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"किसानों पर दमन नहीं रुका तो मोदी सरकार का सफाया तय"

भाजपा सरकार की केंद्रीय मंत्री व कोडरमा सांसद के आवास के समक्ष प्रतिवाद धरना देते हुए ये चेतावनी दी गयी कि यदि किसानों पर पुलिस दमन नहीं रुका तो मोदी सरकार का सफाया तय है।
Farmers

एम्एसपी समेत कई अन्य मांगों को दो वर्ष बीत जाने के बावजूद मोदी सरकार द्वारा पूरा नहीं किये जाने के ख़िलाफ़ आंदोलन कर रहे किसानों पर पुलिस दमन का सिलसिला लगातार बढ़ता जा रहा है। खासकर किसानों के मोर्चे पर युवा किसान नेता शुभकरण सिंह की मौत के बाद देश भर के किसान आक्रोशित हो रहे हैं। 

22 फ़रवरी को किसान संगठनों के ‘संयुक्त किसान मोर्चा’ के आह्वान पर झारखंड से लेकर बिहार प्रदेश के कई स्थानों पर किसान और वाम संगठनों के कार्यकर्ता सड़कों पर उतरकर आक्रोश प्रदर्शित कर रहे हैं।  ‘प्रतिवाद मार्च’, धरना और प्रधानमंत्री का पुतला दहन इत्यादि विरोध कार्यक्रमों के ज़रिये किसानों पर जारी दमन बंद करने की मांग करते हुए आंदोलनकारी किसानों के प्रति एकजुटता का प्रदर्शन किया जा रहा है। 

भाजपा सरकार की केंद्रीय मंत्री व कोडरमा सांसद के आवास के समक्ष प्रतिवाद धरना देते हुए ये चेतावनी दी गयी कि यदि किसानों पर पुलिस दमन नहीं रुका तो मोदी सरकार का सफ़ाया तय है। इसके अलावा गिरिडीह, रामगढ़ व पलामू समेत कई अन्य स्थानों पर भी विरोध प्रदर्शन जारी है। 

विरोध प्रदर्शनों को संबोधित करते हुए किसान संगठनों के नेतओं ने आरोप लगाया है कि "केंद्र की मोदी सरकार एकबार फिर से देश के किसानों के ख़िलाफ़ युद्ध पर उतर आई है। अन्नदाता किसानों को “आतंकवादी” करार देकर सरेआम हत्या तक कर रही है। पुलिस बर्बरता के शिकार हुए घायल किसानों के बहते लहू और मौत की क़ीमत मोदी सरकार को 2024 के लोकसभा चुनाव में चुकानी ही होगी। क्योंकि अब यह लड़ाई सिर्फ किसानों की नहीं बल्कि देश के आम नागरिकों की लड़ाई बनती जा रही है।" 

बिहार में भी अनेक स्थानों पर ‘संयुक्त किसान मोर्चा’ के बैनर तले प्रतिवाद कार्यक्रम आयोजित किये गए। 

राजधानी पटना में 22 फ़रवरी को जीपीओ गोलंबर परिसर से “किसान आंदोलन पर हमला करनेवाली नरेंद्र मोदी सरकार होश में आओ, लाठी-गोली की सरकार नहीं चलेगी, किसानों पर ज़ुल्म ढाना बांध करो!” जैसे नारे लगाते हुए प्रतिवाद-मार्च निकाला गया। जो बुद्धा स्मृति पार्क परिसर के समीप जाकर विरोध-सभा में तब्दील हो गया। 

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए किसान नेताओं ने कहा, भाजपा सरकार ने 9 दिसंबर 2021 को ‘संयुक्त किसान मोर्चा’ के प्रतिनिधियों को लिखित आश्वासन दिया था, जो दो बरस बीत जाने के बाद भी आज तक पूरा नहीं किया गया। जबकि खेती-किसानी में दिनों दिन बढ़ती लागत और घटती आमदनी के कारण पूरे देश भर के किसान बेहाल हैं। स्वामिनाथन आयोग की सिफ़ारिश के अनुसार फसल के उचित दाम की गारंटी किसानों की लंबे समय से मांग रही है। 2011 में गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए खुद नरेंद्र मोदी ने इन मांगों की सिफ़ारिश की थी और 2014 के चुनाव में भी देश के किसानों से इसका वादा भी किया था। लेकिन आज मोदी सारकार वादाखिलाफ़ी करते हुए किसानों पर लाठी-गोली बरसा रही है। 

