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बिहार : भीषण ठंड और कोरोना में सैकड़ों किमी भटकने के लिए मजबूर बीपीएससी के परीक्षार्थी

परीक्षार्थी परेशान हैं क्योंकि उन्हें अनजान जगह जाकर अपने रहने-खाने की व्यवस्था करनी है और परीक्षा केंद्रों को तलाश करना है। मगर बीपीएससी की तरफ से साफ कर दिया गया है कि ये सेंटर किसी भी सूरत में बदले नहीं जायेंगे।
बिहार

सर मैं सुपौल जिले का रहने वाला हूं और मेरा बीपीएससी पीटी एक्जाम का सेंटर सासाराम दे दिया गया है। मुख्यमंत्री महोदय और शिक्षा मंत्री महोदय से अनुरोध है कि कृपया मेरा सेंटर चेंज करवायें। –कुमार राजीव

कोरोना और भीषण ठंड का मौसम है, ट्रेन औऱ बस ठीक से चल नहीं रहे। इसलिए अनुरोध है कि बीपीएससी प्रत्याशियों को उनके घरों के आसपास परीक्षा केंद्र उपलब्ध करायें। –अमित नारायण

ऐ बीपीएससी वाले क्या तुम अगली परीक्षा में अब नेपाल और बांग्लादेश में भी हमारा सेंटर देने वाले हो। क्या तुम छात्रों की तकलीफ नहीं समझते? कृपया हमारे घर के आसपास हमारा सेंटर दो, हमारी मुसीबतों को समझो। –अमित कुमार सुमन

ट्विटर पर इन दिनों ऐसे हजारों ट्वीट नजर आ रहे हैं। ये सभी ट्वीट #bpscchangecentre के हैशटैग के साथ किये जा रहे हैं। ये ट्वीट उन परीक्षार्थियों के हैं, जो बीपीएससी (बिहार लोक सेवा आयोग) की 66वीं प्रारंभिक परीक्षा में शामिल होने जा रहे हैं। बीपीएससी द्वारा उनका परीक्षा केंद्र उनके घरों से काफी दूर दे दिया गया है। इस कोरोना काल में जब बहुत कम संख्या में रेलगाड़ियां चल रही हैं, बसें भी सीमित संख्या में चलायी जा रही हैं, सोशल डिस्टेंसिंग का भी ख्याल रखना है। ऐसे में इन छात्रों को अपने घरों से सैकड़ों किमी दूर अनजान जगहों तक यात्रा करना एक असंभव सा काम लग रहा है।

इन छात्रों को इन अनजान जगहों में जाकर अपने रहने और खाने पीने की व्यवस्था करना है और दूरदराज में स्थित अपने परीक्षा केंद्रों की तलाश करना है। वह भी तब जबकि पूरे राज्य में भीषण ठंड पड़ रही है और कोरोना का प्रकोप है। इसलिए ये छात्र परीक्षा की तैयारी के साथ-साथ ट्विटर पर परीक्षा केंद्र में बदलाव के लिए आंदोलन भी चला रहे हैं। मगर बीपीएससी की तरफ से एक संक्षिप्त पत्र जारी कर साफ कर दिया गया है कि ये सेंटर किसी भी सूरत में बदले नहीं जायेंगे।

बिहार लोक सेवा आयोग राज्य में प्रशासनिक सेवा के 562 रिक्त पदों के लिए 66वीं संयुक्त सिविल सेवा परीक्षा की प्रारंभिक परीक्षा का आयोजन 27 दिसंबर, 2020 को करने जा रही है। दिलचस्प है कि महज 562 पदों की रिक्ति के एवज में साढ़े चार लाख से अधिक लोगों ने आवेदन किया है और इनकी परीक्षा राज्य के 35 जिलों में 888 परीक्षा केंद्रों में ली जानी है। जाहिर सी बात है कि इनमें से ज्यादातर परीक्षा केंद्र छोटे शहरों औऱ दूर-दराज के इलाकों में हैं, क्योंकि बिहार के चुनिंदा बड़े शहरों में इतने केंद्र नहीं बनाये जा सकते थे।

आयोग की तरफ से मिली जानकारी के मुताबिक किस परीक्षार्थी का सेंटर कहां होगा यह कंप्यूटर द्वारा ही निर्धारित किया गया है। इसमें सिर्फ इतना ध्यान रखा गया है कि लड़कियों का सेंटर उनके गृह जिले में हो और लड़कों का उनके गृह जिले के अतिरिक्त किसी अन्य जिले में।

