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बिहार मिड-डे-मीलः सरकार का सुधार केवल काग़ज़ों पर, हक़ से महरूम ग़रीब बच्चे

"ख़ासकर बिहार में बड़ी संख्या में वैसे बच्चे जाते हैं जिनके घरों में खाना उपलब्ध नहीं होता है। उनके लिए कम से कम एक वक्त के खाने का स्कूल ही आसरा है। लेकिन उन्हें ये भी न मिलना बिहार सरकार की विफलता है।"
बिहार मिड-डे-मीलः सरकार का सुधार केवल काग़ज़ों पर, हक़ से महरूम ग़रीब बच्चे
Image Courtesy: PTI

स्कूलों में चलने वाली मिड डे मील योजना में सरकार की ओर से समय-समय पर सुधार किए जाते रहे हैं ताकि गरीब बच्चों को इस योजना का बेहतर लाभ मिल सके लेकिन ये सुधार केवल कागजों पर ही दिखाई दे रहे हैं। इसके चलते बच्चे अपने हक से महरूम हो रहे हैं। इस योजना के संचालन में अनियमितता की खबरें अक्सर आती रहती है। भोजन की गुणवत्ता में कमी का मामला हो या खाने में कीड़ों के मिलने या पीने के पानी की उचित व्यवस्था की कमी या दूषित खाना से बच्चों के बीमार होने की घटना हो या साफ-सफाई समेत प्रबंधन और भोजन बनाने की सामग्रियों की उपलब्धता या रसोईये की कमी का मामला हो, इन सबसे मिड डे मील योजना बिहार में पूरी तरह से जूझ रहा है।

बड़ी संख्या में वैसे बच्चे जिनके घरों में खाना उपलब्ध नहीं

मिड डे मिल में अव्यवस्था तथा अनियमितता को लेकर बातचीत में सीपीआईएम के केंद्रीय समिति के सदस्य अरुण कुमार ने कहा कि, "इसको लेकर जो खबर आई है वह बहुत ही भयानक है। बड़ी संख्या में छात्रों को मिड डे मील नहीं मिल रहा है। इसको लेकर पानी, चावल समेत अन्य चीजों के अभाव के जो कारण बताए जा रहे वह काफी भयावह है। खासकर बिहार में बड़ी संख्या में वैसे बच्चे जाते हैं जिनके घरों में खाना उपलब्ध नहीं होता है। उनके लिए कम से कम एक वक्त के खाने का स्कूल ही आसरा है लेकिन उन्हें यह भी न मिलना, ये बिहार सरकार की विफलता है।"

मानदंड पर सरकार काफी पिछड़ी

उन्होंने आगे कहा कि, "सरकार बड़ी-बड़ी बातें रोज करती है। बात हो रही कि बिहार का बहुत विकास हो गया। यहां इंडस्ट्री खुलेगा और इसके लिए बैठकें हो रही है लेकिन जो जन केंद्रित बुनियादी चीज है वह बहुत बुरी अवस्था में है। चाहे राशन का वितरण हो या पढ़ाई लिखाई की व्यवस्था हो या स्वास्थ्य संबंधी माला हो, सबकी हालत बहुत खराब है। सभी मानदंड पर सरकार काफी पिछड़ी हुई है। आम तौर पर इन सब बातों को छिपाया जाता है। ये मामले कभी-कभार मीडिया में प्रकाशित होते हैं या इस पर जो प्रतिक्रयाएं आती हैं उसको दबाया जाता है और दूसरे मामलों को बढ़ा चढ़ा कर पेश किया जाता है।"

तमाम चीजों में निचले पायदान पर बिहार

बुनियादी चीजों को लेकर सरकारी आंकड़ों का जिक्र करते हुए कुमार कहते हैं कि, "जो सरकारी आंकड़े आते हैं उनसे पता चलता है कि बिहार इन तमाम चीजों में निचले पायदान पर है। हमलोग इन्हीं मसलों को लेकर निचले स्तर से लड़ाई लड़ रहे हैं। हमारी कोशिश है कि बड़ी लड़ाई में ये तब्दील हो। अभी लेफ्ट पार्टी और राजद की बैठक हुई है और इसमें तमाम बुनियादी मुद्दों को लेकर चर्चा की गई है। इसी संदर्भ में पांच जून को कन्वेंशन का आयोजन होगा और इन मुद्दों को जोर शोर से उठाया जाएगा।"