कई वक्ताओं ने यह भी आरोप लगाया कि मोदी सरकार एक ओर, लंबित मांगों को पूरा करने की मांग कर रहे देश के आन्नदाता किसानों को “आतंकवादी-खालिस्तानी” कहकर बदनाम कर शांतिपूर्ण आंदोलन पर बर्बरता ढा रही है। तो साथ ही दूसरी ओर, गोदी मीडिया के जरिये ‘किसानों की एमएसपी’ को लेकर कानून बनाने की मांग के बारे में तरह-तरह के सुनियोजित भ्रम-अफ़वाह और झूठ का प्रचार करवा रही है। लेकिन अबकी बार किसानों ने भी ठान लिया है कि वादाखिलाफ़ी और दमन पर अमादा इस अहंकारी-दमनकारी मोदी सरकार से एक बार फिर ‘आर-पार का मोर्चा’ तेज़ किया जाएगा। निहत्थे किसानों पर ढाए जा रहे हर दमन-अत्यचार का हिसाब उसे देना ही होगा।  

इसके अलावा समस्तीपुर, दरभंगा, आरा, सिवान, बेगुसराय और नवादा समेत कई स्थानों पर ‘संयुक्त किसान मोर्चा’ के प्रमुख घटक अखिल भारतीय किसान महासभा के नेतृत्व में किसानों ने प्रतिवाद-मार्च निकालकर प्रधानमंत्री का पुतला-दहन किया। विरोध प्रदर्शन के दौरान बैनर-पोस्टरों के माध्यम से मोदी सरकार से सवाल पूछा कि, “किसानों की आय दोगुनी क्यों नहीं हुई प्रधानमंत्री जवाब दो, कॉर्पोरेट-उद्योगपतियों को कर्ज माफ़ी तो किसानों की क़र्ज़ माफ़ी क्यों नहीं मोदी सरकार जवाब दो, कृषि पर कॉर्पोरेट कब्ज़ा क्यों जवाब दो!” 

किसान नेताओं ने आक्रोश प्रदर्शित करते हुए आरोप लगाया कि किसानों के हितों की दुहाई देनेवाली, एमएसपी लागू करने का वादा करने वाली मोदी सरकार सत्ता में आते ही देश भर के किसानों से वादाखिलाफ़ी पर आमादा है। किसानों के पेट पर लात मारकर कॉर्पोरेट घरानों के पक्ष में सारे कानून बना कर देश पर थोप रही है। जब कृषि को कॉर्पोरेट क़ब्ज़े से बचाने के लिए अपने 700 आन्दोलनकारी किसान साथियों के प्राणों की आहूति देकर आंदोलन किये तो सरकार ने वार्ता-आश्वासन देने का दिखावा करते हुए किसानों की मांगों को पूरा करने के लिए कमिटी बनायी। जिसकी कोई भी अनुशंसा लागू नहीं की गयी। फलतः जब किसानों ने अल्टीमेटम देकर फिर से अपना आंदोलन शुरू किया है तो मांगों को पूरा करने की बजाय बर्बर दमन ढा रही है। रामलला को लाने के लिए मंदिरों का अंगना बुहारने वाली मोदी सरकार किसानों के रास्तों में कीलें ठोक रही है। अन्नदाता किसानों पर आंसू गैस के गोले दाग रही है, पैलेट गन चला रही है। जिसे पूरा देश देख रहा है कि अन्नदाता किसानों के साथ कैसी नाइंसाफी हो रही है। अब तो हर जगह किसान जहां ये नारे लगा रहें हैं कि- अन्नदाता किसानों पर लाठी-गोली बर्दाश्त नहीं करेंगे। वहीं एकजुट प्रतिवाद अभियानों के माध्यम से यह संकल्प भी ले रहे हैं कि किसान विरोधी मोदी सरकार को 2024 के लोकसभा चुनाव में सत्ता से बाहर करके ही दम लेना है।    

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