मगर इस चक्कर में बड़ी संख्या में छात्रों का केंद्र दूर-दराज और उनके लिए बिल्कुल अनजान इलाकों में हो गया है। जैसे अगर कोसी क्षेत्र के सुपौल के किसी छात्र का केंद्र रोहतास या कैमूर जिले में पड़ जाये तो यह दूरी 400 से 450 किमी की हो जाती है। दोनों शहरों के बीच न कोई ट्रेन चलती है, न सीधी बस सेवा है। ऐसे में छात्र को टुकड़ों-टुकड़ों में अपनी यात्रा पूरी करनी है। बिहार में पहले से ही एक जगह से दूसरी जगह जाना दुष्कर काम साबित होता है। ऐसे में अगर किसी को ऐसी यात्रा करनी पड़े तो उसे कम से कम दो दिन का एडवांस समय लेकर चलना होगा।

इसके अलावा उसे अनजान जगह में पहुंच कर बिल्कुल अनजान परिवेश में अपने रहने की भी व्यवस्था करनी होगी। कोरोना की वजह से ज्यादातर होटल भी बंद हैं औऱ परीक्षा में इतनी भीड़ जुट जाती है कि ऐसे ही होटलों की व्यवस्था फेल हो जाती है। फिर वहां जाकर उन्हें किसी सुदूर जगह में स्थित अपने केंद्र की तलाश करनी होगी। क्योंकि हर जिले में औसतन 20 से 25 केंद्र हैं। कोरोना और भीषण ठंड के दिनों में यह सब करना कितना मुश्किल काम होगा यह सहज समझा जा सकता है। एक बेरोजगार युवक इस स्थिति में नहीं होता है कि वह कार रिजर्व करके ऐसी यात्राएं कर सके।

ऐसी दुखद स्थिति दुर्भाग्यवश हजारों छात्रों के सामने उपस्थित हो गयी है। ऐसे में ऐन परीक्षा के वक्त आंदोलन करने पर मजबूर होना पड़ रहा है। युवाओं के रोजगार और दूसरे मसलों पर संघर्ष करने वाली संस्था युवा हल्ला बोल के प्रमुख अनुपम ने भी इस संदर्भ में 21 दिसंबर को एक पत्र बिहार लोक सेवा आयोग को भेजा है। उन्होंने इस कोरोना काल में छात्रों की मुसीबत को समझने और सभी छात्रों का परीक्षा केंद्र उनके गृह जिले या पड़ोस के जिले में देने का अनुरोध किया है। न्यूज़क्लिक के साथ बातचीत में उन्होंने कहा कि परीक्षा आयोजित कराने वाली संस्थाओं की यह बहुत पुरानी धारणा है कि परीक्षा केंद्र दूर होने से परीक्षा में कदाचार की संभावना खत्म हो जाती है। मगर मुझे लगता है कि यह बहुत पुरातनपंथी धारणा है। इससे सिर्फ परीक्षार्थियों की मुसीबत बढ़ती है। अगर ठीक से व्यवस्था की जाये तो गृह जिले में भी कदाचारमुक्त परीक्षा हो सकती है। अगर यह बात ठीक न लगे तो कम से कम पड़ोस के जिले में या अपने प्रमंडल में केंद्र होना चाहिए, जहां परीक्षार्थियों को यात्रा करने, रहने-खाने और केंद्र ढूंढने में मुसीबत नहीं होगी। कम से कम कोरोना काल में तो यह ध्यान देना ही चाहिए।

मगर बिहार लोक सेवा आयोग ने नियमों का हवाला देकर इन छात्रों की मांग को सिरे से खारिज कर दिया है। 18 दिसंबर, 2020 को जारी एक पत्र में बिहार लोक सेवा आयोग के संयुक्त सचिव ने कहा है कि एडमिट कार्ड जारी होने के बाद उनके पास कई छात्रों के ईमेल आये हैं और केंद्र में बदलाव का अनुरोध किया गया है। मगर अब किसी भी स्थिति में परीक्षा केंद्र में बदलाव नहीं किया जायेगा। परीक्षा नियत समय, नियत केंद्र पर ही होगी।

जबकि बिहार लोक सेवा आयोग 6 दिसंबर, 2020 को आयोजित न्यायिक सेवा में इस रवैये का नतीजा देख चुका है। उस परीक्षा में सिर्फ 40 फीसदी छात्र ही शामिल हुए थे। इसके बावजूद आयोग अपने रुख में बदलाव के लिए तैयार नहीं है।

(पटना स्थित पुष्यमित्र स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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