स्कूलों को मर्जर कर पोस्ट व सुविधाओं को ख़त्म करना सरकार की कोशिश

वहीं सीपीआई-एमएल ने नीतीश सरकार के तमाम दावों को खोखला बताया है। पार्टी के नेता रणविजय कुमार ने मिड डे मील योजना में साधनों की कमी और खाने से वंचित हो रहे गरीब बच्चों को लेकर नीतीश सरकार पर चौतरफा हमला बोला है। उन्होंने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा कि, “सरकार व्यवहार में वही काम कर रही है जो कह नहीं रही है और जो कह रही है उसको व्यवहार में लागू नहीं कर रही है। ये सरकार का चरित्र बन गया है। हमलोगों को जो बात समझ में आ रही है उसमें कहा जाए तो सरकार की ये कोशिश है कि धीरे-धीरे स्कूलों का मर्जर करके पोस्ट घटा दिया जाए या सुविधाओं को खत्म कर दिया जाए। ये काम पिछले दो-तीन साल से जारी है। असल में उन जमीनों का जिस पर स्कूल और अस्पताल दोनों है उसे निजीकरण की दिशा में बढ़ाना है। उसमें जमीनों की बिक्री करना भी शामिल है।”

आरटीई और आरटीएफ से सरकार को कोई मतलब नहीं

उन्होंने कहा कि, “मिड डे मील को लेकर जो लापरवाही सरकार की ओर से है उसके पीछे कारण है कि स्कूलों की संपत्ति और उसके जमीन का मौद्रिकरण करना। सरकार को कई मतलब नहीं कि कोई पढ़ेगा या नहीं पढ़ेगा। उनको कोई मतलब नहीं कि राइट टू एजुकेशन (आरटीई) का क्या हुआ और राइट टू फूड (आरटीएफ) का क्या हुआ। जिस चीज से सरकार को मतलब नहीं है वह चीज कहेगी लेकिन जिस चीज से मतलब है वह नहीं कहेगी बल्कि करेगी। यही बिहार में चल रहा है। इस सरकार की हालत हाथी के दांत की तरह है कि दिखाने के लिए कुछ और खाने के लिए कुछ और। सरकार ये बताए कि आज की तारीख में छात्रों, रसोईयों और स्कूलों की बेहतरी के लिए क्या पॉलिसी है। सरकार ने सुधार के बड़े-बड़े दावे किए लेकिन उसका जमीन पर क्या असर है उसका एक मॉडल बताए। इनका मॉडल तो टिफिन सिस्टम वाला शुरू हो गया है। सरकार ने कभी नहीं कहा कि वह इस योजना का निजीकरण करेगी लेकिन उत्तर बिहार में निजीकरण शुरू हो गया।”

पीने के पानी की व्यवस्था नहीं

हाल में आई खबरों की मानें तो बिहार की राजधानी पटना के कई स्कूलों में पीने की पानी की व्यवस्था न होने से स्कूलों में पिछले कुछ महीनों से मिड डे मील से छात्र वंचित होते आ रहे हैं। तेज गर्मी के चलते स्कूलों का हैंड पंप सूख गया है या खराब हो गया है जिससे बच्चों को भोजन नहीं मिल पा रहा है। बिहार से मो. इमरान खान की न्यूज़क्लिक अंग्रेजी में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार हैंड पंप खराब होने और पीने के पानी की व्यवस्था न होने से गया, कैमूर, रोहतास, औरंगाबाद, जहानाबाद, नवादा समेत राज्य के अन्य जिलों के कई स्कूलों में मिड डे मील नहीं दिया जा रहा है। इससे उन गरीब बच्चों को भोजन नहीं मिल पा रहा है जिनके घरों में पैसे की तंगी की वजह से भोजन का काफी अभाव है।

