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बंगाल चुनाव: महिला विरोधी, अभद्र भाषा पर टिका भाजपा का प्रचार

बात बोलेगी: राजनीतिक मर्यादा की तमाम सीमाओं को तोड़ते हुए, जिस तरह से भाजपा ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर हमला बोला, उन्हें साड़ी छोड़ बरमूडा पहनने की ओछी सलाह दी, इससे उसका स्त्री विरोधी चेहरा एक बार फिर उजागर हुआ।

पश्चिम बंगाल में पहले चरण के लिए चुनाव प्रचार आज, गुरुवार की शाम थम जाएगा। लेकिन जिस तरह की गंदगी और अभद्र भाषा का इस्तेमाल हुआ है—उसकी धूल लंबे समय तक राजनीतिक माहौल को दूषित करती रहेगी। भारतीय जनता पार्टी के सांसद, पश्चिम बंगाल के अध्यक्ष दिलीप घोष ने जिस तरह से ममता बनर्जी पर अश्लील-अभद्र-सेक्सिट टिप्पणी की है, उससे एक बार फिर भाजपा का स्त्री विरोधी चेहरा हमारे सामने आया है। इसे लेकर तमाम हिस्सों में आक्रोश तो है ही, साथ ही बंगाल की शालीन संस्कृति पर चोट की तरह भी इसे लोग देख रहे हैं। औऱ, यह सब बिल्कुल सोची-समझी रणनीति के तहत किया जा रहा है—ताकि ममता बनर्जी को एक मजाक का विषय, एक कमजोर स्त्री के रूप में बंगाली मतदाताओं के दिमाग में बैठाया जा सके।

बहुत सीधी सी बात ममता बनर्जी की राजनीति, उनके क्रियाकलापों से 100 फीसदी नाराजगी, असहमति और विरोध होने के बावजूद, इस तरह के बयान -भाषणों का ना तो समर्थन किया जा सकता है और ना ही उन्हें जगह दी जा सकती है। भाजपा के बहुत से नेता और उनके समर्थक इस बयान को चुनावी बयान, भाषणों में सब कुछ चलता है—कहकर जायज ठहरा रहे है। इसी से पता चलता है कि वे महिला की गरिमा को किस तरह से मटियामेट करने में विश्वास रखते हैं।

झूमा घोष

इस बारे में जब हमने मेदिनिपुर में एक ढाबा चलाने वाली महिला—झूमा घोष से बात की तो उन्होंने कहा यह कथन सभी औरतों पर गंदी सोच को दर्शाता है। कोई नेता कैसे किसी भी महिला को यह कह सकता है कि तुम्हें अपनी टांग दिखानी है तो तुम छोटी पैंट पहनो, साड़ी नहीं। ये गंदी बात है। मैं भी साड़ी पहनती हूं, बंगाल में हम औरतें अभी भी ज्यादा साड़ी पहनती हैं, ऐसा बोलकर दिलीप घोष हम सब औरतों को बदनाम कर रहे हैं। वे जब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बारे में ऐसा बोल सकते हैं, जो इतनी ताकतवर हैं, उनका मंच से मज़ाक उड़ा सकते हैं, तो आप सोचो वे हम जैसे मेहनत करने वाली औरत को कितनी गंदी नज़र से देखते होंगे।

ऐसा पहली बार नहीं है जब दिलीप घोष ने आपत्तिजनक टिप्पणी की है। भाजपा में उनका राजनीतिक कद इस तरह के बयानबाजी, भाषणों के साथ लगातार बढ़ता गया है। दरअसल, भाजपा एक दूसरे ढंग का आक्रामक, पुरुषवादी राजनीतिक विमर्श को आधार बनाकर अपना वोट बैंक बढ़ाती रही है। इसी क्रम में सिने अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती का कोबरा वाला डायलॉग या श्मशान घाट पहुंचाने वाला भाषण याद किया जा सकता है। इसमें भी निशाने पर ममता ही थी।

हल्दिया में एक स्कूल में टीचर आइशी मुखोपाध्याय ने इसी से जुड़ा दूसरा सवाल उठाया, मुझे पहले विश्वास नहीं हुआ कि जो पार्टी बंगाल में सरकार बनाने का दावा कर रही है, वह इतनी अश्लील टिप्पणी करेगी। फिर मैंने खुद दिलीप घोष के भाषण को सुना। उनके भाषण पर जिस तरह से लोग हंस रहे थे, तालियां बजा रहे थे, वह मेरे लिए ज्यादा खौफनाक था। मैंने सोचा कि अगर इन लोगों के सामने अभी ममता बनर्जी होतीं तो ये लोग उनके साथ क्या सलूक करते। ऐसे ही लोग, ऐसे ही विचार औरतों पर हिंसक सोच को बढ़ावा देते हैं। बंगाल में सार्वजनिक तौर पर औरतों का अपमान करना बुरा माना जाता रहा है। ऐसा नहीं कि यहां के मर्द औरत पर जुल्म नहीं करते, लेकिन पब्लिक लाइफ में यह शर्म की बात रही है। स्त्री शक्ति का सम्मान करना, बंगला की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। मैं ममता बनर्जी की समर्थक नहीं हूं, तृणमूल को वोट भी नहीं देती हूं, लेकिन इस अपमान की घोर निंदा करती हूं।

चुनावी समर में इस तरह से औरत की निजता और उसके पहनावे, उसकी उम्र, उसको मायके भेज दिये जाने, उसकी चोट का माखौल उड़ाने, प्लास्टर कटने, बैंडेज लगने जैसे बयान देकर भाजपा ने निश्चित तौर पर रविंद्रनाथ टैगोर, शरतचंद्र, राजा राममोहन राय सहित अनगिनत स्त्री मुक्ति कामी स्वरों का निषेध किया है। 

(भाषा सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और विधानसभा चुनाव कवर करने के लिए न्यूज़क्लिक की टीम के साथ बंगाल के दौरे पर हैं।) 

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