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बिहार: जिस ई-श्रम कार्ड को बनाने में ही भ्रष्टाचार हो रहा है वो करोड़ों असंगठित मजदूरों की ज़िंदगी में बदलाव कैसे लाएगा?

सरकारी दस्तावेज़ बनवाने में भारत के ग्रामीण इलाकों में जबरदस्त भ्रष्टाचार का चलन है। श्रम कार्ड बनवाने को लेकर बिहार में जिस तरह की लूट मची हुई है, उसका एक नमूना आप यहां पढ़ सकते हैं।
Leela Devi
बिहार के सुपौल जिला के पिपरा प्रखंड के कटैया गांव की 53 वर्षीय लीला देवी एक आंख से देख नहीं पातीं और मज़दूरी करके घर का चूल्हा जलाती है। उन्हें श्रम कार्ड बनाने में 200 रुपये लगे।

दीवार पर चुनाव के पोस्टर लगे हुए हैं। इस पोस्टर के आगे खड़ी महिला एक आंख से अंधी है और मजदूरी करके घर का चूल्हा जलाती है। सरकार के द्वारा बिहार के सुपौल जिला के पिपरा प्रखंड के कटैया गांव की 53 वर्षीय लीला देवी पंजीकृत मजदूर नहीं है। इसलिए इनके खाते और घर तक कोई सरकारी योजना भी नहीं पहुंच पाता है।

जाति से महादलित लीला देवी बताती है कि " लगभग 6 महीने पहले राशन कार्ड की सुविधा प्राप्त हुई है। इससे पहले हम दोनों पति-पत्नी काम हो या रूपया, जो कुछ भी मिल जाए मांग कर गुजारा करते थें। सरकार के द्वारा वृद्धा पेंशन भी नहीं मिलता है"

"पता नहीं लेकिन सितंबर महीने में मजदूरी वाला एक कार्ड बना था। इसके लिए टोला(मोहल्ला) के सभी महिलाओं और पुरुषों से ₹200 लिया गया था। अभी तक तो कोई फायदा नहीं हुआ है। आगे देखते हैं।" आगे लीला देवी बताती है।

मुखिया जी प्रचार करने आएंगे तो हम सवाल पूछेंगे

वही सुपौल के त्रिवेणीगंज प्रखंड के मटकुरिया गांव के दर्जनों ग्रामीणों से ई-श्रम कार्ड बनाने के नाम पर प्रति कार्ड एक सौ रुपये लिए जा रहा है।

मटकुरिया गांव के रत्नेश मुसहर बताते हैं कि, "वीणा टेलीकॉम के सीएसपी संचालक नवीन कुमार ने लगभग गांव के 50 से 60 मजदूरों से लगभग 100 रुपया और किसी-किसी से ₹200 प्रति कार्ड बनाने के लिए लिया है।"

"जब हमने गांव के मुखिया और सरपंच प्रतिनिधि से अपनी बात कही तो उन्होंने कुछ खास प्रतिक्रिया नहीं दी। अब चुनाव में वोट मांगने आएंगे तो हम भी सवाल पूछेंगे कि उस वक्त आप लोग कहां थे जब हमारे श्रम कार्ड बनने पर ₹100 रंगदारी लिया जा रहा था।" आगे रत्नेश मुसहर बताते हैं।

राशन कार्ड की तरह ही श्रम कार्ड की स्थिति ना हो जाए:

सहरसा जिले के दक्षिणी महिषी पंचायत के मुसहर टोला में लगभग 100 परिवार है। जिसमें अभी तक 36 परिवार का नाम राशन कार्ड में भी नहीं है। इस 100 परिवार में लगभग 500 मजदूर हैं। जिसमें सिर्फ 39 मजदूर बिहार के अंदर काम करने वाले मजदूरों की संख्या में रजिस्टर्ड है। बांकी 461 मजदूरों को कोरोना महामारी के वक्त दिया जा रहा कोई भी सरकारी सुविधा नहीं मिला था।

उसी मुसहर टोला की वीणा देवी बताती है कि, "श्रम कार्ड बनाने का कोई खासा उत्साह उनके टोला में नहीं दिख रहा है। कई बार राशन कार्ड बनाने के लिए अप्लाई कर चुकी हूं। हर बार अलग-अलग मुखिया को वोट दे रही हूं। हम सब के स्थिति पर कुछ फर्क नहीं पड़ रहा है।"

जब मजदूर महिला ने केंद्रीय मंत्री के सामने खोला ई-श्रम कार्ड के वसूली का पोल:

बिहार की राजधानी पटना में ई-श्रम कार्ड वितरण सह निबंधन कार्यक्रम चल रहा था। मुख्य अतिथि के तौर पर केंद्रीय राज्य मंत्री श्रम एवं रोजगार रामेश्वर तेली और बिहार सरकार के श्रम संसाधन मंत्री जीवेश मिश्रा मौजूद थे।

राज्य सरकार द्वारा राज्य के श्रमिकों को निबंधित करने के लिए ई-श्रम कार्ड वितरण करने का समारोह चल रहा था। इस दौरान केंद्रीय राज्य मंत्री रामेश्वर तेली बिहार के श्रमिकों को ई-कार्ड बांट रहे थे। बांटते वक्त मंत्री साहब ने श्रमिक महिला किरण देवी को कार्ड देने के दौरान उनसे सवाल पूछा कि उन्हें इस कार्ड को बनाने में किसी तरह के कोई पैसे तो नहीं देने पड़े?

इस सवाल का जवाब देते हुए महिला ने कहा उसे ई-श्रम कार्ड को बनवाने के लिए 100 रुपये देने पड़े। महिला की इस जवाब ने बिहार में बन रहे श्रम कार्ड की पूरी कहानी कह दी। क्योंकि सरकार के तरफ से सख्त निर्देश हैं कि श्रम कार्ड बनाने में मजदूरों से एक भी रुपया नहीं लिया जाए। सवाल के जवाब को सुनकर बिहार सरकार के श्रम संसाधन मंत्री जीवेश मिश्रा से कहा कि इस मामले की जांच कराएं और देखें आखिर क्या मामला है।

ई-श्रम कार्ड के जरिए देश के करीब 38 करोड़ असंगठित मजदूरों का डाटा तैयार करने का प्रयास:

बिहार के अंदर काम करने वाले रजिस्टर्ड मजदूरों की संख्या करीब 19 लाख है। वहीं बिहार राज्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड में राज्य के 14 लाख 87 हजार 23 श्रमिक पंजीकृत हैं। यह भवन निर्माण सहित अन्य क्षेत्रों में काम करने वाले वे श्रमिक हैं, जिनकी आयु 60 वर्ष तक है। लेकिन बिहार (Bihar) के बाहर अन्य राज्यों में काम करने वाले मजदूरों का सही आंकड़ा मौजूद नहीं है।

इस वजह से सरकार के द्वारा मजदूरों को दिया जा रहा कोई भी सरकारी सुविधा उन तक नहीं पहुंच रहा है। बिहार में लगभग दो करोड़ मज़दूर हैं। जिसमें कोरोना महामारी के वक्त राज्य के सिर्फ 15 लाख श्रमिकों के खातों में राज्य सरकार के द्वारा करीब 446 करोड़ रुपए भेजा गया था।

इस कार्ड को सरकार के बनाने का उद्देश्य खास है कि आने वाले समय में सरकार की सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी जो भी योजनाएं होंगी, श्रमिकों को उनका फायदा दिया जाएगा। उन्हें एक कार्ड भी दिया जाएगा, जिसके जरिए मजदूर अगर दूसरे राज्यों में काम करने जाते हैं, तो उन्हें अपनी स्किल के आधार पर काम करने का मौका मिलेगा।

श्रम कार्ड भ्रष्टाचार पर सरकारी महकमों का क्या कहना है:

सुपौल के त्रिवेणीगंज प्रखंड के मटकुरिया गांव के दर्जनों ग्रामीणों से ई-श्रम कार्ड बनाने के नाम पर प्रति कार्ड एक सौ रुपये लिए जा रहा था। इस मसले पर न्यूज़क्लिक को श्रम प्रवर्तन पदाधिकारी विधानचंद सिंह बताते हैं कि, "सीएसपी संचालक के विरुद्ध अवैध वसूली के लिए प्राथमिकी दर्ज करा दी गई है। मामला दर्ज कर लिया गया है। सभी आरोपों पर बारीकी से जांच की जा रही है। जांच के बाद अग्रेत्तर कार्रवाई की जाएगी।"

वहीं मधेपुरा जिला के जिला अधिकारी श्याम बिहारी मीना ने न्यूज़क्लिक को बताया कि " जिला में कहीं भी किसी भी मजदूर के द्वारा अगर श्रम कार्ड बनाने में ₹1 भी लेने की खबर आ रही है तो हम स्थल पर जाकर कार्रवाई करते हैं। लेकिन अगर शिकायत ही नहीं आएगी तो हम क्या कर सकेंगे।"

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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