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बजट के बाद वाराणसी के बुनकर परेशान; कहा- धागे पर सीमा शुल्क वृद्धि ताबूत में आख़िरी कील के समान 

‘पुराने रेट पर हासिल ऑर्डर्स का निपटान कर पाना मुश्किल साबित होता जा रहा है। जिन खरीददारों ने पुराने रेट पर बुनकरों के साथ माल की खरीद के आर्डर दिए थे, वे अब अपनी वचनबद्धता से मुकर गये हैं। इन परिस्थितियों के कारण 70 से 80 करोड़ रूपये तक के आर्डर अधर में लटके पड़े हैं।
बजट के बाद वाराणसी के बुनकर परेशान; कहा- धागे पर सीमा शुल्क वृद्धि ताबूत में आख़िरी कील के समान 

लखनऊ: पॉवरलूम बुनकरों पर संशोधित बिजली शुल्क थोपे जाने के बाद से केन्द्रीय बजट में रेशम पर कस्टम ड्यूटी में पांच प्रतिशत की बढ़ोत्तरी किये जाने के फैसले ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वाराणसी निर्वाचन क्षेत्र में  बनारसी साड़ी और कपड़ा बुनाई उद्योग की ताबूत में आखिरी कील ठोंकने का काम किया है।

कपास पर कस्टम ड्यूटी को शून्य से बढ़ाकर 10% कर दिया गया है। कच्चे रेशम और रेशम धागे पर इसे 10% से बढ़ाकर 15% कर दिया गया है। संशोधित कस्टम ड्यूटी को 1 फरवरी की बजट घोषणा के बाद से तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया गया है। इसका कुल नतीजा यह हुआ है कि बुनकर बिरादरी साड़ियों और हथकरघा उद्योग से बनने वाली पोशाकों को पहले वाली दरों पर निर्मित करने से इंकार कर रही हैं।

इसके फलस्वरूप राज्य भर में कपड़ा व्यापारियों का पॉवरलूम क्षेत्र में करीब 80 करोड़ रूपये का साड़ियों का आर्डर अधर में लटक गया है। अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक त्यौहारी सीजन के दौरान और बाद में गर्मियों में शादी के सीजन पर भी इसका असर व्यापार पर पड़ने जा रहा है। ज्ञातव्य हो कि वाराणसी का कपड़ा उद्योग काफी हद तक शादी के सीजन पर निर्भर करता है। 

उत्तर प्रदेश बुनकर संघ के अध्यक्ष इफ़्तेख़ार अहमद अंसारी के मुताबिक जनवरी में रेशम की कीमत करीब 4,100 रूपये प्रति किलोग्राम थी, जो कि अब 4,400 रूपये से बढ़कर 4,600 रूपये प्रति किलोग्राम हो चुकी है। रेशम के साथ ज़री (सोने/चांदी के धागे) या बेल-बूटे की कीमतों में भी इजाफा हुआ है। उन्होंने बताया कि जनवरी 2021 में एक बंडल ज़री की कीमत 360 रूपये से लेकर 380 रूपये के बीच में थी। लेकिन अब उसी बंडल का भाव अब 450 रूपये हो चुका है। इसी प्रकार सूती धागे की कीमत भी 450-500 रूपये प्रति किलो से बढ़कर 550-600 रूपये प्रति किलोग्राम हो चुकी है। चीनी रेशम, मूंगे, टशर की कीमतों में भी 200 से 250 रूपये की बढ़ोत्तरी देखने को मिली है, जबकि यार्न कतान की कीमत 4,600 रूपये तक पहुँच चुकी है। 

बजट घोषणा पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए अंसारी ने न्यूज़क्लिक को बताया: “हथकरघा उद्योग पर पड़े कोविड-19 के गंभीर प्रभाव के बावजूद सरकार द्वारा जनवरी 2020 से ही ‘फ्लैट रेट” सब्सिडी को खत्म कर हमसे भी बिजली मीटर के हिसाब से शुल्क वसूला जा रहा है। ऐसे में वाराणसी में बुनकरों ने अपनी सारी उम्मीदें बजट पर लगा रखी थीं, लेकिन उन्हें पूरी तरह से निराश छोड़ दिया गया है। 

