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बजट 2023 : मोदी राज में शिक्षा पर कम ख़र्च का चलन हुआ और बदतर

"पिछले नौ वर्षों से एक रुझान देखा जा रहा है कि शिक्षा पर केंद्र सरकार का वास्तविक ख़र्च, बजट अनुमानों की तुलना में लगातार कम ही रहा है।"
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फ़ोटो साभार: CANVA

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के शासन में शिक्षा पर भारत सरकार का ख़र्च लगातार कम होता जा रहा है।

केंद्रीय बजट के आंकडें बताते हैं कि 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से, केंद्र सरकार का शिक्षा पर ख़र्च जो पहले से ही कम था वो और तेज़ी से घटा है।

नीचे दिया गया चार्ट, 2013-14 से जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के प्रतिशत के रूप में केंद्र सरकार द्वारा शिक्षा पर किए गए ख़र्च को दर्शाता है।

वित्त वर्ष 2013-14 में शिक्षा पर केंद्र सरकार का ख़र्च जीडीपी का महज़ 0.63% था। वर्ष के संशोधित अनुमानों के अनुसार, बाद के वर्षों में, यह तेज़ी से गिर गया, 2021-22 में महामारी के दौरान 0.34% के निचले स्तर को छू गया, और 2022-23 में इसमें केवल 0.37% तक मामूली सुधार हुआ।

भले ही शिक्षा मंत्रालय को इस साल 1.12 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए हों, लेकिन 2023-24 के बजट अनुमानों में यह आंकड़ा वही रहा है, यानी जीडीपी का 0.37 फीसद जबकि पिछले साल आवंटन राशी 1.04 लाख करोड़ रूपये थी। स्कूल शिक्षा विभाग को 68,804 करोड़ रुपये और उच्च शिक्षा विभाग को 44,094 करोड़ रुपये प्राप्त होंगे।

यहाँ यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि 2021-22 के लिए 0.34% का वास्तविक आंकड़ा पिछले साल इस समय पर उपलब्ध संशोधित अनुमानों की तुलना में 0.4% कम है। इसी तरह, 2022-23 के लिए 0.37% का आंकड़ा भी पिछले साल के बजट के आंकड़ों पर आधारित अनुमानों की तुलना में 0.3% कम है।

यह एक 'कंसिस्टेंट ट्रेंड' की ओर इशारा करता है कि शिक्षा पर केंद्र सरकार का वास्तविक ख़र्च बजट अनुमानों की तुलना में काफी कम रहा है।

2013-14 से 2021-22 तक नौ वर्षों के दौरान, जिसके लिए वास्तविक आंकडें (फाइनल आंकडें) उपलब्ध हैं-शिक्षा पर वास्तविक ख़र्च 2017-18 (जब वास्तविक ख़र्च बजट अनुमान से 528.72 करोड़ रुपये अधिक था) को छोड़कर हर साल बजट अनुमान से कम ही रहा है। अन्य आठ वर्षों के दौरान, वास्तविक ख़र्च बजट अनुमानों से कम ही रहा-ये कमी 2015-16 में 1,835.61 करोड़ रुपये से लेकर 2020-21 में 15,092.1 करोड़ रुपये तक रही।

स्कूली शिक्षा, जिसे उच्च शिक्षा की तुलना में बड़ा बजट आवंटित है, को और अधिक कमी का सामना करना पड़ा। 2022-23 में, उपलब्ध संशोधित अनुमान (फाइनल आंकडें उपलब्ध नहीं) के मुताबिक स्कूली शिक्षा में 4,396.59 करोड़ रुपये की कमी देखी गई है।

हालांकि, 2022-23 में उच्च शिक्षा के आंकडें कुछ दिलचस्प हैं। 2013-14 के बाद के सभी दो वर्षों में, उच्च शिक्षा को हज़ारों करोड़ रुपये की कमी का सामना करना पड़ा। लेकिन 2022-23 में, संशोधित अनुमान बिल्कुल बजट अनुमानों के समान ही है-40,828.35 करोड़ रुपये (दशमलव बिंदु तक)। अधिकांश उप-शीर्षों के तहत व्यय के संशोधित अनुमान जो उच्च शिक्षा का हिस्सा हैं, वे बजट अनुमानों से भिन्न होते हैं (कुछ अधिक और कुछ कम) लेकिन सभी का जोड़ बिल्कुल बजट अनुमानों के बराबर होता है, मानो जैसे कोई जादू हो। यह देखने के लिए कि क्या यह "जादू" दोहराया जाएगा, हमें वास्तविक आंकड़ों का इंतज़ार करना होगा।

फिर भी, केंद्रीय बजट 2023-24 भारत के छात्रों और लोगों के लिए दु:खद है जो ये सुनिश्चित करता है कि केंद्र सरकार द्वारा शिक्षा पर बेहद कम ख़र्च करने की प्रवृत्ति भाजपा के शासन में और ख़राब होती जा रही है।

(लेखक Tricontinental Research में अर्थशास्त्री और शोधकर्ता हैं।)

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Union Budget 2023: Trend of Centre’s Low Spending on Education Worsens Under Modi

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