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बिहार: आरटीआई कार्यकर्ता झेल रहे हैं उत्पीड़न और मौत की धमकी, लेकिन कोई सुनवाई नहीं

नागरिक अधिकार मंच ने हाल ही में खुलासा किया है कि आरटीआई कार्यकर्ताओं की सुरक्षा के मामले में सबसे ख़राब रिकॉर्ड रखने वाले राज्यों में बिहार भी शामिल है जहाँ पिछले 10 वर्षों में 17 हत्याएं हुईं हैं और यहाँ लगातार हिंसा होना आम बात है।
बिहार

सूचना का अधिकार अधिनियम (आरटीआई) 2005 में अस्तित्व में आया था तबसे इसे लागू हुए 15 साल हो गए हैं। हालांकि, एक दशक से अधिक समय से लागू इस कानून के बाद भी, राज्य में समाजिक-राजनीतिक क्षेत्र में किए जा रहे दुराचारों की पोल खोलने के लिए इसे एक औज़ार के रूप इस्तेमाल करने के मामले में आरटीआई कार्यकर्ता भयानक स्थिति का सामना कर रहे हैं। बिहार उन राज्यों में शुमार हैं जहां आरटीआई कार्यकर्ताओं की सुरक्षा बड़ी खराब स्थिति में है,  और इसमें पिछले 10 वर्षों में 17 हत्याएं और कई हिंसा की घटनाएं हुई है।

नागरीक अधिकार मंच (आरटीआई को समर्पित लोगों की एक पहल) ने हाल ही में एक रहस्योद्घाटन किया कि राज्य में व्हिसलब्लोअर यानि पोल खोलने वाले कार्यकर्ताओं को निरंतर उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है।

आरटीआई कार्यकर्ताओं पर हिंसा के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने के लिए गृह विभाग का पत्र

आरटीआई व्हिसलब्लोअर के साथ हिंसा की लंबी शिकायतों के जवाब में, गृह विभाग ने कुंभकरन की गहरी नींद से जागकर आरटीआई कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ हुई हिंसा के मामलों की निष्पक्ष जांच के आदेश दिए हैं। गृह विभाग के पत्र ने संबंधित अधिकारियों को आरटीआई कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ हिंसा के ऐसे मामलों पर कार्रवाई करने का निर्देश दिया है, जिसके बाद एक अन्य आदेश निकाला गया कि सभी मामलों को एक महीने के भीतर पुलिस अधीक्षक (एसपी) की देखरेख में निपटाया जाना चाहिए। अगर किसी मामले को लेकर एसपी के ख़िलाफ़ शिकायत की गई है तो उसकी सुनवाई पुलिस महानिदेशक को करनी होगी। 

आरटीआई कार्यकर्ता शिव प्रकाश राय

हालांकि, शिव प्रकाश राय (55) जोकि बिहार के एक प्रमुख आरटीआई कार्यकर्ता हैं और नागरीक अधिकार मंच के संयोजक भी हैं, ने राज्य भर में आरटीआई कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ की जा रही हिंसा के ख़िलाफ़ सरकार और पुलिस द्वारा कोई कार्रवाई न करने के लिए बिहार सरकार के ढुलमुल रवैये की आलोचना की है। राय ने न्यूज़क्लिक को बताया कि पुलिस अधिकारियों, सरकारी अधिकारियों और असामाजिक तत्वों की सांठगांठ से व्हिसलब्लोअर के ख़िलाफ़ हिंसा और फ़र्जी एफ़आईआर के 213 मामले सामने आए हैं।

