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दो टूक: कल्पना कीजिए नमाज़ियों की जगह अगर कांवड़िये होते तो

ये कहां आ गए हम! जहां नफ़रत ही अब हमारा धर्म और क़ानून व्यवस्था हो गया है।
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नमाज़ियों से बदसुलूकी। सजदे में लोगों को लात मारना। यह क़ानून व्यवस्था या रास्ता रोकने का मामला नहीं है। यह नफ़रत का मामला है।

दिल्ली के इंद्रलोक इलाके में शुक्रवार, 8 मार्च को नमाज़ के दौरान हुई इस घटना की हालांकि एक बड़े तबके ने निंदा की है। पुलिस ने कार्रवाई भी की है, लेकिन बड़ी संख्या में लोग पुलिस अधिकारी की कार्रवाई के समर्थन में भी आए हैं।

कल, शुक्रवार से ट्विटर यानी X पर लगातार पुलिस अधिकारी के पक्ष में ट्रेंड कराया जा रहा है। लोग I Stand With Manoj Tomar हैशटैग से दिल्ली पुलिस के अधिकारी मनोज तोमर के समर्थन में मुहिम चला रहे हैं। इनमें से ज़्यादातर लोगों की प्रोफ़ाइल में मोदी जी का परिवार भी लिखा है।

 

 

मनोज तोमर को समर्थन करने वाले लोग एक दूसरा वीडियो भी शेयर कर रहे हैं और कह रहे हैं कि ये पूरा वीडियो है और पुलिस वाले ने पहले नमाज़ियों को सड़क से समझा-बुझा कर हटाने की कोशिश की। लेकिन इस वीडियो को भी देख लीजिए कि तोमर साहब किस तरह धक्का-मुक्की कर रहे हैं। शायद यही इनका समझाने का तरीका है।

मनोज तोमर के ख़िलाफ़ कार्रवाई की गई है। लेकिन उसके समर्थक यह लोग मनोज तोमर के निलंबन को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। और दलील दे रहे हैं कि यह पुलिस वाला तो क़ानून व्यवस्था का पालन करा रहा था।

मनोज तोमर के समर्थक हिंदुत्ववादी लोगों सबसे बड़ा तर्क है कि मुसलमान सड़क पर नमाज़ क्यों पढ़ रहे हैं। ये रास्ता रोक रहे हैं तो इनके साथ ऐसा ही सुलूक होना चाहिए।

चलिए ज़रा रास्ता रोकने का जोड़-घटाव देखते हैं। नफ़रती लोगों का कहना है कि मुसलमान हर जुमे को सड़क पर नमाज़ क्यों पढ़ते हैं। तो इसका सीधा उत्तर है कि देश में इतनी मस्जिद हैं ही नहीं कि सभी लोग मस्जिद में नमाज़ पढ़ सकें। जबकि हर गली, मोहल्ले, हर सोसाइटी, अपार्टमेंट में आजकल मंदिर बने हैं। इसके बाद भी हिंदू धर्म या हिन्दुत्व वाले साल में जितना रास्ता रोकते हैं उसके मुकाबले जुमे पर यह पांच-दस मिनट की नमाज़ कुछ भी नहीं।

हिसाब लगाइए- साल में कुल 12 गुणा 4 यानी 48 जुमे यानी शुक्रवार आते हैं। या फिर दो बार ईद। जब मस्जिद या ईदगाह के अलावा भीड़ सड़कों पर आ जाती है। और मजबूरी में सड़कों पर नमाज़ पढ़नी पड़ती है। इसके बरअक्स पूरे सावन यानी एक महीने सड़क पर कांवड चलती है। 2023 में तो अधिमास होने की वजह से पूरे दो महीने का सावन रहा। जिसमें हर दिन शिव का जलाभिषेक किया गया।

इसके अलावा होली से पहले आने वाली फागुन की महाशिवरात्रि जो इस बार 8 मार्च यानी शुक्रवार के दिन थी जिस दिन नमाज़ियों के साथ बदसुलूकी की गई। इस महाशिवरात्रि के लिए भी करीब दस पंद्रह दिन कांवड़ चलती हैं। कांवड़ के चलते पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के तमाम हिस्सों में न केवल रूट डायवर्ट किया जाता है, रास्ता रोका जाता है। नीचे यह सब ताज़ा ख़बरों के स्क्रीन शाट्स हैं।

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कांवड़ियों के लिए केवल रास्ते ही नहीं रोके और बदले जाते बल्कि उनके स्वागत में उनके ऊपर सरकार द्वारा फूलों की वर्षा कराई जाती है। जगह जगह सड़कों पर शिविर लगते हैं, भंडारे होते हैं। इतना ख़्याल रखा जाता है कि कांवड़ियों के रास्ते में कोई व्यवधान न हो। और अगर हो जाए तो फिर हंगामा देखिए। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि इन कांवड़ियों के साथ कोई पुलिस वाला ऐसा सुलूक कर सकता था।

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इसके अलावा साल में दो नवरात्र होते हैं। एक शारदीय और दूसरा चैत्र नवरात्र। 18 दिन इनके जोड़ लीजिए। इस दौरान माता की चौकी, देवी का जागरण, भंडारे सड़कों पर ही होते हैं। बड़े बड़े लाउडस्पीकरों के साथ। लेकिन नमाज़ ही नहीं लोगों को दो-चार मिनट की अज़ान से भी दिक्कत होती है।

इसके अलावा गणेश महोत्सव। इसमें भी जगह जगह गणपति की स्थापना की जाती है। बड़े बड़े पंडाल लगाए जाते हैं। इसमें भी बहुत जगह रास्ता रोका जाता है और लोग खुशी खुशी स्वीकार करते हैं।

इसके अलावा भी कथा-प्रवचन, रामनवमी और रामलीला आदि के नाम पर रास्ते बंद कर दिए जाते हैं। और अब तो साल भर कुछ ज्यादा ही धार्मिक यात्राएं, जुलूस-जलसे होते रहते हैं। इस तरह देखिए तो सप्ताह में एक दिन, कुछ मिनटों की नमाज़ के मुकाबले हिंदू धर्म के नाम पर साल में कई महीने चौबीसों घंटे के लिए रास्ते बदल दिए जाते हैं, बंद कर दिए जाते हैं।

इसलिए इस तर्क का कोई औचित्य नहीं कि नमाज़ सड़क पर पढ़ने से कोई क़ानून व्यवस्था की स्थिति पैदा हो जाती है। और लोग परेशान होते हैं। दरअसल असली परेशानी हमारे उस दिमाग़ की है जिसे हिंदुत्ववादी राजनीति ने अल्पसंख्यकों ख़ासकर मुसलमानों से इस क़दर नफ़रत करना सिखा दिया गया है कि वह उनके अपमान, उत्पीड़न और हिंसा के बहाने ढूंढता है और ऐसा देखकर ख़ुश होता है। इसलिए ज़रा सोचिए और इस नफ़रत से बाहर निकलिए।

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