उन्होंने आगे कहा कि कोविड-19 ने वास्तव में उनके व्यवसाय को नुकसान पहुंचाया है, और कच्चा माल भी पहले से ज्यादा महंगा हो चुका है। न्यूज़क्लिक से अपनी बातचीत के दौरान अंसारी का कहना था “कस्टम ड्यूटी में बढ़ोत्तरी के कारण साड़ियों और ड्रेस मटेरियल को लेकर जो पुराने आर्डर मिले थे, उनपर फिलहाल रोक लगा दी गई है। जिन व्यवसायियों को होली और गर्मियों में शादी के सीजन के लिए आर्डर मिले थे वे अब धागे की कीमतों में बढ़ोत्तरी होने के कारण भेज पाने में असमर्थ साबित हो रहे हैं। पुराने रेटों पर आर्डर को पूरा कर पाना मुश्किल होता जा रहा है। वे खरीदार जिन्होंने बुनकरों के साथ पुराने रेटों पर आर्डर का करार किया हुआ था, वे अब अपने वायदे से मुकर रहे हैं। इन परिस्थियों के चलते 70 से 80 करोड़ रूपये तक के आर्डर अधर में लटके हुए हैं।”

हाशिम जो कि वाराणसी में बारह बुनकर समूहों के प्रमुख हैं का कहना था कि सरकारी नीतियों और कोविड-19 महामारी की वजह से उनके व्यवसाय को इसकी सबसे अधिक मार झेलनी पड़ी है। सिर्फ वाराणसी ही नहीं बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश के बुनकरों के सामने अब अपनी दैनिक जरूरतों की पूर्ति कर पाने का संकट खड़ा हो गया है।

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए हाशिम ने आगे बताया “हमारे लिए इस बजट में कुछ भी नहीं है और हमें बेहद निराशा हुई है। जबकि हम उम्मीद कर रहे थे कि कोविड-19 की वजह से 2020 में हमें जो नुकसान उठाना पड़ा था, उसे देखते हुए बजट में हमारे लिए राहत पैकेज की घोषणा की जा सकती है। हमें उम्मीद थी कि सरकार एक उदार बजट के साथ लागत में मुद्रास्फीति के कारण बढ़ोत्तरी को काबू में लाने के लिए आवश्यक उपायों को प्राथमिकता देगी। इसके साथ-साथ घरेलू विनिर्माण को मजबूती देने और इस वर्ष घटक पारिस्थिकी तंत्र को स्थापित करने पर खुद को केंद्रित करेगी। हम यह भी उम्मीद कर रहे थे कि हमें कच्चा माल उचित दरों पर उपलब्ध कराया जायेगा और सस्ते दरों पर धागा उपलब्ध हो सकेगा। बुनकरों द्वारा जीएसटी और टैक्स चुकाया जाता है।”

हाशिम के अनुसार वाराणसी के बुनकर उद्योग से सालाना करीब 50 अरब रुपयों का राजस्व अर्जित होता है। उद्योग चाहता था कि सरकार गरीबों को लेकर पहले से कहीं अधिक विचारशीलता से काम लेगी, लेकिन बजट ने उन्हें पूरी तरह से निराश किया है। बुनकर महासभा के सचिव आदिल ज़ुबैर का इस बारे में कहना था “पहले नोटबंदी और फिर माल एवं सेवा कर (जीएसटी) ने उद्योग को बुरी तरह से प्रभावित करने का काम किया था। फिर एक ऐसा भी समय आया जब उद्योग धीरे धीरे एक बार फिर से उठ खड़ा होने की कोशिश में था, तो चीन ने महामारी के कारण पिछले साल दिसंबर में रेशम के धागे के निर्यात पर रोक लगा दी थी। जब मार्च में चीन द्वारा इसे फिर से शुरू किया गया तो भारत में लॉकडाउन को थोप दिया गया था। इन सभी मुश्किलों के अलावा सरकार द्वारा पिछले वर्ष जनवरी माह के बाद से ‘फ्लैट रेट’ वाली सब्सिडी को खत्म करने के बाद से बुनकरों से बिजली मीटर के हिसाब से शुल्क वसूला जा रहा है। इन सबके चलते कपड़ा उद्योग पर इसका व्यापक असर पड़ने जा रहा है जिसमें ईकाइयों में तालाबंदी से लेकर अंततः व्यापक मात्रा में रोजगार का नुकसान होने जा रहा है।”

