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बिहार: “भाजपा शासन का 9 साल, तबाही और बर्बादी का काल”

मोदी सरकार का फासीवादी चरित्र इसी से समझा जा सकता है कि जब देश की राजधानी दिल्ली में प्रधानमंत्री नए संसद भवन का उद्घाटन कर रहे थे, ठीक उसी समय यौन उत्पीड़न के दोषी भाजपा सांसद व कुश्ती संघ अध्यक्ष की गिरफ़्तारी की मांग कर रहीं देश की महिला पहलवानों को सड़कों पर घसीटा जा रहा था।
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मोदी सरकार का फासीवादी चरित्र इसी से समझा जा सकता है कि जब देश की राजधानी दिल्ली में प्रधानमंत्री नए संसद भवन का उद्घाटन कर रहे थे, ठीक उसी समय यौन उत्पीड़न के दोषी भाजपा सांसद व कुश्ती संघ अध्यक्ष की गिरफ़्तारी की मांग कर रहीं देश की महिला पहलवानों को सड़कों पर घसीटा जा रहा था।

जानकारों के अनुसार आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र केंद्र में काबिज़ सत्ताधारी दल-गठबंधन, जहां नित नए शगूफों से मतदाताओं व जनता के सामने चर्चा में बने रहने की हरचंद कवायद में लगा हुआ है वहीं संभवतः बिहार ऐसा प्रदेश है जहां वाम दलों समेत सभी गैर भाजापा राजनीतिक दलों का साझा मोर्चा ‘महागठबंधन’ भी उसके समानांतर अपनी ज़मीनी राजनीतिक सक्रियता के जन अभियानों की श्रृंखला जारी रखे हुए है। ताकि जुमलेबाज़ सत्ताधारी दल के हर प्रपंच का कारगर राजनीतिक काट दिया जा सके।

इसी के नए चरण के तौर पर 15 जून को पूरे बिहार में महागठबंधन के आह्वान पर मोदी सरकार के 9 साल के कुशासन के भंडाफोड़ के लिए राज्यव्यापी प्रतिवाद अभियान की शुरुआत की गयी। मार्के की बात है कि झुलसा देनेवाली तपिश और तीखी गर्मी का सामना करते हुए बिहार का शायद ही ऐसा कोई प्रखंड/इलाका होगा जहां सैकड़ों की तादाद में महागठबंधन दलों के नेता व कार्यकर्त्ता सड़कों पर न उतरे हों।

केंद्र में भाजपा शासन के 9 साल पर जनता के खज़ाने से किये जा रहे भव्य प्रचार और राजशाही अंदाज़ के सरकारी समारोहों के समानांतर महागठबंधन द्वारा “भाजपा शासन का 9 साल, तबाही और बर्बादी का काल” करार देते हुए यह ज़मीनी राजनीतिक जन अभियान संगठित किया गया। जिसे महागठबंधन में शामिल सभी दलों ने पूरे जोशो खरोश के साथ सफल बनाया। राज्य के वामपंथी दलों में भाकपा माले, सीपीएम व सीपीआई समेत महागठबंधन के सभी प्रमुख घटक दल जदयू, राजद व कॉंग्रेस के प्रमुख नेताओं और विधायकों के नेतृत्व में सैकड़ों कार्यकर्ता पूरी एकजुटता के साथ सड़कों पर उतरे।

इस राज्यव्यापी अभियान के तहत प्रदेश के सभी जिलों और शहरों के साथ साथ तमाम प्रखंड मुख्यालयों के समक्ष धरना-प्रदर्शन व विरोध-मार्च इत्यादि कार्यक्रम हुए। जिसमें काफी संख्या में ग्रामीण महिलाएं, खेत मजदूर-किसान और छात्र-नौजवानों की उत्साहजनक भागीदारी रही।

इस जन अभियान के माध्यम से प्रदेश के मतदाताओं व जनता को पूरे तर्कों-तथ्यों के साथ बताया गया गया कि- किस तरह से मोदी-शासन का 9 साल पूरे देश की जनता के लिए चरम तबाही-बर्बादी, लूट-दमन और नफ़रती राजनीति का भयावह दौर साबित हुआ है। जिसने हर वर्ग के लोगों पर बेलगाम महंगाई का कहर बरपा रखा है। मोदी सरकार ऐसी पहली सरकार है जिसने खाद्य पदार्थों से लेकर छात्रों के पाठ्य पुस्तकों व सभी प्रकार के अध्ययन सामग्रियों पर बेतहाशा टैक्स (जीएसटी) लगा रखा है। रसोई गैस की क़ीमत 1300 रु. प्रति सिलिंडर पार कर गयी है। जिससे तंग-तबाह हो रहे लोग फिर से “गोइंठा-लकड़ी पर खाना पकाने” का रास्ता अपनाने पर मजबूर कर दिए गए हैं। यह भी साफ़ हो गया है कि कैसे जनता को दी जा रही गैस-सब्सिडी को ख़त्म करने के ही लिए “उज्ज्वला गैस योजना” का हथकंडा अपनाया गया। हर साल दो करोड़ रोज़गार देने का वादा भी पूरी तरह से झूठा साबित हुआ। विगत 75 वर्षों में देश में बेरोज़गारी की ऐसी भयावह स्थिति कभी नहीं आई थी। लेकिन तब भी सभी केन्द्रीय संस्थानों में लाखों पद खाली पड़े हुए हैं और नियुक्तियां नहीं की जा रहीं हैं।

