बिहार खाद संकटः फ़सल बचाने के लिए डीलर की दुकानों पर रात गुज़ार रहे हैं किसान
पटना: रबी फ़सलों में मुख्य रूप से गेहूं और मक्का की बुआई के बाद उर्वरक की अपर्याप्त आपूर्ति और खाद डीलर की दुकानों पर उपलब्धता न होने के कारण हज़ारों किसान यूरिया और डीएपी (डाई-अमोनियम फॉस्फेट) के लिए पूरे बिहार में जूझ रहे हैं। इससे किसानों में बेहद नाराज़गी है। इसकी कमी को लेकर उन्होंने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है। उधर इसके उलट भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने संसद में कहा है कि उर्वरक की कोई कमी नहीं है।
दरअसल, रसायन एवं उर्वरक राज्य मंत्री भगवंत खुबा ने मंगलवार को राज्यसभा को बताया कि डीएपी बहुत आसानी से उपलब्ध है।
उन्होंने उच्च सदन में अपने लिखित जवाब में कहा, 2022-23 (जुलाई-जून) के मौजूदा रबी (सर्दियों) सीजन के लिए 55.38 लाख टन की आवश्यकता के मुक़ाबले 14 दिसंबर तक इसकी उपलब्धता 47.88 लाख टन थी।
हालांकि, पूर्वी चंपारण के तिरकौलिया के सीमांत किसान केदार नाथ सिंह ने न्यूज़क्लिक को बताया, "यह दावा करना ग़लत है कि खाद की कोई कमी नहीं है। पूर्वी चंपारण ज़िले के सैकड़ों किसान पिछले तीन दिनों से खाद की दुकानों के पास खुले आसमान के नीचे रातें गुज़ार रहे हैं, लेकिन कुछ भी नहीं मिल रहा है। कोई सोच भी नहीं सकता कि पुरुष और महिला किसान रात में कैसे कंबल ओढ़कर ठंड गुज़ार रहे हैं। बेहद दयनीय स्थिति है।"
पूर्वी चंपारण के अरेराज के एक छोटे किसान रविभूषण प्रसाद उर्वरक की कमी की बातों से सहमत थे। वे कहते हैं, "सर्द रातों के बावजूद कई किसान उर्वरक हासिल करने के लिए अपनी बारी का इंतज़ार करते हुए खुले आसमान के नीचे सोते हैं। रोज़ाना सुबह से सैकड़ों लोग क़तार में खड़े होने के लिए इकट्ठा होते हैं और उनमें से ज़्यादातर किसानों को निराश होकर लौटना पड़ता है।”
उर्वरक की कमी और कालाबाज़ारी से नाराज़ सैकड़ों किसानों ने सोमवार को पताही प्रखंड मुख्यालय पर किसान मज़दूर संघर्ष समिति के बैनर तले धरना दिया। संग्रामपुर प्रखंड के संजीत तिवारी ने कहा, "हम डीलरों द्वारा खाद की कालाबाज़ारी के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग कर रहे हैं, लेकिन स्थानीय प्रशासन हमें सिर्फ़ आश्वासन दे रहा है।"
एक अन्य सीमांत किसान तिवारी ने कहा कि अगर खाद की कमी होती है तो डीलर इसे ऊंची दर पर बेचते हैं। वे कहते हैं, "पिछले कुछ दिनों में कई किसानों ने तीन से पांच बोरी उर्वरक अधिक क़ीमत पर खरीदे थे क्योंकि उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था। अपनी फ़सल को बचाने के लिए अभी यूरिया का छिड़काव करना होगा नहीं तो फ़सल ख़राब हो जाएगी।"
मुजफ्फरपुर, वैशाली, पूर्णिया, सहरसा, भोजपुर, समस्तीपुर, मुंगेर, सीवान एवं अन्य ज़िलों से कई ख़बरे सामने आई है कि उर्वरक के लिए किसान एक जगह से दूसरे जगह जा रहे हैं और घंटों लंबी क़तारों में खड़े रहते हैं।
इन ज़िलों में कई जगहों पर पिछले एक हफ़्ते से किसान उर्वरक की कमी और बढ़ती कालाबाज़ारी के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं।