अपनी रिपोर्ट में इमरान कुछ बच्चों के नाम का जिक्र करते हुए लिखते हैं कि सोनू, राजेश और मिथलेश सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर परिवार के बच्चे हैं। वे स्कूल आते हैं लेकिन सरकार और प्रशासन की अनदेखी की वजह से वे भोजन से वंचित रह जाते हैं। राज्य में आर्थिक रूप से कमजोर परिवार के लाखों ऐसे बच्चे होंगे जिन्हें इस योजना की वजह से कम से कम एक वक्त का खाना नसीब हो जाता है लेकिन सरकार और प्रशासन की लापरवाही के चलते वे इससे भी दूर हो जा रहे हैं।

लाखों बच्चे एमडीएम से वंचित

गत मंगलवार को दैनिक भास्कर में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार बिहार के लगभग 3500 से ज्यादा स्कूलों के 6 लाख बच्चों को मिड-डे-मील नहीं मिल रहा। इसका कारण किसी स्कूल में चावल की कमी है तो किसी स्कूल में पानी का अभाव बताया गया है। नई व्यवस्था में वेंडर द्वारा तेल, मसाला आदि सामग्री की आपूर्ति नहीं हो रही। कुछ स्कूलों में रसोई गैस के अभाव में बच्चों का खाना नहीं बन रहा। कई ऐसे स्कूल भी हैं, जहां कोरोना से रसोइया की मौत हो गई थी और नया रसोइया नहीं रखा गया है। रसोइया नहीं होने से भी मिड डे मील नहीं बन पा रहा।

तीन महीनों से नहीं बना भोजन

एक सप्ताह पहले आई रिपोर्ट के अनुसार सीवान के सिसवन प्रखंड के भागर में संचालित प्राथमिक विद्यालय में पिछले 3 महीनों से बच्चों को मिड डे मील का एक भी निवाला तक नसीब नहीं हुआ। यहां के शिक्षकों का कहना है कि प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों के वितरण के लिए गुणवत्तायुक्त भोजन देने के नाम पर केवल औपचारिकता पूरी की जा रही है। विद्यालय को चावल नहीं उपलब्ध होने से करीब 3 महीनों से भोजन नहीं बन रहा है। इससे परेशान शिक्षकों और अभिभावकों ने संबंधित अधिकारियों से बच्चों को भोजन दिए जाने की मांग की। बावजूद विभाग की ओर से कोई ठोस कदम नही उठाया गया। शिक्षक बताते है कि मिड डे मील के नई गाइडलाइन से बच्चों के निवाले पर ग्रहण लग गया है।

कपड़ा धुलने वाले घाट पर बच्चे पीते पानी

करीब दस दिनों पहले मीडिया में प्रकाशित खबर के अनुसार बिहार के बेतिया के भिखनाठोरी स्कूल में चापाकल (हैंडपंप) नहीं है जिसके चलते पनडई नदी के पानी मिड डे मील बनाया जा रहा था और बच्चे इसी नदी के घाट पर पानी पीने जा रहे थे जिसकी तस्वीर प्रकाशित की गई थी। रिपोर्ट में बताया गया नदी की इसी घाट पर लोग कपड़े की धुलाई करते हैं।

बच्चों को भोजन देने से पहले प्रधान को चखने के दिए आदेश

ज्ञात हो कि मिड डे मील में शिकायत मिलने के बाद प्रदेश के मुख्य सचिव ने 28 मार्च को आदेश जारी किया था कि भोजन बनने के बाद सबसे पहले विद्यालय प्रशासन द्वारा उक्त भोजन को चखा जाएगा। इसके आधे घंटे के बाद बच्चों को भोजन परोसा जाएगा इस दौरान विद्यालय के प्रधान व प्रभारी प्रधान को बच्चों के साथ पंक्ति में बैठकर भोजन करना होगा।

मेन्यू में हुए बदलाव

एक सप्ताह पहले शिक्षा विभाग ने पीएम पोषण स्कीम के मेन्यू में बदलाव करते हुए स्कूल में बच्चों को सलाद की जगह सब्जी युक्त पुलाव देने की बात कही थी। शिक्षा विभाग ने सभी प्रधानाध्यापक को पत्र भेजकर इसकी जानकारी दी थी और मेन्यू के अनुसार बच्चों को मिड डे मील देने को कहा था।

मिड डे मील में दिवस के अनुसार स्कूलों में दिए जाने वाले भोजन का मेन्यू नीचे टेबल में दिया गया हैः

 

 

 

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