म करेंगी, पंचायतों के लिए मतदान शनिवार, 8 जुलाई को होना है। पिछले वर्षों में एक ऐसा माहौल बना जिसने तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) शासन के तहत जमीनी स्तर की विकास गतिविधियों का माहौल खराब कर दिया है। आवंटित धन की हेराफेरी, ग्राम पंचायत पदधारकों की संपन्नता और विलासितापूर्ण जीवनशैली में स्पष्ट नज़र आ रही है।

इसलिए, वाम-कांग्रेस गठबंधन ने ग्रामीण बुनियादी ढांचे में सुधार और ग्रामीण लोगों के प्रति जवाबदेह होने के लिए प्रतिबद्ध 'लोगों की पंचायतों' की स्थापना को सर्वोच्च प्राथमिकता देने का वादा किया है।

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का 'संकल्प पत्र' भी भ्रष्टाचार को मजबूती से खत्म करने की बात करता है। इसके अलावा, इसमें कौशल विकास और प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करने का प्रस्ताव है ताकि लोगों को आजीविका के लिए दूसरे राज्यों में पलायन न करना पड़े। गौरतलब बात है कि भाजपा नेता अपने छपे शब्दों से परे चले गए हैं और मतदाताओं से वादा किया है कि पार्टी 100 दिन की नौकरी योजना और प्रधान मंत्री आवास योजना के तहत आवंटित धन के दुरुपयोग का पता लगाने के लिए केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा प्रतिनियुक्त अधिकारियों की टीमें जांच करेगी और पता लगाएगी कि इसे लागू करने में चूक कहाँ हुई है।

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने न्यूज़क्लिक को बताया कि जहां धन के दुरुपयोग के सबूत संदेह से परे हैं, पार्टी एफआईआर (प्रथम सूचना रिपोर्ट) दर्ज करेगी और दुरुपयोग किए गए धन की वसूली के लिए अन्य स्वीकार्य कदम उठाएगी। मजूमदार ने यह भी बताया कि पार्टी जिला परिषदों की सीटों को जीतने पर खास जोर दे रही है।

टीएमसी के दूसरे नंबर के नेता अभिषेक बनर्जी के अभियान से पता चलता है कि त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के मुद्दे पर विपक्ष द्वारा पार्टी को लगातार निशाना बनाए जाने के कारण पार्टी के शीर्ष नेताओं को उन लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की बात करने के लिए मजबूर होना पड़ा है जो भ्रष्टचार में लिप्त हैं। 

पार्टी सुप्रीमो ममता बनर्जी, जो चोट के कारण आभासी प्रचार तक सीमित हैं, ने मतदाताओं को याद दिलाया है कि केवल टीएमसी ही प्रचलित कल्याणकारी योजनाओं को लागू कर सकती है और इसलिए, टीएमसी उनकी स्वाभाविक पसंद होनी चाहिए। अपने भतीजे की तरह उन्होंने भी भ्रष्टाचार में लिप्त पार्टी सदस्यों के खिलाफ कार्रवाई की चेतावनी दी है।

इसलिए, पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव 2023, काफी हद तक, अदालतों - कलकत्ता उच्च न्यायालय और यहां तक ​​कि सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अपनी मांगों को स्थापित करने में विपक्ष की सफलता का प्रतीक है। जिसका सीधा मतलब है, विपक्ष के सुझावों का मुकाबला करने के लिए राज्य चुनाव आयोग (एसईसी) और राज्य प्रशासन की कार्रवाई [राजनीतिक आकाओं के आदेश पर] को अदालतों ने खारिज कर दिया है।

यह दर्शाता है कि इस बार विपक्ष, 2018 में बड़े पैमाने पर निर्विरोध चुनाव के विपरीत, टीएमसी कैडरों की बाधाओं और धमकियों के बावजूद बड़ी संख्या में नामांकन दाखिल करने में सक्षम क्यों रहे है।

विपक्ष ने अदालतों द्वारा बूथ स्तर पर भी केंद्रीय बालों की तैनाती का आदेश देकर बड़ी जीत हासिल की है। केंद्रीय बलों को तैनात करने में राज्य प्रशासन और एसईसी की अनिच्छा ने सारी ताकत खो दी क्योंकि अदालतों ने कहा कि लागत नई दिल्ली द्वारा वहन की जाएगी। इस प्रकार राज्य सरकार के लिए लागत वहन करने में वित्तीय असमर्थता की दलील देने की कोई गुंजाइश नहीं थी। जानकार हलकों का तर्क है कि आगे के लिए यह एक मिसाल बन सकती है।

हिंसा को रोकने के लिए राज्यपाल सी॰ वी॰ आनंद बोस के निर्देश और कार्य, जिनमें उन स्थानों का दौरा भी शामिल है जहां लोग हिंसा के शिकार हुए थे, उल्लेख के योग्य हैं। हमेशा की तरह, मुख्यमंत्री को राज्यपाल के कार्यों में एक 'षड्यंत्र' दिखाई देता है। उनकी पार्टी ने उन पर केवल उन जगहों पर जाने का आरोप लगाया जहां पीड़ित विपक्षी दलों से जुड़े हुए हैं।  बोस के कदमों की विपक्ष के कुछ वर्गों ने भी आलोचना की है; तर्क यह है कि राज्यपाल वह कर रहे हैं जो उन्हें नहीं करना चाहिए था। लेकिन, राज्यपाल दृढ़ता से लगे हुए हैं और उन्होंने कहा है कि वह "खून की होली की अनुमति नहीं देंगे"।