मुज़फ़्फ़रपुर के बांद्रा ब्लॉक के किसान राम बाबू राय ने कहा कि डीलर यूरिया की एक बोरी 500-600 रुपये में बेच रहे थे, जो कि 266 रुपये की निर्धारित सरकारी दर से लगभग 200 से 300 रुपये ज़्यादा है। उन्होंने कहा, "किसान मजबूर हैं।" मुज़फ़्फ़रपुर में भी नाराज़ किसानों के विरोध प्रदर्शन की ख़बरें मिली हैं। किसानों ने विष्णीपुर सरिया चौक पर स्टेट हाईवे-74 को जाम कर दिया और नारेबाज़ी की। वहीं मनियारी में ऑल इंडिया किसान खेत मज़दूर संगठन ने विरोध प्रदर्शन किया और रैली निकाली।
एक ज़िला प्रशासनिक अधिकारी ने न्यूज़क्लिक से स्वीकार किया कि मांग की तुलना में आपूर्ति कम होने के कारण यूरिया की कमी "वास्तविक" है। मुज़फ़्फ़रपुर में दिसंबर के आख़िर तक 37,774 टन यूरिया की ज़रूरत है लेकिन अभी तक 18,477 टन यूरिया प्राप्त हुआ है। उन्होंने कहा, "मांग से कम आपूर्ति ने किसानों के लिए संकट खड़ा कर दिया है। इसका फ़ायदा उठाकर कुछ लोग इसकी कालाबाज़ारी कर रहे हैं।
मुज़फ़्फ़रपुर ज़िला कृषि अधिकारी शिलाजीत सिंह ने स्वीकार किया कि किसानों को खाद मिलने में दुशवारी हो रही है और उन्हें भी कई जगहों पर कालाबाज़ारी की शिकायत मिली है। उन्होंने कहा, "हमें आने वाले दिनों में और अधिक उर्वरक की आपूर्ति की उम्मीद है।"
इस बीच, बिहार के कृषि मंत्री कुमार सर्वजीत ने अपर्याप्त आपूर्ति और राज्य में यूरिया की कमी के लिए केंद्र सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया है।
उन्होंने कहा. “केंद्र सरकार उर्वरक का आवश्यक कोटा नहीं दे कर बिहार के साथ भेदभाव कर रही है। हम यूरिया की भारी कमी का सामना कर रहे हैं। 18 नवंबर तक, बिहार को आवश्यकता के मुक़ाबले केवल 37% यूरिया की आपूर्ति प्राप्त हुई थी। गेहूं की फ़सल के लिए राज्य को 15 दिसंबर तक 2.55 लाख टन यूरिया की ज़रूरत थी। केंद्र अब शेष 63% आपूर्ति कैसे कर सकता है? इसी तरह, राज्य को 1.22 लाख टन डीएपी की आवश्यकता है, लेकिन उसे इसका 70% मिला।
हालांकि, भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने सर्वजीत के दावे का खंडन करते हुए कहा कि बिहार में उर्वरक की कोई कमी नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया, "बिहार सरकार उर्वरकों की आपूर्ति, उपलब्धता और स्टॉक पर झूठ बोल रही है।"
समस्तीपुर ज़िले के पूसा स्थित डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, बिहार में यूरिया, डीएपी और पोटाश सहित अन्य उर्वरकों का इस्तेमाल बढ़ रहा है। बिहार प्रमुख धान उत्पादक राज्यों में से एक है। 2019-20 में, राज्य में लगभग 245.25 किलोग्राम/हेक्टेयर उर्वरकों का सबसे ज़्यादा इस्तेलमाल हुआ था।
कृषि बिहार की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। राज्य सरकार के आंकड़ों के अनुसार, कृषि 81% कामग़ारों को रोज़गार देती है और राज्य के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 42% उत्पन्न करती है। बिहार की लगभग 76% आबादी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है।
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