बुल्ली बाई: सभी आरोपियों को मिली ज़मानत, पीड़ित मुस्लिम महिलाओं को इंसाफ़ का इंतज़ार
साल 2022 की शुरुआत ‘बुल्ली बाई’ जैसे नफरती हथियार के साथ हुई। इस एक ऐप पर 100 से अधिक मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरों को ‘नीलामी’ के लिए डाला गया। इन महिलाओं की ऑनलाइन बोली लगाई जा रही थी। इसमें अभिनेत्री शबाना आज़मी से लेकर दिल्ली उच्च न्यायालय के एक मौजूदा न्यायाधीश की पत्नी, नजीब की मां, कई मुस्लिम महिला पत्रकार, कार्यकर्ताओं और महिला राजनेताओं की तस्वीरें भी शामिल थीं। मामले ने तूल पकड़ा तो कई गिरफ्तारियां हुईं और अब लगभग छह महीने बाद गिरफ्तार किए गए सभी छह अभियुक्तों को जमानत मिल गई है। इस जमानत के बाद आरोपियों को राहत तो मिल गई है लेकिन ऐप के जरिए नफरत का शिकार हुईं मुस्लिम महिलाओं को आज भी न्याय का इंतज़ार है।
बता दें कि इससे पहले 'सुल्ली डील्स' के जरिए मुस्लिम महिलाओं को टारगेट करने की कोशिश की जा रही थी। इन दोनों ऐप के ज़रिए उन महिलाओं को निशाना बनाया गया, जो समाज में होने वाले अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाती रही हैं। जो महिलायें राजनैतिक रूप से सक्रिय हैं और डिजिल दुनिया या सोशल मीडिया पर अपनी बातों को मजबूती से रखती हैं। वैसे भी महिला को ट्रोल करना सोशल मीडिया पर लोगों के लिए सबसे आसान काम बन गया है और ये ट्रोलिंग ज़्यादातर पर्सनल हो रही है।
क्या है पूरा मामला?
‘सुल्ली डील्स' की तरह 'बुल्ली बाई' ऐप भी एक होस्टिंग प्लेटफॉर्म पर बनाया और इस्तेमाल किया गया था। ये प्लेटफॉर्म गिटहब ओपन-सोर्स कोड का भंडार है। सोशल मीडिया यूज़र्स के मुताबिक ऐप 'बुल्ली बाई' भी सुल्ली डील्स की तरह ही काम करता था। यह पोर्टल कथित तौर पर शनिवार, 1 जनवरी 2022 को लॉन्च किया गया था और इसमें अपमानजनक कंटेंट के साथ पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, छात्रों और प्रसिद्ध हस्तियों सहित मुस्लिम महिलाओं की कई तस्वीरें थीं। इनमें से कई महिलाओं की शिकायत करने के बाद मुंबई पुलिस के साइबर सेल ने एफआईआर दर्ज कर इन अभियुक्तों को गिरफ्तार किया था।
जनवरी में गिरफ्तारी के बाद अप्रैल में मुंबई के ही एक मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने इस मामले के तीन अभियुक्त विशाल झा, श्वेता सिंह और मयंक रावत को जमानत दे दी थी। अब मुंबई सेशंस कोर्ट ने बाकी बचे तीन आरोपियों ओंकारेश्वर ठाकुर, नीरज बिश्नोई और नीरज सिंह को भी जमानत दे दी है। इसी के साथ मामले में गिरफ्तार किए गए सभी छह अभियुक्त जमानत पर बाहर आ गए हैं।
मालूम हो कि जमानत के लिए अदालत को दी अर्जी में ओंकारेश्वर ठाकुर, नीरज बिश्नोई और नीरज सिंह ने कहा था कि उन पर झूठे आरोप लगाए गए हैं। उन्होंने माना था कि वो बुल्ली बाई ऐप को फॉलो करते थे, लेकिन उन्होंने ऐप को बनाया नहीं था। उन्होंने यह दलील भी दी थी कि अगर आरोप सही भी हों तो अदालत को "पिता तुल्य" रुख अपनाना चाहिए क्योंकि उन्हें जेल में डाले जाने की जगह काउंसलिंग की जरूरत है। इसके बाद अतिरिक्त सेशंस जज एबी शर्मा ने ओंकारेश्वर ठाकुर, नीरज बिश्नोई और नीरज सिंह को 50,000 रुपयों के जमानत बांड और उतनी ही धनराशि के एक या दो साल्वेंट बांड पर जमानत देने का आदेश दिया। इसके साथ ही अभियुक्तों को हर महीने साइबर पुलिस स्टेशन जाने का और अदालत की अनुमति के बिना विदेश यात्रा ना करने का आदेश भी दिया गया।
महिलाविरोधी, सांप्रदायिक मानसिकता और टूल्स, सोशल मीडिया मंचों का उपयोग
गौरतलब है कि बीते कुछ समय में साइबर बुलीइंग और ऑनलाइन उत्पीड़न को बहुत संगठित तरीके से बढ़ते देखा गया है। ये मुख्य रूप से दलितों, मुस्लिमों, ईसाईयों और सिखों के खिलाफ ना सिर्फ विचारों बल्कि सक्रिय रूप से हिंसा को बढ़ावा देते हैं। ये हत्या, बलात्कार और हर तरह की हिंसा करने की खुलेआम धमकी देते हैं। कुल मिलाकर देखें तो सुल्ली डील्स और बुल्ली बाई जैसे प्रकरण, गहराई तक महिलाविरोधी तथा सांप्रदायिक मानसिकता और तकनीक द्वारा मुहैया कराए गए टूल्स एवं सोशल मीडिया मंचों के उपयोग के योग की कहानी बयान करते हैं।
बहरहाल, इस मामले को सिर्फ एक समुदाय विशेष तक ही सीमित करने देखना सही नहीं होगा, अपितु इस पितृसत्तात्मक सोच के दूरगामी प्रभाव पूरी महिला बिरादरी को भुगतने पड़ सकते हैं। सुल्ली डील्स का मामला सामने आने के कुछ दिन बाद सोशल मीडिया पर यह भी कहा गया था कि हिंदू महिलाओं को भी इस तरह के यौन उत्पीड़न का निशाना बनाया जाता है। बताया गया कि टेलीग्राम, डिसकॉर्ड, रेडिट और दूसरे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर ऐसे ग्रुप और पेज हैं, जहां हिंदू महिलाओं की फोटो को मॉर्फ करके उन्हें सेक्स वर्कर के तौर पर पेश किया जाता है। इसके साथ ही ये भी बताया गया कि इन पेज और ग्रुप्स के जरिए पॉर्नोग्राफिक कंटेट परोसा जाता है, जिसमें हिंदू महिलाओं और मुस्लिम पुरुषों को आपत्तिजनक अवस्था में दिखाया जाता है। मुस्लिम बहुल देशों के नाम इसमें सामने आए।
हालांकि महिलाएं चाहें किसी भी धर्म की हों ये मुद्दा मानसिकता का है, यह एक लिंग आधारित मामला है, जिसे समझना बेहद जरूरी है। डिजिटल एरा में जीते हुए यह सरकारी ज़िम्मेदारी है कि वह डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को महिलाओं के लिए सुरक्षित बनाए, जिससे डिजिटल स्पेस में महिलाओं को अपने विचारों की अभिव्यक्ति को लेकर संघर्ष न करना पड़े।
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