लेकिन, हिंसा के सभी 213 मामलों की विस्तृत रपट वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को पेश किए जाने के बाद भी सरकार की तरफ से कोई कार्रवाई न होना सरासर गलत है। मुझे बताया गया कि 185 मामलो को मंजूरी दे दी गई हैं, लेकिन उपद्रवियों के ख़िलाफ़ की गई कार्रवाई के विवरण का कोई खुलासा नहीं किया गया है। इसलिए प्रक्रिया में कोई पारदर्शिता नहीं है। इस दौरान व्हिसलब्लोअर पर हो रहे लगातार हमलों को नियत्रण करने और अपराधियों को सज़ा मिलने की किसी व्यवस्था का न होने से गलत कामों के ख़िलाफ़ हमारी नैतिक लड़ाई पर भारी असर पड़ रहा है,” उक्त बातें बक्सर स्थित कार्यकर्ता ने बताई। उन्होंने अकेले 500 से अधिक आरटीआई दायर की हैं जो राज्य प्रणाली में भ्रष्टाचार को उजागर करती हैं।

यह राज्य के विभिन्न हिस्सों से आई आरटीआई कार्यकर्ताओं की वह सूची है जिनके ख़िलाफ़ हिंसा, दुर्व्यवहार और फ़र्जी एफ़आईआर दर्ज है, इसके बारे में गृह जिले के पुलिस अधिकारियों को सूचित किया गया है।

यहां तक कि कोविड-19 की वजह से लगा लॉकडाउन भी बिहार पुलिस और भ्रष्ट अधिकारियों को व्हिसलब्लोअर के ख़िलाफ़ बेज़ा शक्ति इस्तेमाल करने से नहीं रोक पाया। राय ने आगे बताया कि "पिछले साल, बक्सर में एक आरटीआई कार्यकर्ता के छोटे बेटे को इसलिए शस्त्र अधिनियम के तहत गिरफ्तार कर लिया गया था कि उसने पिछले कुछ वर्षों में प्राइमरी कृषि क्रेडिट समितियों (पैक्स) द्वारा धान खरीद का विवरण जानने के लिए आरटीआई डाली थी। 

हाल के दिनों में सड़क परियोजना, बच्चों के नाम पर जारी मनरेगा जॉब कार्ड और सात निश्चय योजना के भीतर व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए आरटीआई कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न किया जा रहा है।

बेगूसराय के एक पूर्व वकील गिरीश गुप्ता (75) को सरकारी अधिकारियों और स्थानीय पुलिस ने बंद के दौरान कथित तौर पर पीटा था। उन्होंने पुलिस और ब्लॉक अधिकारियों द्वारा मीडिया को  जन्मदिन, त्यौहार, राष्ट्रीय अवकाश जैसे मौकों पर विज्ञापन देने और उस पर हुए खर्च की जानकारी मांगने के लिए आरटीआई दायर की थी। 

आरटीआई कार्यकर्ता गिरीश गुप्ता के पैर पर पिटाई के निशान

गुप्ता ने न्यूज़क्लिक को बताया कि उनके लगातार आरटीआई करने से सरकारी बाबु और पुलिस परेशान हैं, जिन्हें व्यक्तिगत लाभ के लिए सार्वजनिक धन का इस्तेमाल करने के लिए जाना जाता है और इसलिए 4 अप्रैल, 2020 को मेरे निवास पर मुझे शारीरिक रूप से पीटा गया था। बूढ़ी उम्र की वजह से चलने-फिरने में दिक्कत पेश आती है, लेकिन बावजूद इसके स्थानीय पुलिस ने लॉकडाउन नियमों का उल्लंघन किया और मुझ पर धारा 188 के तहत एफ़आईआर दर्ज की। मैं अभी भी एक वरिष्ठ नागरिक के ख़िलाफ़ बल प्रयोग करने के ख़िलाफ़ कार्रवाई का इंतजार कर रहा हूं।