ज़ुबैर ने दावे के साथ कहा “रेशम और सूती धागे की कीमतों में वृद्धि के कारण कई बुनकरों ने अपना काम बंद कर दिया है। अधिकाँश रेशम और सूती धागे का इस्तेमाल वाराणसी में किया जाता है, इसलिए कस्टम ड्यूटी में बढ़ोत्तरी नहीं की जानी चाहिए थी। जबकि इसी दौरान नायलॉन धागे की कीमतों में कमी देखने को मिली है, जिसके चलते सूरत में व्यवसाय को और अधिक मदद मिल रही है।”

लॉकडाउन के दौरान चीन से आने वाला रेशम जो उस दौरान 2,700 रूपये प्रति किलोग्राम की दर पर बिक रहा था, अब उसकी लागत 4,200 रूपये से 4,300 रूपये के बीच में है जो कि तकरीबन 55% की बढ़ोत्तरी है। अगले तीन महीनों तक शादी के सीजन के अभाव के बावजूद लगता है कि कारोबार में मदद नहीं मिली है। हर साल बुनकर अपने लिए अनुकूल बजट के इंतजार में रहते हैं, और इस बार भी उन्हें इसकी उम्मीद थी। उन्हें उम्मीद थी कि सरकार लॉकडाउन के दौरान हुए घाटे से उबारने में उनकी मदद करेगी।

अतीक़ अंसारी जो कि एक बुनकर हैं, ने बताया “हमसे 2019 तक तयशुदा रेट पर बिजली शुल्क लिया जाता था, उसके बजाय अब मीटर के आधार पर बिजली की दरें वसूली जा रही हैं। 10 दिनों तक चले विरोध प्रदर्शन के दौरान यह हमारी मुख्य मांगों में से एक था। हमें सरकार की ओर से आश्वस्त किया गया था कि हमारी मांगों को पूरा किया जायेगा, लेकिन ऐसा कुछ देखने को नहीं मिला है।” 

उल्लेखनीय है कि वाराणसी सहित राज्य के बाकी के हिस्सों में पॉवरलूम बुनकरों ने पिछले साल सितंबर में उत्तर प्रदेश बुनकर महासभा और वाराणसी स्थित बिरादराना तंज़ीम के बैनर तले बिजली की दरों में अचानक हुई बढ़ोत्तरी के खिलाफ सड़कों पर उतर आये थे। इन संगठनों का दावा है कि इनके ओवरहेड खर्चों में पूर्व की तुलना में बढ़ोत्तरी हो चुकी है, जो कपड़ा बुनाई उद्योग को पूर्ण बंदी के हालात में ले जा सकता है। उनकी तीन प्रमुख मांगें इस प्रकार थीं: तयशुदा दरों पर बिजली मुहैय्या कराई जाए, बकाया बिलों की वसूली के नाम पर उत्पीड़न पर रोक लगे और बुनकरों के बिजली कनेक्शन को न काटा जाए। न्यूज़क्लिक ने बड़े पैमाने पर इस विरोध प्रदर्शन को कवर किया था।

शहर में बनारसी साड़ियों, स्टोल और अन्य कपड़ों के काम में करीब पांच लाख बुनकर जुड़े हुए हैं। उनका कहना है कि सरकार के इन क़दमों की वजह से उनके पास निर्माण स्थलों पर काम करने, ई-रिक्शा चलाने या सड़क किनारे फल-सब्जियां बेचने का काम करने के सिवाय कोई चारा नहीं बचा है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करे

Budget: Customs Duty Hike on Yarn Last Nail in Coffin, Say Weavers In PM Modi’s Varanasi

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