सभी की निगाहें 8 जुलाई पर टिकी हुई हैं, जिस दिन ग्रामीण मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे। चुनाव से पहले हुई हिंसा में पहले ही 15 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है, यह आंकड़ा 2018 में मतदान से पहले हुई मौतों की संख्या से मेल खाता है, जब पंचायत चुनाव की हिंसा के चलते बदनामी हुई थी और 34 प्रतिशत टीएमसी उम्मीदवार 'निर्विरोध' चुन लिए गए थे।

हो सकता है, मुसलमानों का एक वर्ग टीएमसी के प्रति वफादारी बदल सकता है, इस संभावना के मद्देनज़र और मतदाताओं 'मूड' को देखते हुए, इन दिनों टीवी बहसों में पार्टी के प्रवक्ता यह स्वीकार करते हुए दिखाई दे रहे हैं कि 2018 में जो हुआ वह गलत था।

चुनावी ज़मीन पर काम कर रहे वामपंथी और कांग्रेस नेता इस बात से सहमत हैं लोगों में कुछ संकेत दिखाई दे रहे हैं कि वे बदलाव चाह रहे हैं। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के मालदा जिला सचिव अर्नब मित्रा ने न्यूज़क्लिक को बताया कि भ्रष्टाचार के लगातार बढ़ते मामले, जिसमें प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण से कट-मनी की मांग, जबरन वसूली और भुगतान के लिए फर्जी दावे पारित करना शामिल है। ऐसा तब हुआ जब चक्रवात अम्फान के बाद 'राहत' का भुगतान किए गए जाने से लोग नाराज हो गए थे। लोग देख रहे हैं कि आवंटित धन से टिकाऊ ग्रामीण संपत्ति बनाने के बजाय, पंचायत पदधारक व्यक्तिगत संपत्ति बना रहे थे – जिसमें स्कॉर्पियो जैसी गाड़ी खरीदना और दो-तीन मंजिला घर बनाना शामिल है।

रोजगार/आजीविका के घटते अवसर बड़ी संख्या में लोगों को राज्य से बाहर प्रवास को मजबूर कर रहे हैं। मित्रा ने कहा, कुछ सप्ताह पहले ओडिशा में बालासोर के पास हुई रेल दुर्घटना में जान गंवाने वाले कोरोमंडल एक्सप्रेस के यात्रियों में मालदा जिले के कई युवा और अधेड़ उम्र के लोग शामिल थे।

मुर्शिदाबाद जिला सीपीआई (एम) के सचिव, जमीर मोल्ला के अनुसार, लोगों के मूड में बदलाव का कारण कृषि का भुगतान न करना भी हो सकता है, क्योंकि किसानों को उनकी उपज के लिए 'आखिरकार' जो कीमत मिलती है, उससे उनका पूरे साल गुजारा नहीं हो पाता है। इसलिए कामकाजी उम्र के लोग पश्चिम बंगाल के बाहर बेहतर कमाई के अवसर तलाशने के लिए  बाहर चले जाते हैं और यह बढ़ती प्रवृत्ति को दर्शता है। बाहर जाने वाले प्रवासियों का सबसे बड़ा हिस्सा मालदा और मुर्शिदाबाद से है।

जहां तक मुसलमानों का सवाल है, उच्च शिक्षा संस्थानों की प्रशंसनीय संख्या की उपलब्धता के कारण शिक्षित व्यक्तियों की संख्या बढ़ रही है। लेकिन, शिक्षित मुसलमान निराश हो रहे हैं क्योंकि उन्हें रोजगार के कोई अवसर नहीं दिख रहे हैं। उनमें यह भावना पनप रही है कि उनका वोट हल्के में लिया जाता है। अधिक हतोत्साहित करने वाली बात यह है कि जब वे कम पढ़े-लिखे या अशिक्षित पंचायत सदस्य खुले आम माल बनाते हुए पाए जाते हैं। मोल्ला ने न्यूज़क्लिक को बताया कि बदलाव की ज़मीन तैयार हो रही है।

प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष हाफिज आलम सैरानी काफी आशावादी नज़र आते हैं। उनका कहना है कि अगर लोग भयमुक्त माहौल में अपना वोट डाल सकेंगे, तो नतीजों से विपक्ष को 2018 की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करने में मदद मिलेगी।

कई जिला परिषदें विपक्षी दलों द्वारा जीती जा सकती हैं। यदि टीएमसी नेता 2018 में अपनी गलती स्वीकार करने में ईमानदार रहे हैं, तो नेतृत्व को स्वतंत्र और निष्पक्ष पंचायत चुनाव सुनिश्चित करना चाहिए। सैरानी ने न्यूज़क्लिक को बताया कि अदालतों के निर्देशानुसार, केंद्रीय बालों बड़ी संख्या में तैनाती से स्थिति में कुछ बदलाव आना चाहिए।

इस बीच, ममता बनर्जी ने बुधवार को अपने आभासी अभियान में यह बताने की कोशिश की कि विजयी विपक्षी उम्मीदवार अंततः उनकी पार्टी में शामिल होंगे। राजनीतिक विश्लेषकों का तर्क है कि मुख्यमंत्री मामता बनर्जी का इस किस्म का बयान दर्शाता है कि टीएमसी के मुस्लिम समर्थन सेंघ लग रही है जो विपक्ष के बेहतर प्रदर्शन होने की संभावना को दर्शाता है। 

लेखक कोलकाता स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

अंग्रेज़ी में मूल रुप से प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :

Bengal Panchayat Polls: Opposition Thrust on Corruption as TMC’s Key ‘Weak Point’ Gaining Traction

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