यह भी सच खुलकर सामने आ गया है कि “अच्छे दिन” का झांसा देकर लोगों का वोट झटकने वाली मोदी-सरकार ने “प्रचंड बहुमत” का इस्तेमाल सिर्फ चंद कॉर्पोरेटों को अकूत धनपति बनाने के लिए किया है। वहीं देश के आम जनों के कल्याण के लिए वर्षों से जारी शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य, सिंचाई व मनारेगा समेत सभी ग्रामीण व कल्याणकारी योजनाओं के मद में लगातार कटौती कर पूरी तरह समाप्त करने पर अमादा है। लचर स्वास्थ्य व्यवस्था और प्रवासी मजदूरों के प्रति इस सरकार की बेरुखी और चरम उपेक्षा को “कोरोना व लॉकडाउन की अमानवीय स्थितियों” ने पहले से ही बेनक़ाब कर रखा है। इसी तरह से 2022 तक सभी गरीबों को आवास देने का वादा पूरी तरह से झूठ साबित तो हुआ ही है उलटे पूरे देश में जगह जगह गरीबों के बसे-बसाए झुग्गी-झोपड़ियों पर बुलडोज़र चलाकर बेघरबार किया जा रहा है। जिसमें कई मासूमों की जानें भी जा चुकी हैं। “मुफ्त अनाज” देने का शोर मचाकर जनवितरण प्रणाली व खाद्यान्‍न योजना को हमेशा के लिए ख़त्म कर गरीबों को भूखों मार देने की साजिश ज़ोरों पर है।

नोटबंदी और जीएसटी की मार से सभी छोटे-मंझोले व्यवसायी अभी उबरे भी नहीं थे कि अचानक से 2000 रु. के नोट बंद करने का ऐलान कर “काला धन पर रोक लगाने” का जुमला फिर से उछाल दिया गया। आकंड़ों समेत पुख्ता सूचनाएं आ रहीं हैं कि इसके जरिये “काला धन वालों” की अकूत संपत्ति को रातों रात “उजला” बना दिया गया।

गौर तलब है कि महागठबंधन द्वारा सभी सरकारी योजनाओं में सभी समुदायों के लिए न्यायसंगत व समावेशी विकास की गारंटी के लिए ‘जाति आधारित जनगणना’ की मांग को केंद्र सरकार ने सिरे से नकार दिया। निराश होकर जब बिहार में यह जनगणना करने की कोशिश की भी गयी तो “न्यायिक-तिकड़म” से उसे भी रोक दिया गया। दलितों-पिछड़ों के संवैधानिक आरक्षण में कटौती कर उसे समाप्त कर देने के लिए भी मोदी-सरकार नित नए हथकंडे अपना रही है।

देश के किसानों के साथ किया गया विश्वासघात सबकी आंखों के सामने है। खेती पर कॉर्पोरेटी कब्जा कराना मानो मोदी-सरकार का प्रमुख लक्ष्य बना हुआ है। यही वजह है कि एमएसपी कानून बनाने का मामला लगातार लटका कर रखा जा रहा है।

यह सच अब पूरी तरह से सर चढ़कर बोल रहा है कि संघ-भाजपा संचालित धर्मिक उन्माद-उत्पात अपने चरम पर है। इसी 28 मई को पूरे वैदिक मंत्रोच्चार के बीच जिस प्रकार से एक राजा के राज्याभिषेक की तरह नरेंद्र मोदी जी ने देश के नए संसद भवन का उद्घाटन किया, वह मोदी-शासन के वास्तविक चरित्र और देश के अंधकारमय भविष्य का ही स्पष्ट संकेत है।

नए संसद भवन के शिलान्यास के समय तत्कालीन राष्ट्रपति को दलित होने और इसके पूर्ण होने के उदघाटन समारोह में वर्तमान राष्ट्रपति को आदिवासी होने के कारण उन्हें राष्ट्र के प्रथम नागरिक के सम्मान से भी वंचित कर दिया जाना, मनुवादी नीति-संस्कृति थोपने के खतरे को भी साफ़ दिखला रहा है।

मोदी सरकार का फासीवादी चरित्र इसी से समझा जा सकता है कि जब देश की राजधानी दिल्ली में प्रधानमंत्री नए संसद भवन का उद्घाटन कर रहे थे, ठीक उसी समय यौन उत्पीड़नकारी भाजपा सांसद व कुश्ती संघ अध्यक्ष की गिरफ्तारी की मांग कर रहीं देश की महिला पहलवानों को सड़कों पर घसीटा जा रहा था।

देश के संविधान और संघीय ढांचे पर हमला बोलना इस सरकार की स्थायी आदत बन चुकी है। जिसने विपक्षी दलों व उनके नेताओं को निशाना बनाने के लिए ईडी-सीबीआई को अपना हथियार बना रखा है।

इस जन अभियान के माध्यम से महागठबंधन दलों ने पिछले दिनों राज्य के कई इलाकों में संघ-भाजपा प्रायोजित उन्माद-उत्पात कांडों के ख़िलाफ़ एक स्वर से चेताते हुए कहा है कि बिहार को गुजरात-यूपी नहीं बनने दिया जाएगा। साथ ही भाजपा के तबाही-बर्बादी वाले “गुजरात मॉडल शासन” के विकल्प के लिए अब जनता की व्यापक एकता आधारित जन संघर्षों के ‘बिहार मॉडल’ से दिया जाएगा। राज्य की जानता से भी यह अपील की गई कि आनेवाले लोकसभा चुनाव में देश-संविधान और लोकतंत्र को बचाने के लिए भाजपा सरकार को हर स्तर पर उखाड़ फेंकना, समय की मांग बन गयी है। जिसके लिए पूरे विपक्ष को ज़मीनी स्तर पर एकजुट होना होगा।

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