इन जघन्य हत्याओं और शारीरिक हमलों के अलावा, भ्रष्ट पंचायत प्रमुख भी आरटीआई कार्यकर्ताओं को डराने की कोशिश करते है और कई हथकंडे अपनाते हैं। संतोष कुमार राय को पंचायत के मुखिया ने झूठे मामले में उलझा दिया क्योंकि उन्होंने उनके भ्रष्ट सौदों का खुलासा किया था। परिणामस्वरूप, मधुबनी स्थित आरटीआई कार्यकर्ता को राज्य के पुलिस महानिदेशक (DGP) गुप्तेश्वर पांडेय को पंचायत के मुखिया की गुंडागर्दी की जानकारी देते हुए एक लिखित याचिका भेजने पर मजबूर होना पड़ा।

आरटीआई कार्यकर्ता संतोष राय का शिकायत पत्र

संतोष राय सरकारी नीतियों और तथाकथित विकास से संबंधित फैसलों में पारदर्शिता की कमी का पता लगाने के मामलों में काफी सक्रिय रहे हैं। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से लेकर आवास योजना (इंदिरा आवास योजना) सड़क निर्माण, शौचालय, नल जल संरचना निर्माण और ग्रामीण रोजगार आदि के लिए, व्हिसलब्लोअर हमेशा सार्वजनिक धन के कथित दुरुपयोग को उजागर करने का प्रयास करते है। लेकिन उन्हे बदले में एससी एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के मामलों में फंसाया गया और कोविड-19 के दौरान लॉकडाउन नियमों का उल्लंघन भी किया गया है। 

बोधगया के वकील और आरटीआई कार्यकर्ता अखिलेश रजक (53) ने भ्रष्ट अधिकारियों, उपद्रवियों के साथ अक्सर होने वाली हाथापाई पर भी अपनी पीड़ा व्यक्त की है। उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया कि अक्सर पुलिस उन्हें धमकी देती है कि वे आरटीआई आवेदन करना बंद कर दें जो उनके अनुसार एक बेकार का काम है। रजक ने यह भी बताया कि भू-माफिया के भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ उनके धर्मयुद्ध के लिए उन्हें परेशान किया जा रहा है और निशाना बनाया जा रहा है।

आरटीआई कार्यकर्ता अखिलेश रजक की फ़र्जी एफ़आईआर के ख़िलाफ़ जांच याचिका

2010 के बाद से, रजक ने कई आरटीआई दायर की हैं हालांकि, 2018 में याचिकाएँ कम होने लगीं, तब जब उनके ख़िलाफ़ अपराधी और पुलिस आक्रामक हो गए थे। "हर दिन पुलिस स्टेशन में बुलाकर पुलिस द्वारा दुर्व्यवहार एक असहनीय घटना बन गई थी," उन्होंने बड़ी पीड़ा के साथ बताया। 

लगातार हो रहे हमलों के बाद, उन्होंने 30 सितंबर, 2020 को वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को लिखा, कि उनके जीवन, परिवार और संपत्ति पर खतरा मंडरा रहा है और इसलिए तत्काल निष्पक्ष जांच की मांग की। लेकिन तब से लगभग छह महीने बीत गए हैं, एसएसपी कार्यालय की तरफ से अभी भी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के बोधगया विधायक कुमार सर्वजीत ने भी एसएसपी से रजक की शिकायतों पर कड़ी कार्रवाई करने का आग्रह किया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।

अपने और परिवार के जीवन पर बढ़ते खतरे के परिणामस्वरूप, रजक ने आरटीआई दाखिल करना बंद कर दिया है।

आरटीआई कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत बलात्कार और अत्याचार के झूठे आपराधिक मुकदमे दर्ज़ करना या उनसे जबरन वसूली करना पिछले कुछ वर्षों में बिहार में एक नई और सामान्य स्थिति हो गई है। कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ इस तरह के संगीन आरोप लगाने से पुलिस तत्काल गिरफ्तारी कर लेती है क्योंकि अधिनियम ऐसे अपराधियों के ख़िलाफ़ मजिस्ट्रेट से तुरंत गिरफ्तारी वारंट हासिल करने की अनुमति देता है।

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